• Skip to primary navigation
  • Skip to main content
  • Skip to primary sidebar
  • Skip to footer

ECI TUTORIAL

Everything about Bihar Board

  • Home
  • Class 12th Solution
  • Class 10th Solution
  • Class 9th Solution
  • Bihar Board Class 8th Solution
  • Bihar Board Class 7th Solutions
  • Bihar Board Class 6th Solutions
  • Latest News
  • Contact Us

कक्षा 9 इतिहास पाठ 4 विश्‍व युद्धों की इतिहास | Vishwa yudh ki itihas Class 9th History Notes

February 4, 2023 by Tabrej Alam Leave a Comment

इस लेख में बिहार बोर्ड कक्षा 9 इतिहास के पाठ 4  ‘विश्‍व युद्धों की इतिहास (vishwa yudh ki itihas 9th History Notes)’ के नोट्स को पढ़ेंगे। 

vishwa yudh ki itihas 9th History Notes

 

पाठ-4

विश्‍व युद्धों की इतिहास

1. प्रथमविश्‍वयुद्ध के उत्तरदायी किन्ही चार कारणों का उल्लेख करें
उत्तर- प्रथम विश्व युद्ध के निम्नलिखित कारण है।

(i) सम्मज्यवादी प्रतिस्पर्द्धा – कुछ देश पहले ही उपनिवेश बना चुके थे और कुछ देश बाद में आए। अतः इनके बिच युद्ध अवश्यम्भावी हो गया।
(ii) उग्र राष्ट्रवाद – युरोपीय देशों में राष्ट्रीयता की भावना उग्र होने लगी।
(iii)सैन्यवाद – युरोपीय देशो एक-दूसरे को निचा दिखाने के लिए सेना में वृद्धि करने लगे।
(iv) गुटो का निर्माण- युरोपीय देश गुटो में बँटने लगे गुट बनाने को उन देशों की प्रमुखता थी, जो उपनिवेश कायम करने में पिछडे हुए थे।

2. त्रिगुट तथा त्रिदेशीय संधि में कौन-कौन देश सामिल थे इस गुटो का उदेश्‍य क्‍या था
उत्तर-त्रिभुट में जर्मनी, इटली, अस्ट्रिया-हंगेरी आदि तो देश थे। त्रिदेशीय में फ्रांस, इंग्लैड तथा रुस । इस गुटो की स्थापना का उद्देश्य था की युद्ध कि स्‍थित में एक गुट दुसरे गुट की सहायता करें।

3. प्रथम विश्व युद्ध का तात्कालिन कारण क्या था?
उत्तर-प्रथम विश्व युद्ध की कारण ऑस्ट्रीया के राजकुमार आर्कड्यूक फोडनेण्ड की हत्या बोस्निय की राजधानी साराजेवों में होगई। इस घटना के लिए सार्विय को जिम्मेदार ठहराया गया। उसने सर्बिया के समक्ष अनेक माँगे रखा। सर्विया नेचसे मानने से इनकार कर दीया28- जुलाई 1914 को ऑस्ट्रीया किं सर्विय के खिलाफ युद्ध कि घोषना कर दी।रूस सर्विया को मदद किया जर्मनी ने ऑस्‍ट्रिया के पक्ष में रूस और फ्रांस के विरूद्ध युद्ध को घोषण कर दी जिसे प्रथम विश्‍व युद्ध आरंभ हो गया।

4. सर्वस्‍लाव आंदोलन का क्‍या तान्‍पर्य हैं?
उत्तर– सर्वस्‍लाव आंदोलन का तान्‍तर्य था स्‍लाव लोगो को एकत्र कर राष्‍ट्र के रूप में स्‍थापित करना तुर्की सामाज्‍य में तथा ऑस्‍ट्रीया हंगरी में स्‍लाव जातियों की बहुलता थी उन्‍होंने सर्वस्‍लाव आंदोलन आरंभ किया आंदोलन इस सिद्धांत पर आधारित था कि स्‍लाव जाति के लोग एक राष्‍ट्र के रूप में रहेगें।

5. उग्र राष्‍ट्रीयता प्रथम विश्‍व युद्ध का किस प्रकार एक कारण थी?
उत्तर- राष्‍ट्रवाद इस प्रकार लोगों में समा गया था कि एक राष्‍ट्र दूसरे राष्‍ट्र को हमेशा नीचा दिखाने का प्रयास करने लगा जिन जातियों का कोई राष्‍ट्र नहीं था वे भी अपने को राष्‍ट्र के रूप में स्‍थापित करना चाहते थे राष्‍ट्रवाद के चलते ही सैन्‍यवाद की भावना बढ़ने लगी फिर सैन्‍यवाद का परिणाम हुआ कि राष्‍ट्र गुटों में बटने लगा छोटी-मोटी घटना को कोई राष्‍ट्र बददश्‍त करने की स्‍थित में नहीं था जिसका परिणाम 1914 में प्रथम विश्‍व युद्ध आरंभ हो गया इस प्रकार उग्र राष्‍ट्रवाद ही प्रथम विश्‍व युद्ध का कारण था।

6. द्वितीय विश्‍वयुद्ध प्रथम विश्‍वयुद्ध की ही परिणति थी कैसे?
उत्तर- द्वितीय विश्‍वयुद्ध के बीच वसार्य की संधि में द्विपे को विजयी देशों पराजित देशों को ऐसी-ऐसी संधियों में बांधा गया की वे खुन का घुट पिने लगे पराजीत राष्‍ट्रो पर वर्साय के निर्याय को थोपा गया जिसमें जर्मनी को उसके द्वारा जीते गए क्षेत्रों से बदखल कर दिया गया, इसके अलाव उसपरउ भारी जुर्मना थोपा गया जिसे देना उसकी क्षमता से बाहर था जर्मनी की जनता अपनानीत महशुस कर रही थी इसी समय जर्मनी में हिटलर का उदय हुआ उसने जुर्माने को मानने से इनकार कर दीया और युद्ध छेड़ दिया विश्‍व दो गुटो में बट गई जिसे द्वितीय विश्‍व युद्ध आरंभ हो गया

7. द्वितीय विश्‍वयुद्ध के लिए हिटलर कहाँ तक उत्तरदायी था?
उत्तर-द्वितीय विश्‍वयुद्ध के लिए हिटलर किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं था उसे उत्तरदायी ठहराने वाले वे ही लोग है जिन्‍होंने जर्मनी को अपमानीत किया था कोई भी देश अपना बरदशत नहीं कर सकता था अपमान का बदला लेने के लिए हिटलर ने जो किया वह सही था वास्‍तव में उसे उत्तरदायी ठहराने वाले वही मुठ्ठी भी कम्‍युनिष्‍ट तथा गारी चमड़ी वाले फिरंगियों की हाँ में हाँ मिलाने वाले है। वह भी अपने लाभ के लिए।

8. द्वितीय विश्‍व युद्ध के किन्‍ही पाँच कारणों का उल्‍लेख करें।
उत्तर-(1) धन-जन की अपार हानि
(2) यूरोप में उपनिवेशों का अंत
(3) इंग्‍लैंड की शक्‍ति का ह्रास तथा रूस और अमेरिका के वर्चस्‍व की स्‍थापना
(4) संयुक्‍त राष्‍ट्र संघ की स्‍थापना
(5) विश्‍व में गुटों का निर्माण तथा निगुट देशों में एकता।

9. तुष्टिकारण की नीति क्‍या हैं?
उत्तर– तुष्टिकरण की निति यह है कि अपने विरोधी को दबाने के लिए अपने ही किसी दुश्‍मन को सहायता देना और उसके करतुतो को ओर से आँख मुंढे रहना र्इग्‍लैंड जर्मनी को इसलिए बढ़ने का अवसर देता रहा ताकि साम्‍वादी देश रूस को हरा दे लेकिन एैसा नहीं हुआ तुष्टिकरण की नीति का परिणाम हमेशा बुरा होता है।

10. राष्‍ट्रसंघ क्‍यों असफल रहा?
उत्तर-राष्‍ट्रसंघ की शक्‍तियों और सदस्‍य के सहयोग का अभाव राष्‍ट्रसंघ ने छोटे-छोटे राज्‍यों के मामलों को असानी से सुलक्षा दिया लेकिन बड़े राष्‍ट्रों के मामले में उसने अपने को अक्षम पाया इस कार्य के लिए शक्‍तिशाली देशों का समर्थन नहीं मिला शक्‍तिशाली देस हर नियम को व्‍यस्‍य अपने हक में करने लगे हिटलर ने राष्‍ट्र संघ को बात मानने से इनकार कर दिया इस प्रकार राष्‍ट्रसंघ असफल रहा।

vishwa yudh ki itihas 9th History Notes

दिर्घ उत्तरीय प्रश्‍न

1. प्रथम विश्‍व युद्ध के क्‍या कारण थे संक्षेप में लिखें।
उत्तर-प्रथम विश्‍व युद्ध के निम्‍नलि‍खित कारण थे:-

(1) प्रथम विश्‍व युद्ध के निम्‍नलिखित कारण थे
उत्तर- प्रथम विश्‍वयुद्ध का सबसे प्रमुख कारण था सम्राज्‍यवादी प्रतिस्‍पर्धा प्रय: सभी यूरोपीय देश अपने-अपने उपनिवेशों को बढ़ाने में लगे थे दूसरा कारण था उग्रराष्‍ट्रवाद यूरोपीय देशों में राष्‍ट्रीयता का संचार उग्र रूप से होने लगा था तीसरा कारण सैन्‍यवाद की प्रवृतियों अपने उपनिवेशों को बनाए रखने के लिए सैन्‍य का विकास किया गया यूरोपीय देश दो गुटों में बट गया था जिसका अगुआ जर्मनी चांसलर बिस्‍मार्क था जो दो प्रमुख गुट थे वे थे (1) त्रिगुट जिसमें जर्मनी, इटली और ऑस्‍ट्रिया-हंगरी प्रमुख भूमिका निभा रहे थे दुसरा गुट त्रिदेशीय इसमें भी तीन ही देश थे ब्रिटेन, फ्रांस और रूस ऐ सभी बाते ने ऐसी स्‍थिति बना दी की युद्ध कभी भी किसी भी समय हो सकता था ऐसा ही हुआ एक छोटी सी घटना ने युद्ध को भड़का दिया।

2. प्रथम विश्व युद्ध के क्या परिणाम हुए?
उत्तर- प्रथम विश्व युद्ध कामुख्य परिणाम हुआ कित्रिगुट देशों की हार हुई विश्‍व में कभी भी
ऐसा युद्ध न हो इसके लिए राष्ट्रसंघ का स्थापना हुआ। लेकिन इसमें भी कुछ
दोष थेइसके गठन में मुख्य हाथ अमेरिका का था स्वयं इसका सदस्य नहीं बना। सबसे महत्वपूर्ण तो थी वर्साय की संधी इस संधि के तहत हारे हुए देशों को सभी तरह से दबाया गया। सबसे अधिक जर्मनी पर प्रतिबंध लगा । एक तो उसके जिते गए क्षेत्र की छिन लिया गया। स्वयं उसके अपने देश के कुछ भाग पर विजयी देशो ने कब्जा कर लिया। ऐ भाग ऐसे थे जो खनिजों में धनी थे। उस संधि पर उससे जबरदस्ती हस्ताक्षर कराया गया था। उसके सैन्य
शक्ती को शिमित कर दीया गया था उस पर भारी जुर्माना लगाया गया। जुर्मना इतना अधिक काकी बह उसे चुका नही सकता था सबसे अधिक लाभ में फ्रांस था। जर्मनी के सारे क्षेत्र के कोयला खादानो को 15 वर्षो के लिए फ्रांस को दिया गया था। जर्मनी के सभी उपनिवेश विजयी देशों ने आपस में बाँट लिया। इस अपमानजनक संधि का परिणाम था की जर्मनी में हिटलर और इटली में मुसोलीन का उदय हुआ और देश की जनता नें इसका सम्मान मिला जिसका मुख्य परिणाम यह हुआ कि दुतिय विश्व युद्ध आरंभ हो गया

3. क्या वर्साय की संधि एक आरोपीत संधी थी?
उत्तर-हाँ वर्साय की संधि एक आरोपीत संधि थी इसका प्रमाण है कि संधि के प्रावधानों को निश्चित करते समय विजीत देशी विजीत देशी के किसी भी प्रतिविधि को नही बुलाया गया था प्रावधान निश्चित करते समय निर्णयी देश अपनी मनमानी प्रावधान निश्चित किया। जर्मनी के जीते गए क्षेत्रो को तो लेही लिया गया उसके कोयला क्षेत्र को 15वर्षों के लिए फ्रांस को देदिया गया। उसके सैन्य सक्ती को सीमीत कर दीया गया और उसके उपनिवेशो फ्रांस और ब्रिटेन आपस में बाटलीया था। जर्मनी पर भारी जुर्मना लगया गया। जर्मनी को उसके खनिज क्षेत्र से बेदखल कर दिया गया था यह एक आरोपीत संधी थी जिसे हिटलरने मानने से इनकार कर दिया। वर्साय की संधी सहमतीवाली संधी न होकर एक आरोपीत संधि थी।

4. प्रथम विस्मार्क की व्यवस्था ने प्रथम विश्वयुद्ध का मार्ग किस तरह प्रशस्त किया?
उत्तर-विस्‍मार्क की व्यवस्था ने प्रथम विश्व युद्ध का मार्ग प्रसस्त किया।जब इटली में वहाँ के जनता लुई 16 के खिलाफ थी। तो इसका लाभ उठाकर ईटली जर्मनीऔर ऑस्ट्रीया के बीच 882 में त्रिगुट (ट्रिपल एलएस)बना दियाइसकागठनफ्रांस के विरोधमें किया था। यह आगे चलकर प्रथमविश्व युद्ध का एक कारण बना। इस प्रकार बिस्‍मार्क की व्यवस्था ने ही प्रथम विश्व युद्ध के विरोध में फ्रांस, रूस और ब्रिटेन ने भी त्रिदेशीय संधि के नाम से अलग एकगुटबनाया।

vishwa yudh ki itihas 9th History Notes

5. द्वितिय विश्व युद्ध के क्‍याकारण थे?
उत्तर-द्वितीय विश्‍व युद्ध के प्रमुख कारण थे जिसकी नींव प्रथम विश्वयुद्ध की सम्माप्तीके बाद ही पड़ गई थी। वर्साय की संधि के द्वारा जर्मनी की पुरी खनिज और कोयला क्षेत्र को बिजयी देशों को दे दिया गया थाइसपर भारी कर थोपा गयाजिसे यह चूकाने में असक्षम था।आर्थिक मंद्दी 1929 मेंविश्व व्यापीमंदी नेंराष्‍ट्रो की कमर तोड़कर रख दी थी। तुष्टीकरण की नीति जिसमें अपनेविद्रोही को दबाने के लिएअपने किसी दुश्मन को सह देनाही तुष्टीकर की नीती हैजर्मनी और जपान में सैन्यवाद संधिनेद्वितीय विश्वयुद्धको भड़काने में सहायता की,

राष्‍ट्र संघ की विफलता शक्तीशाली देउनकी बात मानने को तैयार नही थे। शक्तीशाली देशो से बातमनवाने में राष्‍ट्र संघविफल रहा।

6. द्वितीयविश्वयुद्धके परिणामों का उल्लेख करे।
उत्तर- द्वितीय विश्वयुद्ध का निम्नलिखत परिणमहुए:
(1) जन-धन की अपार हानि- युरोपीय देशों की जन-धन की बहुत ही नुकसान पहुंची। जर्मनी  में60 लाख से अधिक लोग मारे गए। अमेरिका द्वाराएटम बम के प्रयोग से जपानी नागरीक को बहुत ही हानि हुआ। सबसे अधिक नुकसान सोवियत संघकोहुआ। युद्ध का कुल लागत 13खरब84 अरब 90 करोड़ डॉलर।
(2) उपनिवेश की स्वतंत्रता- उनके अफ्रिकी और एशियाई देश स्वतंत होने लगे।
(3) इंग्लैड़ की शक्ती में ह्रास तथा रूस और अमेरिकी शक्‍त‍ि के रूप उभरना – दृतिया विश्‍व युद्ध में इंग्‍लैंड की शक्‍ति का अंत हो गया तथा रूस और अमेरिकी दोनों देश विश्‍व शक्‍ति के रूप में उपभरे
(4)संयुक्त राष्‍ट्र संघ की स्थापना – द्वितीय विश्व युद्ध के बाद शांति स्थापीत करने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना किया गया।
(5) विश्व में गुटों का निर्माण – द्वितीय विश्व बाद विश्व साम्यवादी  रूस तथा पुँजीवादी अमेरिकादो गुटो में बट गया। इन दोनों से पुरे भारत के प्रयास से एक तीसरा भी सामने आया जिसे निर्गुट कहा जाता है।
6. तानाशाह- संसद इत्यादि के रहते हुए जो भीशासक मनमानी शासन करे उसेतानाशाह कहा जाता हैा
7.वर्साय संधि-प्रथम विश्व युद्ध के बादविजेता देशों के बताएबिना वर्साय मेंजो गुप-चुप संधि का मशविदा तैयार किया गया और उन देशों से जबदस्ती हस्ताक्षर कराया गया वही थी ‘वर्साय की संधि।
8. तुस्टीकरण की नीती- अपने ही किसी दुश्‍मन को सह देना तुस्टीकरन की नीती कहलाता है।
9.वाइमर गणराज्य-जर्मनी का संविधान वाइपरनगर में बना था। इसी कार उसे वाइमर गणराज्य कहा जाता है।
10. साम्यवाद-जिस शासन में पूरी शक्ती सरकार के पास रहती है और देशवासियों को उनके काम के अनुसार मजदुरी दिया जाता था जिसे साम्यवाद कहते हैं।
11. तृतीय राइख-जर्मन गणतंत्र की सम्पाती के बाद नान्सी क्रांति के सुरूआत को हीटलर तृतीय राइख नाम दिया

1. वर्साय संधि ने हिटलर के उदय की पृष्टभुमी तैयार की कैसे ?
उत्तर- वर्साय की संधि ने हिटलर के उदय की पृष्टभुमि तैयार की। यह एक संधि जबरदस्ती थोपा गया एकदस्तावेज थी जिसके प्रावधानी को निश्तिकरते समय जर्मनी को अंधकार में रखा गया उसे जबरदस्ती हस्ताक्षर कराया गया। उसे उसके खनिज क्षेत्रों से बेदखल कर दिया गया। सेना कोसमीत कर दिया गया उसपर भारी जुर्मना लगाया गया। जीसे वहां की जनता अपमानित महसुस कर रही थी इसी समय हिटलर का उदय हुआ।

2.वाइमर गणतंत्र नाजीवाद केउदय में सहायक बनाकैसें?
उत्तर-वाइमर गणतंत्र में संघीय शासन व्यवस्था की स्थापना की तथा राष्ट्रपति को आपतकालीन शक्तियाँ प्रदान कर दी। यही शक्ती, हीटलर के लिए वरदान साबित हुई । संसद का बहुमत प्राप्त करने के बाद अपनी मनमानी निर्णय लेने लग आगे चलकर जर्मनी में नाजीवाद को बढ़ावा देने लगा वाइमर गणतंत्र नाजीवाद के उदय में काफी सहायक बना

3.नाजीवादकार्यक्रम ने द्वितीय विश्व युद्धकी पृष्टभुमि तैयार की कैसे?
उत्तर-नाजीवाद कार्यक्रम ने द्वितीय विश्वयुद्ध की पृष्टभुमि तैयार कीया। देश भर में उससे आतंक का शासन स्थापित किया। हीटलरवर्साय की संघी को मानने से इनकार कर दीया नाजीवाद साम्यवाद का कटर विरोधी था। उसने जर्मनी से या तो कम्युनिष्ट को भागा दिया! जर्मनी को आगे बढ़ाने का प्रयास किया । उसे सफता भी मिली। लेकिन उसने पोलैंड पर आक्रमण किया जिसे विश्व युद्ध आरंभ हो गया नाजीबाद कार्यक्रम ने द्वितीय विश्‍व युद्ध को पृष्टभूमि तैयार की

4.क्यासाम्यवाद हिटलर के भय ने जर्मन पुँजीपतियों को हिटलर का समर्थक बनाया?
उत्तर-हाँसाम्यवादके भय ने जर्मनी के पुजीपतियों को हिटलर का समर्थक बना दिया। हिटलर पुँजीवादी नही था, लेकीन कम्युनिटों का कटर विरोधी था। जर्मनी की संसद में जब बिद्रोह होने लगी तो हिटलर ने इसका सारा दोष कम्युनिष्टों के सर पर डाल दिया। जिसके प्रचार में पूँजीपतियों ने काफी प्रयास कीया। इन्ही के प्रयास से कम्युनिष्ट पार्टी पर प्रतिबंध लगा।

5.रोम -बेलिन टोकियों धुरी क्या हैं?
उत्तर-इटली की राजधानी रोम, जर्मनी की राजधानी  बेलिन तथा जापान की राजधानी टोकियों थी। अतः इन तिनों देशो को मित्रता को रोम-बेलिन- टोकीयों धुरी कहा जाया। द्वितिय विश्वयुद्धं के समय इन्हीं तीनों देशों को धुरी राष्ट्रकहा जाता था।

vishwa yudh ki itihas 9th History Notes

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1.हिटलर के व्यक्तिव पर प्रकाश डाले।
उत्तर-हिटलर एक प्रसिद्ध जर्मन राजनेता, और तानाशाह था इसका जन्म 20 अप्रैल 1889 को हुआ था।इनका जन्‍म अस्ट्रिया में हुआ था। 16 साल कि उम्र में इन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा पढाई छोड़करपोस्टकार्यपर चित्र बनाकर अपना जिवन यापन करने लगा वह सेना में भर्ती हो गया।प्रथम विश्व युद्ध में जर्मनी की ओर से लड़ते हुऐ विरता का प्रदर्शन किया। वर्साय की संधि में जर्मन की जो दुर्गति हुई थी। उसके विरूध यह खड़ा हुआउसने वाइमर गणतंत्र का बिद्रोह किया। और खुद उसका नेता बना। अतः 1934 ई. हिडेने बर्ग की मृत्यु के बाद हिटलर ने राष्ट्रपति जर्मनी का बना, अपने व्यक्‍तीयों का उपयोग कर उन्होने वर्साय संधि की त्रुतियो से जनता के अवगत कराया उन्हे अपना सर्मथक बना लिया यह ठीक है की युद्धोतर जर्मन आर्थिकदृष्टि से बिल्कुल पगुं हो गया था वहाँ बेकारी और भुखमरी आ गई थी। हिटलर एक दुरदर्शी राजनीति था उसने परिस्थिति का लाभ उठाकर राजसत्तपर अधिपत्य कायम किया

2.हिटलर की विदेश नीति जर्मनी की खोई प्रतिष्ठा को प्राप्त करने का एक साधन था कैसे?
उत्तर-वर्साय की संधी ने जर्मनी को पंगु बना दिया था। इससे जर्मनीवासीयों को अपनीत महसुस होता था। हिटलर ने इसका लाभउठाया और जनताकेअनुरूप अपनी विदेशी तय की जिसके आधार पर उसने निम्नलिखितकदम उठाए:

(1) राष्ट्रसंघ से पृथ्कहोना – सर्वप्रथम हिटलर ने 1933 में जेनेवा निः शस्त्रीकरण की माँग की कि लेकिन नही माने जाने पर राष्ट्रसंघ से अलग हो गया
(2) वर्साय की संधी को भंग करना– 1935 में हिटलर ने वर्साय की संधी को मानने से इनकार दीया और जर्मनी में सैन्यशक्ती लागू का दीया,
(3) पोलैंड के साथ समझौता – हिटलर ने 1934 में पौलैंड के साथ दस बर्षीय आक्रमणसंधी समझौता कर लिया।
(4) ब्रिटेन से समझौता 1935 में ब्रिटेन से एक समझौता किया जिसके तहत अपनी सैन्य क्षमता बढ़ा सकता है।
(5) रोम – बेलिन धुरी- हिटलर ने इटली से समझौता कर लिया। इस प्रकार रोमन बेलिन धुरीकी नीव पड़ गई।
(6) कामिन्‍टर्न विरोध समझौता – सम्यवादी खतरा से बचने के लिए कामिन्टर्न विरोधी समझौता हुआ।
(7) पोलैंड पर आक्रमण- जर्मनी ने पौलेड परसितंबर 1939को आक्रमण कर दिया। जिससे विश्व युद्ध आरभ हो गया।

3.नाजीवाद दर्शन निरकुशता का समर्थन और लोकतंत्र का विरोधी था। विवेचना कीजिए।
उत्तर-नाजीवाद दर्शन निरंकुशता का समर्थन, और लोकतंत्र का बोरोधी था यह निम्नलिखित बातो से सिद्धहोता है:
(1) हिटलर ने सत्ता प्राप्त करते ही प्रस तथा बोलने पर प्रतिबंध लगा दिया।
(2) यह दर्शन समाजवाद का विरोधी था। कम्युनीष्टों की बढ़ोत्तरी से डाराकर हिटलर पुजीपतियों को अपने पक्ष में करने में सफल हो गया
(3) नाजीवादी दर्शन सर्वसत्तावादी राज्य की एक संकल्पना है।
(4) यह दर्शन उग्र राष्ट्रवाद पर बल देता था।
(5) नाजीवाद राजा की निरंकुशता का समर्थन था
(6) नाजीवादी दर्शन में सैनिक शक्ती एवं हिसा को महिमा मंडित किया जाता था। इसे युरोप के अन्य देशो में स्वंत्रता विरोधी भावनाओ को प्रोतसाहीत मिला।

अभ्यास के प्रश्न तथा उनके उत्तर

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न :

निर्देश : नीचे दिए गए प्रश्नों में चार संकेत चिह्न हैं, जिनमें एक सही या सबसे उपयुक्त है। प्रश्नों का उत्तर देने के लिए प्रश्न संख्या के सामने वह संकेत चिह्न (क, ख, ग, घ) लिखें, जो सही अथवा सबसे उपयुक्त हो ।

1. प्रथम विश्वयुद्ध कब आरंभ हुआ ?
(क) 1941 ई.
(ख) 1952 ई.
(ग) 1950 ई.
(घ) 1914 ई.

2. प्रथम विश्वयुद्ध में किसकी हार हुई ?
(क) अमेरिका की
(ख) जर्मनी की
(ग) रूस की
(घ) इंग्लैंड की

3. 1917 ई. में कौन देश प्रथम विश्वयुद्ध से अलग हो गया ?
(क) रूस
(ख) इंग्लैंड
(ग) अमेरिका
(घ) जर्मनी

4. वर्साय की संधि के फलस्वरूप इनमें किस महादेश का मानचित्र बदल गया ?
(क) यूरोप का
(ख) आस्ट्रेलिया का
(ग) अमेरिका का
(घ) रूस का

5. त्रिगुट समझौते में शामिल थे :
(क) फ्रांस, ब्रिटेन और जापान
(ख) फ्रांस, जर्मनी और आस्ट्रिया
(ग) जर्मनी, आस्ट्रिया और इटली
(घ) इंग्लैंड, अमेरिका और रूस

6. द्वितीय विश्वयुद्ध कब आरंभ हुआ ?
(क). 1939 ई. में
(ख) 1941 ई. में
(ग) 1936 ई. में
(घ) 1938 ई. में

7. जर्मनी को पराजित करने का श्रेय किय देश को है ?
(क) फ्रांस को
(ख) रूस को
(ग) चीन को
(घ) इंग्लैंड को

8. द्वितीय विश्वयुद्ध में कौन-सा देश पराजित हुआ ?
(क) चीन
(ख) जापान
(ग) जर्मनी
(घ) इटली

9. द्वितीय विश्वयुद्ध में पहला एटम बम कहाँ गिराया गया था ?
(क) हिरोशिमा पर
(ख) नागासाकी पर
(ग) पेरिस पर
(घ) लन्दन पर

10. द्वितीय विश्वयुद्ध का कब अंत हुआ ?
(क) 1939 ई. को
(ख) 1941 ई. को
(ग) 1945 ई. को
(घ) 1938 ई. को

उत्तर – 1. (घ), 2. (ख), 3. (क), 4. (क), 5. (ग), 6. (क), 7. (ख), 8. (ग), 9. (क), 10. (ग) ।

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें :
1. द्वितीय विश्वयुद्ध के फलस्वरूप …………. साम्राज्यों का पतन हुआ ।
2. जर्मनी का ………… पर आक्रमण द्वितीय विश्वयुद्ध का तात्कालिक कारण था ।
3. धुरी राष्ट्रों में ………. ने सबसे पहले आत्मसमर्पण किया ।
4. ………….. की संधि की शर्तें द्वितीय विश्वयुद्ध के लिए उत्तरदायी थीं ।
5. अमेरिका ने दूसरा एटम बम जापान के …………. बन्दरगाह पर गिराया था ।
6. ………….. की संधि में ही द्वितीय विश्वयुद्ध के बीज निहित थे ।
7. प्रथम विश्वयुद्ध के बाद …………… एक विश्व शक्ति बनकर उभरा ।
8. प्रथम विश्वयुद्ध के बाद मित्रराष्ट्रों ने जर्मनी के साथ ………….. की संधि की ।
9. राष्ट्रसंघ की स्थापना का श्रेय अमेरिका के राष्ट्रपति ……………. को दिया जाता है ।
10. राष्ट्रसंघ की स्थापना …………….. ई. में की गई ।

उत्तर – 1. यूरोपीय, 2. पोलैंड, 3. इटली, 4. वर्साय, 5. नागासाकी, 6. वर्साय, 7. संयुक्त राज्य अमेरिका, 8. वर्साय, 9. वुडरो विल्सन, 10. सन् 1918.

III. लघु उत्तरीय प्रश्न :

प्रश्न 1. प्रथम विश्वयुद्ध के उत्तरदायी किन्हीं चार कारणों का उल्लेख करें ।
उत्तर – प्रथम विश्वयुद्ध के लिए उत्तरदायी प्रमुख चार कारण निम्नलिखित थे

(i) साम्राज्यवादी प्रतिस्पर्द्धा—कुछ देश पहले ही अनेक उपनिवेश कायम कर चुके थे और कुछ देश बाद में आए। अतः इनके बीच युद्ध अवश्यम्भावी हो गया ।

(ii) उग्र राष्ट्रवाद – 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में यूरोपीय देशों में राष्ट्रीयता की भावना उग्र रूप लेने लगी । जिस देश के जितने अधिक उपनिवेश होते वहाँ के नागरिक उतने ही गौरवान्वित महसूस करते थे

(iii) सैन्यवाद – यूरोपीय देश एक-दूसरे को नीचा दिखाने के लिए सेना में वृद्धि करने पर उतारू हो गए। कुल राष्ट्रीय आय का 85% तक सैनिक तैयारियों पर व्यय करने लगे। 1912 में जर्मनी ने इम्परेटर नामक एक विशाल जहाज बना लिया ।

(iv) गुटों का निर्माण – साम्राज्यवादी लिप्सा में लिप्त यूरोपीय देश विभिन्न गुटों में बँटने लगे। गुट बनाने में उन देशों की प्रमुखता थी, जो उपनिवेश कायम करने में पिछड़े हुए थे ।

प्रश्न 2. त्रिगुट (Triple Alliance) तथा त्रिदेशीय संधि (Triple Entente ) में कौन-कौन देश शामिल थे? इन गुटों की स्थापना का उद्देश्य क्या था ?
उत्तर — त्रिगुट (Triple Alliance) में जर्मनी, इटली और आस्ट्रिया-हंगरी आदि तीन देश थ। इसी प्रकार त्रिदेशीय संधि (Triple Entente ) में भी तीन ही देश थे – फ्रांस, इंग्लैंड तथा रूस ।
इन गुटों की स्थापना का उद्देश्य था कि युद्ध की स्थिति में एक गुट दूसरे गुट की सहायता करेगा । यदि आवश्यकता पड़ी तो युद्ध में भी वे भाग लेंगे ।

प्रश्न 3. प्रथम विश्वयुद्ध का तात्कालिक कारण क्या था ?
उत्तर – प्रथम विश्वयुद्ध की शुरुआत एक मामूली घटना से हुई । आस्ट्रिया का राजकुमार आर्कड्यूक फर्डिनेण्ड बोस्निया की राजधानी सेराजेवो गया था। वहीं 28 जून, 1914 को उसकी हत्या हो गई । आस्ट्रिया ने इसका सारा दोष सर्बिया के ऊपर मढ़ दिया । उसने सर्बिया के समक्ष अनेक माँगें रख दीं। सर्बिया ने इन माँगों को मानने से इंकार कर दिया। उसका कहना था कि इस हत्याकांड में उसका कोई हाथ नहीं है । फल हुआ कि 28 जुलाई, 1914 को आस्ट्रिया ने सर्बिया के विरुद्ध युद्ध आरम्भ कर दिया। रूस, ने० सर्बिया को मदद का आश्वासन दिया । फलतः जर्मनी ने आस्ट्रिया के पक्ष में रूस और फ्रांस दोनों के विरुद्ध युद्ध की घोषण कर दी । तुरत ब्रिटेन भी जर्मनी के विरुद्ध मैदान में उतर आया और प्रथम विश्वयुद्ध आरम्भ हो गया ।

प्रश्न 4. सर्वस्लाव आंदोलन का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर—सर्वस्लाव आंदोलन का तात्पर्य था स्लाव लोगों को एकत्र कर एक राष्ट्र के रूप में स्थापित करना । तुर्की साम्राज्य में तथा आस्ट्रिया हंगरी में स्लाव जातियों की बहुलता थी। उन्होंने सर्वस्लाव आन्दोलन आरंभ कर दिया । आन्दोलन इस सिद्धांत पर आधारित था कि यूरोप की सभी स्लाव जाति के लोग एक राष्ट्र हैं। इनका एक अलग देश बनाना चाहिए। वास्तव में यह यूरोप में उग्र राष्ट्रवाद का एक प्रतिफल था ।

प्रश्न 5. उग्र राष्ट्रीयता प्रथम विश्वयुद्ध का किस प्रकार एक कारण थी ?
उत्तर – उग्र राष्ट्रीयता यूरोप की ही देन थी । राष्ट्रवाद इस प्रकार लोगों के जेहन में समा गया था कि एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र को सदा नीचा दिखाने का प्रयास करने लगा। जिन जातियों का कोई राष्ट्र नहीं था और वे इधर-उधर कई देशों में फैले हुए थे, वे भी एक राष्ट्र के रूप में अपने को स्थापित करना चाहते थे । राष्ट्रवाद के चलते ही सैन्यवाद की भावना बढ़ने लगी । फिर सैन्यवाद का परिणाम हुआ कि राष्ट्र गुटों में बँटने लगे । छोटी-मोटी घटना को भी कोई राष्ट्र बरदाश्त करने की स्थिति में नहीं था । जिसका परिणाम हुआ कि प्रथम विश्वयुद्ध अवश्यम्भावी लगने लगा और 1914 में आरम्भ भी हो गया । इस प्रकार हम देखते हैं कि उग्र राष्ट्रवाद ही प्रथम विश्वयुद्ध का कारण था ।

प्रश्न 6. ‘द्वितीय विश्वयुद्ध प्रथम विश्वयुद्ध की ही परिणति थी ।’ कैसे ?
उत्तर—प्रायः यह कहा जाता है कि द्वितीय विश्वयुद्ध के बीज वर्साय की संधि मे ही छिपे थे । विजयी देशों ने विजित देशों को ऐसी-ऐसी संधियों में बाँधा की कि वे खून का घूँट पीकर रह गए। जिस प्रकार पराजित राष्ट्रों पर वर्साय की संधि के निर्णय थोपे गए, इससे स्पष्ट था कि जल्द एक और युद्ध होकर रहेगा। छोटे-छोटे पराजित राज्यो से अलग-अलग संधियाँ की गईं। लेकिन जर्मनी को तो पंगु बनाकर छोड़ा गया था । उसके द्वारा जीते गए क्षेत्रों से तो उसे बेदखल किया ही गया, उसके अपने देश के एक बड़े भाग से भी उसे वंचित कर दिया गया। इसके अलावा उसपर भारी जुर्माना भी थोपा गया जिसे देना उसकी क्षमता के बाहर था । जर्मनी की जनता अपने को अपमानित महसूस कर रही थी। इसी समय हिटलर नामक एक विलक्षण पुरुष का वहाँ प्रादुर्भाव हुआ । उसने जुर्माने की रकम देने से इंकार कर दिया । धीरे-धीरे अपने देश के भागों पर अधिकार भी जमाने लगा। फिर विश्व दो गुटों में बँट गया और जैसे ही जर्मनी ने पोलैंड पर आक्रण किया कि द्वितीय विश्वयुद्ध आरम्भ हो गया ।

प्रश्न 7. द्वितीय विश्वयुद्ध के लिए हिटलर कहाँ तक उत्तरदायी था ?
उत्तर — द्वितीय विश्वयुद्ध के लिए हिटलर किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं था । उसे उत्तरदायी ठहरानेवाले वे ही लोग हैं, जिन्होंने जर्मनी को अपमानित किया था । कोई भी देश इतना अपमान बरदाश्त नहीं कर सकता था । अतः अपने अपमान का बदला लेने के लिए हिटलर ने जो किया, वह पूर्णतः सही था । यदि मेरे देश को कोई इतना अपमानित करे तो मैं भी वही करूँगा जो हिटलर ने किया । वास्वत में उसे उत्तरदायी ठहरानेवाले वही मुट्ठी भी कम्युनिस्ट तथा गोरी चमड़ीवाले फिरंगियों की हाँ में हाँ मिलानेवाले हैं। वह भी अपने लाभ के लिए । यदि ऐसी बात नहीं थी तो पूर्वी जर्मनी से क्यों रूस को भागना पड़ा ? बर्लिन की दीवार क्यों तोड़नी पड़ी ?

प्रश्न 8. द्वितीय विश्वयुद्ध के किन्हीं पाँच परिणामों का उल्लेख करें ।
उत्तर- द्वितीय विश्वयुद्ध के पाँच प्रमुख परिणाम निम्नांकित थे :
(i) धन-जन की अपार हानि, (ii) यूरोपीय श्रेष्ठता और उपनिवेशों का अन्त, (iii) इंग्लैंड की शक्ति का ह्रास तथा रूस और अमेरिका के वर्चस्व की स्थापना, (iv) संयुक्त राष्ट्रसंघ की स्थापना, जिसे आजकल ‘संयुक्त राष्ट्र’ कहते हैं । (v) विश्व में गुटों का निर्माण तथा निर्गुट देशों में एकत्व ।

प्रश्न 9. तुष्टिकरण की नीति क्या है ?
उत्तर — तुष्टिकरण की नीति यह है कि अपने विरोधी को दबाने के लिए अपने ही किसी दुश्मन को सह देना और उसके करतूतों की ओर से आँखें मूँदे रहना । इंग्लैंड ने जर्मनी को इसलिए बढ़ने का अवसर देता रहा ताकि साम्यवादी देश रूस को वह हरा दे। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। जर्मनी ने ब्रिटिश सह प्राप्तकर रूस की ओर तो बढ़ता ही रहा, इंग्लैंड को भी कम तबाह नहीं किया। तुष्टिकरण एक देश का दूसरे देश के. साथ भी हो सकता है और एक देश के अन्दर वोट की लालच में किसी खास गुट को बढ़ावा देकर भी हो सकता है। लेकिन इतना सही है कि तुष्टिकरण की नीति का परणाम सदैव बुरा ही होता है ।

प्रश्न 10. राष्ट्रसंघ क्यों असफल रहा ?
उत्तर—राष्ट्रसंघ की स्थापना तो हुई, लेकिन उसकी शक्तियाँ भ्रामक थीं। उसके सदस्य राष्ट्र उसे उचित सहयोग नहीं देते थे । अमेरिका ने ही राष्ट्रसंघ की स्थापना करायी थी, लेकिन वह सदस्य नहीं बना। आरम्भ में छोटे-छोटे राज्यों के मनमुटावों को तो सुलझा लिया, लेकिन जब बड़े शक्तिशाली देशों का सवाल उठा तो राष्ट्रसंघ ने हाथ खड़े कर दिए । शक्तिशाली देश हर नियम की व्याख्या अपने हक में करने लगे। बाद में जब हिटलर का समय आया तो उसने तो राष्ट्रसंघ को ठेंगा तक दिखाना शुरू कर दिया । वह उसके किसी बात को मानने से इंकार करने लगा । फल हुआ कि राष्ट्रसंघ पंगु हो गया और अंततः वह असफल सिद्ध हो गया ।

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न :

प्रश्न 1. प्रथम विश्वयुद्ध के क्या कारण थे ? संक्षेप में लिखें ।
उत्तर—प्रथम विश्वयुद्ध के निम्नलिखित कारण थे :
प्रथम विश्वयुद्ध का सबसे प्रमुख कारण था साम्राज्यवादी प्रतिस्पर्धा । प्रायः सभी यूरोपीय देश अपने – अपने उपनिवेशों को बढ़ाने और उसे स्थायीत्व देने के प्रयास में लगे थे । दूसरा कारण था उग्र राष्ट्रवाद । 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में यूरोप के देशों में राष्ट्रीयता का संचार उग्र रूप से होने लगा था। सभी एक-दूसरे से आगे निकल जाने का प्रयासरत रहने लगे थे। तीसरा कारण सैन्यवाद की प्रवृत्ति थी। अपने उपनिवेश के प्रसार के लिए और उसे बनाए रखने के लिए सेना ही नितांत आवश्यक थी। फलतः यूरोप में सैन्यवाद जोरों पर था। एक कारण गुटों का निर्माण भी था । संपूर्ण यूरोप गुटों में बँटने लगा । ऐसा कोई देश नहीं था जो किसी-न-किसी गुट से जुड़ा नहीं था । लेकिन गुटों का निर्माणक पद्धति का अगुआ जर्मनी का चांसलर बिस्मार्क था । जो दो प्रमुख गुट थे वे थे— (i) ट्रिपल एलायन्स और (ii) ट्रिपलएतांत | सब यूरोपीय देश इनमें से किसी न किसी एक गुट से जुड़ा था । ट्रिपल एलायन्स को हिन्दी में त्रिगुट कहते थे, जिसमें जर्मनी, इटली और आस्ट्रिया-हंगरी प्रमुख भूमिका निभा रहे थे तो ट्रिपल एतांत को हिन्दी में त्रिदेशीय संधि कहते थे। इसमें भी तीन ही देश थे, ब्रिटेन, फ्रांस और रूस । उपर्युक्त सारी बातों ने ऐसी स्थिति बना दी कि युद्ध कभी भी, किसी भी समय भड़क सकता था। हुआ भी ऐसा ही। एक छोटी-सी घटना ने युद्ध को भड़का दिया ।

प्रश्न 2. प्रथम विश्वयुद्ध के क्या परिणाम हुए ?
उत्तर – प्रथम विश्वयुद्ध का मुख्य परिणाम हुआ कि त्रिगुट देशों’ की करारी हार हुई । विश्व में ऐसे भयानक युद्ध फिर कभी नहीं हो, इसके लिए राष्ट्रसंघ नामक विश्व संगठन की स्थापना की गई। लेकिन इस विश्व संस्था में कुछ विसंगतियाँ भी थीं। इसके गठन में मुख्य हाथ अमेरिका का था, लेकिन वह स्वयं इसका सदस्य नहीं बना। सबसे महत्वपूर्ण तो थी वर्साय की संधि । इस संधि के तहत हारे हुए देशों को तरह-तरह से दबाया गया। सबसे अधिक जर्मनी पर प्रति लगा। एक तो उसे जीते हुए सभी क्षेत्र उससे छिन लिए गए और दूसरे कि स्वयं उर के अपने देश के कुछ भागों पर भी विजयी राष्ट्रों ने अधिकार जमा लिया। ये भाग ऐसे थे जो खनिजों में धनी थे । वर्साय की संधि में ऐसी-ऐसी बातें थीं कि भविष्य में जर्मनी कभी सर उठाने का साहस ही न कर सके । उस संधि पर उससे जबरदस्ती हस्ताक्षर कराया गया था । संधि के अनुसार उसकी सैन्य शक्ति को सीमित कर दिया गया। उस पर भारी जुर्माना लगाया गया। जुर्माना इतना अधिक था कि वह उसे अदा ही नहीं कर पा सकता था। सबसे अधिक लाभ में फ्रांस था । फ्रांस को उसका अल्सास- लारेन क्षेत्र तो लौटा ही दिया गया जर्मनी के सार क्षेत्र के कोयला खदानों को 15 वर्षों के लिए फ्रांस को दे दिया गया। डेनमार्क, बेल्जियम, पोलैंड, चेकोस्लोवाकिया, जिसे जर्मनी ने जीत रखा था, सब उसके हाथ से निकल गए। जर्मनी के सम्पूर्ण उपनिवेशों को विजयी देशों ने आपस में बाँट लिया। एक प्रकार से जर्मनी की कमर ही तोड़कर रख दी गई। अपमानजनक संधि का ही परिणाम था कि जर्मनी में हिटलर और इटली में मुसोलिनी जैसे कठोर मिजाज शासकों का उदय हुआ और देश की जनता से उन्हें सम्मान भी मिला। मुख्य परिणाम यह हुआ कि प्रथम विश्वयुद्ध का बदला चुकाने के लिए ही द्वितीय विश्वयुद्ध का आरम्भ हुआ ।

प्रश्न 3. क्या वर्साय की संधि एक आरोपित संधि थी ?
उत्तर – हाँ, यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि वर्साय की संधि एक आरोपित संधि थी । इसका प्रमाण है कि संधि के प्रावधानों को निश्चित करने के समय विजीत देशों के किसी भी प्रतिनिधि को नहीं बुलाया गया । प्रावधान निश्चित करते समय निर्णयी देशां ने मनमाना प्रावधान निश्चित किए । जर्मनी के विजित देशों को तो ले ही लिया गया, उसके अपने कोयला क्षेत्र को 15 वर्षों के लिए फ्रांस को दे दिया गया। उसके राइन क्षेत्र को सेना – मुक्त क्षेत्र बना दिया गया। उसकी सैनिक क्षमता में भी कटौती कर दी गई । उसके उपनिवेशों को फ्रांस और ब्रिटेन दोनों ने मिलकर आपस में बाँट लिए । दक्षिण- पश्चिम अफ्रीका और पूर्वी अफ्रीका स्थित जर्मन-उपनिवेश ब्रिटेन, बेल्जियम, दक्षिण अफ्रीका और पुर्तगाल को दे दिए गए । युद्ध में त्रिदेशीय संधि के देशों के जो व्यय हुए थे, वे सब जुर्माना के रूप में जर्मनी से वसूला गया। 6 अरब 10 करोड़ पौंड उस पर जुर्माना लगाया गया। जर्मनी के सहयोगियों के साथ अलग से संधियाँ की गई । आस्ट्रिया-हंगरी को बाँटकर अलग-अलग दो देश बना दिया गया । आस्ट्रिया से जबरदस्ती हंगरी, चेकोस्लोवाकिया, यूगोस्लाविया और पोलैंड की स्वतंत्रता को मान्यता दिलवाई गई । तुर्की साम्राज्य को बुरी तरह छिन्न-भिन्न कर दिया गया। यह बात अलग है कि तुर्की के मुस्तफा कमाल पाशा तथा जर्मनी के हिटलर ने इन संधियों को मानने से इंकार कर दिया। इन सब बातों से स्पष्ट होता है कि वर्साय की संधि सहमतिवाली संधि न होकर जबदरदस्ती आरोपित की गई संधि थी ।

प्रश्न 4. बिस्मार्क की व्यवस्था ने प्रथम विश्वयुद्ध का मार्ग किस तरह प्रशस्त किया ?
उत्तर- यूरोप के देश अपने उपनिवेशों के विस्तार तथा स्थायित्व के लिए चिंतित रहा करते थे । इसके लिए शक्तिशाली देश अपने-अपने हितों के अनुरूप गुटों के गठन में लग गए। फल हुआ कि पूरा यूरोप दो गुटों में बँट गया। यूरोप का रूप सैनिक शिविरों में बदलने लगा । लेकिन सही पूछा जाय तो यूरोप में गुटों को जन्मदाता जर्मनी के चांसलर बिस्मार्क को मानना पड़ेगा। इसी ने सर्वप्रथम 1879 में आस्ट्रिया-हंगरी से द्वेध संधि की थी। यह क्रम यहीं नहीं रुका। 1882 मे क त्रिगुट (ट्रिपल एलाएंस) बना जिसको गठित करनेवाला बिस्मार्क ही था । इस त्रिगुट थे तो अनेक देश लेकिन प्रमुख जर्मनी, इटली और आस्ट्रिया-हंगरी थे। बिस्मार्क ने इसका गठन फ्रांस के विरोध में किया था । त्रिगुट में शामिल इटली पर बिस्मार्क कम विश्वास करता था, क्योंकि वह जनाता था कि वह त्रिगुट में केवल इसलिए सम्मिलित हुआ है कि उसकी मंशा मात्र आस्ट्रिया-हंगरी के कुछ भागों पर अधिकार तक सीमित थी । फिर त्रिपोली को भी वह जीतना चाहता था, लेकिन इसके लिए उसे फ्रांस की मदद की आवश्ययकता थी । इस कारण बिस्मार्क उस पर कम विश्वास करता था, फिर भी वह गुट का एक प्रमुख सदस्य था। सबको समेट कर साथ रखना बिस्मार्क की ही जिम्मेदारी थी । वह समझता था कि त्रिगुट बना तो है, लेकिन यह एक ढीला-ढाला संगठन ही था। यह सब समझते हुए भी बिस्मार्क को अपनी शक्ति पर भरोसा था। इस प्रकार हम देखते हैं कि बिस्मार्क की व्यवस्था ने ही प्रथम विश्वयुद्ध के विरोध में फ्रांस, रूस और ब्रिटेन ने भी त्रिदेशीय संधि के नाम से अलग एक गुट की स्थापना कर ली ।

प्रश्न 5. द्वितीय विश्वयुद्ध के क्या कारण थे ? विस्तारपूर्वक लिखें ।
उत्तर- द्वितीय विश्वयुद्ध के निम्नलिखित कारण थे :
(i) वर्साय संधि की विसंगतियाँ- वर्साय की संधि में ऐसी-ऐसी शर्तें थीं जिन्हें मानना किसी भी देश के बस की बात नहीं थी । 1936 तक तो जैसे-तैसे चलता रहा लेकिन उसके बाद उल्टे विजीत राज्य ही अबतक हुई अपनी हानि की क्षति पूर्ति की माँग रखने लगे । खासकर जर्मनी के कोयला खदानों का फ्रांस ने जो दोहन किया था, उसके लिए जर्मनी हर्जाना माँगने लगा। पूरा जर्मनी तो अपमानित हुआ ही था लेकिन जैसे ही हिटलर जैसा जुझारू नेता मिला, उसका मनोबल बढ़ गया ।
(ii) वचन विमुखता – राष्ट्रसंघ के विधान पर जिन सदस्य राज्यों ने जो वादा किया था, एक-एककर सभी मुकरने लगे । उन्होंने सामूहिक रूप से सबकी प्रादेशिक अखंडता और राजनीति स्वतंत्रता की रक्षा करने का वचन दिया था लेकिन अवसर आने पर पीछे हटने लगे। जापान ने चीन के क्षेत्र मंचूरिया को शिकार बना लिया और दूसरी ओर इटली अबीसीनिया पर ताबड़-तोड़ हमला करता रहा । फ्रांस चेकोस्लोवाकिया का विनाश करता रहा । जब जर्मनी ने पोलैंड पर चढ़ाई कर दी तब फ्रांस और ब्रिटेन की आँखें खुलीं । उन्होंने हिटलर को रोकना चाहा, फलतः द्वितीय विश्वयुद्ध का आरंभ हो गया ।
(iii) गुटबंदी और सैनिक संधियाँ – गुटबंदी और सैनिक संधियों ने भी द्वितीय विश्वयुद्ध को भड़काने में सहायता की। यूरोप पुनः दो गुटों में बँट गया। एक गुट का नेता जर्मनी और दूसरे गुट का नेता फ्रांस बना । जर्मनी इटली और जापान एक ओर थे तो फ्रांस, इंग्लैंड तथा रूस और बाद में अमेरिका भी दूसरी ओर थे । पहले गुट को धुरी राष्ट्र तथा दूसरे गुट को मित्र राष्ट्र कहा जाता था। इन गुटों के कारण यूरोप का वातावरण विषाक्त बन गया ।
(iv) हथियारबंदी—गुटबंदी और सैनिक संधियों ने सभी राष्ट्रों को संशय में डाल दिया । सशस्त्रीकरण को बढ़ावा मिला। इंग्लैंड ऋण लेकर भी अपने शस्त्रों में विस्तार करता रहा । बहाना आक्रमणों को रोकना था। सभी देशों ने अपने रक्षा व्यय को बढ़ाते जाने में वायु सेना अपना शान समझते थे। नवीन हथियारों का आविष्कार हाने लगा। नौ सेना और में भी बढ़ोत्तरी की जाने लगी। सभी देश अपने को असुरक्षित महसूस करने लगे ।
(v) राष्ट्रसंघ की असफलता- राष्ट्रसंघ निकम्मा साबित होने लगा । कोई भी शक्तिशाली देश उसकी बात मानने को तैयार नहीं था । अनेक छोटे-छोटे राज्यों ने तो उसकी बात मानी और समझौतों का पालन किया लेकिन शक्तिशाली देशों से अपनी बात मनवाने में राष्ट्रसंघ विफल साबित हुआ। हर निर्णायक घड़ी में शक्तिशाली देश राष्ट्रसंघ को अँगूठा दिखाने लगे । इस प्रकार राष्ट्रसंघ की असफलता भी द्वितीय विश्वयुद्ध का कारण बना ।
(vi) विश्वव्यापी आर्थिक मंदी तथा हिटलर – मुसोलिनी का उदय – 1929-31 की विश्वव्यापी मंदी ने राष्ट्रों की कमर तोड़कर रख दी थी। इसी समय जर्मनी में हिटलर तथा इटली में मुसोलिनी जैसे जुझारू नेताओं का उदय हुआ । इन्होंने अपने देशवासियों को दिलासा दी की वे देश की खोई हुई प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त कर देश को गौरवान्वित कर देंगे। फलतः लोगे ने इनका साथ दिया, जिससे द्वितीय विश्वयुद्ध को काफी बल मिला ।

प्रश्न 6. द्वितीय विश्वयुद्ध के परिणामों का उल्लेख करें ।
उत्तर- द्वितीय विश्वयुद्ध के निम्नलिखित परिणाम हुए :
(i) जन-धन की अपार हानि-इतिहास का यह सबसे विनाशकारी युद्ध सिद्ध हुआ । यूरोप का एक बड़ा भाग कब्रिस्तान में बदल गया। जर्मनी में 60 लाख से अधिक यहूदी यातनापूर्ण ढंग से मारे गए । अमेरिका द्वारा एटम बम के प्रयोग ने दो जापानी नगरों को खाक में मिला दिया। सबसे अधिक नुकसान सोवियत संघ का हुआ । जर्मनी के भी 60 लाख लोग मारे गए। युद्ध का कुल लागत 13 खरब 84 अरब 90 करोड़ डालर का अनुमान लगाया गया ।
(ii) यूरोपीय श्रेष्ठता का अंत तथा उपनिवेशों की स्वतंत्रता – द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद यूरोपीय श्रेष्ठता खाक में मिल गई। उनके अफ्रीकी और एशियाई उपनिवेश एक- एक कर स्वतंत्र होते गए । भारत, श्रीलंका, बर्मा, मलाया, हिन्देशिया, मिस्र आदि स्वतंत्र हो गए। यह कहावत कि इंग्लैंड के राज्य में कभी सूर्य नहीं डूबता, द्वितीय विश्वयुद्ध ने इसे झूठा साबित कर दिया ।
(iii) इंग्लैंड की शक्ति में ह्रास तथा रूस और अमेरिका का विश्व शक्ति में रूप में उभरना — द्वितीय विश्वयुद्ध का एक परिणाम यह हुआ कि इंग्लैंड शक्तिहीन हो गया और रूस और अमेरिका दोनों देश विश्व शक्ति के रूप में सामने आए। एक समाजवादी था तो दूसरा पूँजीवादी । अतः दोनों में प्रतियोगिता आरंभ हो गई ।
(iv) संयुक्त राष्ट्रसंघ की स्थापना – द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद विश्व शांति को कायम रखने के लिए ‘संयुक्त राष्ट्रसंघ’ नाम से एक शक्तिशाली संस्था का गठन किया गया । सम्पूर्ण विश्व के लगभग सभी छोटे-बड़े देश इसके सदस्य बनाए गए । परमाणु बम को शांति और अशांति का निर्णायक केन्द्र माना गया । राष्ट्रसंघ के जिम्मे लगाया गया कि कोई देश इसका विकास न कर सके ।
(v) विश्व में गुटों का निर्माण— राजनीति में पहले इंग्लैंड का बोलबाला रहा करता था। अब उसकी शक्ति क्षीण हो गई । अब विश्व – साम्यवादी रूस तथा अमेरिक—दो गुटों में बँट गया। इन दोनों से परे भारत के प्रयास से एक तीसरा गुट भी सामने आया, जिसे ‘निर्गुट’ कहा गया ।

vishwa yudh ki itihas 9th History Notes

Read more- Click here
You Tube – Click here

Post Views: 305

Filed Under: History

Reader Interactions

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Primary Sidebar

Class 10th Solutions Notes

  • Class 10th Hindi Solutions
  • Class 10th Sanskrit Solutions
  • Class 10th English Solutions
  • Class 10th Science Solutions
  • Class 10th Social Science Solutions
  • Class 10th Maths Solutions

Class 12th Solutions

  • Class 12th English Solutions
  • Class 12th Hindi Solutions
  • Class 12th Physics Solutions
  • Class 12th Chemistry Solutions
  • Class 12th Biology Objective Questions
  • Class 12th Geography Solutions
  • Class 12th History Solutions
  • Class 12th Political Science Solutions

Search here

Social Media

  • YouTube
  • Instagram
  • Twitter
  • Facebook

Recent Comments

  • Aman reja on Class 10th Science Notes Bihar Board | Bihar Board Class 10 Science Book Solutions
  • Aman reja on Class 10th Science Notes Bihar Board | Bihar Board Class 10 Science Book Solutions
  • Aman reja on Class 10th Science Notes Bihar Board | Bihar Board Class 10 Science Book Solutions

Recent Posts

  • Bihar Board Class 8 Maths घातांक और घात Ex 10.2
  • Bihar Board Class 8 Maths बीजीय व्यंजक Ex 9.4
  • Bihar Board Class 8 Maths बीजीय व्यंजक Ex 9.3
  • Bihar Board Class 8 Maths बीजीय व्यंजक Ex 9.2
  • Bihar Board Class 8 Maths बीजीय व्यंजक Ex 9.1

Connect with Me

  • Email
  • Facebook
  • Instagram
  • Twitter
  • YouTube

Most Viewed Posts

  • Bihar Board Text Book Solutions for Class 12th, 11th, 10th, 9th, 8th, 7th, 6th
  • Bihar Board Class 12th Book Notes and Solutions
  • Patliputra Vaibhavam in Hindi – संस्‍कृत कक्षा 10 पाटलिपुत्रवैभवम् ( पाटलिपुत्र का वैभव )
  • Bihar Board Class 10th Sanskrit Solutions Notes पीयूषम् द्वितीयो भाग: (भाग 2)
  • Ameriki Swatantrata Sangram Class 9 | कक्षा 9 इतिहास इकाई-2 अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम

About Me

Hey friends, This is Tabrej Alam. In this website, we will discuss all about bihar board syllabus.

Footer

Most Viewed Posts

  • Bihar Board Text Book Solutions for Class 12th, 11th, 10th, 9th, 8th, 7th, 6th
  • Bihar Board Class 12th Book Notes and Solutions
  • Patliputra Vaibhavam in Hindi – संस्‍कृत कक्षा 10 पाटलिपुत्रवैभवम् ( पाटलिपुत्र का वैभव )

Class 10th Solutions

Class 10th Hindi Solutions
Class 10th Sanskrit Solutions
Class 10th English Solutions
Class 10th Science Solutions
Class 10th Social Science Solutions
Class 10th Maths Solutions

Recent Posts

  • Bihar Board Class 8 Maths घातांक और घात Ex 10.2
  • Bihar Board Class 8 Maths बीजीय व्यंजक Ex 9.4

Follow Me

  • YouTube
  • Instagram
  • Twitter
  • Facebook

Quick Links

  • Home
  • Bihar Board
  • Books Downloads
  • Tenth Books Pdf

Other Links

  • About us
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer

Copyright © 2022 ECI TUTORIAL.