इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड के वर्ग 10 के अहिन्दी (Non Hindi) के पाठ 18 (Jan Nayak Karpuri Thakur) “हौसले की उड़ान” के व्याख्या को जानेंगे। इस पाठ में बिहार विभूति कर्पूरी ठाकुर के जीवनी है।
पाठ परिचय- बिहार की विभूतियों में जननायक कर्पूरी ठाकुर अत्यंत सम्माननीय हैं। इस पाठ में उनकी जीवन यात्रा के उल्लेखनीय पहलुओं का उद्घाटन किया गया है, जिससे उनकी जीवन-दृष्टि, संघर्षों, राजनैतिक विवेक के साथ-साथ मानवीय मूल्यों का पता चलता है।
पाठ का सारांश (Jan Nayak Karpuri Thakur)
प्रस्तुत पाठ में कर्पूरी ठाकुर के जीवन के विभिन्न पहलुओं के बारे में दिया गया है।
जननायक कर्पूरी ठाकुर गरीबों के मसीहा थे। उनमें बचपन से ही नेतृत्व क्षमता थी। 1942 ई० के अगस्त क्रांति के दौरान उन्होंने स्वंय कॉलेज का त्याग किया और दरभंगा, मुज़फ़्फरपुर एवं आस-पास के शहरों के स्कुलों और कॉलेजों में जा-जाकर छात्रों को बहिष्कार करने के लिए प्रेरित किया। लोकनायक जयप्रकाश नारायण द्वारा गठित ‘आजाद दस्ता‘ के सक्रिय सदस्य थे। तंग आर्थिक स्थिति के कारण वे गाँव के मध्य विद्यालय में 30 रुपया की दर से प्रधानाध्यापक का पद पर कार्य करने लगे।
23 अक्टूबर 1943 ई॰ को रात्रि लगभग दो बजे वे गिरफ्तार कर लिए गए और दरभंगा जेल में डाल दिए गए। यह उनकी पहली जेल यात्रा थी।
सन् 1957 में जब कर्पूरी ठाकुर अपने गाँव की दौरा कर रहे थे, तो उसने देखा कि एक हैजा़ से पीड़ित अपने जीवन के अंतिम क्षण गिन रहा है। सड़क मार्ग नहीं था। उसके परिजन उसे मरते देखने के लिए विवश थे। अस्पताल वहाँ से काफी दूर होने के बावजूद उस हैजा पीड़ित को अपने कंधों पर उठाया और पाँच किलोमीटर पैदल चलकर उसे अस्पताल पहुँचाकर ही दम लिया।
कर्पूरी ठाकुर का जन्म समस्तीपुर के निकट पितौंझिया नामक गाँव में 24 जनवरी, 1921 को हुआ था। इनके माता का नाम रामदुलारी देवी, पिता के नाम गोकुल ठाकुर और पत्नी का नाम फुलेसरी देवी था।
1940 में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा द्वितीय श्रेणी से पास की और आई॰ ए॰ में नाम लिखवाया। वे घर से ही घुटने तक धोती पहने, कंधे पर गमछा रखे, बिना जूता-चप्पल पहने, पाँव पैदल चलकर मुक्तापुर रेलवे स्टेशन पहुँचते और वहीं से रेलगाड़ी पकड़कर दरभंगा पहुँचते तथा कॉलेज में दिनभर पढ़कर संध्या समय लौटते।
प्रतिदिन वह 50-60 किलोमीटर की यात्रा करते थे। 1942 में आई॰ ए॰ की परीक्षा द्वितीय श्रेणी से उतीर्ण हुए।
स्नातक कला में नामांकन कराकर अगस्त क्रांति में कुद गए। उन्हें गिरफ्तार कर भागलपुर कैम्प जेल में भेज दिया गया। वहाँ वह कैदियों की सुविधा के लिए 25 दिनों का उपवास कर सरकार को झुकने पर मजबुर कर दिया।
1952 से 1988 तक लगातार विधानसभा के सदस्य निर्वाचित होते रहे। 1967 में बिहार के उपमुख्यमंत्री तथा 1970 से 1977 में बिहार के मुख्यमंत्री रहे। दलगत राजनीति से कर्पूरी ठाकुर को गहरा धक्का लगा। 12 अगस्त 1987 को उन्हें विपक्ष के नेता पद से हटाया गया। 17 फरवरी, 1988 ई॰ को हृदयाघात के कारण इस महान विभूति का निधन हो गया।
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