कक्षा 12 भूगोल पाठ 3 मानव विकास | Manav Vikas class 12th geography Notes

इस लेख में बिहार बोर्ड कक्षा 12 भूगोल के पाठ तीन ‘मानव विकास (Manav Vikas class 12th geography Notes)’ के नोट्स को पढ़ेंगे।

Manav Vikas class 12th geography

अध्याय 3
मानव विकास

इस कहानी में उल्लिखित हमारे समय के सभी विरोधाभासों में से विकास सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। अल्पावधि में कुछ प्रदेशों और व्यक्तियों के लिए किया गया विकास बड़े पैमाने पर पारिस्थितिक निम्नीकरण के साथ अनेक लोगों के लिए गरीबी और कुपोषण लाता है। क्या विकास वर्ग-पक्षपाती है? प्रत्यक्ष रूप से ऐसा माना जाता है कि ’विकास स्वतंत्रता है’, जिसका संबंध प्रायः आधुनिकीकरण, अवकाश, सुविधा और समृद्धि से जुड़ा हुआ है। वर्तमान संदर्भ में कंप्यूटरीकरण, औद्योगीकरण, सक्षम परिवहन और संचार जाल बृहत् शिक्षा प्रणाली, उन्नत और आधुनिक चिकित्सा सुविधाओं, वैयक्तिक सुरक्षा इत्यादि को विकास का प्रतीक समक्षा जाता है।

इसे प्रायः विकास का पश्चिम अथवा यूरोप-केंद्रित विचार कहा जाता है।

स्त्री जनसंख्या का बड़ा खंड इन सबमें से सबसे ज्यादा कष्टभोगी है। यह भी समान रूप से सत्य है कि वर्षो से हो रहे विकास के बाद भी सीमांत वर्गो में से अधिकांश की सापेक्षिक के साथ-साथ निरपेक्ष दशाएँ भी बदतर हुई हैं। परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में लोग प्रतित निर्धनता पूर्ण और अवमानवीय दशाओं में जीने को विवश हैं।

विकास का एक अन्य अंतर संबंधित पक्ष भी है जिसका निम्नतर मानवीय दशाओं से सीधा संबंध है। इसका संबंध पर्यावरणीय प्रदूषण से है जो पारिरिस्थतिक संकट का कारक है। वायु, मृदा, जल और ध्वनि प्रदूषण न केवल ’हमारे साझा संसाधनों की त्रासदी’ का कारण बने हैं

निर्धनों में सामर्थ्य के गिरावट के लिए तीन अंतर्सबंधित प्रक्रियाएँ कार्यरत हैं- (क) सामाजिक सामर्थ्य में कमी विस्थापन और दुर्बल होते सामाजिक बंधनों के कारण (ख) पर्यावरणीय सामर्थ्य में कभी प्रदूषण के कारण, और (ग) व्यक्तिगत सामर्थ्य में कभी बढ़ती बीमारियों और दुर्घटनाओं के कारण।

इस दिशा में सर्वाधिक व्यवस्थित प्रयास 1990 ई॰ में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा प्रथम मानव विकास रिर्पार्ट का प्रकाशन है। तब से यह संस्था प्रतिवर्ष विश्व मानव विकास रिर्पार्ट को प्रकाशित करती आ रही है। यह रिपोर्ट न केवल मानव विकास को परिभाषित करती है व इसके सूचकों में संशोधन और परिवर्तन लाती है

1993 ई॰ की मानव विकास रिपोर्ट के अनुसार, ’’प्रगामी लोकतंत्रीकरण और बढ़ता लोक सशक्तीकरण मानव विकास की न्यूनतम दशाएँ हैं। ’’ इसके अतिरिक्त यह, यह भी उल्लेख करता है कि ’’ विकास लोगों को केंद्र में रखकर बुना जाना चाहिए न कि विकास को लोगों के बीच रखकर’’ जैसा कि पहले होता था।

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भारत में मानव विकास

120 करोड़ से अधिक जनसंख्या के साथ भारत मानव विकास सूचकांक के संदर्भ में विश्व के 188 देशों में 131 के कोटि क्रम पर है। के संयुक्त मूल्य 0.624 के साथ भारत मध्यम मानव विकास दर्शाने वाले देशों की श्रेणी में आता है।

आर्थिक उपलब्धियों के सूचक

समृद्ध संसाधन आधार और इन संसाधनों तक सभी, विशेष रूप से निर्धन, पद-दलित और हाशिए पर छोड़ दिए गए लोगों की पहुँच, उत्पादकता, कल्याण और मानव विकास की कुंजी है।

आर्थिक उपलब्धि और लोगों की भलाई आर्थिक विकास, रोजगार के अवसर तथा परिसंपतियों तक पहुँच पर निर्भर करती है। विगत वर्षा में भारत में प्रति-व्यक्ति आय और उपभोग व्यय में वृद्धि हुई है।

वर्ष 2011-12 में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों का प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों में 25.7 प्रतिशत शहरी क्षेत्रों में 13.7 प्रतिशत और पूरे देश में 21.9 प्रतिशत के रूप में अनुमानित किया गया था।

गरीबी के आँकड़े दर्शाते हैं कि छतीसगढ़ मध्य प्रदेश, मणिपुर, ओडिशा, तथा दादर एवं नगर हवेली में उनकी 30 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे जा रही है। गुजरात, हरियाणा, जम्मू और कश्मीर, महाराष्ट्र, मेघालय, नागालैण्ड, राजस्थान, तमिलनाडु, त्रिपुरा, उतराखंड और पश्चिम बंगाल में उनकी जनसंख्या का 10 से 20 प्रतिशत गरीबी रेखा से नीचे है। आंध्र प्रदेश, दिल्ली, गोआ, हिमाचल प्रदेश, केरल, पंजाब, सिक्किम, पुदुच्चेरी, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, दमन और दीव तथा लक्षद्वीप की 10 प्रतिशत जनसंख्या गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करती है।

किसी की गुणवता को पुरी तरह प्रतिबिंबित नहीं करता है। कुछ अन्य कारक, जैसे-आवास, सार्वजनिक परिवहन, हवा की गुणवता और पीने के पानी की पहुँच भी जीवन स्तर के मानक का निर्धारण करते हैं। बिना रोजगार की आर्थिक वृद्धि और अनियंत्रित बेरोजगार भारत में गरीबी के अधिक होने के महत्वपूर्ण कारणों में से हैं।

भारत सरकार ने देश को प्रदूषण रहित बनाने के विचार से स्वच्छ भारत अभियान चलाया है जिसके उद्देश्य निम्न हैं-

स्वच्छ भारत अभियान का उद्देश्य देश को खुले में शौच से मुक्ति और नगर निगम के शत-प्रतिशत ठोस कचरे का वैज्ञानिक तरीके से उचित प्रबंधन, घरों में शौचालय, सामुदायिक शौचालय, सार्वजनिक शौचालय का निर्माण है।

ग्रामीण भारत में घरों से होने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए साफ ईधन के तौर पर एल. पी. जी. को सुलभ करना।

जल से होने वाले रोगों की रोकथाम के लिए प्रत्येक घर में पीने लायक जल की व्यवस्था करना।

अपंरपरागत ईधन के स्रोत, जैसे-पवन तथा सौर ऊर्जा को बढ़ावा देना।

कुछ स्वास्थ्य सुचकों के क्षेत्र में भारत में सराहनीय कार्य हुए हैं, जैसे मृत्यु दर का 1951 में 25.1 प्रतिशत घटकर 2015 में 6.5 प्रति हजार होना और इसी अवधि में शिशु मर्त्यता का 148 प्रति हजार से 37 प्रति हजार होना। इसी प्रकार 1951 से 2015 की अवधि में जन्म के समय जीवन प्रत्याशा में पुरूषों के लिए 37.1 वर्ष से 66.9 वर्ष तथा स्त्रियों के लिए 36.2 वर्ष से 70.0 वर्ष की वृद्धि करने में भी सफलता मिली।

इसी अवधि के दौरान भारत ने जन्म दर को 40.8 से 20.8 तक नीचे लाकर अच्छा कार्य किया है, किंतु यह जन्म दर अभी अनेक विकसित देशों की तुलना में काफी ऊँची है।

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सामाजिक सशक्तीकरण के सूचक

’विकास मुक्ति है।’ भुख गरीबी, दासता, बँधुआकरण, अज्ञानता, निरक्षरता और किसी की अन्य प्रकार की प्रबलता से मुक्ति मानव विकास की कुंजी है। वास्तविक अर्थां में मुक्ति तभी संभव है जब लोग समाज में अपने सामर्थ्यों और विकल्पों के प्रयोग के लिए सशक्त हों और प्रतिभागिता करें। समाज और पर्यावरण के बारे में ज्ञान तक पहुँच ही मुक्ति का मूलाधार है। ज्ञान और मुक्ति का रास्ता साक्षरता से होकर जाता है।

भारत में साक्षरों का प्रतिशत दर्शाती तालिका 3.3 कुछ रोचक विशेषताओं को उजागर करती है-

भारत में कुल साक्षरता लगभग 74.04 प्रतिशत है जबकि स्त्री साक्षरता 65.46 प्रतिशत है (2011)। दक्षिण भारत के अधिकांश राज्यों में कुल साक्षरता और महिला साक्षरता राष्ट्रीय औसत से ऊँची है। भारत के राज्यों में साक्षरता दर में व्यापक प्रादेशिक असमानता पाई जाती है। यहाँ बिहार जैसे राज्य भी हैं जहाँ बहुत कम (63.82प्रतिशत) साक्षरता है और केरल और मिजोरम जैसे राज्य भी हैं जिनमें साक्षरता दर क्रमशः 93.09 प्रतिशत और 91.58 प्रतिशत है।

भारत में मानव विकास सूचकांक

भारत को मध्यम मानव विकास दर्शाने वाले देशों में रखा गया है। विश्व के 188 देशों में इसका 131 वाँ स्थान है।

शैक्षिक उपलब्धियों के अतिरिक्त आर्थिक विकास भी मानव विकास सूचकांक पर सार्थक प्रभाव डालता है। आर्थिक दृष्टि से विकसित महाराष्ट्र, तमिलनाडु और पंजाब एवं हरियाणा जैसे राज्यों के मानव विकास सूचकांक का मूल्य असम, बिहार, मध्य प्रदेश इत्यादि राज्यों की तुलना में ऊँची है।

जनसंख्या, पर्यावरण और विकास

यह जटिल है क्योंकि युगों से यही सोचा जा रहा है कि विकास एक मूलभूत संकल्पना है और यदि एक बार इसे प्राप्त कर लिया गया तो यह समाज की सभी सामाजिक, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय समस्याओं का निदान हो जाएगा।

संबद्ध मुद्दों की गंभीरता और संवेदनशीलता को भाँपते हुए संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम ने अपनी 1993 की मानव विकास रिपोर्ट में विकास की अवधारणा में अभिभूत कुछ स्पष्ट पक्षपातों और पूर्वाग्रहों को संशोधित करने का प्रयत्न किया है। लोगों की प्रतिभागिता और उनकी सुरक्षा 1993 की मानव विकास रिपोर्ट के प्रमुख मुद्दे थे।

इन विचारकों के अनुसार जनसंख्या और संसाधनों के बीच का अंतर 18 वीं शताब्दी के बाद बढ़ा है। विगत 300 वर्षा में विश्व के संसाधनों में बहुत थोड़ी वृद्धि हुई है जबकि मानव जनसंख्या में विपुल वृद्धि हुई है।

सर राबर्ट माल्थस मानव जनसंख्या की तुलना में संसाधनों के अभाव के विषय में चिंता व्यक्त करने वाले पहले विद्धान थे।

समृद्ध देशों और लोगों की संसाधनों के विशाल भंडारों तक ’पहुँच’ है जबकि निर्धनों के संसाधन सिकुड़ते जा रहे हैं। इसके अतिरिक्त शक्तिशाली लोगों द्वारा अधिक से अधिक संसाधनों पर नियंत्रण करने के लिए किए गए अनंत प्रयत्नों और उनका अपनी असाधारण विशेषता को प्रदर्शित करने के लिए प्रयोग करना ही जनसंख्या संसाधनों और विकास के बीच संघर्ष और अंतर्विरोधों का प्रमुख कारण हैं।

उनके विचार क्लब ऑफ रोम की रिपोर्ट ’लिमिट्स टू ग्रोथ’ (1972), शूमाकर की पुस्तक ’स्माल इज ब्यूटीफुल’ (1974) ब्रुंडलैंड कमीशन की रिपोर्ट ’ऑवर कामन फ्यूचर’ (1987) और अंत में ’एजेंडा-21 रिपोर्ट ऑफ द रियो कांफ्रेंस’ (1993) में भी प्रतिध्वनित हुए हैं।

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