कक्षा 12 हिन्‍दी हँसते हुए मेरा अकेलापन | Haste Huwe Mera Akelapan class 12 hindi

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 12 हिन्‍दी के गद्य भाग के पाठ ग्यारह ‘हँसते हुए मेरा अकेलापन (Haste Huwe Mera Akelapan class 12 hindi)’ के व्‍याख्‍या सारांश सहित जानेंगे।

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Bseb Class 12th Hindi Chapter 11 हँसते हुए मेरा अकेलापन

लेकख- मलयज
लेखक परिचय
जन्‍म- 1935 मृत्‍यु 26 अप्रैल 1982
जन्‍म स्‍थान- महूई, आजमगढ़, उत्तर प्रदेश
मूलनाम- भरतजी श्रीवास्‍तव।
माता- प्रभावती और पिता- त्रिलोकी नाथ वर्मा।
शिक्षा- एम. ए. (अंग्रेजी), इलाहाबाद विश्‍वविद्यालय, उत्तर प्रदेश।

विशेष: छात्र जीवन में क्षयरोग से ग्रसित। ऑपरेशन में एक फेफड़ा काटकर निकालना पड़ा। शेष जीवन में दुर्बल स्‍वास्‍थ्‍य और बार-बार अस्‍वस्‍थता के कारण दवाओं के सहारे जीते रहे।

कृतियाँ- कविता : जख्‍म के धूल, अपने होने को अप्रकाशित करता हुआ।

आलोचना : कविता से साक्षात्‍कार, संवाद और एकालाप।

सर्जनात्‍मक गद्य : हँसते हुए मेरा अकेलापन।

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हँसते हुए मेरा अकेलापन

पाठ परिचय- प्रस्‍तुत पाठ हँसते हुए मेरा अकेलापन एक डायरी है, जिसे मलयज के द्वारा लिखा गया है। मलयज अत्यंत आत्‍मसजग किस्‍म के बौध्दिक व्‍यक्ति थे। डायरी लिखना मलयज के लिए जीवन जीने के कर्म के जैसा था। डायरी की शुरूआत 15 जनवरी 1951 से शुरू होती है, जब उनकी आयु केवल 16 वर्ष की थी। डायरी लिखने का यह सिलसिला 9 अप्रैल 1982 तक चलता रहा, जब उन्‍होंने अंतिम साँस ली। अर्थात 47 साल तक के जीवन में 32 साल तक मलयज ने डायरी लिखी है। डायरी के ये पृष्‍ठ कवि-आलोचक मलयज के समय की उथल-पुथल और उनके निजी जीवन की तकलीफों-बेचैनियों के साथ एक गहरा रिश्‍ता बनाते हैं। इस डायरी में एक औसत भारतीय लेखक के परिवेश को आप उसकी समस्‍त जटिलताओं में देख सकते हैं।

मलयज ने डायरी के माध्‍यम से तारिख के माध्‍यम से विभिन्‍न जगहों का यर्थाथ चित्रण किया है। लेखक ने तारिख के साथ अपने जीवन के सभी घटनाओं का चित्रण किया है। यह पाठ में लेखक की डेढ़ हजार पृष्‍ठों में फैली हुई डायरीयों की एक छोटी सी झलक है।

रानीखेत

14 जुलाई 56

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कड़‍बक कविता का अर्थ

सुबह से ही पेड़ काटे जा रहे हैं। मिलिट्री की छावनी के लिए ईंधन-पूरे सीजन और आगे आनेवाले जाड़े के लिए भी।

मौसम एकदम ठंडा हो गया है। बूँदा-बाँदी और हवा। एक कलाकार के लिए यह यह जरूरी है कि उसमें ‘आग‘ हो और और वह खुद ठंडा हो।

18 जून 57

एक खेत की मेड़पर बैठी कौआ को देखकर कवि कहते हैं कि-

उम्र की फसल पककर तैयार-सोपानों का सुहाना रंग अब जर्द पड़ चला है। एक मधुर आशापूर्ण फल जिसने अनुभव की तिताई के छिलके उतार फेंके हैं।

4 जुलाई 62: कौसानी

आज भी कोई चिट्ठी नहीं। तबियत किस कदर बेजार हो उठी है। दोपहर तक आशा रहती है कि कोई चिट्ठी आएगी पर भारी-भारी सी दोपहर बीत जाती है और कुछ नहीं होता। अजब सी बेचैनी मन में होती है।

दिल्ली 30 अगस्त 76

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सेब बेचती लड़की उसकी कलाइयों में इतना जोर न था कि वह चाकू से सेब की एक फाँक काटकर ग्राहक को चखाती। दो-चार बार उसने कोशिश की, फिर एक खिसियाई हुई हँसी हँसकर चाकू मेरे हाथ में थमा दिया और कहा खुद ही चख लो मिठे हैं सेब। सेब तो वैसे ही मिठे थे-उनका रेग और खुशबू देखकर उनकी किस्म पहले ही जान चुका था।

9 दिसम्बर 78

कक्षा 12 हिन्‍दी बातचीत सम्‍पूर्ण व्‍याख्‍या

जो कुछ लिखता हूँ वह सबका सब रचना नहीं होती । पृष्ठ तो और भी नहीं। जितना कुछ मैं भेगता हूँ उस सबमें रचना के बीज नहीं होते।

25 जुलाई 80

इधर-पता नहीं कितने सालों से-मेरो जीवन का केंद्रीय अनुभव लगता है कि डर हैं मैं भीतर से बेतरह डरा हुआ व्यक्ति हुँ। इस डर के कई रूप हैं।

बुरी-बुरी बीमारीयों का डर-घर का जब भी कोई आदमी बीमार पड़ता है मुझे डर लगता है कि कहीं उसे कोई भयंकर बीमारी न लग गई हो और तब मैं क्या करूँगा-से किस अस्पताल में ले जाऊँगा, इलाज की कैसे व्यवस्था करूँगा।

इस डर से कितने-कितने घंटे मैंने तनाव में गुजारे हैं- एक पŸो कि तरह काँपते हुए, होठों में प्राथनाएँ बुदबुदाते हुए कि किसी तरह संकट का यह क्षण कटे।

मन इतना कमजोर हो गया है कि उसमें डर बड़ी आसानी से घुस जाता है।

कक्षा 12 हिन्‍दी उसने कहा था

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