Class 10 Non Hindi Bihari Ke Dohe – बिहारी के दोहे

इस पोस्ट में हम बिहार बोर्ड के वर्ग 10 के पद्य भाग के पाठ 1 ( Bihari Ke Dohe) “ बिहारी के दोहे” के व्याख्या को पढ़ेंगे, इस पाठ के कवि बिहारी हैं | प्रस्‍तुत कविता के माध्‍यम से कवि ने नीतिपरक दोहों को बताया है।

Bihari Ke Dohe
Bihari Ke Dohe

6. बिहारी के दोहे
रीतिकाल के प्रतिष्ठित शृंगारिक कवि बिहारी के दोहे गागर में सागर हैं। वैसे तो बिहारी प्रेम के कवि के रूप में प्रतिष्ठित हैं, पर उनके भक्ति और नीतिपरक दोहों को भी व्यापक लोकप्रियता मिली। इस पाठ में उनके द्वारा रचित तीनों तरह के दोहे शामिल हैं।
लेखक- बिहारी
मेरी भव बाधा हरौ राधा नागरि सोय।
जा तन की झाई परै स्यामु हरित दुति होय।।
बिहारी कहते हैं कि हे राधा ! मेरी बाधाओं को दूर करो। तुम्हारी शक्ति अनन्त है। तुम्हारे शरीर की परछाईयाँ पड़ते ही कृष्ण का रूप श्याम और अति सुंदर हो गया।
जपमाला, छापै, तिलक सरै न एकौ कामु।
मन-काँचै नाचै वृथा, साँचै राँचै रामु।।
बिहारी कहते हैं कि हाथ में जपमाला थाम, तिलक लगा कर आडम्बर करने से कोई काम नहीं होता। मन काँच की तरह क्षणभंगुर होता है जो व्यर्थ में नाचता रहता है। इन सब दिखावे को छोड़ अगर भगवान की सच्चे मन से आराधना की जाए तभी काम बनता है।
बतरस-लालच लाल की मुरली धरी लुकाइ।
सोहँ करें भौं हनु हँस, दैन कहे नटि जाइ।।
बिहारी कहते हैं कि गोपियों ने श्रीकृष्ण से बात करने की लालसा के कारण उनकी बाँसुरी छुपा दी है। वे भौंहों से संकेत कर मुरली ना चुराने की कसम खाती हैं। वे कृष्ण को उनकी बाँसुरी देने से इनकार करती है।
जब-जब वै सुधि कीजिये, तब-तब सुधि जहि।
आँखिनु आँखि लगी रहैं, आँखें लागति नाँहि।।
बिहारी कहते हैं कि जब-जब उन बातों को याद आती है, तब-तब सभी सुधि जाती रहती है। बिसर जाती है। उनकी आँखे मेरी आँखों से लगी रहती है, इसलिए मेरी आँखे भी नहीं लगतीं-मुझे नींद नहीं आती।
नर की अरु नल-नीर की गति एक करी जोय।
जेतो नीचौ हवै चलै तेतो ऊँचो होय।।
बिहारी कहते हैं कि नर (मनुष्य) और नल के पानी की एक ही गति होती है नल का पानी जितना नीचे होता है उतना ऊपर हो जाता है। अर्थात् जो नल का पानी नीचे गिरता है वो किसी न किसी माध्यम से नदी या समुद्र में जाता है और वहाँ से सूर्य के ताप से भाप में बदल कर ऊँचाई में चला जाता है। उसी तरह मनुष्य जितना विनम्र होता है उतना हि ऊपर जाता है अर्थात् महानता प्राप्त करता है।
संगति सुमति न पावही परे कुमति के धन्ध।
राखौ मेलि कपूर में हींग न होत सुगंध।।
बिहारी कहते हैं कि जो कुमति के धंधे में पड़ा रहता है। जिसे खराब काम करने की आदत सी लग जाती है, वह सत्संगति से भी सुमति नहीं पाता-नहीं सुधरता। कपूर में मिलाकर भले ही रखो, किन्तु हींग सुगंधित नहीं हो सकती।
बड़े न हूजै गुनन बिनु, बिरद बड़ाई पाय।
कहत धतूरे सो कनक, गहनो गढ़यो न जाय।।
बिहारी कहते हैं कि बिना गुण के कोई भी व्यक्ति बड़ा नहीं हो जाता। चाहे उसकी कितनी भी प्रशंसा न की जाय। लेकिन जिस तरह सोना और धतुरा दोनां का रंग एक ही होता है, लेकिन सोना में विशेष गुण होता है जिससे उसका आभूषण बनता है लेकिन धतूरा का नहीं।
दीरघ साँस न लेहु दुख, सुख साई हि न भूल ।
दई दई क्यौं करतू है, दई दई सु कबूलि।।
बिहारी कहते हैं कि दुःख में लम्बी साँस न लो, और सुख में ईश्वर को मत भूलो। दैव-दैव क्यों पुकारते हो ? दैव (ईश्वर) ने जो दिया है उसे कबूल करो।

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