BSEB Class 6th Hindi Solutions Chapter 8 मंत्र

Class 6th Hindi Text Book Solutions

8. मंत्र (प्रमचन्द)

पाठ का सारांश- प्रस्तुत कहानी प्रेमचन्द द्वारा लिखित है। इसमें कहानीकार ने डॉ॰ चड्ढा की निर्ममता तथा भगत की मानवता का मार्मिक चित्र प्रस्तुत किया है।

संध्या का समय था। एक बूढ़ा, जो छः पुत्रों की मौत देख चुका था, सातवें पुत्र को डोली में सुलाकर डॉ॰ चड्ढा के औषधालय पर जाता है। उस समय चड्ढा टेनिस खेलने जाने के लिए तैयारी में लगे हुए थे। बुढ़े ने धीरे-धीरे आकर द्वार पर टंगी हुई चिक से अंदर झांका। उसे अंदर घुमने की हिम्मत नहीं होती है कि कोई डाँट न दे। डॉ॰ साहब ने अंदर से गरजते हुए पुछा -कौन ? बूढ़े ने गिड़गिडा़ते हुए कहा, ‘‘हुजूर! बड़ा गरीब आदमी हूँ। मेरा लड़का कई दिनों से बिमार है। कृपा करके एक नजर देख लें।, लड़का मर जाएगा। सात लड़को में से सिर्फ यही बचा है। छः पहले ही कालकवलित हो चुके है। हम रो-रोकर मर जाएँगे।‘‘ बूढ़े के लिए इंकार कर दिया कि ‘‘हम इस वक्त मरीजों को नहीं देखते। इसलिए कल सबेरे आना,‘‘ यह कहते हुए मोटर पर सवार हो जाते हैं। उनपर बूढ़े के निवेदन का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। डोली जिधर से आई उधर लौट जाती है और बूढ़े का प्यारा रात भगवान का प्यारा हो जाता है। कई साल गुजर गए। डाक्टर साहब खुब यश और धन कमाया। उन्हें दो बच्चे थे-एक लड़का था एक लड़की। लड़की का विवाह हो चुका था। लड़का कॉलेज में पड़ता था। उसका नाम कैलाश था। कैलाश को साँप पालने,खिलाने तथा नचाने का शौक था। उसने तरह-तरह के साँप पाल रखें थे। आज उसका सालगिरह था। इस समारोह में कैलाश के सहपाठि एवं खास मित्र आमंत्रित थे, जिसमें मृणालिनी भी थी। कैलाश और मृणालिनी आपस में प्रेम करते थे। आज मृणालिनी ने साँप देखने की ठान ली। क्योंकि कैलाश ने कई बार साँप देखने के आग्रह को ठुकरा दिया था। मृणालिनी की जिद को कुछ और लोगों ने भी हवा दी। लाचार होकर वह मृणालिनी और अन्य मित्रों को लेकर साँप दरबे के आगे बीन बजाने लगा। वह एक-एक साँप निकलता और उसे हाथ में, गले में डाल लेता। इसी क्रम में किसी मित्र ने व्यग्य किया-इन साँपों के दाँत तोड़े हुए हैं। कैलाश हँसकर कहा-दाँत तोड़ डालना मदारियों का काम है। इनके दाँत नहीं तोड़े गए हैं। कहो तो दिखा दूँ। इसके बाद कैलाश एक अति जहरीले साँप को पकड़ते हुए कहा-इसका काटा तुरंत मर जाता है। इसके काटे की कोई दवा नहीं है। उसने जोश में आकर उस जहरीले साँप की गर्दन जोर से दबाई और मुँह खोलकर उसके दाँत सबको दिखा दिए। जोर से गर्दन दबाने के कारण साँप क्रोधित हो गया और जैसे ही कैलाश ने उसकी गर्दन ढीली कि की साँप ने उसकी अँगुली में दाँत गड़ा दिए। अँगुली से खून टपकने लगा। साँप वहाँ से भाग गया। कैलाश ने अँगुली में जड़ी पीसकर लगा ली। लेकिन उससे कोई लाभ नहीं हुआ। उसकी आँखें झपकने लगीं और होठों पर नीलापन दौड़ने लगा। कैलाश की हालत गंभीर देखकर सारे मेहमान कमरे में इकट्ठे हो गए। एक मंत्र झाड़नेवाला भी आया, लेकिन उसकी हालत देखका उसने कहा-‘‘अब क्या हो सकता है सरकार ? जो कुछ होना था, हो चुका।‘‘ घर में कोहराम मच गया। सभी रोने लगे। शहर से दूर एक बुढ़ा तथा बुढ़िया अंगीठी के सामने बैठे रात काट रहे थे। मिट्टी तेल की डिबिया ताक पर जल रही थी। किसी दरवाजे पर जाकर आवाज दी-‘‘भगत, भगत! क्या सो गए ? जरा किवाड़ खोलो।‘‘ भगत ने दरवाजा खोल दिया। एक आदमी अंदर जाकर बोला-‘‘कुछ सुना, डाक्टर चड्ढा के पुत्र को साँप ने काट लिया है। तुम चले जाओ। खुब पैसा मिलेगा।‘‘

बूढ़े ने कठोर भाव से सिर हिलाकर कहा-मैं नही जाता। मेरी बला से मरे। मेरा बेटा अन्तिम साँस गिन रहा था। मेरे लाख गिड़गिड़ाने पर उसे दया नहीं आई और मोटर पर सवार होकर चला गया। अब पता चलेगा कि बेटा गम क्या होता है ? अब मालूम होगा लाल को। हमारा क्या बिगड़ा। उसका राज सूना हो जाएगा, जिसके लिए सबका गला दबा-दबाकर धन जोड़ा है।‘‘

भगत अपनी बातों पर अटल रहा और वह आदमी लौट गया। भगत किवाड़ बंद करके चीलम पीने लगा। भगत के लिए पहला अवसर था कि समाचार पाकर भी नहीं गया। मौसम कैसा भी हो, लेन-देन का विचार मन में आया ही नहीं। लेकिन डाक्टर के निष्ठुर व्यवहार ने भगत को ऐसा बनने पर मजबूर कर दिया था। बुढ़िया सो गई तब भगत के अन्दर की मानवता जगने लगी। उसने धीरे दरवाजा खोला और चलना ही चाहता था की बुढ़िया की नींद टूट गई। उसने पूछा-‘‘कहाँ जाते हो ?‘‘ बूढ़े ने कहा-नींद नहीं आती। बुढ़िया ने कहा-मन तो चड्ढ़ा के लगा हुआ है तो नींद कैसे आएगी। बुढ़िया के सोते ही भगत ने धीरे से किवाड़ खोले और चड्ढ़ा के घर कि ओर चल पड़ा। उसके अन्तर्मन जल्दी-जल्दी चलने को प्रेरित कर रहा था। रास्ते में दो आदमी आपस में बातचीत करते आ रहे थे। कि डॉक्टर साहब का घर उजड़ गया। शब्द सुनते ही भगत के पैर और तेजी से बढ़ने लगे। मेहमान संत्वना देकर विदा हो गए, तभी भगत ने द्वार पर पहुँचकर आवाज दी। डॉक्टर साहब बाहर आए। एक बूढ़े आदमी को खड़ा देखा, जिसकी कमर झुकी हुई, पोपला मुँह, सफेद भौंहे थीं और लकड़ी के सहारे काँप रहा था।

भगत ने पूछा-भैया कहाँ है ? जरा मुझे दिखा दीजिए। डाक्टर ने कहा-चलो, देख लो, मगर तीन-चार घंटे हो गए। जो कुछ हाना था सो हो गया। भगत ने अन्दर जाकर कैलाश की हालत एक मिनट तक देखी, फिर मुस्कुराकर कहा-‘‘अभी कुछ नहीं बिगड़ा है बाबूजी! आप पानी का इंतजाम करवाइये।‘‘ लोग कैलाश को नहलाने लगे तथा भगत मंत्र पढ़ने लगा। एक बार मंत्र समाप्त होने पर वह एक जड़ी कैलाश को सूंघा देता था। यह क्रम देर तक चलता रहा। जब कैलाश ने लाल-लाल आँखें खोलीं अंगड़ाई ली और पीने को पानी मांगा तब भगत अपने घर की ओर चल पड़ा। मेहमान के चले जाने पर  डाक्टर अपनी पत्नी नारायणी से कहा-‘‘न जाने वह बूढ़ा कहाँ चला गया।‘‘ वह वही आदमी है, जिसने एक रोगी को लेकर आया था कि ‘‘अभी मेरे खेलने का समय है।‘‘ उस दिन की बात याद करके मुझे जितनी ग्लानि हो रही है, उसे प्रकट नहीं कर सकता। उसके पैरो पर गिरकर क्षमा माँगूगा, क्योंकि उसकी सज्जनता ने मुझे ऐसा आदर्श दिखा दिया है जो अब से जीवनपर्यंत मेरे सामने रहेगा।

सप्रसंग व्याख्याएँ

1. डॉक्टर ने उसकी बातों की ओर ध्यान नहीं दिया। उन्होंने धीरे से चिक उठाई और वे बाहर निकलकर मोटर की तरफ बढ़ चले। बूढ़ा यह कहते हुए उनके पीछे दौड़ा ‘‘सरकार, बड़ा धरम होगा। हुजूर, दया कीजिए। लड़के को छोड़कर इस संसार में मेरा कोई नहीं है।‘‘

व्याख्या-प्रस्तुत पंक्तियाँ कहानी सम्राट प्रेमचन्द द्वारा लिखित कहानी ‘मंत्र‘ शीर्षक पाठ से उद्धृत है। इसमे कहानीकार ने डॉक्टर की कठोरता के माध्यम से यह बताने के प्रयास किया है किस प्रकार बड़े ओहदेवाले गरीबों तथा असहायों के साथ निर्मम व्यवहार करते हैं।

बूढ़ा भगत अपने बीमार पुत्र को लेकर डॉक्टर चड्ढ़ा के पास इसलिए जाता है कि उनके इलाज से उसका पुत्र बच जाएगा। क्योंकि पहले भी उसके छः पुत्रों की मौत हो चुकी थी। यह सातवाँ पुत्र था। भगत अपनी विवशता पूर्ण व्याकुलता से सुनता है, गिड़गिड़ाता है, लेकिन पद एवं पैसे के मद में वह डॉक्टर हृदयहीन बन जाता है। उसकी मानवता इस प्रकार मर चुकी होती है कि बूढ़े करूणापूर्ण क्रन्दन से भी द्रवित नहीं होती। इससे स्पष्ट होता है कि बड़े लोग निष्ठुर होते हैं।

2. आज उस दिन की बात याद करके मुझे जितनी ग्लानि हो रही है, उसे प्रकट नहीं कर सकता। मैं उसे अब खोज निकालूँगा और उसके पैरों पर गिरकर अपना अपराध क्षमा कराऊँगा।

व्याख्या- प्रस्तुत गद्यांश कहानी-सम्राट प्रेमचन्द द्वारा रचित कहानी ‘मंत्र‘ से लिया गया है। इसमें कहानीकार ने यह बताने का प्रयास किया है कि अपने दुःख से ही दुसरों के दुःख का अनुभव होता है।

डॉक्टर चड्ढा को बूढ़े की व्यथा एवं विकलता का अनुभव तब होता है जब उनका पुत्र सर्पदंश के कारण अन्तिम साँस गिन रहा था। बूढ़े के साथ किए गए व्यवहार को याद करके स्वयं आत्मग्लानि का अनुभव करता है। उसे लगता है कि उस दिन उसने बूढ़े के बीमार पुत्र का तिरस्कार करके घोर अन्याय किया था। क्योंकि जिसका पुत्र उसकी अनदेखी के कारण मौत के मुँह में समा गया, उसी व्यक्ति ने उसके पुत्र की जान बचाई। बूढ़े के पास व्यवहार से डाक्टर के हृदय की मानवता जाग जाती है। उसे लगता है कि मानवता से बढ़कर संसार में कुछ भी नहीं होता। जिसमें यह गुण होता है, वही संसार में महान् होता है।

अभ्यास के प्रश्न एवं उत्तर

पाठ से:

प्रश्न 1. डॉक्टर के लड़के कैलाश ने साँप को पाल रखा था। फिर भी साँप ने उसे क्यों काटा?

उत्तर- मनुष्य ही नहीं, पशु-पक्षी भी अपने जीवन की रक्षा चाहते हैं जब उसे अपने जीवन-हानि की आशंका होती है, वह प्रतिकार करने से नहीं चूकता। कैलाश द्वारा गर्दन दबाने पर साँप को लगा कि उसका पालक उसे मारना चाहता है। इसी भय के कारण आत्मरक्षार्थ साँप ने उसे काट लिया।

प्रश्न 2. डॉक्टर चड्ढा, बूढ़े व्यक्ति को क्यो खोज रहा था?

उत्तर- डॉक्टर चड्ढा बूढ़े व्यक्ति को इसलिए खोज रहा था, अपने द्वारा किए गए अमानवीय व्यवहार के लिए उससे क्षमा माँगे तथा उसके उपकार के बदले उसे पुरस्कार करे। क्योंकि बूढ़े भगत ने डॉक्टर के उजड़ रहें घर को बचाया था।

प्रश्न 3. डॉक्टर के लड़के कैलाश को साँप ने काट लिया। इस खबर को सुनकर बूढ़े व्यक्ति को नींद क्यों नहीं आ रही थी?

उत्तर- जब किसी व्यक्ति की मानवता जोर मारने लगती है तो उसका मन सहायता करने के लिए बेचैन उठता है। इसी कर्मनिष्ठा के कारण बूढ़े को नींद नहीं आ रही थी। अस्सी वर्ष के उसके जीवन में यह पहला मौका था कि ऐसा समाचार सूनकर वह दौड़कर न गया हो। लेकिन डॉक्टर की निर्ममता के कारण वह ऊहापोह की स्थिति में झूल रहा था कि वह क्या करे और क्या न करे। इसीलिए उसे नींद नहीं आ रही थी।

पाठ से आगे:

प्रश्न 1. डॉक्टर द्वारा बूढ़े के लड़के को दखने से इंकार करने पर बूढ़ा व्यक्ति कैसा महसूस कर रहा होगा-अपने शब्दों में लिखिए ?

उत्तर- डॉक्टर द्वारा बूढ़े के लड़के को देखने से इंकार करने पर बूढ़ा व्यक्ति दुःख के सागर में डूब गया होगा। उसे डॉक्टर की बात वज्रपात के समान प्रतीत हुआ होगा। उसे लगा होगा कि यह डॉक्टर नहीं चाण्डाल है। इसीलिए उसे मेरी व्यकुलता पर दया नहीं आ रही है। बूढ़ा अपने कलेजे पर पत्थर रखकर निराश मन से डोली लेकर वापस हुआ होगा।

प्रश्न 2. समाज में गरीबों का जीवन स्तर सुधारने के लिए क्या-क्या करना चाहेंगे ?

उत्तर-समाज में गरीबों का जीवन स्तर सुधारने के लिए सर्वप्रथम विद्यालयों एंव चिकित्सालयों की व्यवस्था करने का मैं प्रयास करूँगा, ताकि वे शिक्षा प्राप्तकर अपने अधिकार एवं कर्त्तव्य को समझें। उत्तम स्वास्थ्य के लिए किन बातों की आवश्यकता है, उसे समझें। अपने आस-पास को साफ-सूथरा रखें, इन सबकी प्राप्ति के लिए मैं उन्हें सुझाव दूँगा कि स्वस्थ एवं शिक्षित व्यक्ति ही जीवन का सही उपयोग करता है।

प्रश्न 3. इस पाठ में आपको किसका चरित्र सबसे अच्छा लगा और क्यों?

उत्तर- प्रस्तुत पाठ में उस बूढ़े भगत का चरित्र अच्छा लगा। क्योंकि वह मानवीय विशेषताओं से परिपूर्ण है। उसने मानवता की रक्षा के लिए निर्दयी डॉक्टर के पुत्र जान बचाने आधी रात होने के बावजूद चल पड़ता है। डॉक्टर के व्यवहार से खिन्न उसका मन प्रतिशोध से जलता तो है, लेकिन उसका मानवत चड्ढा के घर जाने के लिए उसे ललकारने लगती है। वह बिना किसी लोभ-लालच के उनके घर पहुँच जाता है तथा कैलाश को ठीक होते ही चुपचाप चल पड़ता है। उसका यह व्यवहार भगत को एक आदर्श मानव के पद पर स्थापित कर देता है।

प्रश्न 4. इस पाठ से हमें क्या शिक्षा मिलती है?

उत्तर- इस पाठ से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें किसी कीमत पर मानवता का त्याग नहीं करना चाहिए, क्योंकि मानवता ही मानव को मानव कहलाने के योग्य बनाती है। मानवता की रक्षा के लिए ही ईश्वर ने मानव को इस धरती पर जन्म दिया है। मनुष्य को हर हाल में मानवता की रक्षा करनी चाहिए।

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