11.Kabir ke dohe class 7 arth | कक्षा 7 कबीर के दोहे

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 7 हिन्‍दी के कविता पाठ ग्‍यारह ‘ Kabir ke dohe ( कबीर के दोहे )’ के प्रत्‍येक पंक्ति के अर्थ को पढ़ेंगे।

Kabir ke dohe class 7 arth

11 कबीर के दोहे

काल्ह करे सो आज कर, आज करे सो अब।
पल में परलै होयगी, बहुरि करेगा कब॥
अर्थ-कबीर दासजी लोगों को सलाह देते हैं कि कल का काम आज ही कर लो और आज का काम अभी तुरन्त, क्योंकि इस जीवन का कोई भराेसा नहीं, इसलिए दुबारा कब करोगे।
साँई इतना दीजिए, जामे कुटुम समाय।
मैं भी भूखा ना रहूँ, साधु न भूखा जाय ॥ Kabir ke dohe class 7 arth
सरलार्थ—संत कबीर ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहते हैं कि हे ईश्वर! मुझे इतनी ही सम्पत्ति दो, जिसमें हमारे परिवार वालों का भरण-पोषण हो जाए। हाँ, मुझे इतना ही चाहिए जिसमें मैं भी भूखा न रहूँ और मेरे द्वार पार आए कोई साधु-सज्जन (अतिथि) भूखा न लौट जाय।
निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय ।
बिन साबुन पानी बिना, निरमल करे सुभाय।।
सरलार्थ—सन्त कबीर कहते हैं कि जो मनुष्य निन्दा करने वाले हैं उनसे घृणा करना ठीक नहीं है। उन्हें तो अपने आँगन में झोपड़ी छवाकर सदा ही समीप रखना चाहिए । कारण, वे स्वभाव से ही बिना पानी और साबुन का खर्च बढ़ाए, हमारे दोप को दूर करते रहते हैं।
जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान
मोल करो तलवार का, पडा रहने रहने दो म्‍यान
संत कबीर का कथन है कि किसी साधु या सज्जन पुरुष की जाति मतजान या समझदारी की जानकारी प्राप्त करो। जैसे तलवार खरीदते समय माता की कीमत लगाओ और उसके म्यान को याही पड़ा रहने दो।
सोना, सज्‍जन, साधुजन,टूटे जूडे सौ बार ।
दुर्जन, कुम्‍भ-कुम्‍हार के, ऐकै धका दरार ।। Kabir ke dohe class 7 arth
सरलार्थ—सन्त कबीर कहते हैं कि सोना और सज्जन दोनों ही ऐसे हैं जो सौ बार टूट कर भी फिर से मिल जाते हैं—एक हो जाते हैं। किन्तु दुष्ट लोग जो कुम्हार के घड़े का स्वभाव रखनेवाले होते हैं—एक धक्का-एक बात पर ही उनमें सदा के लिए विलगाव पैदा हो जाता है।
पश्वी याद-पाढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय ।
ढाई अखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय ॥
अर्थ—कबीर दास जी कहते हैं कि ग्रंथों को पढ़ते-पढ़ते लोग मर गए लेकिन उन्हें
सच्चे ज्ञान की प्राप्ति नहीं हुई। ज्ञान की प्राप्ति उसे ही होती है जिसे अढ़ाई अक्षर प्रेम । का बोध होता है।
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलया कोय।
जो दिल खोजा आपनो, मुझ सा बुरा न कोय॥
अर्थ—कबीर कहते हैं कि जब मैं दूसरों की बुराई देखने चला तो मुझे कहीं बुराई देखने को नहीं मिली अर्थात् मुझे कोई बुरा व्यक्ति नहीं मिला। इस बात का पता तब चला जब अपने-आप के विषय में सोचा तो लगा कि बुरा व्यक्ति ही दूसरों की बुराई (नीचता) पर ध्यान देते हैं। अच्छे लोग तो दूसरों की अच्छाई पर ध्यान देते हैं। Kabir ke dohe class 7 arth

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