टॉल्सटाय के घर में लेखक राजकुमार | Tolstoy ke ghar mein

इस पोस्‍ट में हमलोग राजकुमार रचित कहानी ‘टॉल्सटाय के घर में(Tolstoy ke ghar mein)’ को पढ़ेंगे। यह कहानी समाजिक कुरितियों के बारे में है ।

Tolstoy ke ghar mein

Bihar Board Class 9 Hindi Chapter 7 टॉल्सटाय के घर में

लेखक राजकुमार

Bihar Board Class 10th Social Science

पाठ का सारांश

प्रस्तुत पाठ ‘टॉल्सटाय के घर में’ लेखक यात्राओं के रिपार्ताज हैं। लेखक ने पेरिस के अतिरिक्त जिन देशों की यात्राएँ की। साथ ही, लेखक ने इसमें टॉल्सटाय के जीवन की अविस्मरणीय यादों की झाँकी प्रस्तुत की है। लेखक के लिए टॉल्सटाय के घर की यात्रा तीर्थयात्रा की तरह है।

    लेखक मास्को शहर की विशेषता बताते हुए कहता है कि वहाँ धूप के दिन अधिक देर तक नहीं टिकते, इसलिए वहाँ के लोग बड़े चाव से धूप का आनंद लेते हैं। लेखक नाश्ता करके अपने एक रूसी मित्र यूरा के साथ यासनाया पोलयाना के लिए रवाना होता है। टॉल्सटाय ने यहीं साहित्य की अमर कृतियाँ लिखी थीं। यहीं ‘युद्ध और शांति’ के सजीव चित्र रचे गए थे। लेखक इस स्थान को देखने के लिए काफी उद्वेलितथा। कार 70 मील की रफ्तार से भागी जा रही थी। सड़क के दोनों ओर हरे तथा गहरेपीले रंग के खेत सूरज की रोशनी में चमक रहे थे। लेखक मन-ही-मन यासनाया पोलयाना के बारे में सोच रहा था तथा नताशा, लेविन, आंद्रे, हाली आदि के धुंधले चित्र उनकी आँखों के सामने घूमे जा रहे थे। प्यानो, वायलिन, मैंडोलिन के स्वर लेखक के हृदय को झंकृत कर रहे थे। तीन घंटे के बाद वे यासनाया पोलयाना के बड़े फाटक पर पहुँच जाते हैं। – यह गाँव लगभग डेढ़ सौ घरों का है और इसी के सिरे पर टॉल्सटाय का घर है। उनके घरों के चारों ओर बाग-बगीचे हैं तथा पास ही एक तालाब है, जिसके किनारे टॉल्सटाय घंटों बैठा करते थे। टॉल्सटाय के घर को सरकार ने म्यूजियम बना दिया है जिसमें उनका सब सामान सजा हुआ है। म्यूजियम देखने हजार की संख्या में स्त्री-पुरुष तथा बच्चे आए हुए थे। लेखक के वहाँ पहुँचने पर म्यूजियम के डायरेक्टर उनके साथ उस आदमी को भेजा, जो टॉल्सटाय का सेक्रेटरी रह चुका था। वहाँ एक पेड़ है जिसकी छाया में बैठकर टॉल्सटाय किसानों को पढ़ाया करते थे। वहीं एक झोपड़ी थी, जिसमें उनके मित्र रेपिन नामक महान चित्रकार रहते थे। उन्होंने टॉल्सटाय के भी अनेक चित्र बनाए थे।

टाल्सटाय जब ढाई वर्ष के थे तभी उनकी माँ की मौत हो गई, लेकिन वह न तो माँ को भूल सकेऔर न ही माँ द्वारा लगाए बागों को उन्होंने उन बागों की कभी अनदेखी नहीं की। उस बाग में अनेक पतली-पतली पगडंडियाँ थीं तथा टॉल्सटाय का अनेक स्मृतियाँ बिखरी हुई थीं। कहीं कोई बेंच थी, जिस पर वह सुबह में बैठा करते थे, एक पेड़ की शाखा पर एक घंटा लगा था जिसे बजाकर परिवार के लोगों को भोजन करने की सूचना दी जाती थी। बाहर की परिक्रमा के बाद जब लेखक ने उनके अंदर पैर रखा, उनके शरीर में सनसनी पैदा हो गई। मस्तिष्क में हलचल पैदा हो गया। शीशे का आलमारियों में उनके कोट, पतलून, ओवर कोट, ड्रेसिंग गाऊन, मोजे, जूते, कमीजें आदि टँगे थे। दीवालों पर उनके तथा उनके परिवार के चित्र लगे हुए थे। उनके पढ़नेलिखने के कमरे के कोने में छोटी-सी मेज तथा बिना सिरहाने की एक तिपाई रखी हुई थी। इसी कमरे में बैठकर ‘आना करीनिना’ तथा ‘युद्ध और शांति’ की रचना की थी। इनके पुस्तकालय में 23,000 किताबें थीं तथा विभिन्न जगहों से आए 20,000 के लगभग पत्र थे। वे अपने कमरे में खिड़की के पास सोते थे, ताकि प्राकृतिक सौन्दर्य का आनंदलिया जा सके। पत्नी से खटपट रहने के कारण दोनों अलग-अलग कमरे में सोते थे।खाने का कमरा दूसरी मंजिल पर था। कमरे के बीच में एक बड़ी मेज थी, जिसके चारो ओर बारह कुर्सियाँ रखी हुई थीं। चारों ओर आराम कुर्सियाँ थीं जिन पर खाने के बाद लोग आराम करते थे तथा संगीत का आनंद लेते थे। टॉल्सटाय स्वयं भी संगीत के शौकीन थे। नीचे की मंजिल में अतिथियों के लिए कमरे थे। इसमें एक डॉक्टर रहता था। टॉल्सटाय ने जब अन्तिम बार घर छोड़ा तो केवल डॉक्टर ही उनके साथ गया था। उन्होंने इस कमरे का वर्णन ‘आना करीनिना’ में लेविन की चर्चा के क्रम में किया था। इस प्रकार म्यूजियम देखकर लेखक को ऐसा अनुभव हुआ कि उनके जीवन की जैसी झाँकी उन्हें दिखाई दी, वह कभी धुंधली नहीं हो सकती है। इस मकान में केवल टॉल्सटाय के जीवन का इतिहास का ही पता नहीं चलता था, बल्कि उन सारी- आत्माओं की आवाज सुनाई पड़ती थी, जिन्हें टॉल्सटाय ने जन्म दिया था।

    उस मकान से बाहर निकलने पर तेज धूप के कारण लेखक की आँखें चौंधिया-सी गई। कुछ देर के बाद लेखक अपने मित्रों के साथ टॉल्सटाय की समाधि देखने चल पड़े।

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