Class 10 Non Hindi Eidgah – ईदगाह कहानी

इस पोस्ट में हम बिहार बोर्ड के वर्ग 10 के पद्य भाग के पाठ 2 (Eidgah) “ ईदगाह” के व्याख्या को पढ़ेंगे, इस पाठ के  प्रेमचंद्र है |रमजान के पूरे तीस रोंजों के बाद आज ईद आई है। गाँव में कितनी हलचल है। ईदगाह जाने की तैयारियाँ हो रही हैं। लड़के सबसे ज्यादा प्रसन्न हैं। उनकी जेबों में कुबेर का धन जो भरा हुआ है।

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2. ईदगाह (Eidgah)

रमजान के पूरे तीस रोंजों के बाद आज ईद आई है। गाँव में कितनी हलचल है। ईदगाह जाने की तैयारियाँ हो रही हैं। लड़के सबसे ज्यादा प्रसन्न हैं। उनकी जेबों में कुबेर का धन जो भरा हुआ है। बार-बार जेब से अपना खज़ाना निकालकर गिनते हैं और खुश होकर फिर रख लेते हैं। महमूद के पास बारह पैसे हैं। मोहसिन के पास पंद्रह पैसे हैं। इनसे तो अनगिनत चीजें खरीद सकते हैं-खिलौने, मिठाइयाँ, बिगुल, गेंद और न जाने क्या-क्या। और सबसे ज़्यादा प्रसन्न है हामिद।
वह चार-पाँच साल का गरीब सूरत, दुबला-पतला लड़का, जिसका बाप गत वर्ष हैजे की भेंट चढ़ गया और माँ न जाने क्यों पीली होती-होती एक दिन मर गई। अब हामिद अपनी बूढ़ी दादी अमीना की गोद में सोता है।
अभागिन अमीना अपनी कोठरी में बैठी रो रही है। आज ईद का दिन और उसके घर में दाना नहीं। इस अंधकार और निराशा में वह डूबी जा रही थी।
हामिद भीतर जाकर दादी से कहता है- “तुम डरना नहीं अम्मा, मैं सबसे पहले आऊँगा। बिल्कुल न डरना।“
अमीना का दिल कचोट रहा है। गाँव के बच्चे अपने-अपने बाप के साथ जा रहे हैं। हामिद को कैसे अकेले मेले में जाने दे। कहीं खो जाए तो क्या होगा? नन्ही-सी जान! तीन कोस चलेगा कैसे! पैर में छाले पड़ जाएँगे। जूते भी तो नहीं हैं। वह थोड़ी थोड़ी दूर पर उसे गोद ले लेगी। लेकिन यहाँ सिवइयाँ कौन पकाएगा? धोबिन, नाइन, मेहतरानी और चूड़िहारिन सभी तो आएँगी। सभी को सिवइयाँ चाहिए। साल भर का त्योहार है।
गाँव से मेला चला। और बच्चों के साथ हामिद भी जा रहा था। उसके पैरों को तो जैसे पर लग गए हैं। कभी-कभी कोई लड़का कंकड़ी उठाकर आम पर निशाना लगाता है। माली अंदर से गाली देता हुआ निकलता है। लड़के खूब हँस रहे हैं।
ईदगाह आ गई। ऊपर इमली के घने वृक्षों की छाया। नीचे पक्का फर्श है। रोजेदारों की पंक्तियाँ एक के पीछे एक दूर तक चली गई हैं। यहाँ कोई धन और पद नहीं देखता। इस्लाम की निगाह में सब बराबर हैं। लाखों सिर एक साथ सिजदे में झुक जाते हैं, फिर सबके-सब एक साथ खड़े हो जाते हैं, एक साथ घुटनों के बल बैठे जाते हैं। कई बार यही क्रिया होती है, जैसे बिजली की लाखों बत्तियाँ एक साथ प्रदीप्त हों और एक साथ बुझ जाएँ।
नमाज़ खत्म हुई। लोग आपस में गले मिल रहे हैं। तब मिठाई और खिलौनों की दुकानों पर धावा होता है। तरह-तरह के खिलौने हैं-सिपाही, गुजरिया, राजा और वकील, भिश्ती, धोबिन और साधु।
महमूद सिपाही लेता है, खाकी वर्दी और लाल पगड़ी वाला, कंधे पर बंदूक रखे हुए। मोहसिन को भिश्ती पसंद आया। कमर पर मशक रखे।
नूर को वकील से प्रेम है। काला चोंगा, नीचे सफेद अचकन, एक हाथ में कानून का पोथा लिए हुए। सब दो-दो पैसे के खिलौने हैं।
हामिद के पास कुल तीन पैसे हैं, इतने महँगे खिलौने वह कैसे ले? कहीं हाथ से छूट गया, तो चूर-चूर हो जाएगा, पानी पड़ा तो सारा रंग धुल जाएगा। ऐसे खिलौने लेकर वह क्या करेगा?
सब अपने-अपने खिलौनों की तारीफ कर रहे हैं। हामिद ललचाई आँखों से खिलौनों को देख रहा है। चाहता है कि ज़रा देर के लिए ही सही, वह उन्हें हाथ में ले सकता। वह हाथ आगे बढ़ाता है लेकिन लड़के इतने त्यागी नहीं होते, विशेषकर जब अभी नया शौक है। हामिद ललचाता रह जाता है।
मिठाइयों की दुकाने आती हैं। किसी ने रेवड़ियाँ ली हैं, किसी ने गुलाब जामुन, किसी ने सोहन हलवा। मजे से खा रहे हैं। लेकिन हामिद! अभागे के पास सिर्फ तीन पैसे हैं। क्यों नहीं कुछ लेकर खाता?
मोहसिन उसकी ललचाई नजरें देखकर कहता है-“हामिद, रेवड़ी ले खा, कितनी खुशबूदार है।“ जैसे ही हामिद हाथ फैलाता है, मोहसिन रेवड़ी अपने मुँह में रख लेता है। महमूद, नूरे, और सम्मी खूब तालियाँ बजा-बजाकर हँसते हैं। हामिद खिसिया जाता है।
मिठाई की दुकानों के बाद लोहे की चीजों की दुकानें हैं। लड़कों के लिए यहाँ कोई आकर्षण नहीं था। वे सब आगे बढ़ जाते हैं। हामिद लोहे की दुकान पर रुक जाता है। कई चिमटे रखे हुए थे। उसे ख़याल आया, दादी के पास चिमटा नहीं है। तवे से रोटियाँ उतारती हैं, तो हाथ जल जाता है, अगर वह चिमटा ले जाकर दादी को दे दे, तो वे कितनी प्रसन्न होंगी? फिर उनकी उँगलियाँ कभी नहीं जलेंगी। खिलौने से क्या फायदा. व्यर्थ में पैसे खराब होते हैं।
अम्मा चिमटा देखते ही कहेंगी-’मेरा बच्चा अम्मा के लिए चिमटा लाया है।’ हजारों दुआएँ देंगी। फिर पड़ोस की औरतों को दिखाएँगी।
सारे गाँव में चर्चा होने लगेगी, हामिद चिमटा लाया है। कितना अच्छा लड़का है। इन लोगों के खिलौनों पर कौन दुआएँ देगा। बड़ों की दुआएँ सीधे अल्लाह के दरबार में पहुँचती हैं और तुरंत सुनी जाती हैं।
दुकानदार से बड़ी मुश्किल से मोलभाव करके हामिद ने चिमटा तीन पैसों में ले लिया।
उसे कंधे पर रखा, मानो बंदूक है और शान से अकड़ता हुआ साथियों के पास आया। मोहसिन ने हँसकर कहा-“यह चिमटा क्यों लाया पगले? इससे क्या करेगा?’ महमूद बोला, “चिमटा कोई खिलौना है?“
हामिद बोला, “क्यों नहों? अभी कंधे पर रखा तो बंदूक हो गई। हाथ में लिया फ़कीरों का चिमटा हो गया। चाहूँ तो मंजीरे का काम ले सकता हूँ। एक चिमटा जमा दूं तो तुम सबके सारे खिलौनों को जान निकल जाए। तुम्हारे खिलौने मेरे चिमटे का बाल भी बाँका नहीं कर सकते। मेरा बहादुर शेर है-चिमटा।“
सम्मी ने खंजरी ली थी। प्रभावित होकर बोला-’मेरी खंजरी से बदलोगे?“
हामिद ने खंजरी की ओर उपेक्षा से देखा-“मेरा चिमटा चाहे तो तुम्हारी खंजरी का पेट फाड़ डाले।“ चिमटे ने सभी को मोहित कर लिया। औरों ने तीन तीन, चार-चार पैसे खर्च किए, पर कोई काम की चीज़ न ले सके। हामिद ने तीन पैसे में रंग जमा लिया।
सबने अपने अपने खिलौने देकर चिम्टा पकड़ने का प्रस्ताव रखा। हामिद मान गया। चिमटा बारी-बारी से सबके हाथ में गया और उनके खिलौने बारी-बारी से हामिद के हाथ में आए। कितने खूबसूरत खिलौने हैं। पर उसका चिमटा तो रुस्तमे हिंद है-सभी खिलौनों का बादशाह।
गाँव पहुँचकर बच्चों ने अपने-अपने खिलौने से खेला, पर थे तो वे मिट्टी के। कुछ ही देर में टूट-फूट गए। अब मियाँ हामिद का हाल सुनिए। अमीना उसकी आवाज़ सुनते ही दौड़ी। गोद में उठाकर प्यार करने लगी। सहसा उसके हाथ में चिमटा देखकर वह चौंकी! “यह चिमटा कहाँ से लाया?“
“मैंने मोल लिया है।“ “कै पैसे में?’’ ’’तीन पैसे दिए।“
अमीना ने छाती पीट ली। यह कैसा बेसमझ लड़का है, न कुछ खाया न पिया। लाया क्या, चिमटा “सारे मेले में तुझे और कोई चीज न मिली, जो यह लोहे का चिमटा उठा लाया?“
हामिद ने अपराधी भाव से कहा, “तुम्हारी उँगलियाँ तवे से जल जाती थीं, इसलिए मैंने इसे ले लिया।“ बुढ़िया का क्रोध तुरंत स्नेह में बदल गया। यह स्नेह मूक था, खूब ठोस,
रस और स्वाद से भरा हुआ। बच्चे में कितना त्याग, कितना सद्भाव और कितना विवेक है! दूसरों को खिलौने लेते और मिठाई खाते देखकर कितना ललचाया होगा मन! इतना ज़ब्त इससे हुआ कैसे! वहाँ भी इसे अपनी बुढ़िया दादी की याद बनी रही। अमीना का मन गद्गद् हो गया।
अमीना की आँखें भर आईं। दामन फैलाकर हामिद को दुआएँ देती जाती थी और आँसुओं की बड़ी-बड़ी बूंदें गिराती जाती थी। हामिद इसका रहस्य क्या समझता।

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