कक्षा 12 भूगोल पाठ 4 मानव बस्तियाँ | Manav Bastiya class 12 notes

इस लेख में बिहार बोर्ड कक्षा 12 भूगोल के पाठ चार ‘मानव बस्तियाँ (Manav Bastiya class 12 notes)’ के नोट्स को पढ़ेंगे।

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अध्याय 4
मानव बस्तियाँ

मानव बस्ती का अर्थ है किसी भी प्रकार और आकार के घरों का संकुल जिनमें मनुष्य रहते हैं। इस उद्देश्य के लिए लोग मकानों और अन्य इमारतों का निर्माण करते हैं और अपने आर्थिक पोषण-आधार के लिए कुछ क्षेत्र पर स्वामित्व रखते हैं।

विरल रूप से अवस्थित छोटी बस्तियाँ, जो कृषि अथवा अन्य प्राथमिक क्रियाकलापों में विशिष्टता प्राप्त कर लेती हैं, गाँव कहलाती हैं दूसरी ओर कम, किंतु बड़े अधिवास द्वितीयक और तृतीयक क्रियाकलापों में विशेषीकृत होते हैं जो इन्हें नगरीय बस्तियाँ कहा जाता है।

ग्रामीण बस्तियाँ अपने जीवन का पोषण अथवा आधारभूत आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति भूमि आधारित प्राथमिक आर्थिक क्रियाओं से करती हैं जबकि नगरीय बस्तियाँ एक ओर कच्चे माल के प्रक्रमण और तैयार माल के विनिर्माण तथा दूसरी ओर विभिन्न प्रकार की सेवाओं पर निर्भर करती हैं। नगर आर्थिक वृद्धि के नोड के रूप में कार्य करते हैं और न केवल नगर निवासियों को बल्कि अपने पश्च भूमि की ग्रामीण बस्तियों को भी भोजन और कच्चे माल के बदले वस्तुएँ और सेवाएँ उपलब्ध कराते हैं। नगरीय और ग्रामीण बस्तियों के बीच प्रकार्यात्मक संबंध परिवहन और संचार परिपथ के माध्यम से स्थापित होता है। ग्रामीण और नगरीय बस्तियाँ सामाजिक संबंधों अभिवृति और दृष्टिकोण की दृष्टि से भी भिन्न होती हैं। ग्रामीण लोग कम गतिशील होते हैं और इसलिए उनमें सामाजिक संबंध घनिष्ठ होते हैं। दूसरी ओर नगरीय क्षेत्रों में जीवन का ढंग जटिल और तीव्र होता है और सामाजिक संबंध औपचारिक होते हैं।

ग्रामीण बस्तियों के प्रकार

ग्रामीण बस्तियों के विभिन्न प्रकारों के लिए अनेक कारक और दशाएँ उतरदायी हैं। इनके अंतर्गत- (1) भौतिक लक्षण-भू-भाग की प्रकृति, ऊँचाई, जलवायु और जल की उपलब्धता, (2) सांस्कृतिक और मानवजातीय कारक-सामाजिक संरचना, जाति और धर्म, (3) सुरक्षा संबंधी कारक-चोरियों और डकैतियों से सुरक्षा करते हैं। बृहत् तौर पर भारत की ग्रामीण बस्तियों को चार प्रकारों में रखा जा सकता है-

गुच्छित, संकुलित अथवा आकेंद्रित अर्ध-गुच्छित अथवा विखंडित पल्लीकृत और परिक्षिप्त अथवा एकाकी

गुच्छित बस्तियाँ

उपजाऊ जलोढ़ मैदानों और उतर-पूर्वी राज्यों में पाई जाती है। कई बार लोग सुरक्षा अथवा प्रतिरक्षा कारणों से संहत गाँवों में रहते हैं, जैसे कि मध्य भारत के बुंदेलखंड प्रदेश और नागालैंड में।

पल्ली बस्तियाँ

कई बार बस्ती भौतिक रूप से एक-दूसरे से पृथक अनेक इकाइयों में बँट जाती है किंतु उन सबका नाम एक रहता है। इन इकाइयों को देश के विभिन्न भागों में स्थानीय स्तर पर पान्ना, पाड़ा, पाली, नगला, ढाँणी इत्यादि कहा जाता है।

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नगरीय बस्तियाँ

अतः वस्तुओं और सेवाओं का विनियम कई बार प्रत्यक्ष रूप से और कई बार मंडी शहरों और नगरों की श्रृंखला के माध्यम से संपन्न होता है। इस प्रकार नगर गाँवों से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों प्रकार से जुड़े होते हैं और वे परस्पर भी जुड़े हुए होते हैं। आप ’मानव भूगोल के मूलभूत सिद्धांत ’नामक पुस्तक के अध्याय 10 में नगरों की परिभाषा देख सकते हैं।

भारत में नगरों का विकास

प्राचीन नगर

भारत में 2000 से अधिक वर्षो की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि वाले अनेक नगर हैं। इनमें से अधिकांश का विकास धार्मिक अथवा सांस्कृतिक केंद्रों के रूप में हुआ है। वाराणसी इनमें से सर्वाधिक महत्वपूर्ण नगर हैं। प्रयाग (इलाबाद), पाटलिपुत्र (पटना), मदुरई देश में प्राचीन नगरों के कुछ अन्य उदाहरण हैं।

मध्यकालीन नगर

वर्तमान के लगभग 100 नगरों का इतिहास मध्यकाल से जुड़ा है। इनमें से अधिकांश का विकास रजवाड़ों और राज्यों के मुख्यालयों के रूप में हुआ। ये किला नगर हैं जिनका निर्माण प्राचीन नगरों के खंडहरों पर हुआ है। ऐसे नगरों में दिल्ली, हैदराबाद, जयपुर, लखनऊ, आगरा, और नागपुर महत्वपूर्ण हैं।

आधुनिक नगर

अंग्रेजों और अन्य यूरोपियों ने भारत में अनेक नगरों का विकास किया। तटीय स्थानों पर अपने पैर जमाते हुए उन्होंने सर्वप्रथम सूरत, दमन, गोआ, पांडिचेरी इत्यादि जैसे व्यापारिक पतन विकसित किए। अंग्रेजों ने बाद में तीन मुख्य नोडों मुंबई (बंबई), चेन्नई (मद्रास) और कोलकाता (कलकता) पर अपनी पकड़ मजबूत की और उनका अंग्रेजी शैली में निर्माण किया।

1850 के बाद आधुनिक उद्योगों पर आधारित नगरों का भी जन्म हुआ। जमशेदपुर इसका एक उदाहरण है। प्रशासनिक केंद्रों, जैसे-चंडीगढ़, भुवनेश्वर, गांधीनगर, दिसपुर इत्यादि और औद्योगिक केंद्रों जैसे दुर्गापुर, भिलाई, सिंदरी, बरौनी के रूप में विकसित हुए। कुछ पुराने नगर महानगरों के चारों ओर अनुषंगी नगरों के रूप में विकसित हुए जैसे दिल्ली के चारों ओर गाजियाबाद, रोहतक और गुरूग्राम इत्यादि।

जनसंख्या आकार के आधार पर नगरों का वर्गीकरण

एक लाख से अधिक नगरीय जनसंख्या वाले नगरीय केंद्र को नगर अथवा प्रथम वर्ग का नगर कहा जाता है। 10 लाख से 50 लाख की जनसंख्या वाले नगरों को महानगर तथा 50 लाख से अधिक जनसंख्या वाले नगरों को मेगा नगर कहा जाता है। एक नगरीय संकुल में निम्नलिखित तीन संयोजकों में से किसी एक का समावेश होताहै-(क) एक नगर व उसका संलग्न नगरीय बहिर्बद्ध, (ख) बहिर्बद्ध के सहित अथवा रहित दो अथवा अधिक संस्पर्शी नगर, और (ग) एक अथवा अधिक संलग्न नगरों के बहिर्बद्ध से युक्त एक संस्पर्शी प्रसार नगर का निर्माण।

भारत की 60 प्रतिशत नगरीय जनसंख्या प्रथम वर्ग के नगरों में रहती हैं। इन 468 नगरों में से 53 नगर/नगरीय संकुल महानगर हैं। इनमें से छः मेगा नगर हैं जिनमें से प्रत्येक की जनसंख्या 50 लाख से अधिक है। पाँचवें भाग से अधिक (21.0प्रतिशत) नगरीय जनसंख्या इन मेगानगरों में रहती है। इनमें से 1 करोड़ 84 लाख लोगों के साथ बृहन मुंबई सबसे बड़ा नगरीय संकुल हैः दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई, बेंगलूरू और हैदराबाद देश के अन्य मेगा नगर हैं।

नगरों का प्रकार्यात्मक वर्गीकरण

प्रशासन शहर और नगर उच्चतर क्रम के प्रशासनिक मुख्यालयों वाले शहरों को प्रशासन नगर कहते हैं, जैसे कि चंडीगढ़, नई दिल्ली, भोपाल, शिलांग, गुवाहाटी, इंफाल, श्रीनगर, गांधी नगर, जयपुर, चेन्नई इत्यादि।

खनन नगर ये नगर खनिज समृद्ध क्षेत्रों में विकसित हुए हैं जैसे रानीगंज, झरिया, डिगबोई, अंकलेश्वर, सिंगरौली इत्यादि।

गैरिसन (छावनी) नगर इन नगरों का उदय गैरिसन नगरों के रूप में हुआ है, जैसे अंबाला जालंधर, महू, बबीना, उधमपुर इत्यादि।

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स्मार्ट सिटी मिशन

स्मार्ट सिटी मिशन का उद्देश्य शहरों को बढ़ावा देना है जो आधारभूत सुविधा, साफ तथा सतत पर्यावरण और अपने नागरिकों को बेहतर जीवन प्रदान करते हैं।

इस योजना का उद्देश्य एक ऐसे सघन क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करना है जो एक मॉडल के रूप में अन्य बढ़ते हुए शहरों के लिए लाइट हाऊस का काम करे।

वाराणसी, मथुरा, अमृतसर, मदुरै, पुरी, अजमेर, पुष्कर, तिरूपति, कुरूक्षेत्र, हरिद्वार, उज्जैन अपने धार्मिक/सांस्कृतिक महत्व के कारण प्रसिद्ध हुए।

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