10. निम्‍मो की मौत कक्षा 9 हिंदी | Nimmo ki maut class 9th Hindi

इस पोस्‍ट में हमलोग कक्षा 9 हिंदी पद्य भाग का पाठ दस ‘निम्‍मो की मौत (Nimmo ki maut class 9th Hindi)’ को पढृेंंगें, इस पाठ में विजय कुमार ने महानगर में काम करने वाली घरेलू नौकरानी की दीन-दशा का बड़ा ही मार्मिक वर्णन किया है।

Nimmo ki maut class 9th Hindi

10. निम्‍मो की मौत कवि विजय कुमार
वह भीगी हुई चिड़िया की तरह
फुरफुराती थी
हम जानते थे
अँधेरे कोने में दुबक
एक सूखी रोटी
और तीन दिन पुराना साग
वह चोरों की तरह खाती रही कई बरस
सालों साल उसने
चिट्ठी नहीं लिखी अम्मा को
टेलीफोन के पास
उसका फटकना निषिद्ध था

अर्थकवि उस घरेलू नौकरानी निम्मों की दयनीय दशा का वर्णन करते हुए कहता कि वह भागी चिड़िया की तरह घर के अंधेरे कोने में दुबके पंख फड़फड़ाती सखी रोटा चालान दिना का वासी साग खाती हुई जीवन बिताती रही। अशिक्षा के कारण उसनें वर्षों से अपनी माँ को चिट्ठी नहीं लिखी। साथ ही, अभावग्रस्त एवं महानगरीय समाज द्वारा उपेक्षित अथवा तिरस्कृत होने के कारण टेलीफोन के निकट जाने की उसे मनाही थी। कवि के कहने का उद्देश्य यह है कि महानगरों में घरेलू नौकरानी उपेक्षा का पात्र मानी जाती है।

व्याख्या प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि विजय कुमार द्वारा लिखित कविता निम्मो की मौत पर’ शीर्षक से ली गई हैं। इनमें कवि ने महानगर में काम करने वाली घरेलू नौकरानी की दीन-दशा का बड़ा ही मार्मिक वर्णन किया है।

कवि का कहना है कि निम्मो जैसी घरेलू नौकरानी महानगरों में किस प्रकार नारकीय एवं तिरस्कृत जीवन व्यतीत करने के लिए मजबूर रहती है। उन्हें महानगरीय समाज द्वारा उपेक्षा की दृष्टि से देखा जाता है, जिस कारण उन्हें किसी अंधेरी कोठरी में रहने के लिए मजबूर होना पड़ता है। साथ ही कई दिनों की सूखी रोटी तथा बासी साग खाकर जीवन व्यतीत करना पड़ता है। इस विवशता के कारण उसने अपनी माँ को चिट्ठी नहीं लिख पाई। सामाजिक क्रूरता के कारण किसी टेलीफोन के पास जाने पर भी रोक थी।

घरेलू नौकरानी के माध्यम से कवि यह स्पष्ट करना चाहा है कि महानगरों में नौकरों का घोर शोषण होता है। उन्हें न तो उचित मजदूरी मिलती है और न ही उचिंत सम्मान ही। महानगरीय समाज असंवेदनशील तथा अमानवीय प्रवृत्ति के होते हैं।

Nimmo ki maut class 9th Hindi

हमें मालूम था
लानतों, गाली, लात, घूसों के बाद
लेटी हुई ठंढे फर्श पर
गए रात जब ।
उसकी आँखें मूंदती थीं
एक कंपन
पूरी धरती पर
पसर जाता था
उसकी थमी हुई हिचकियाँ
उसके पीहर तक
चली आती थीं
हर रोज
एक अनुपस्थित घाव
उसके शरीर के भीतर
कहीं रहा होगा
और शायद कुछ अनकही प्रार्थनाएँ नींद में

अर्थ-कवि महानगरों में काम करने वाली घरेलू नौकरानी की दारूण दशा का वर्णन करते हुए कहता है कि उन्हें गृहस्वामी की डाँट, गाली सुनने के साथ ही लात तथा घूसों को भी सहन करना पड़ता है। वह रात में जब सोती थी तो उसका हृदय विदीर्ण हो जाता था। फलतः वह अपनी विवशता पर कराह उठती थी और मन की व्यथा उसे झकझोर डालती थी। यही व्यथा उसकी आह बन उसके मायके तक चली जाती थी। कवि कहता . है कि हर दिन के इस अमानवीय व्यवहार ने उसे अपने-आपसे घृणा उत्पन्न कर दियाऔर सुप्तावस्था में जीवन-मुक्ति के लिए प्रेरित करने लगा।

व्याख्याप्रस्तुत पंक्तियाँ मानवीय संवेदना से लबालब कवि विजय कुमार द्वारा लिखित कविता निम्मो की मौत पर’ शीर्षक से ली गई हैं। इनमें कवि ने निम्मो नाम की घरेलू नौकरानी की कारूणिक दशा का मार्मिक वर्णन किया है।

कवि का कहना है कि महानगरीय लोग निर्मम, निष्ठुर तथा अमानवीय होते हैं। वे घरेलू नौकरों के साथ निर्ममतापूर्ण व्यवहार करते हैं। कवि निम्मो की दारूण-दशा का वर्णन करते हुए कहता है कि गृहस्वामी उसके साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार करते थे। उसे नित्य डॉट एवं गाली देने के साथ ही लात तथा घूसों से प्रहार भी करते थे। लाचार एवं विवश निम्मो जब विकल हो उठती थी। उसकी इस विकलता से धरती काँप उठती थी। वह अपने भाग्य पर रोने लगती थी। यह रूदन उसके मायके तक चली जाती थी। अर्थात् अपने मायके की निर्धनता पर तरस आ जाती थी कि निर्धनता के कारण ही उसे इस नारकीय एवं त्रासदीपूर्ण जीवन जीने पर मजबूर होना पड़ा।

यह शरीर जो तीस बरस से
इस दुनिया में था
और तीस बरस
उसे रहना था यहाँ
पर एक दिन रेत की दीवार की तरह गिरी वह सहसा
उसके चले जाने में
कोई रहस्य नहीं था।

अर्थकवि कहता है कि यह शरीर अर्थात् निम्मो तीस वर्षों तक इसलिए जीवितरहीं, क्योंकि उसे इतने दिनों तक जीवित रहना था। यानी उसकी आयु तीस वर्ष की हीथी। लेकिन एक दिन जब वह बालू की भीत के समान एकाएक ढह गई, अर्थात् उसकी मृत्यु अचानक हो गई तो उसकी मृत्यु के कारण के बारे में कहीं कोई चर्चा तक नहीं हुई ! तात्पर्य कि महानगरीय समाज में गरीबों की अचानक मृत्यु पर कोई प्रश्न खड़ा नहीं होता।

व्याख्याप्रस्तुत पंक्तियाँ महान् मानवतावादी कवि विजय कुमार द्वारा लिखित कविता ‘निम्मो की मौत, पर’ शीर्षक से ली गई हैं। इनमें कवि ने निम्मो की मृत्यु का बड़ा ही मार्मिक चित्र प्रस्तुत किया है।

कवि का कहना है कि निम्मो तीस वर्षों तक अनेक प्रकार की यातनाओं को सहन करती हुई जीवित रही, क्योंकि उसे इतने वर्षों तक सारी दिक्कतों के बावजूद जीवित रहना था। तात्पर्य कि जितने वर्षों तक जीवित रहना निश्चित रहता है, व्यक्ति की मृत्यु उससे पहले नहीं हो सकती, लोगों की ऐसी मान्यता है। निम्मो भी तीस वर्ष पूरे करने के बाद बालू की भीत के समान अचानक ढह गई अर्थात् उसकी मृत्यु हो गई। कवि सामाजिक विषमता की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए कहता है कि यह कितनी बड़ी विडंबना है कि गरीबों की अचानक मृत्यु पर कोई प्रश्न खड़ा नहीं किया जाता, जबकि अमीरों की अचानक मृत्यु पर अनेक प्रकार के प्रश्न खड़े होते हैं। उसकी जाँच-पड़ताल की जाती है। निम्मो जीवनपर्यन्त दुःख एवं त्रासदी की चक्की में पीसती रही, लेकिन उसकी ओर लोगों का ध्यान नहीं गया। अतः यह दोषपूर्ण सामाजिक व्यवस्था तथा अमानवीय व्यवहार की निशानी है।

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