नवमः पाठः बिहारस्य सांस्कृतिकं वैभवम् | Biharasya Sanskritikan Vaibhavam

इस पोस्‍ट में हमलोग कक्षा 9 संस्‍कृत के पाठ 9 बिहारस्य सांस्कृतिकं वैभवम् (Biharasya Sanskritikan Vaibhavam) के सभी टॉपिकों के अर्थ का अध्‍ययन करेंगे।

नवमः पाठः

बिहारस्य सांस्कृतिकं वैभवम्

पाठ-परिचय-प्रस्तुत पाठ ‘बिहारस्य सांस्कृतिक वैभवम् में बिहार की सांस्कृतिक उपलब्धि का संक्षिप्त परिचय दिया गया है। यह राज्य न केवल धर्म, दर्शन, ज्योतिष व्याकरण आदि शास्त्रों का केन्द्र रहा है, बल्कि संगीत, नृत्य, चित्र तथा मूर्ति कला के क्षेत्र में भी अग्रगण्य रहा है । इस प्रकार परम्परा-प्राप्त सांस्कृतिक क्षेत्रों में सारे धर्मावलंबी तथा भिन्न-भिन्न जातियों के योगदान है।
Biharasya Sanskritikan Vaibhavam
संगीतं कलासु प्रमुखम्। गीतं नृत्यं त्रा वाद्यं च चयं संगीतमुच्यते। देवाराध्नस्य पुरुषार्थसम्प्राप्तेः  . प्रमुखं साध्नमेतत्। एतदर्थं लोकजीवनस्य अभिन्नम् अ्र्यिं मदम्। जनैः समायोजितेषु संस्कारोत्सवेषु  तत्तद्भावपुरस्सरं गीतानि गीयन्ते। तानि च गीतानि संस्कारगीतानि कथ्यन्ते। तेषु मुण्डन -यज्ञोपवीत – विवाह -कोहवर -सोहर – समदाओन-गीतानि मुख्यानि। अत्रा संगीत-परम्परायां केचिद् विशिष्टाः  साध्काः अभवन्। तेषु स्वनामध्न्याः पण्डित रामचतुरµमल्लिक-पण्डित सियाराम तिवारीµ प्रभृतयः  विश्वविश्रुताः। नृत्यं भाव-प्रकाशकं वर्तते। आचार्यज्योतिरीश्वर ठक्कुरेण ‘वर्णरत्नाकरे’ नृत्यस्य लास्य-ताण्डव  सम्भा-हल्लीस-रासकेति बहवो भेदाः कथिताः। तत्रा लास्यं माध्ुर्यभावसूचकं भवति। 
अर्थ— कलाओं में संगीत प्रमुख माना जाता है। गीत, नृत्य वाजा को संगीत कहा जाता है। इस प्रकार लोक जीवन का यह अभिन्न अंग है। लोगों द्वारा आयोजित संस्कार उत्सवों में भाव के अनुसार गीत गाये जाते हैं। इन गीतों को संस्कार गीत कहते हैं। इन गीतों में गुण्डन, यज्ञोपवीत (जनेऊ), विवाह, कोहबर, सोहर, समदीन आदि गीत मुख्य हैं। यहाँ संगीत-परम्परा में कई श्रेष्ठ साधकं हुए। उनमें पंडित रामचतुर मल्लिक, पंडित सियाराम तिवारी आदि-आदि विश्वविख्यात हुए। नृत्य के भावो को प्रकट करने वाला कहते है। आचार्य ज्योतिः ईश्वर ठाकुर द्वारा लिखित ‘वर्णरत्नाकर’ ग्रंथ में नृत्य के लास्य-ताण्डव, सम्भा, हल्लीस, रास-इस प्रकार अनेक भेदों की चर्चा की गई है। उनमें लास्य को माभुर्यभाव को व्यंजित करने वाला बताया गया है।
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अस्मिन् राज्ये लोकनृत्यस्य प्राचीना परम्परा। सर्वेषु अ×चलेषु स्व-स्वलोकनृत्यानि प्रसि(ानि। तत्रा  मिथिलायां जटजटिन सामा चकेवा-मिझिया-होली कमलापूजेति नृत्यप्रकाराः प्रचलिताः। एवमेव  अ×चलान्तरेष्वपि बहूनि लोकनृत्यानि। यथा मगध्मण्डले ‘खेलडिन’-डोमकचादयः भोजपुरमण्डले  नेटुआ-जोगीरा-चैता-गौंड इत्यादयः नृत्यभेदाः प्रसिद्धा।
नाट्यं जनरुचिव(र्कं लोकाराध्नक्षमं विज्ञैः पंचमो वेदः कथ्यते। अत्रा राज्ये विशिष्टेषु समारोहेषु  पूजनावसरेषु च जनैः ऐतिहासिकवृत्तमिश्रितानि सामाजिकानि च नाट्यानि सोत्साहं प्रस्तूयन्ते जनैश्च  बहुमन्यन्ते। गीत-नृत्यसमन्वितानि लोकनाट्यान्यपि प्रचलितानि। यथा मिथिलायां
रामलीला-किरतनिया-विदापत प्रभृतीनि नाट्यानि। भोजपुरी-अ×चले भिखारी ठाकुरस्य ‘विदेशिया’ इति  नामकं लोकनाट्यम् अतीव लोकप्रियम्।
अर्थ- इस राज्य में लोकनृत्य की पुरानी परम्परा है। सभी क्षेत्रों में अपना अपना लोकनृत्य प्रसिद्ध है। मिथिला में जट-जटी, सामा-चकेवा, मिझिया-होली, कमला पूजा आदि से संबद्ध भिन्न-भिन्न प्रकार के गीत प्रचलित हैं। इसी प्रकार दूसरे क्षेत्रों में भी अनेक प्रकार के लोकनृत्य प्रचलित हैं। जैसे—मगध क्षेत्र में ‘खेलाडन, डोगकच’ आदि, भोजपुर क्षेत्र में नेटुआ, जोगीरा, चैता, गोंडऊ आदि प्रकार के नृत्य प्रसिद्ध है। नाटक को उत्साहवर्द्धक तथा सबके लिए सुखकर होने के कारण विद्वानों ने इसे पंचम वेद माना है। इस राज्य में विशिष्ट आयोजनों, पूजा आदि के अवसरों पर लोगों द्वारा ऐतिहासिक, सामाजिक मिश्रित कथाओं से संबंधित नाटक उत्साह के साथ प्रस्तुत किये जाते है तथा लोगों द्वारा मनाये जाते हैं। यहाँ गीत-नृत्य समन्वित नाटकों का प्रचलन भी है। जैसे मिथिला में रामलीला, किरतनिया, विद्यापति आदि प्रचलित है। भोजपुरी क्षेत्र में भिखारी ठाकुर का विदेशिया’ नामक लोकनृत्य अति लोकप्रिय है।
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राज्ये{स्मिन् सर्वेषु अ×चलेषु चित्राकलायाः प्रचलनं संस्कारकार्येषु दृश्यते। मिथिलाक्षेत्रो देवपूजनावसरे  संस्कारोत्सवेषु च स्त्राभिः भूमौ ‘अल्पना’ भित्तिचित्राणि च निर्मीयन्ते। तानि च चित्राणि प्रायः गृहे प्राघ्गणेभित्तौ, तुलसीचत्वरे कोवरगृहे च रच्यन्ते। इयं हि चित्राकला इदानीं मिथिला चित्राकला-नाम्ना विख्याता जाता।  अस्यां चित्राविद्यायां कुशलाः पप्रश्री सम्मानिताः जगदम्बाµमहासुन्दरीµ प्रभृतयः स्त्रियः बिहारराज्यस्य  गौरवभूताः।
मूर्तिकला अपि राज्यस्य वैभवम्। अत्रा मृन्मयानि विविध्वस्तुरचितानि च क्रीडनकानि आपणेषु बहुध  दृश्यन्ते। धर्मिकावसरेषु च प्रायः मूर्तिकलाविद्भिः तृण-कर्गद-मृद्भिः संरचिताः देवमूर्तयः स्थाप्यन्ते जनैः  पूज्यन्ते च। कुम्भकारैः मृत्तिकानिर्मिताः गजानां घोटकाना×च मूर्तयः विवाहावसरेषु विशेषतः मण्डपाभ्यन्तरे  स्थाप्यन्ते।
वस्तुतः बिहारः भारतवर्षे सांस्कृतिकदृष्ट्या गौरवमयं पदं धरयति। 
अर्थ— इस राज्य के सारे क्षेत्रों में चित्रकला का प्रचलन संस्कार कार्य अर्थात् मुण्डन जनेऊ, विवाहादि अवसरों पर देखे जाते है। मिथिला क्षेत्र में देवपूजन, नुग्डन, उपनयन एवं विवाह के अवसर पर स्वियो द्वारा भूमि पर ‘ऐपन’ (अल्पना) रेखाचित्रों का निर्माण किया जाता है। उन चित्रों को प्रायः घर में, प्रांगण में, दीवाल पर, तुलसो चबूतरा पर, कोहवर घर में खींचते है या रचना करते हैं। यही चित्रकला इस समय मिथिला चित्र कला के नाम से प्रसिद्ध है। इस चित्रविद्या में निपुण जगदम्बा, महासुन्दरी आदि ने ‘पद्मन्त्री से सम्मानित होकर बिहार की स्वियों को गौरवान्वित किया। मूर्तिकला भी राज्य का धरोहर है। यहां मिट्टी से बनी अनेक प्रकार की वस्तुएँ तथा खेल-सामग्री बाजारों में अक्सर देखे जाते हैं। धार्मिक कार्य के अवसर पर प्रायः मूर्तिकार द्वारा पास, कागज तथा मिट्टियों से निर्मित देवताओं की मूर्तियाँ स्थापित की जाती हैं तथा पूजी जाती हैं। कुम्हार द्वारा मिट्टी निर्मित हाथी तथा घोड़ो की मूर्ति विवाह के अवसर पर विवाह मंडप के अंदर स्थापित किए जाते हैं।

Bihar Board Class 10th Social Science
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