Karnsya Danveerta VVI Subjective Questions – संस्‍कृत कक्षा 10 कर्णस्‍य दनवीरता

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 10 संस्‍कृत के पाठ बारह ‘कर्णस्‍य दनवीरता (Karnsya Danveerta VVI Subjective Questions)’ के महत्‍वपूर्ण विषयनिष्‍ठ प्रश्‍नों के उत्तर को पढ़ेंगे।

Karnsya Danveerta VVI Subjective Questions

Karnsya Danveerta VVI Subjective Questions Chapter 12 कर्णस्‍य दनवीरता (कर्ण की दानवीरता)

लेखक – भास

लघु-उत्तरीय प्रश्‍नोत्तर (20-30 शब्‍दों में) ____दो अंक स्‍तरीय

  1. ‘कर्णस्य दानवीरता’ में कर्ण के कवच और कुण्डल की विशेषताएँ क्या थीं? (2018A)

उत्तर- कर्ण का कवच और कुण्डल जन्मजात था। जब तक उसके पस कवच और कुण्डल रहता, दुनिया की कोई शक्ति उसे मार नहीं सकती थी। कवच और कुण्डल उसे अपने पिता सूर्य देव से प्राप्त थे, जो अभेद्य थे।

  1. दानवीर कर्ण के चरित्र पर प्रकाश डालें ?

अथवा, कर्ण की चारित्रिक विशेषताओं का वर्णन करें। (2020A І, 2018A)

उत्तर- दानवीर कर्ण एक साहसी तथा कृतज्ञ (उपकार माननेवाला) आदमी था। वह सत्यवादी और मित्र का विश्वासपात्र था। दुर्योधन द्वारा किए गए उपकार को वह कभी नहीं भला। उसका कवच-कुण्डल अभेद्य था फिर भी उसने इंद्र को दानस्वरूप दे दिया। वह दानवीर था। कुरुक्षेत्र में वीरगति को पाकर वह भारतीय इतिहास में अमर हो गया।

  1. कर्ण कौन था एवं उसके जीवन से हमें क्‍या शिक्षा मिलती है? (2020A І)

उत्तर- कर्ण कुंती का पुत्र था। महाभारत के युद्ध में उसने कौरव पक्ष से लड़ाई की। इस पाठ से हमें यह शिक्षा मिलती है कि दान ही मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ गुण है, क्योंकि केवल दान ही स्थिर रहता है। शिक्षा समय-परिवर्तन के साथ समाप्त हो जाती है। वृक्ष भी समय के साथ नष्ट हो जाता है। इतना ही नहीं, जलाशय भी सूखकर समाप्त हो जाता है। इसलिए कोई मोह किए बिना दान अवश्य करना चाहिए।

4. दानवीर कर्ण ने इन्द्र को दान में क्या दिया ? तीन वाक्यों में उत्तर दें। (2011C)

अथवा, ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ के आधार पर दान की महत्ता को बताएं। (2016A)

उत्तर- दानवीर कर्ण ने इन्द्र को अपना कवच और कुण्डल दान में दिया । कर्ण को ज्ञात था कि यह कवच और कण्डल उसका प्राण-रक्षक है। लेकिन दानी स्वभाव होने के कारण उसने इन्द्ररूपी याचक को खाली लौटने नहीं दिया ।

5. ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ के नाटककार कौन हैं ? कर्ण किनका पुत्र था तथा उन्होंने इन्द्र को दान में क्या दिया? (2011A)

उत्तर—’कर्णस्य दानवीरता’ पाठ के नाटककार ‘भास’ हैं। कर्ण कुन्ती का पुत्र था तथा उन्होंने इन्द्र को दान में अपना कवच और कुण्डल दिया।

6. ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ के आधार पर इन्द्र के चरित्र की विशेषताओं को लिखें। (2011A, 2015A)

अथवा, ‘कर्णस्य दानवीरता पाठ के आधार पर इन्द्र की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख करें। (2018A)

उत्तर- इन्द्र स्वर्ग का राजा है किन्तु वह सदैव सशंकित रहता है कि कहीं कोई उसका पद छीन न ले। वह स्वार्थी तथा छली है। उसने महाभारत में अपने पुत्र अर्जुन को विजय दिलाने के लिए ब्राह्मण का वेश बनाकर छल से कर्ण का कवच-कुण्डल दान में ले लिया ताकि कर्ण अर्जुन से हार जाए।

7. ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ के आधार पर दान की महिमा का वर्णन करें।

अथवा, ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ के आधार पर दान के महत्व का वर्णन करें।(2016A, 2018C)

उत्तर– कर्ण जब कवच और कुंडल इन्द्र को देने लगते हैं तब शल्य उन्हें रोकते हैं। इसपर कर्ण दान की महिमा बतलाते हुए कहते हैं कि समय के परिवर्तन से शिक्षा नष्ट हो जाती है, बड़े-बड़े वृक्ष उखड़ जाते हैं, जलाशय सूख जाते हैं, परंतु दिया गया दान सदैव स्थिर रहता है, अर्थात दान कदापि नष्ट नहीं होता है।

8. कर्णस्‍य दानवीरता पाठ कहाँ से उद्धत है। इसके विषय में लिखें।

उत्तर- ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ भास-रचित कर्णभार नामक रूपक से उद्धृत है। इस रूपक का कथानक महाभारत से लिया गया है। महाभारत युद्ध में कुंतीपुत्र कर्ण कौरव पक्ष से युद्ध करता है। कर्ण के शरीर में स्थित जन्मजात कवच और कुंडल उसकी रक्षा करते हैं। इसलिए, इन्द्र छलपूर्वक कर्ण से कवच और कुंडल मांगकर पांडवों की सहायता करते हैं।

9. कर्ण के प्रणाम करने पर इन्द्र ने उसे दीर्घायु होने का आशीर्वाद क्यों नहीं कहा?

उत्तर- इन्द्र जानते थे कि कर्ण को युद्ध में मरना अवश्य संभव है। कर्ण को यदि दीर्घायु होने का आशीर्वाद दे देते, तो कर्ण की मृत्यु युद्ध में संभव नहीं थी। वह दीर्घायु हो जाता। कुछ नहीं बोलने पर कर्ण उन्हें मूर्ख समझता। इसलिए इन्द्र ने उसे दीर्घायु होने का आशीर्वाद न देकर सूर्य, चंद्रमा, हिमालय और समुद्र की तरह यशस्वी होने का आशीर्वाद दिया।

10. कर्ण ने कवच और कंडल देने के पूर्व इन्द्र से किन-किन चीजों को दानस्वरूप लेने के लिए आग्रह किया? (2018A)

उत्तर- इन्द्र कर्ण से बड़ी भिक्षा चाहते थे। कर्ण समझ नहीं सका कि इन्द्र भिक्षा के रूप में उनका कवच और कुंडल चाहते हैं। इसलिए कवच और कंडल देने से पूर्व कर्ण ने इन्द्र से अनुरोध किया कि वे सहस्र गाएँ, हजारों घोडें, हाथी, अपर्याप्त स्वर्ण मुद्राएँ और पृथ्वी (भूमि), अग्निष्टोम फल या उसका सिर ग्रहण करें

11.‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ से हमें क्या शिक्षा मिलती है?

उत्तर- ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ से हमें यह शिक्षा मिलती है कि दान ही मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ गुण है, क्योंकि केवल दान ही स्थिर रहता है। शिक्षा समय-परिवर्तन के साथ समाप्त हो जाती है। वृक्ष भी समय के साथ नष्ट हो जाता है। इतना ही नहीं, जलाशय भी सूखकर समाप्त हो जाता है। इसलिए कोई मोह किए बिना दान अवश्य करना चाहिए।

  1. कर्णस्य दानवीरता पाठ का पाँच वाक्यों में परिचय दें। (2012C)

उत्तर- यह पाठ संस्कृत के प्रथम नाटककार भास द्वारा रचित कर्णभार नामक एकांकी रूपक से संकलित किया गया है। इसमें महाभारत के प्रसिद्ध पात्र कर्ण की दानवीरता दिखाई गयी है। इन्द्र कर्ण से छलपूर्वक उनके रक्षक कवचकुण्डल को मांग लेते हैं और कर्ण उन्हें दे देता है। कर्ण बिहार के अद्भराज्य (मुंगेर तथा भागलपुर) का शासक था। इसमें संदेश है कि दान करते हुए मांगने वाले की पृष्ठभूमि जान लेनी चाहिए, अन्यथा परोपकार विनाशक भी हो जाता है।

13. इन्द्र ने कर्ण से कौन-सी बड़ी भिक्षा माँगी और क्यों?

उत्तर- इन्द्र ने कर्ण से बड़ी भिक्षा के रूप में कवच और कुंडल माँगी। अर्जुन की सहायता करने के लिए इन्द्र ने कर्ण से छलपूर्वक कवच और कुंडल माँगे, क्योंकि जब तक कवच और कुंडल उसके शरीर पर विद्यमान रहता, तब तक उसकी मृत्यु नहीं हो सकती थी। चूँकि कर्ण कौरव पक्ष से युद्ध कर रहे थे, अतः पांडवों को युद्ध में जिताने के लिए कर्ण से इन्द्र ने कवच और कुंडल की याचना की।

14. शास्त्रं मानवेभ्यः किं शिक्षयति? (2018A)

उत्तर- शास्त्र मनुष्य को कर्तव्य-अकर्तव्य का बोध कराता है। शास्त्र ज्ञान का शासक होता है। सुकर्म-दुष्कर्म, सत्य-असत्य आदि की जानकारी शास्त्र से ही मिलती है।

  1. कर्ण की दानवीरता का वर्णन अपने शब्दों में करें। (2011C, 2014A, 2015C)

उत्तर- कर्ण सूर्यपुत्र है । जन्म से ही उसे कवच और कुण्डल प्राप्त है। जबतक कर्ण के शरीर में कवच-कुण्डल है तब तक वह अजेय है। उसे कोई मार नहीं सकता है। कर्ण महाभारत युद्ध में कौरवों के पक्ष में युद्ध करता है। अर्जुन इन्द्रपुत्र हैं। इन्द्र अपने पुत्र हेतु छलपूर्वक कर्ण से कवच और कुण्डल माँगने जाते हैं। दानवीर कर्ण सूर्योपासना के समय याचक को निराश नहीं लौटाता है। इन्द्र इसका लाभ उठाकर दान में कवच और कुण्डल माँग लेते हैं। सब कुछ जानते हुए भी इन्द्र को कर्ण अपना कवच और कुंडल दे देता है।

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