इस पोस्ट में हम बिहार बोर्ड के वर्ग 10 के संस्कृत द्रुतपाठाय (Second Sanskrit) के पाठ 8 (Vrikshe Samam Bhavtu me Jeevnam) “वृक्षै: समं भवतु मे जीवनम् (मेरा जीवन वृक्ष के समान हो)” के अर्थ सहित व्याख्या को जानेंगे। इस पाठ में मनुष्य को वृक्ष से प्रेरणा लेने की बात कही गई है।
वसन्तकाले सौरभयुक्तैः
सन्ततिकाले दर्पविमुक्तः
शीतातपयोः धैर्येण स्थितैः
वृक्षः समं भवतु मे जीवनम् ।
वर्षाकाले आह्लादयुक्तैः
शिशिर निर्भीकचित्तैः
हेमन्तकाले समाधिस्थितैः
वृक्षै: समं भवतु मे जीवनम् ।
क्षुधार्तेभ्यः फलसन्तते: दानम्
शरणागतेभ्यः आश्रयदानम्
आतपार्तेभ्यः छायादानम्
वृक्षाणां व्रतं, तद्वत् स्यान्मे जीवनम्।
कृतं यैः सीतायाः सतीत्वरक्षणं
बुद्धस्य आत्मज्ञानस्य साक्ष्यम्
पाण्डवशस्त्राणां गोपनम्
वृक्षैः समं भवतु मे जीवनम्।
शुष्कतायां सम्प्राप्तायाम् अपि
यैः अर्प्यते जीवनं परेषां कृते
आत्मा दह्यते चुल्लिकायां यैः मुदा
वृक्षः समं भवतु मे जीवनम् ।
आ जन्मनः समर्पणम् आमरणं
लोकस्य हितायैव येषां जीवनम्
जीवनं मृतिश्चापि येषां सार्थकं
वृक्षै: समं भवतु मे जीवनम् ।
अर्थ- वसन्त काल में सुगन्धों से युक्त
फल काल में घमण्ड से दूर
शीत-गर्मी में धैर्य से स्थिर रहने वाले
वृक्षों के समान हो मेरा जीवन ।
वर्षा काल में आह्लाद से युक्त
शिशिर में निर्भीक चित्त
हेमन्त काल में समाधि रूप में स्थिर रहनेवाले वृक्षों के समान हो मेरा जीवन ।
भुख से व्याकुलों के लिए फलरूपी संतान का दान, शरण में आए लोगों के लिए आश्रय दान, गर्मी से व्याकुल लोगों के लिए छाया दान आदि वृक्षों के व्रत सादृश हो मेरा जीवन ।
किया गया जिसके द्वारा सीता के सतीत्व का रक्षण, जिसने बना बुद्ध के आत्मज्ञान का साक्षी और जिसने पाण्डवों के शस्त्रों को गुप्त रूप में रखा, उस वृक्षों के समान हो मेरा जीवन ।
शुष्कता प्राप्त कर (सूख कर) भी जिसके द्वारा अर्पित है जीवन दूसरों के कार्य के लिए, जिसके द्वारा मरकर भी चुल्हा में अपने-आपको जलाया जाता है। उस वृक्षों के समान हो मेरा जीवन ।
जन्मकाल से ही समर्पण का भाव मरण तक लोक को हित के लिए जिसका हो जीवन, जिसका जीवन मर कर भी सार्थक हो उस वृक्षों के समान हो मेरा जीवन ।
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