मेरा ईश्‍वर कवि लीलाधर जगूड़ी | Mera ishwar class 9th Hindi

इस पोस्‍ट में हमलोग कक्षा 9 हिंदी पद्य भाग का पाठ आठ ‘मेरा ईश्‍वर ( Mera ishwar)’ को पढृेंंगें, इस पाठ में लीलाधर जगूड़ी ने प्रभु वर्ग अर्थात् सत्ताधारी वर्ग के प्रति आक्रोश प्रकट किया है।

Mera ishwar class 9th Hindi

मेरा ईश्‍वर कवि लीलाधर जगूड़ी
मेरा ईश्वर मुझसे नाराज़ है
क्योंकि मैंने दुखी न रहने की ठान ली
मेरे देवता नाराज हैं
क्योंकि जो जरूरी नहीं है
मैंने त्यागने की कसम खा ली है

अर्थकवि प्रभु वर्ग अर्थात् शासक-वर्ग पर व्यंग्य करता हुआ कहता है कि वे कवि से अप्रसन्न हैं, क्योंकि उन्होंने इनके अनुकूल न चलने का निश्चय कर लिया है।

कवि ने उस प्रभु वर्ग की खोट नीयत देखकर उसे त्यागने की कसम खा ली है। तात्पर्य कि शासक-वर्ग स्वार्थ की पूर्ति के लिए निरीह लोगों को अपने शिकंजे में फँसाकर उनसे नाजायज लाभं उठाता है।

व्याख्याप्रस्तुत पंक्तियाँ कवि लीलाधर जगूड़ी द्वारा लिखित कविता ‘मेरा ईश्वर’ शीर्षक पाठ से ली गई हैं। इनमें कवि ने वैसे लोगों पर गहरी चोट की है जोयेन-केन-प्रकारेण निरीह लोगों को अपने शिकंजे में ले लेते हैं तथा उन्हें अपने हाथ की कठपुतली बनाए रखते हैं।

कवि उस प्रभु वर्ग अर्थात् सत्ताधारी वर्ग के प्रति आक्रोश प्रकट करते हुए कहता है कि ये सत्ता सुखभोगी अपना वर्चस्व कायम रखने के लिए बुद्धिजीवी वर्ग को अपना हथकंडा बना उनसे नाजायज लाभ उठाता है। कवि ऐसा करके दुखी रहना नहीं चाहता है, इसलिए वह उस प्रभु वर्ग से अलग रहने में ही अपना शुभ मानता है। अतः कवि के कहने का भाव यह है कि सत्ताधारी वर्ग की गलत नीति के कारण सामाजिक परिवेश दूषित हो रहा है। अतएव ऐसे भ्रष्ट वर्ग का त्याग करने में ही जनता का कल्याण है।

न दुखी रहने का कारोबार करना है
न सुखी रहने का व्यसन
मेरी परेशानियाँ और मेरे दुख ही
ईश्वर का आधार क्यों हों ?
पर सुख भी तो कोई नहीं है मेरे पास
सिवा इसके कि दुखी न रहने की ठान ली है |

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अर्थकवि अपना विचार प्रकट करता है कि उसे न तो ऐसा काम करना है, जोदुख का कारण बने और न ही उसे सुख से रहने की आदत डालनी है। कवि यह नहीं चाहता है कि उसकी परेशानी अथवा दुःख ईश्वर का आधार बने। तात्पर्य है कि कविसहज रूप में रहना चाहता है। सुख एवं दुःख जीवन में आते-जाते ही रहते हैं। अतएव कवि सहज मानवीय-जीवन जीने का निश्चय करता है।

व्याख्या प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि लीलाधर जगूड़ी द्वारा रचित कविता ‘मेरा ईश्वर’ शीर्षक पाठ से ली गई हैं। इनमें कवि ने सहज मानवीय-जीवन की विशेषताओं पर प्रकाश डाला है।

कवि का कहना है कि वह न तो कोई ऐसा व्यापार (कार्य) करना चाहता है जिसमें किसी प्रकार की भूल होने पर दुःख का अनुभव हो और न ही सुख से रहने की आदत डालना चाहता है। दोनों में किसी विपरीत परिस्थिति में दुःखी होना पड़ता है। कवि तो सहज जीवन जीना चाहता है। वह यह भी नहीं चाहता कि उसकी कठिनाई तथा दुःख किसी की आलोचना का विषय बने। जिसने प्रसन्नतापूर्वक रहना सीख लिया है, उसके लिए सुख तथा दुख दोनों एक जैसा प्रतीत होते हैं। कवि के कहने का भाव है कि आलोचना का पात्र वह होता है जो अपनी सुख-सुविधा के लिए दूसरों को दुख देता है, जबकि कवि सहजता में ही जीवन का असली रस पाता है।

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