अष्टावक्र लेखक विष्‍णु प्रभाकर वर्ग 9 | Astavakra class 9 Hindi

इस पोस्‍ट में हमलोग विष्‍णु प्रभाकर रचित कहानी ‘अष्टावक्र(Astavakra class 9 Hindi)’ को पढ़ेंगे। यह कहानी समाजिक कुरितियों के बारे में है।

Astavakra ..

Bihar Board Class 9 Hindi Chapter 6 अष्टावक्र

Bihar Board Class 10th Social Science

पाठ का सारांश

प्रस्तुत पाठ ‘अष्टावक्र’ दलित-पीड़ित जीवन की कहानी है। अष्टावक्र अपनी बूढ़ी माँ के साथ खजांचियों की विशाल अट्टालिका की ओर जाने वाले मार्ग पर अनेक छोटी-छोटी अंधेरी तथा बदबूदार कोठरियाँ बनी हुई हैं, उन्हीं में से एक में अष्टावक्र रहता है। उसका शरीर टेढ़ा-मेढ़ा है, जो हिंडोले की तरह झूलता है। वह स्पष्ट बोल भी नहीं पाता है। उसका रंग श्याम, निरीह नयन, मुख लंबा तथा वक्र, वस्त्र कीट से चिकटे हैं। एकमात्र उसकी माँ उसका सहारा है। उसका पिता उसकी शैशवास्था में ही स्वर्ग सिधार गया। उसके प्रति माँ का स्नेह इतना तीव्र था कि उसने पुत्र की बुद्धि का विकास नहीं होने दिया तथा उसका भोलापन मूर्खता की सीमारेखा पार कर गया। गरीबी तथा बुढ़ापे के कारण उसकी माँ का शरीर शिथिल हो चुका था, फिर भी वह अपने अपंग पुत्र के भरण-पोषण के लिए बेचैन रहती थी। उसके सिर के बाल उलझे हुए तथा जूँ के अड्डे थे।

उसकी माँ जब अष्टावक्र को कुछ कहती तो वह अपने वक्र मुख को और भी वक्र करके कुएँ की जगत् पर बैठ जाता अथवा आने-जाने वालों को देखने लगता। उस समय – वह जड़ भरत या मलूकदास जैसा प्रतीत होता था। माँ ही उसे नित्यकर्म करने को कहती, मुँह धुलवाती तथा रात की बची हुई रोटी एवं खोमचे में बची हुई चाट,देती।

वह खोमचा लगाता था, जिसमें कचालू की चाट, मूंग दाल की पकौड़ियाँ, दही के आलू तथा पानी के बतासे होते थे। वह गली-गली ‘चाट लो चाट, आलू की चाट, पानी के बतासे’ कहकर बेचा करता था। उसकी आवाज सुनकर बच्चे, किशोर तथा कुमार दौड़ पड़ते और उसके स्वर में स्वर मिलाकर कहने लगते ‘पकौड़ी बतासा लो, उल्लू की चाट लो।’ माँ उसे समझाकर भेजती—पैसे के चार बतासे देना, चार पकौड़ी देना तथा चार चम्मच आलू देना, किंतु नासमझी के कारण एक पैसा में चार पत्ते दे देता था। संध्या के समय जब वह लौटता तो माँ लोटे से पैसे निकालकर गिनती और माथा ठोक लेती, क्योंकि डेढ़ रुपये की बिक्री का सामान ले जाकर वह दस-बारह आने लेकर लौटता । माँ के लाख प्रयास के बाद भी उसमें कोई परिवर्तन नहीं आ सका। अन्त में, उसने माँ से कहा-‘चाट तू बेचाकर’ लड़के मुझे मारते हैं। यह सुनकर माँ ने अपने लाल को इस प्रकार निहारा कि उसके शुष्क नयन सजल हो उठे। पुत्र की बात पर उसे याद हो आया. कि शैशव और यौवन तो स्वयं मधुर होती है परन्तु उसकी याद मोटर की धुएँ की तरह काली, कड़वी तथा दुर्गंधपूर्ण होती है। माँ को इस बात का दुःख नहीं हुआ कि बेटा उसे चाट बेचने के बाद भी चाट बेचना नहीं सीखा सका । भगवान ऐसे व्यक्ति को जन्म क्यों देते हैं। तभी बेटे ने कहा-माँ! भूख लगी है। यह सुनकर माँ खीझ उठी। उसने कहा-कंब तक तेरी खातिर में बैठी रहूँगी । अर्थात् मेरे मरने के बाद कौन सहारा होगा। माँ बोलती जा रही थी और वह कुएँ की जगत् पर जाकर लेट गया। काफी रात बीत जाने पर वह खाना लेकर गई। रोटी खाते हुए अष्टावक्र ने इतना ही कहा-माँ। बोलने का कठिनता के कारण इतना लंबा हो गया कि माँ को लगा कि अखिल ब्रह्माण्ड उसे माँ कहकर पुकार रहा हो।

एक बार अष्टावक्र को तेज बुखार आ गया। वह चिथड़ों में लिपटा चूल्हे के पास छटपटा रहा है और माँ चाट बेचने को बैठी है। उसने प्लुत स्वर में कहा-माँ! पानी। माँ ने बेटे को पानी पिलाकर लौटने लगी। बेटे ने पुनः उसी स्वर में कहा-माँ! माँ की ममता जाग उठी। उसने उसके सिर दबातें हुए पैसे की चिन्ता में डूब गई। कुछ दिनों के बाद माँ को ज्वर चढ़ आया । उसने उस दशा में भी पकौड़ी बनाने की रीति बेटे को समझाकर कहा-अब धीरे-धीरे तेल में छोड़ता जा । लेकिन नासमझ अष्टावक्र मुट्ठीभर आलू बेसन कड़ाही में डाल दिया । फलतः उसकी छाती पक गई। माँ ने ज्वरावस्था में थाल तो तैयार कर दिया, किन्तु लौटने पर उसके हाथ से थाल न ले सकी । उसने बेटे की ओर निहारा तथा हाथ फैलाकर कहा-पैसे । बेटे ने लोटे से पैसे निकाल कर उसके हाथ में पैसे रख दिए । दो-तीन दिनों तक बीमार रहने के बाद वह चल बसी। अब उस कोठरी में एक कुल्फी वाला बूढ़ा आ बसा । लेकिन उसी शाम कहीं से घूमते हुए अष्टावक्र अपने सामान के साथ कुएँ की जगत पर चुपचाप बैठ गया। इसके पास कुछ बच्चे आए तथा कुल्फीवाला भी आ गया। कुल्फीवाले के पूछने पर उसने माँ को पुकारा । कुल्फीवाले ने कहा, तुम्हारी माँ मर गई है, अब वह नहीं आएगी। उस रात उसी कुएँ की जगत् पर रात काटी। सबेरे बड़े खजांची ने उसे अपने बाग में भेज दिया, जहाँ खुली जगह पड़ी थी, पर वह उसे अच्छी न लगी। खजांचिन ने उसे कपड़े तथा रोटी दिए, जिसे अस्वीकार कर दिया। उसने कुएँ की जगत् को नहीं छोड़ा और चाटवाला खाली थाल लेकर घूमने लगा। उसे थाल लेकर घूमते हुए देखकर लोग कहने लगे कि इसकी माँ मर गई। माँ के मरने की बात सुनकर उसे विश्वास हो गया कि अब उसकी माँ नहीं आएगी। उसी रात कुल्फी वाले ने उसे दर्द भरे स्वर माँ-माँ पुकारते सुना। उसके पेट में दर्द हो रहा था। कुल्फीवाले ने खजांची से आकर कहा कि अष्टावक्र की हालत अति गंभीर है। उसने अस्पताल को फोन किया। वहाँ से गाड़ी आई और उसे आइसोलेशन वार्ड में भर्ती कर दी, उसकी स्थिति देखकर डाक्टर बोला, बस, अब समाप्त होने वाला है। नर्स ने कुल्फीवाले से पूछा, ‘यह तुम्हारा मरीज है।’ उसने कहा- ‘मेरा कोई नहीं नहीं है।’

लेकिन धीमे पर गंभीर स्वर में पुकारा— ‘माँ’ । कुछ ही क्षणों में उसकी चेतना मौन हो गई।

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