15. Aise Aise class 7 Saransh in Hindi | कक्षा 7 ऐसे-ऐसे

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 7 हिन्‍दी के कहानी पाठ पंद्रह ‘ Aise Aise ( ऐसे-ऐसे )’ के सारांश को पढ़ेंगे।

Aise Aise class 7 Saransh in Hindi

15 . ऐसे-ऐसे (विष्‍णु प्रभाकर)
पाठ का सारांश-प्रस्तुत पाठ ऐसे-ऐसे’ विष्णु प्रभाकर द्वारा लिखितं एकांकी है। इस एकांकी के पात्र हैं :
मोहन – एक विद्यार्थी
दीनानाथ – एक पड़ोसी
माँ – मोहन की माँ
पिता – मोहन के पिता
मास्टर – मोहन के शिक्षक तथा वैद्यज़ी, डाक्टर तथा पड़ोसिन।

(सड़क के किनारे एक सुन्दर फ्लैट है जिसका मुख्य दरवाजा सड़क वाले दरवाजा से खुलता है। दूसरा दरवाजा अंदर के कमरे में तथा तीसरा रसोईघर में है। अलमारियों में पुस्तकें सजी हुई हैं। एक ओर रेडियो सेट है तो दूसरी ओर तख्त पर गलीचे बिछे हैं। बीच में कुर्सियाँ हैं तथा एक छोटी मेज पर फोन रखा है। मोहन, जिसकी उम्र आठनौ वर्ष है, एक तख्त पर लेटा है। वह तीसरी कक्षा में पढ़ता है। दर्द से बेचैन बारबार पेट को पकड़ता है। उसके माता-पिता वहीं बैठे हैं।)
माँ बेटे को पुकारती है तथा चादर हटाकर उसके पेट पर बोतल रखती है। बस अड्डे पर आते ही उसने अपने पिता को बताया कि उसके पेट में ऐसे-ऐसे’ होता । पिता के बार-बार पूछने पर वह इतना ही कहता है, उसे ऐसे-ऐसे’ हो रहा है। मातापिता आपस में बात करते हैं कि कोई नई बीमारी तो नहीं हो गई है क्योंकि इसके चेहरे पर हवाइयाँ उड़ रही हैं। मोहन जोर से कराहने लगता है तो माँ कहती है-कोई खराब बीमारी हो गई है। हींग, चूरन, पिपरमेंट सब दे चुकी हूँ, लेकिन जरा भी चैन नहीं पड़ता।
वैद्य जी तथा डाक्टर को बुलाया जाता है। तभी डाक्टर का फोन आता है। जी, जी हाँ । मैं मोहन का पिता बोल रहा हूँ। मोहन के पेट में दर्द है। वह सिर्फ ऐसे-ऐसे’ कहता है।
मोहन उलटी का बहाना बनाता है तो माँ सिर पकड़ लेती है। वह ‘ओ-ओ’ करके थूकता है तथा लेट जाता है। तभी पड़ोस के लाला दीनानाथ प्रवेश करते हैं।
दीनानाथ – अजी, घर क्या, पड़ोस को भी गुलजार किए रहता है।
पिता – यह बड़ा नटखट है।
माँ – अब तो बेचारा थक गया है। मुझे डर है कि वह कल स्कूल कैसे जाएगा। तभी वैद्यजी आते हैं।
वैद्यजी – कहाँ है मोहन ?
पिता – वैद्यजी, दफ्तर से चलने वक्त तक मोहन ठीक था। रास्ते में बोला-पेट में “ऐसे-ऐसें’ होता है। समझ में नहीं आता, यह कैसा दर्द है।
वैद्यजी -अभी बता देता हूँ। (नाड़ी दबाकर) बात का प्रकोप है। जीभ देखी तथा पेट टटोलकर कहा—कब्ज है। मल रूक जाने के कारण वायु बढ़ गई है। मैं समझ गया । अभी एक पुड़िया भेजता हूँ। आधे-आधे. घंटे बाद दवा देनी है। और पाँच रुपये का नोट मोहन के पिता से लेते हुए कहा-आप यह क्या करते हैं ? आप और हम क्या दो है ? वैद्य जी के जाने के बाद डाक्टर भी आ गए। उन्होंने भी पेट देखा, जीभ देखी और बदहजमी की बात कहकर चल दिए। डाक्टर साहब. के साथ मोहन के पिता दवा लाने जाते हैं। इसी बीच मास्टर साहब आते हैं।
मास्टर – सुना है कि मोहन के पेट में कुछ ऐसे-ऐसे’ हो रहा है। क्यों; भाई ? (पास आकर) दादा, कल तो स्कूल जाना है। माताजी मोहन की दवा वैद्य और डाक्टर के पास नहीं है। इसकी ‘ऐसे-ऐसे’ की बीमारी को मैं जानता हूँ। (मोहन से) अच्छा साहब ! दर्द तो दूर हो ही जाएगा। डरो मत । बेशक स्कूल मत आना । बताओ, स्कूल का काम कर लिया है। (मोहन चुप रहता है)
माँ- जवाब दो, बेटा।
मास्टर – हाँ, बोलो बेटा।
वाहन – जी, सब नहीं हआ। सवाल रह गए है।
मास्टर – (हँसकर) माताजी, महीना भर मौज किया है। स्कूल का काम रह गया। इसी डर के कारण पेट में ऐसे-ऐसे’ होने लगा है। आपके इस दर्द की दवा मेरे पास है। स्कूल से आपको दो दिन की छुट्टी मिलेगी। आप उसमें काम पूरा करेंगे। ऐसे-ऐसे’ आप ही दूर भाग जाएगा। उठकर सवाल शुरू कीजिए, खाना मिलेगा।
माँ – क्यों रे मोहन, तेरे पेट में तो बहुत दाढ़ी है। हमारी तो जान ही निकल गई। मुफ्त में पन्द्रह-बीस रुपये खर्च हो गए। पिता तथा दीनानाथ दवा लेकर लौटते हैं तो मोहन का बहाना जानकर चकित रह आते हैं।
पिता – वाह, बेटा, वाह! तुमने तो खूब छकाया।
(जोर की हँसी होती है और परदा गिर आता है।)

Read more- Click here

Watch Video – Click here

Ganga stuti class 7th Hindi

Nachiketa in hindi class 7

Leave a Comment