BSEB Class 6th Sanskrit Solutions Chapter 12 नीतिश्लोकाः

Class 6th Sanskrit Text Book Solutions

द्वादशः पाठः
नीतिश्लोकाः
(नीति संबंधी श्लोक)

पाठ-परिचय- प्रस्तुत पाठ ’नीतिश्लोकाः’ पाठ में महापुरुषों के अनुभवा के द्वारा छात्रों को जीवन संबंधी प्रेरणा दी गई है। जीवन के आरंभ से ही बच्चों को यह सीखना आवश्यक हो जाता है कि वह लोगों के साथ कैसा आचरण करे। क्योंकि जीवन की सफलता-असफलता आचरण पर ही निर्भर करती है। अच्छे आचरण वाले आदर के पात्र बनते हैं तथा बुरे आचरण वाले सदा अपमानित होते हैं।

1. प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः ।

तस्मात्तदेव वक्तव्यं वचने का दरिद्रता ।।

अन्वय- सर्वे जन्तवः प्रियवाक्यप्रदानेन तुष्यन्ति, तस्मात् ।

तद् एव वक्तव्यं वचने का दरिद्रता।।

शब्दार्थ- प्रियवाक्यप्रदानेन = प्रिय वचन बोलने से। सर्वे = सभी । तुष्यन्ति = खुश होते हैं। जन्तवः = सभी प्राणी। तत् एव = वैसा ही। वक्तव्यं = बोलें, बोलना चाहिए। वचने = बात में। का = कैसी। दरिद्रता = कंजूसी।

 अर्थ- सभी प्राणी मधुर वचन सुनकर खुश हो जाते हैं, इसलिए हमेशा वैसा ही प्रियवचन बोलना चाहिए । बोलने में कैसी कंजूसी। तात्पर्य यह कि संसार में हर कोई.

प्रियवचन सुनकर ही आकर्षित (प्रसन्न) होते हैं, इसलिए नीतिकार की सलाह है कि सदा मधुर वचन बोलना चाहिए। इसमें कंजूसी करना कोई चतुराई नहीं है। .

2. यस्मिन्देशे न सम्मानो न प्रीतिर्न च बान्धवाः।

न च विद्यागमः कश्चिन्न तत्र दिवसं वसेत् ।।

अन्वय- यस्मिन् (यत्र) कश्चित् न सम्मानः न प्रीतिः न बान्धवाः न विद्यागमः (भवेत) तत्र न दिवसं वसेत् ।

शब्दार्थ-यस्मिन् = जिसमें, जहाँ । देशे = देश में, स्थान पर । सम्मान – आदर। प्रीतिः = प्रसन्नता, प्रेम । बान्धवाः = भाईचारे का भाव, बंधुत्व । विद्यागमः = शिक्षा की , व्यवस्था। कश्चित् = कोई, किसी में । तत्र = वहाँ । दिवसं = एक दिन। वसेत = रहना . चाहिए।

अर्थ- जिस जगह न आदर (सम्मान) मिलता हो, न प्रेम या प्रसन्नता हो. न भाईचारे (बन्धुत्व) की भावना हो और न शिक्षा की व्यवस्था हो, वहाँ किसी को एक दिन भी नहीं रचना चाहिए। क्योंकि ऐसी जगह पर सदा अनहोनी की आशंका बनी रहती है यानी जीवन पर खतरे की आशंका बनी रहती है। इसलिए नीतिकार ने ऐसे स्थान (जगह) . की उपेक्षा करने की सलाह दी है। )

3. काव्यशास्त्रविनोदेन, कालो गच्छति धीमताम् ।

  व्यसनेन तु मूर्खाणां निद्रया कलहेन वा ।

अन्वय- धीमताम् कालः काव्यशास्त्रविनोदेन गच्छति (परञ्च) मूर्खाणां तु (कालः) व्यसनेन कलहेन निद्रया कलहेन वा (गच्छति)।

शब्दार्थ- काव्यशास्त्रविनोदेन = काव्य और शास्त्र की चर्चा, पठन-पाठन में । काल = समय। गच्छति = बीतता है। धीमताम् = बुद्धिमानों का । व्यसनेन = बुरे कार्य में । तु = तो । मूर्खाणां = मूल् का। निद्रया = सोकर । कलहेन = लड़ाई-झगड़े में ।

अर्थ- बुद्धिमानों का समय शास्त्रचिन्तन या पठन-पाठन में व्यतीत होता है तो मूर्खाे का समय बुरे कार्यों में, सोकर तथा लड़ाई-झगड़े में बीतता है। तात्पर्य यह कि बुद्धिमान अपना समय व्यर्थ में व्यतीत नहीं करते। हर क्षण को महत्त्व देते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि बीता हआ क्षण वापस नहीं लौटता, लेकिन मूर्ख समय के महत्त्व को नहीं समझता जिस कारण अपना समय व्यर्थ के कार्यों में व्यतीत कर देता है।

4. अलसस्य कुतो विद्या अविद्यस्य कुतो धनम् ।

  अधनस्य कुतो मित्रममित्रस्य कुतः सुखम् ।।

अन्वय:  कुतः अलसस्य विद्या, कुतः अविद्यस्य धनम् (संभवतः अस्ति)।

कतः अधनस्य मित्रम् (अतएव) कुतः अमित्रस्य सखम (अस्ति) ।।

अर्थ-आलसी व्यक्ति को विद्या की प्राप्ति कैसे हो सकती है ?मूर्खा को धन कहाँ से मिल सकता है ? जो निर्धन है, उसे मित्रसुख का आनन्द कैसे मिल सकता है तो बिना मित्र के सुख और प्रसन्नता की कल्पना कैसे की जा सकती है? अर्थात् बिना किसी गुण के व्यक्ति को जीवन में आनन्द रस का प्राप्त होना सर्वथा असंभव है।

5. हस्तस्य भूषणं दानं सत्यं कण्ठस्य भूषणम्।

श्रोत्रस्य भूषणं शास्त्रं भूषणैः किं प्रयोजनम् ।।

अन्वयः  हस्तस्य भूषणं दानं (भवति), कण्ठस्य भूषणम् सत्यं (सत्यवचनम्) (भवति)। श्रोत्रस्य भूषणं शास्त्रं (भवति)। (अतएव) भूषणैः किं प्रयोजनम् ।

शब्दार्थ- हस्तस्य = हाथ का । भूषणं = आभूषण । दानं = दान । कण्ठस्य = कंठ का। श्रोत्रस्य = कान का । शास्त्रं = सत्य कथन । किं = क्या । प्रयोजनम् = जरूरत, आवश्यकता।

अर्थ- हाथ की शोभा किसी को दान देने से बढ़ती है, सत्य वचन बोलने से कंठ (मुँह) पवित्र होता है। सुन्दर ,वचन सुनने से कान की शोभा बढ़ती है, इसलिए ऐसा आचरण करने वालों को अन्य आभूषणों की आवश्यकता नहीं रह जाती है। क्योंकि दान, दया और दमन (अपने-आप पर नियंत्रण) मानव की सबसे बड़ी विशेषता है।

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