Aavinyon – हिंदी कक्षा 10 आविन्यों

इस पोस्ट में हम बिहार बोर्ड के वर्ग 10 के पाठ 9 ( Aavinyon ) “आविन्यों” के व्याख्या को पढ़ेंगे। इस पाठ के लेखक अशोक वाजपेयी है | इस पाठ में दक्षिणी फ्रांस में स्थित आविन्यों की विशेषता को लेखक ने बताया है |

aavinyon

9. आविन्यों
लेखक परिचय
लेखक का नाम- अशोक वाजपेयी
जन्म- 16 फरवरी 1941 ई0, मध्य प्रदेश के दुर्ग
नामक स्थान पर
पिता- परमानन्द वाजपेयी
माता- निर्मला देवी

इन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा गवर्नमेंट हायर सेकेंड्री स्कूल, सागर में पाई तथा सागर विश्वविद्यालय से बी० ए० और स्टीफेंस महाविद्यालय दिल्ली से अंग्रेजी विषय में एम० ए० किया।

रचनाएँ- शहर, अब भी संभावना है, एक पतंग अनंत में, अगर इतने से, तत्पुरुष, बहुरी अकेला, थोड़ी सी जगह, घास में दुबका आकाश, आविन्यों, अभी कुछ और समय के पास समय, इबादत से गिरी मात्राएँ, उम्मीद का दूसरा नाम, विवक्षा, दुःख चिट्ठी रसा आदि।

पाठ परिचय- प्रस्तुत पाठ ’आविन्यों’ इसी नाम के गद्य एवं कविता के सर्जनात्मक संग्रह से संकलित है। आविन्यों दक्षिण फ्रांस का एक मध्ययुगीन ईसाई मठ हैं जहाँ लेखक ने इक्कीस दिनों तक एकान्त रचनात्मक प्रवास का अवसर पाया था। प्रवास के दौरान प्रतिदिन गद्य एवं कविताएँ लिखी थी।

पाठ का सारांश

प्रस्तुत पाठ ‘ आविन्यों ‘ (Aavinyon) में अशोक वाजपेयी ने अपनी यात्रा आविन्यों के क्रम में हुए अनुभवों का वर्णन किया है।
दक्षिण फ्रांस में रोन नदी के किनारे अवस्थित आविन्यों नामक एक पुरानी शहर है, जो कभी पोप की राजधानी थी। अब गर्मियों में फ्रांस तथा यूरोप का एक प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय रंग-समारोह का आयोजन हर वर्ष होता है।

रोन नदी के दूसरी ओर एक नई बस्ती है, जहाँ फ्रेंच शासकों ने पोप की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए एक किला बनवाया था। बाद में, वहाँ ला शत्रूज’ काथूसियन सम्प्रदाय का एक ईसाई मठ बना, जिसका धार्मिक उपयोग चौदहवीं शताब्दी से फ्रेंच क्रांति तक होता रहा।

यह सम्प्रदाय मौन में विश्वास करता है, इसलिए सारा स्थापत्य मौन का ही स्थापत्य था। इन इमारतों पर साधारण लोगों ने कब्जा कर लिया था और रहने लगे थे।

यह केन्द्र आजकल रंगमंच और लेखन से जुड़ा हुआ है। वहाँ संगीतकार, अभिनेता तथा नाटककार पुराने-ईसाई चैम्बर्स में रचनात्मक कार्य करते हैं।
सप्ताह के पाँच दिनों में शाम को सबको एक स्थान पर रात का भोजन करने की व्यवस्था है। अन्य दिन नास्ता एवं भोजन खुद बनाकर खाते हैं। यह बेहद शांत स्थान है। लेखक को फ्रेंच सरकार के सौजन्य से ‘ला शत्रूज’ में रहकर कुछ काम करने का मौका मिला था। इसलिए यह अपने साथ हिंदी का एक टाइपराइटर, तीन-चार किताबें तथा कुछ संगीत के टेप्स लेते गये थे।

उन्नीस दिनों के प्रवास में इन्होंने 35 कविताएँ तथा 27 गद्य रचना रचनाएँ लिखी। लेखक को यह स्थान काव्य की दृष्टी से अति उपयुक्त लगा। इसी विशेषता के कारण उसने इतने कम समय में इतने अधिक लिख लिया।

उसने यह अनुभव किया कि यहाँ की हर चीझों में अद्भुत सजीवता है। इसी सजीवता, मनोरमता के फलस्वरूप इतनी कम अवधि में 35 कविताएँ तथा 27 गद्य की रचनाएँ की।

’नदी के किनारे नदी है’ तात्पर्य यह है कि एक तरफ एक छोटा सा गाँव ’वीरनब्ब’ और दूसरी तरफ आविन्यों अपनी सहजता, सुन्दरता, नीरवता तथा संवेदनशीलता पर्यटकों को इस प्रकार भाव-विभोर करते हैं कि रोन नदी का कल-कल, छल-छल धारा स्थिर किंतु किनारा शांतिमान् प्रतित होता है।

लेखक स्वयं स्वीकार करता है कि नदी के समान ही कविता सदियों से हमारे साथ रही है। जिस प्रकार जहाँ-तहाँ से जल आकर नदि में मिलते रहते हैं और सागर में समाहित होते रहते हैं, उसी प्रकार कवि के हृदय में भिन्न-भिन्न प्रकार के भाव उठते रहते हैं और वहीं भाव काव्य रूप में परिणत होते रहते हैं।

निष्कर्षतः न तो नदी रिक्त होती है और न ही कविता शब्द रिक्त होती है । तात्पर्य यह कि सहृदय व्यक्ति प्राकृतिक सुन्दरता के आकर्षण से बच नहीं सकते।

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