Bihar Board Class 7th Book Notes & Solutions

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कक्षा 7 के सभी विषयों के प्रत्येक पाठ के प्रत्येक पंक्ति के व्याख्या हमारे एक्ससपर्ट के द्वारा तैयार किया गया है। इसमें त्रुटी की संभावना बहुत ही कम है। नीचे दिया गया विषय की व्यारख्या को पढ़ने के बाद परीक्षा में आप और बेहतर कर सकते हैं। कक्षा 7 के बोर्ड परीक्षा में काफी अच्छा मार्क्स  आ सकता है। कक्षा 7 में अच्छा मार्क्स लाने के लिए इस पोस्ट पर नियमित विजिट करें। प्रत्येंक पाठ का व्याख्या इतना आसान भाषा में तैयार किया गया है कि कमजोर से कमजोर छात्र भी इसे पढ़कर समझ सकता है।

यह नोट्स NCERT तथा SCERT बिहार पाठ्यक्रम पर पूर्ण रूप से आधारित है। इस पोस्ट में बिहार बोर्ड कक्षा 7 के प्रत्येक विषय के पाठ के बारे में प्रत्येक पंक्ति का हल किया गया है, जो बोर्ड परीक्षा की दृष्टि से काफी महत्वटपूर्ण है। इस पोस्ट  के प्रत्ये्क पाठ को पढ़कर बोर्ड परीक्षा तथा प्रतियोगी परीक्षाओं में उच्च स्कोर प्राप्ता कर सकते हैं। इस पोस्ट के व्याख्य पढ़ने से आपका सारा कन्सेप्टर क्लियर हो जाएगा। सभी पाठ बोर्ड परीक्षा की दृष्टि से बनाया गया है।  पाठ को आसानी से समझ कर उसके प्रत्येक प्रश्नों  का उत्तर दे सकते हैं। जिस विषय को पढ़ना है, उस पर क्लिक करने से उस पाठ का व्याख्या खुल जाएगा। जहाँ उस पाठ के प्रत्येरक पंक्ति का व्याख्या पढ़ सकते हैं।

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मुझे आशा है कि आप को कक्षा 7 के सभी विषय के व्याख्या को पढ़कर अच्छा लगा होगा। इसको पढ़ने के पश्चात आप निश्चित ही अच्छा स्कोर करेंगें।  इन सभी पाठ को बहुत ही अच्छा तरीका से आसान भाषा में तैयार किया गया है ताकि आप सभी को आसानी से समझ में आए। इसमें कक्षा 7 के प्रत्येक विषय के सभी चैप्टर के प्रत्येक पंक्ति का व्याख्या को सरल भाषा में लिखा गया है। यदि आप बिहार बोर्ड कक्षा 7 से संबंधित किसी भी पाठ के बारे में जानना चाहते हैं, तो नीचे कमेन्ट  बॉक्स  में क्लिक कर पूछ सकते हैं। यदि आप और विषय के बारे में पढ़ना चाहते हैं तो भी हमें कमेंट बॉक्स में बता सकते हैं। अगर आपका कोई सुझाव हो, तो मैं आपके सुझाव का सम्मान करेंगे। आपका बहुत-बहुत धन्यावाद.

Bihar Board Class 8th Book Notes & Solutions

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Rah Bhatke Hiran Ke Bachhe Ko Class 10 Non Hindi – राह भटके हिरन के बच्चे को

rah bhatke hiran ke bachhe ko

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड के वर्ग 10 के अहिन्‍दी (Non Hindi) के पाठ 23 (Rah Bhatke Hiran Ke Bachhe Ko) “राह भटके हिरन के बच्चे को” के व्‍याख्‍या को जानेंगे। इस पाठ में एक माँ को अपने बच्‍चे से प्रेम को दर्शाया गया है।

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पाठ परिचय- इस कविता में हिरन का बच्चा राह भटक गया है। उसके दुख को देखकर लेखक भी बहुत दुखी हो जाते हैं।

पाठ का सारांश (Rah Bhatke Hiran Ke Bachhe Ko)

प्रस्तुत कविता ‘राह भटके हिरण के बच्चे को‘ डा० नि० वियतनाम के द्वारा रचना किया गया है। इस कविता का अनुवाद राजेन्द्र प्रसाद मिश्र के द्वारा किया गया है।

हिरण का बच्चा माँ से अलग होकर पहाड़ पर रो रहा है। कवि उस हिरण के बच्चे के बारे में सोच कर दुखी हो जाते हैं कि वह कितना वेदना सह रहा है।

कवि कहते हैं कि बांस के वन तुझे लोरी सुना रहे हैं। आकाश में तारे जगमग कर रहे हैं। नीचे कितने नरम पत्ते पड़े हैं। तुम बेहिचक सो जाओ तुम्हारी माँ कल जरूर मिलेगी।

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Sudama Charit Class 10 Non Hindi – सुदामा चरित

sudama charitra

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड के वर्ग 10 के अहिन्‍दी (Non Hindi) के पाठ 22 (Sudama Charit) “सुदामा चरित” के व्‍याख्‍या को जानेंगे। इसके लेखक नरोत्तम दास है। इस पाठ में कृष्‍ण और सुदामा के दोस्‍ती की गहराई को दर्शाया गया है।

sudama charitra
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पाठ परिचय- सुदामा और कृष्ण बाल-सखा थे। सुदामा बहुत गरीब थे। भिक्षा माँगकर भोजन करते थे और हरि-भजन में लीन रहते थे। उनकी पत्नी को अपनी दरिद्रता पर बड़ा क्षोभ था। उन्होनें दरिद्रता दूर कराने के लिए सुदामा को द्वारिकाधीश श्रीकृष्ण के पास जाने को विवश कर दिया। श्रीकृष्ण अपने दीन मित्र सुदामा को अपार धन देकर जिस उदारता एवं मित्रभाव का परिचय दिया वह अद्वितीय है।

पाठ का सारांश (Sudama Charit)

प्रस्तुत कविता ‘सुदामा चरित‘ के लेखक नरोत्तम दास है। कवि ने इस कविता के माध्यम से कृष्ण-सुदामा की मित्रता की सराहना की है।

सुदामा कृष्ण के द्वार पर खड़े हैं। उनकी धोती फटी हुई है। पाँव में जुता नहीं है। कृष्ण के घर का पूछताछ कर रहे हैं और अपना नाम सुदामा बताते हैं।

द्वारपाल ने कृष्ण को सुदामा के आने की सूचना दी। कृष्ण राज काज छोड़कर द्वार पर भागे। वे सुदामा से लिपट गये। श्रीकृष्ण ने कहा कि तुम्हारे पाँव फटे हैं। तुम इतने दुख में थे फिर क्यों न आए। उन्होंने सुदामा का पाँव अपने आँसुओं में धो डाले। उन्होंने कहा कि गुरुमाता के द्वारा दिए गये चना को तुम अकेले खा गए, हमें नहीं दिए।

लगता है तुम्हारी आदत अभी तक नहीं गई है। तुम भाभी के भेजे चावलों के साथ उसी तरह का व्यवहार कर रहे हो।

सुदामा कृष्ण के पास कुछ दिन रहने के बाद जब घर पहुँचे। उन्होंने अपनी मड़ैया के स्थान पर एक विशाल भवन देखा। लोगों से झोपड़ी के बारे में पूछा लेकिन उन्हें जवाब नहीं मिला। उन्हें ज्ञात हुआ कि कृष्ण ने बिना मांगे अपार धन दे दिया।

इस प्रकार, श्रीकृष्ण अपने मित्र सुदामा को अपार धन देकर जिस उदारता एवं मित्रभाव का परिचय दिया वह अद्वितीय है।

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Chikitsa Ka Chakkar Class 10 Non Hindi – चिकित्सा का चक्कर

chikitsa ka chakkar

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड के वर्ग 10 के अहिन्‍दी (Non Hindi) के पाठ 21 (Chikitsa Ka Chakkar) “चिकित्सा का चक्कर” के व्‍याख्‍या को जानेंगे। इस पाठ के लेखक बेढब बनारसी है, जिसमें लेखक ने चिकित्‍सा पध्‍दति पर व्‍यंग किया है।

chikitsa ka chakkar
chikitsa ka chakkar

पाठ परिचय- बेढब बनारसी ने प्रस्तुत व्यंग्य के माध्यम से चिकित्सा पद्धतियों के विरोधाभाषों को सफलतापूर्वक उभारा है। चिकित्सकों की वेशभूषा, नुस्खे, औषधि निर्णय के तर्क जैसे अनेक प्रसंगों पर कटाक्षकरते हुए व्यंग्यकार ने विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों के मर्म का वर्णन किया है। पाठ के अध्ययन के बाद आप हिन्दी साहित्य की बानगी को समझ पाएँगे।

पाठ का सारांश (Chikitsa Ka Chakkar)

प्रस्तुत व्यंग्य ‘चिकित्सा का चक्कर‘ बेढब बनारसी के द्वारा रचना किया गया है। इस पाठ के माध्यम से चिकित्सा पद्धतियों के विरोधाभाषों को सफलतापूर्वक उभारा है।

लेखक कहते हैं कि वह 35 वर्ष के हो गए हैं, लेकिन वह कभी बीमार नहीं पड़े थे। उन्हें बीमार होने की बड़ी इच्छा होती थी। वह कहते थे कि बीमार पड़ने पर सब कोई अच्छा से देखभाल करता है और हाल-चाल पूछता है।

एक दिन वह हॉकी खेलकर घर आए। भूख नहीं लगी थी, लेकिन श्रीमती के पूछने पर थोड़ा खा लिए। खाने के बाद उनको पता चला कि ‘प्रसाद‘ जी के यहाँ से रसगुल्ला आया है। उसमें से छः रसगुल्ले खा कर चरपाई पर सो गए।

अचानक तीन बजे रात को उनके पेट में दर्द शुरू हो गई। वह सुबह होते-होते एक शीशी दवा पीकर समाप्त कर दी, पर दर्द थोड़ा भी आराम नहीं हुआ।

प्रातःकाल डॉक्टर के यहाँ आदमी भेजना पड़ा। सरकारी डॉक्टर आये। उन्होने जीभ दिखाने को कहा। बनारसी कहते हैं कि प्रेमियों को जो मजा प्रेमिकाओं की आँख देखने में आता है वैसा ही डॉक्टर को मरीजों का जीभ देखने में आता है।

डॉक्टर ने कहा कि घबराने की कोई बात नहीं है। दवा पीजिए, दो खुराक पीते-पीते आपका दर्द गायब हो जाएगा। तथा बोतल में पानी गर्म करके सेंकने को कहा।

सेंकते-सेंकते छाले पड़ गए, पर दर्द में कमी न हुई। शाम तक दर्द वैसी हीं रहा। लोग देखने के लिए आने लगे। लेखक के घर मेला लगने लगा।

तीन दिन बीत गए,दर्द में कमी न हुई। लोगों की सलाह से डॉक्टर चूहानाथ को बुलाया गया। उनकी फीस आठ रूपये थी और मोटर का एक रुपया अलग।

चूहानाथ ने दवा मँगाया, पानी गरम कराया तथा सुई दिया और लेखक को सांत्वाना देकर चले गए। बनारसी जी के पेट का दर्द बिल्कुल आराम हो गया। लेकिन दो सप्ताह लगे पूरा स्वस्थ्य होने में।

लेखक को एक दिन फिर अचानक सिर में दर्द हुई। डॉक्टर को फिर बुलाने के लिए भेजा गया, पर वह अनुपस्थित था।

अंत में मकान के बगल में रहने वाले वैद्यजी को बुलाया गया। वैद्यजी धोती पहने हुए थे और कंधे पर एक सफेद दुपट्टा डाले हुए थे। वह कुर्सी पर लेखक के सामने बैठ गए।

वैद्य जी ने औषधि दिया। दो दिन दवा की गई। कभी-कभी दर्द कुछ कम हो जाता था, पर पूरा दर्द न गया।

वैद्यजी से नहीं ठीक हुआ, तो हकीम साहब को बुलाया गया। हकीम ने नब्ज़ देखकर दवा दी। दर्द थोड़ा-बहुत आराम रहा, पर फिर ज्यां का त्यों हो गया।

लेखक के रिश्तेदार भी देखने के लिए आने लगे। उनकी नानी ने कहा कि कोई चुड़ैल तुम्हारे पिछे पड़ी है। किसी ओझा से दिखाओ।

एक डॉक्टर ने कहा कि पायरिया हो गया है जिससे दाँत का जहर पेट में जा रहा है। उसने दाँत उखड़वाने का सलाह दिया।

लेखक ने श्रीमति से पैसा माँगा तो श्रीमति ने कहा कि यह सब फ़िजूल है। खाना अच्छा से खाओ, ठीक हो जाओगे।

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Jhanshi Ki Rani Class 10 Non Hindi – झाँसी की रानी

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड के वर्ग 10 के अहिन्‍दी (Non Hindi) के पाठ 20 (Jhanshi Ki Rani) “झाँसी की रानी” के व्‍याख्‍या को जानेंगे। इस पाठ के लेखक सुभद्रा कुमारी चौहान है, इस पाठ में झाँसी की रानी लक्ष्‍मीबाई के वीरता की कहानी को बताया गया है।

jhanshi ki rani
jhanshi ki rani

पाठ परिचय- 1857 की क्रांति भारतीय स्वाधीनता संग्राम का अविस्मरणीय अध्याय है। ब्रितानी हुकुमत से विद्रोह का विस्तार समाज के हर तबके तक हुआ। सुभद्रा कुमारी चौहान की यह कविता ‘झांसी की रानी‘ के जीवन वृत्त, संघर्ष और विद्रोह से हमारा ओजपूर्ण साक्षात्कार कराती है। आम भारतीयों की जुबान पर बसी यह कविता प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की याद दिलाती है।

पाठ का सारांश (Jhanshi Ki Rani)

‘झांसी की रानी‘ शीर्षक कविता सुभद्रा कुमारी चौहान की रचना है। प्रस्तुत कविता में कवियित्री ने रानी के जीवन कथा, संघर्ष और विद्रोह से हमारा ओजपूर्ण साक्षात्कार कराती है।

झांसी की रानी लक्ष्मीबाई कानपुर के नाना की मुहबोली बहन थी। नाना के साथ खेली पढ़ी और अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा ली। यह वीरंगना थी। नकली युद्ध, व्यूह रचना और उसकी तलवारों की वार सराहना होती थी। सेना को घेरना और दुर्ग तोड़ना इनका प्रिय खेल था। यह अपने पिता की इकलौती बेटी थी। सन् 1857 की लड़ाई में यह अंग्रेजों को घुटनों पर ला दी थी। उसकी शादी झांसी के राजा के साथ हुई।

राजा निःसंतान मर गये। रानी विधवा हो गई। डलहौजी ने झांसी को लावारिस समझकर हमला कर दिया और दुर्ग पर अपना झंडा फहरा दिया।

ब्रिटिश सरकार ने नागपुर, तंजौर, सतारा और कर्नाटक पर कब्जा कर लिया और उसे ब्रिटिश राज्य में मिला लिया। झांसी की रानी अपने राज्य को स्वतंत्र करने के लिए युद्ध की घंटी बजा दी। उसने लैफ्टिनेंट वॉकर से झांसी की मैदान में युद्ध किया। वॉकर को युद्ध में घायल कर दिया। वह मैदान छोड़कर भाग गया।

रानी कालपी पहुँची। वहाँ, उसका घोड़ा गिरकर मर गया। यमुना तट पर अंगेजों की सेना फिर रानी से हार गई। ग्वालियर पर रानी ने अधिकार कर लिया। जनरल स्मिथ मैदान संभाल लिया। अंग्रेजों की हार हुई। पीछे से ह्यूरोज ने धावा बोल दिया।

वह मारते हुए आगे चलती ही जा रही थी, लेकिन आगे नाला आ गया। उसके बाद रानी चारों ओर से घिर गई। वह बहादूरी से लड़ते हुए मृत्यु को प्राप्त की। अभी वह तेईस वर्ष की थी। वह लोगों को स्वतंत्रता की राह दिखा गई।

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Jan Nayak Karpuri Thakur Class 10 Non Hindi – जननायक कर्पूरी ठाकुर

Jannayak Karpuri Thakur

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड के वर्ग 10 के अहिन्‍दी (Non Hindi) के पाठ 18 (Jan Nayak Karpuri Thakur) “हौसले की उड़ान” के व्‍याख्‍या को जानेंगे। इस पाठ में बिहार विभूति कर्पूरी ठाकुर के जीवनी है।

Jannayak Karpuri Thakur
Jannayak Karpuri Thakur

पाठ परिचय- बिहार की विभूतियों में जननायक कर्पूरी ठाकुर अत्यंत सम्माननीय हैं। इस पाठ में उनकी जीवन यात्रा के उल्लेखनीय पहलुओं का उद्घाटन किया गया है, जिससे उनकी जीवन-दृष्टि, संघर्षों, राजनैतिक विवेक के साथ-साथ मानवीय मूल्यों का पता चलता है।

पाठ का सारांश (Jan Nayak Karpuri Thakur)

प्रस्तुत पाठ में कर्पूरी ठाकुर के जीवन के विभिन्न पहलुओं के बारे में दिया गया है।

जननायक कर्पूरी ठाकुर गरीबों के मसीहा थे। उनमें बचपन से ही नेतृत्व क्षमता थी। 1942 ई० के अगस्त क्रांति के दौरान उन्होंने स्वंय कॉलेज का त्याग किया और दरभंगा, मुज़फ़्फरपुर एवं आस-पास के शहरों के स्कुलों और कॉलेजों में जा-जाकर छात्रों को बहिष्कार करने के लिए प्रेरित किया। लोकनायक जयप्रकाश नारायण द्वारा गठित ‘आजाद दस्ता‘ के सक्रिय सदस्य थे। तंग आर्थिक स्थिति के कारण वे गाँव के मध्य विद्यालय  में 30 रुपया की दर से प्रधानाध्यापक का पद पर कार्य करने लगे।

23 अक्टूबर 1943 ई॰ को रात्रि लगभग दो बजे वे गिरफ्तार कर लिए गए और दरभंगा जेल में डाल दिए गए। यह उनकी पहली जेल यात्रा थी।

सन् 1957 में जब कर्पूरी ठाकुर अपने गाँव की दौरा कर रहे थे, तो उसने देखा कि एक हैजा़ से पीड़ित अपने जीवन के अंतिम क्षण गिन रहा है। सड़क मार्ग नहीं था। उसके परिजन उसे मरते देखने के लिए विवश थे। अस्पताल वहाँ से काफी दूर होने के बावजूद उस हैजा पीड़ित को अपने कंधों पर उठाया और पाँच किलोमीटर पैदल चलकर उसे अस्पताल पहुँचाकर ही दम लिया।

कर्पूरी ठाकुर का जन्म समस्तीपुर के निकट पितौंझिया नामक गाँव में 24 जनवरी, 1921 को हुआ था। इनके माता का नाम रामदुलारी देवी, पिता के नाम गोकुल ठाकुर और पत्नी का नाम फुलेसरी देवी था।

1940 में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा द्वितीय श्रेणी से पास की और आई॰ ए॰ में नाम लिखवाया। वे घर से ही घुटने तक धोती पहने, कंधे पर गमछा रखे, बिना जूता-चप्पल पहने, पाँव पैदल चलकर मुक्तापुर रेलवे स्टेशन पहुँचते और वहीं से रेलगाड़ी पकड़कर दरभंगा पहुँचते तथा कॉलेज में दिनभर पढ़कर संध्या समय लौटते।

प्रतिदिन वह 50-60 किलोमीटर की यात्रा करते थे। 1942 में आई॰ ए॰ की परीक्षा द्वितीय श्रेणी से उतीर्ण हुए।

स्नातक कला में नामांकन कराकर अगस्त क्रांति में कुद गए। उन्हें गिरफ्तार कर भागलपुर कैम्प जेल में भेज दिया गया। वहाँ वह कैदियों की सुविधा के लिए 25 दिनों का उपवास कर सरकार को झुकने पर मजबुर कर दिया।

1952 से 1988 तक लगातार विधानसभा के सदस्य निर्वाचित होते रहे। 1967 में बिहार के उपमुख्यमंत्री तथा 1970 से 1977 में बिहार के मुख्यमंत्री रहे। दलगत राजनीति से कर्पूरी ठाकुर को गहरा धक्का लगा। 12 अगस्त 1987 को उन्हें विपक्ष के नेता पद से हटाया गया। 17 फरवरी, 1988 ई॰ को हृदयाघात के कारण इस महान विभूति का निधन हो गया।

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Hausle Ki Udan Class 10 Non Hindi – हौसले की उड़ान

hausle ki udaan

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड के वर्ग 10 के अहिन्‍दी (Non Hindi) के पाठ 18 (Hausle Ki Udan) “हौसले की उड़ान” के व्‍याख्‍या को जानेंगे। इस पाठ में बिहार के बेटियों के हौंसला और उसके जज्‍बा के बारे में बताया गया है।

hausle ki udaan
hausle ki udaan

पाठ परिचय- यह पाठ बिहार की बेटियों की असाधारण प्रतिभा का उद्घाटन करता है। आधुनिक बिहार की बेटियों की संघर्ष और उनके हौसले की उड़ान से हमें परिचित करता है।

पाठ का सारांश (Hausle Ki Udan)

 प्रस्तुत पाठ ‘हौसले की उड़ान‘ में बिहार की बेटियों की आधारण प्रतिभा के बारे में चित्रण किया गया है।

नोखा प्रखंड, रोहतास की गुड़िया के माता-पिता उसकी पढ़ाई के लिए राजी नहीं थे। गुड़िया ने कुछ कर गुजरने का हौसला महसुस किया। उसने माता-पिता को घर में बंद कर दिया और तेरह किलोमीटर पैदल चलकर नोखा प्रखंड के उत्प्ररण केन्द्र पहुँच गई। माँ-बाप की बात न मानकर वह पढ़ने की जिद्द पर अड़ गई। उत्प्रेरण केन्द्र बंद होने पर गांव के स्कूल में नामांकन करवा लिया। वह पढ़-लिखकर अध्यापिका बनना चाहती है।

कैमूर के चेनारी प्रखंड के मथही गाँव के विष्णु शंकर तिवारी की बेटी सोनी पूरे जिले के एथलेटिक्स प्रतियोगिता में 400 मीटर और 1600 मीटर की दौड़ में पहला स्थान प्राप्त किया था। वह राज्यस्तरीय स्तर एथलेटिक्स प्रतियोगिता में भी जमालपुर में प्रथम स्थान प्राप्त किया तथा राष्ट्रीय स्तर पर राज्य का प्रतिनिधित्व करते हुए चौथा स्थान प्राप्त किया। सोनी को विश्वास है कि एक दिन वह पूरे देश का प्रतिनिधित्व करेगी।

गणेशपुर मुशहरी प्राथमिक विद्यालय, बख्तियारपुर प्रखंड, मुंगेर जिला निवासीनी कदम नरेगा कार्यस्थल पर ठेकेदारों से साफ कह दी कि यदि यहाँ स्कूल का एक भी बच्चा काम करते दिखा तो हम काम नहीं होने देंगे। कदम स्कुल के बाल संसद की प्रधानमंत्री है। पिता जितेन्द्र मांझी और माँ शांति देवी को अपने इकलौती बेटी पर नाज़ है।

मथुरापुर कहतरवा पंचायत के शिवहर के 94 वर्षीय मोहम्मद अब्दुल रहमान खान को अपनी पोती जैनब खानम पर गर्व है। मार खाने के बावजूद वह शिक्षा के लिए स्कुल जाने लगी। अब वह बी०ए० में पढ़ रही है साथ ही आत्म रक्षा के लिए लड़कियों को कराटे का प्रशिक्षण भी दे रही है।

इन सभी बेटियों ने दृढ़ इच्छा शक्ति और बदलाव की इच्छा रखकर असाधारण काम किया और समाज के हौसले को बढ़ाया।

लेखक ने खेमा को सो जाने के लिए कहा और यह सोचने लगे कि मैं तो खेमा को अपने पास ले आया, लेकिन न जाने ऐसे कितने बच्चों पर इस प्रकार का अत्याचार हो रहा होगा।

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Khushboo Rachte Hain Hath Class 10 Non Hindi – खु़शबू रचते हैं हाथ

khushboo rachte hain hath

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड के वर्ग 10 के अहिन्‍दी (Non Hindi) के पाठ 17 (Khushboo Rachte Hain Hath) “खु़शबू रचते हैं हाथ” के व्‍याख्‍या को जानेंगे। इस पाठ के कवि अरूण कमल है। इसमें हाथ के कलाकारी को दर्शाया गया है।

khushboo rachte hain hath

पाठ परिचय- प्रस्तुत कविता वंचित लोगां के समृद्ध शक्ति की संवेदनशीलता को रेखांकित करती है। यह कविता उसके पीछे सक्रिय श्रम की गरिमा का उद्घाटन करती है।  

पाठ का सारांश (Khushboo Rachte Hain Hath)

कई गलियां, नालों कूड़े-करकट के ढेर के बीच एक टीले में छोटे-छोटे बच्चे अगरबत्ती बना रहे हैं। उनके हाथाें का रस उभरा हुआ है। नाखून घिस चूके हैं। पीपल के पत्तों जैसे हाथ वाले छोटे-छोटे बच्चे खुशबु रच रहे हैं।

इसी गली में देश की मशहूर अगरबत्तियों का निर्माण होता है। इन्हीं गंदे मुहल्ले के गंदे लोग केवड़ा, गुलाब, खस और रातरानी अगरबत्तियाँ बनाते हैं। दुनिया की सारी गंदगी के बीच दुनियां की सारी खुश्बू की रचना छोटे-छोटे बच्चे कर रहे हैं।

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Khema Class 10 Non Hindi – खेमा कहानी

Khema Kahani

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड के वर्ग 10 के अहिन्‍दी (Non Hindi) के पाठ 16 (Khema) “खेमा” के व्‍याख्‍या को जानेंगे। इस पाठ के माध्‍यम से बाल मजदूरी पर प्रकाश डाला है।

Khema Kahani
Khema Kahani

16. खेमा

पाठ परिचय- प्रस्तुत कहानी ‘खेमा‘ बाल-मजदूरी की नृशंसता को उभारने वाली और हमें बाल श्रमिकों के प्रति संवेदनशील बनाती है। यह कहानी बाल अधिकारों के प्रति भी हमें जागरूक बनाती है।

पाठ का सारांश (Khema)

प्रस्तुत पाठ ‘खेमा‘ बाल मजदूरी की निर्दयता को उभारने वाली कहानी है।

गली के नुक्कड पर बिना नाम की एक चालू और अस्थाई होटल था। इस हेटल का मालिक कसारा था। जो अपने काम को हल्का करने के लिए गाँव से एक बालक को ले आया, जिसका नाम खेमा था, जो कुछ तुतलाते बोलता था। उसका रंग गेहुँआ था। वह लगभग आठ-नौ वर्ष के था। दूध के दाँत पूरे गिरे नहीं थे।

सुबह ग्राहकों के लिए कसारा चाय बनाता और खेमा गिलासों को ग्राहकों को दे आता। खेमा को कसारा हमेशा गुस्से से बोलता था। उसे न हीं समय पर खाना देता था।

खेमा अप्रैल के महिने में नंगे पैर लोगों को चाय पहुँचाता। एक बार उसने कसारा से कहा कि चप्पल खरीद दीजिए पैर जल जाते हैं, तो कसारा ने गुस्से से चुप करा देता।

खेमा ग्राहकों को चाय देता, पानी पिलाता और ग्राहकों के आदेश पर बीड़ी-सीगरेट भी ले आता था। रोजाना चाय पीने वाले ग्राहक खेमा को भद्दी गालियाँ देकर पुकारते थे। फिर भी खेमा मुस्कुराता हुआ काम में लगा रहता था।

खेमा को कसारा पिटता भी था। वह कसारा के खौफ के आगे मशीन की तरह दौड़ता रहता था।

लेखक ने खेमा के बारे में पता लगाया तो खेमा चार भाई था। भाईयों में सबसे छोटा था।

लेखक ने खेमा के गाँव का पता लगा कर उसके पिताजी से अज्ञा लेकर उसको अपने साथ रखने को कहा। खेमा के पिताजी के मन में अपने बेटे के प्रति प्रेम उमड़ पड़ा।

खेमा के पिता ने कसारा से बात करके लेखक के साथ भेज दिया। लेखक सोचते हैं कि यदि खेमा पढ़-लिखकर कुछ बन जाएगा तो मुझे हार्दिक प्रसन्नता होगी परन्तु खेमा जैसे अनेक बालक हैं, उनका क्या होगा ?

रात को लेखक जब सोने चले तो खेमा उनके पास आकर पैर दबाने लगा। लेखक ने पूछा तो पता चला कि वह रोज रात को कसारा का पैर दो घण्टा दबाता था।

लेखक ने खेमा को सो जाने के लिए कहा और यह सोचने लगे कि मैं तो खेमा को अपने पास ले आया, लेकिन न जाने ऐसे कितने बच्चों पर इस प्रकार का अत्याचार हो रहा होगा।

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