सप्तमः पाठः ज्ञानं भारः क्रियां विना | Gyan Bhar Kriya Bina

इस पोस्‍ट में हमलोग कक्षा 9 संस्‍कृत के पाठ 7 ज्ञानं भारः क्रियां विना (Gyan Bhar Kriya Bina) के सभी टॉपिकों के अर्थ का अध्‍ययन करेंगे।

सप्तमः पाठः

ज्ञानं भारः क्रियां विना

पाठ-परिचय प्रस्तुत पाठ “ज्ञान भारः क्रिया दिना'” पंचतंत्र नामक नीतिपंथ के अन्तिम तन्त्र से संकलित है जिसमें व्यावहारिकता के अभाव में कोरे ज्ञान को व्यर्थ बताया गया है। नीतिकार का मानना है कि जीवन की सफलता के लिए व्यक्ति में लौकिक व्यवहार का होना अति आवश्यक है। व्यक्ति में परिपक्वता व्यवहार से ही आती है न कि शुष्क ज्ञान से आती है। इसीलिए बुद्धिमान् व्यक्ति विद्वान की अपेक्षा श्रेष्ठ माने जाते हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि क्रिया अथवा व्यवहार से ही व्यक्ति के आचरण का पता चलता है। शुष्क ज्ञान मात्र से व्यक्ति के चाल-चलन का पता चलता है।

वरं बु(र्न सा विद्या विद्याया बु(रुत्तमा ।
बु(हीना विनश्यन्ति यथा ते सिंहकारकाः ।।

अर्थ-बुद्धिमान् व्यक्ति विद्वान से श्रेष्ठ होते हैं, क्योंकि विद्या से बुद्धि (चतुराई) उत्तम मानी जाती है। जिस प्रकार बुद्धिहीन होने के कारण अपनी विद्या के बल पर मृत सिंह को जीवित करने वाले उसी सिंह के द्वारा मार डाले गये। तात्पर्य कि बुद्धिमान् व्यक्ति में होनेवाले परिणाम की सूझ-बूझ होती है, जबकि विद्वान में इसका सर्वथा अभाव होता है।
एकस्मिन् नगरे चत्वारः युवानः परस्परं मित्राभावेन निवसन्ति स्म। तेषां त्रायः शास्त्रापारंगताः, परन्तु बु(रहिताः। एकस्तु बु(मान् केवलं शास्त्रापराघ्मुखः। अथ तैः कदाचिन्मित्रौर्मन्त्रितम्µ ‘को गुणो विद्यायाः येन देशान्तरं गत्वा भूपतीन् परितोष्य अर्थोपार्जना न क्रियते? तत्पूर्वदेशं गच्छामः।’ तथानुष्ठिते कि×चन्मार्गं  गत्वा तेषां ज्येष्ठतरः प्राहµ ‘अहो! अस्माकमेकश्चतुर्थो मूढः केवलं बु(मान्। न च राजप्रतिग्रहो बुद्या  लभ्यते विद्यां विना। तन्नास्मै स्वोपार्जितं दास्यामः। तद्गच्छतु गृहम्।’ ततो द्वितीयेनाभिहितम्µ ‘भोः सुबुद्धे!  गच्छ त्वं स्वगृहम्, यतस्ते विद्या नास्ति।’
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ततस्तृतीयेनाभिहितम्µ ‘अहो, न युज्यते एवं कर्तुम्। यतो वयं बाल्यात्प्रभृत्येकत्रा क्रीडिताः।  तदागच्छतु महानुभावो{स्मदुपर्जितवित्तस्य समभागी भविष्यतीति। उक्तंच-
अर्थ-किसी नगर में चार युवक आपस में मिल-जुलकर (मित्रवत्) रहते थे। उनमें से तीन विद्वान परन्तु बुद्धिहीन थे। (किन्तु उनमें रो) एक मूर्ख होते हुए बुद्धिमान् था।। इसके बाद उनके द्वारा कभी विचारा गया कि विद्या का नया महत्त्व (याद) जिसके द्वारा दूसरे देश जाकर राजा को प्रसन्न करके धन का उपार्जन नहीं किया जाता है। इसलिए पूर्व देश को जाते हैं। ऐसा कहते हुए कुछ दूर जाने पर उनमें से बड़े ने कहा-‘अर! हमम से एक चौथा मूर्ख है किन्तु) बुद्धिगान है। बिना विद्या के बुद्धि से राजा से धन । आदि नहीं प्राप्त किया जा सकता है। इसलिए अपने द्वारा अर्जित धन उसको नहीं देंगे। वह घर लौट जाए । तब दूसरे ने कहा-अरे सुबुद्धे । तुग अपने घर चले जाओ वयोकि तुमम विद्वता (विद्या) नहीं है। तब तीसरे (युवक) ने कहा-अरे! ऐसा करना उचित नहीं है। इसलिए कि हमलोग बचपन से ही एक साथ खेलते कूदते रहे हैं। अतएव वह हमसबो से अर्जित धन का समान रूप से हकदार होगा। और कहा (भी) गया है

अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्।
उदारचरितानान्तु वसुध्ैव कुटुम्बकम्।।

अर्थ-यह अपना है और वह पराया क्षुद्र विचार वाले अर्थात् नीच सोचते है जबकि उत्तम विचार वाले (महापुरुष) के लिए सारा संसार ही अपने परिवार जैसा होता है।
व्याख्या प्रस्तुत श्लोक “जान भारः क्रियां विना’ पाठ से उद्धृत है, जिसे ‘पंचतंत्र’ से लिया गया है। इसमें उदार तथा क्षुद्र विचार वाले व्यक्ति के बारे में कहा गया है।
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नौतिकार का कहना है कि महान् अर्थात् उदार विचार वाले व्यक्ति स्वभावतः त्यागो, उदार, परोपकारी तथा मानवता के पुजारी होते हैं। ऐसे व्यक्ति के लिए सारा संसार ही अपने परिवार जैसा होता है। वे किसी से कोई भेदभात नहीं रखते । अपना-पराया का भाव नीच विनार वालों का होता है। ऐसे व्यक्ति में ही भेदभाव को भावना होती है। ऐसे व्यक्ति स्वार्थी एवं मानवीय गुणों से रहित होते है।तदागच्छतु एषो{पि इति। तथानुष्ठिते तैः मार्गाश्रितैरटव्यां कतिचिदस्थीनि दृष्टानि। ततश्चैकेनाभिहित्तम्µ ‘अहो! अद्य विद्यापरीक्षा क्रियते। कतिचिदेतानि मृतसत्त्वस्यास्थीनि तिष्ठन्ति। तद्विद्याप्रभावेण जीवनसहितानि कुर्मः। अहमस्थिस×चयं करोमि। ततश्च तेनौत्सुक्यात् अस्थिसंचयः  कृतः। द्वितीयेन चर्ममांसरुध्रिं संयोजितम्। तृतीयो{पि यावज्जीवनं स×चारयति तावत्सुबु(ना वारितःµ ‘भोः  तिष्ठतु भवान्, एष सिंहो निष्पाद्यते। यद्येनं सजीवं करिष्यसि ततः सर्वानपि व्यापादयिष्यति, इति तेनाभिहितः स  आहµ ‘ध्घि मूर्ख! नाहं विद्याया विपफलतां करोमि।’ ततस्तेनाभिहितम्µ ‘तर्हि प्रतीक्षस्व क्षणं यावदहं  वृक्षमारोहामि।’ तथानुष्ठिते यावत् सजीवः कृतस्तावत्ते त्रायो{पि सिंहेनोत्थाय व्यापादिताः। स च पुनर्वृक्षादवतीर्य  गृहं गतः। अतः उच्यतेµ
अर्थ यह भी साथ चले। इस प्रकार जाते हुए उनके द्वारा वनमार्ग में कोई रडिली देखी गई। और तब एक ने कहा अरे! आज विद्या (ज्ञान) की परीक्षा की जाती है। ये सब किसी जीव की हड्डियाँ हैं । उस विद्या (ज्ञान) के प्रभाव से जीवन युक्त अर्थात् राजीव करते हैं। मैं हड्डियों को एकत्र करता हूँ। और तब उनके द्वारा पूर्ण उत्सुकता से हड्डियों को एकत्र किया गया। दूसरे युवक) द्वारा चमड़ा, मांस तथा खून से युक्त किया गग। तीसरा (युवक) भी अब उसमें प्राण का संचार करना चाहता है कि तभी सुबुद्धि नामक मूर्ख रोकते हुए कहता है अरे, आप रुक जाएँ, यह एक सिंह बन जाता है। जैसे ही इसको सजीव (सप्राण) करोगे, वैसे सबको खा जाएगा। उसके द्वारा ऐसा कहने पर वह बोला—धिक् मूर्ख ! मैं अपनी विद्या (ज्ञान) का अपमान (निष्फल) नहीं करता हूँ। तब उसने कहा तो जब तक मैं पेड़ पर चढ़ता हूँ तब तक कुछ देर तक प्रतीक्षा करो। ऐसा करते हुए जैसे ही सिंह को जीवित किया कि सिंह उठकर तीनों को खा जाता है। और वह (सुबुद्धि) फिर पेड़ से उतरकर घर चला गया। इसीलिए कहा जाता है
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अवशेन्द्रियचित्तानां हस्तिस्नानमिव क्रिया ।
दुर्भगाभरणप्रायो ज्ञानं भारः क्रियां विना ।।

अर्थ-जिस प्रकार कुरूपों को अलंकारों (आभूषणों) से सुसज्जित करना हाथियो के सान की भाँति होता है, उसी प्रकार जिनके इन्द्रिय तथा मन अपने वश में नहीं होते उनका ज्ञान लौकिक व्यवहार के अभाव में भारस्वरूप अर्थात् प्राणघातक होता है।
व्याख्या प्रस्तुत श्लोक विष्णुशर्मा लिखित ‘पंचतंत्र’ ग्रंथ से संकलित ‘ज्ञानं भारः । कियां विना’ पाठ से उद्धृत है। इसमें नीतिकार ने बुद्धि के महत्त्व पर प्रकाश डाला है।
नीतिकार का कहना है कि लोकिक व्यवहार की जानकारी के बिना कोरा ज्ञान प्राणघातक होता है। जिस प्रकार अनेक प्रकार के आभूषणों से सुज्जित व्यक्ति रूपहीनता के कारण शोभा नहीं पाता, उसी प्रकार जिनके इन्द्रिय तथा मन अपने वश में नहीं होते, उनका ज्ञान व्यावहारिक ज्ञान के अभाव में निष्फल चला जाता है। ऐसा ज्ञान हाथियों के सान के समान होता है। जैसे हाथी स्नान करने के बाद पुनः अपने ऊपर कीचड़ या धूल डालकर गंदा कर लेता है, वैसे ही ज्ञान प्राप्ति के बावजूद यदि व्यावहारिक ज्ञान नहीं होता है तो वह व्यर्थ चला जाता है। इसलिए मानव जीवन की सफलता के लिए व्यावहारिक ज्ञान का होना आवश्यक होता है। लौकिक ज्ञान से ही व्यक्ति में समझदारी आती है। इसी समझदारी की कमी के कारण तीनों ब्राह्मण कुमार बाघ द्वारा मारे जाते हैं किन्तु बुद्धिमानी के कारण मूर्ख बच जाता है।

Bihar Board Class 10th Social Science
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