कक्षा 12 भूगोल पाठ 8 निर्माण उद्योग | Nirman udyog class 12 notes

इस लेख में बिहार बोर्ड कक्षा 12 भूगोल के पाठ आठ ‘निर्माण उद्योग (Nirman udyog class 12 notes)’ के नोट्स को पढ़ेंगे।

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अध्याय 8
निर्माण उद्योग

उद्योगों के प्रकार

आकार, पूँजी-निवेश और श्रमशक्ति के आधार पर उद्योगों को बृहत्, मध्यम, लघु और कुटीर उद्योग में वर्गीकृत किया गया है। स्वामित्व के आधार पर उद्योगों को (1) सार्वजनिक सेक्टर (2) व्यक्तिगत सेक्टर (3) मिश्रित और सहकारी सेक्टर में विभक्त किया गया है।

उद्योगों का वर्गीकरण उनके उत्पादों के उपयोग के आधार पर भी किया गया है, जैसे- (1) मूल पदार्थ उद्योग (2) पूँजीगत पदार्थ उद्योग (3) मध्यवर्ती पदार्थ उद्योग (4) उपभोक्ता पदार्थ उद्योग।

कच्चे माल के आधार पर वर्गीकरण इस प्रकार है- (1) कृषि-आधारित उद्योग (2) वन-आधारित उद्योग (3) खनिज-आधारित उद्योग (4) उद्योगों द्वारा निर्मित कच्चे माल पर आधारित उद्योग।

उद्योगों का दूसरा प्रचलित वर्गीकरण, निर्मित उत्पादकों की प्रकृति पर आधारित है। इस प्रकार 8 प्रकार के उद्योग हैं- (1) धातुकर्म उद्योग (2) यांत्रिक इंजीनियरी उद्योग (3) रासायनिक और संबद्ध उद्योग (4) वस्त्र उद्योग (5) खाद्य संसाधन उद्योग (6) विद्युत उत्पादन उद्योग (7) इलेक्ट्रॉनिक और (8) संचार उद्योग।

उद्योगों की स्थिति

उद्योगों की स्थिति कई  कारकों, जैसे-कच्चा माल की उपलब्धता शक्ति, बाजार, पूँजी, यातायात और श्रम इत्यादि द्वारा प्रभावित होती है।

आर्थिक दृष्टि से, निर्माण उद्योग को उस स्थान पर स्थापित करना चाहिए जहाँ उत्पादन मूल्य और निर्मित वस्तुओं को उपभोक्ताओं तक वितरण करने का मूल्य न्यूतम हो।

कच्चा माल

भार-ह्रास वाले कच्चे माल का उपयोग करने वाले उद्योग उन प्रदेशों में स्थापित किए जाते हैं जहाँ ये उपलब्ध होते हैं।

लोहा-इस्पात उद्योग में लोहा और कोयला दोनों ही भार ह्रास वाले कच्चे माल हैं। इसीलिए लोहा-इस्पात उद्योग की स्थिति के लिए अनुकूलतम स्थान कच्चा माल स्त्रोतों के निकट होना चाहिए। यही कारण है कि अधिकांश लोहा-इस्पात उद्योग या तो कोयला क्षेत्रों (बोकारों, दुर्गापुर आदि) के निकट स्थित हैं अथवा लौह अयस्क के स्त्रोतों (भद्रावती, भिलाई और राउरकेला) के निकट स्थित हैं।

शक्ति

शक्ति मशीनों के लिए गतिदायी बल प्रदान करती है और इसीलिए किसी भी उद्योग की स्थापना से पहले इसकी आपूर्ति सुनिश्चित कर ली जाती है। जैसे-एल्यूमिनियम और कृत्रिम नाइट्रोजन निर्माण उद्योग की स्थापना शक्ति स्त्रोत के निकट की जाती है क्योंकि ये अधिक शक्ति उपयोग करने वाले उद्योग हैं, जिन्हें विद्युत की बड़ी मात्रा की आवश्यकता होती है।

बाजार

बाजार, निर्मित उत्पादों के लिए निर्गम उपलब्ध कराती हैं। भारी मशीन, मशीन के औजार, भारी रसायनों की स्थापना उच्च माँग वाले क्षेत्रों के निकट की जाती है क्योंकि ये बाजार-अभिमुख होते हैं। सूती वस्त्र उद्योग में शुद्ध (जिसमें भार-ह्रास नहीं होता) कच्चे माल का उपयोग होता है और ये प्रायः बड़े नगरीय केंद्रों में स्थापित किए जाते हैं, उदाहरणार्थ-मुंबई, अहमदाबाद, सूरत आदि।

परिवहन

क्या आपने कभी मुंबई, चेन्नई, दिल्ली और कोलकाता के अंदर और उनके चारों उद्योगों के केंद्रीकरण के कारणों को जानने का प्रयास किया है? ऐसा इसलिए  हुआ कि ये प्रारंभ में ही परिवहन मार्गो को जोड़ने वाले केंद्र बिंदु बन गए। रेलवे लाइन बिछने के बाद ही उद्योगों को आंतरिक भागों में स्थानांतरित किया गया। सभी मुख्य उद्योग मुख्य रेल मार्गो पर स्थित हैं।

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श्रम

उद्योगों को कुशल श्रमिकों की आवश्यकता होती है। भारत में श्रम बहुत गतिशील है तथा जनसंख्या अधिक होने के कारण बड़ी संख्या में उपलब्ध है।

ऐतिहासिक कारक

क्या आपने कभी मुंबई, कोलकाता और चेन्नई के औद्योगिक केंद्र के रूप में उभरने के कारणों के विषय में सोचा है? ये स्थान हमारे औपनिवेशिक अतीत द्वारा अत्यधिक प्रभावित थे। उपनिवेशीकरण के प्रारंभिक चरणों में निर्माण क्रियाओं को यूरोप के व्यापारियों द्वारा नव प्रोत्साहन दिया  गया। उपनिवेशवाद के उत्तरकालीन औद्योगिक चरण में, ब्रिटेन में निर्मित वस्तुओं से होड़ और उपनिवेशिक शक्ति की भेदमूलक नीति के कारण, इन निर्माण केंद्रों का तेजी से विकास हुआ।

औद्योगिक नीति

एक प्रजातांत्रिक देश होने के कारण भारत का उद्देश्य संतुलित प्रादेशिक विकास के साथ आर्थिक संवृद्धि लाना है। भिलाई और राउरकेला में लौह-स्पात उद्योग की स्थापना देश के पिछड़े जनजातीय क्षेत्रों के विकास के निर्णय पर आधारित थी।

मुख्य उद्योग

किसी भी देश के औद्योगिक विकास के लिए लौह-इस्पात उद्योग एक मूल आधार होता है। सूती वस्त्र उद्योग हमारे परंपरागत उद्योग में से एक है। चीनी उद्योग स्थानिक कच्चे माल पर आधारित है

लौह-इस्पात उद्योग

लौह इस्पात उद्योग के लिए लौह अयस्क और कोककारी कोयला के अतिरिक्त चूनापत्थर, डोलोमाइट, मैंगनीज और अग्निसहमृत्तिका आदि कच्चे माल की भी आवश्यकता होती है। ये सभी कच्चे माल स्थूल (भार ह्रास वाले) होते हैं। इसलिए लोहा-इस्पात उद्योग की सबसे अच्छी स्थिति कच्चे माल स्त्रोतों के निकट होती है।

एकीकृत इस्पात कारखाने

टाटा लौह-इस्पात कंपनी

टाटा लौह-इस्पात मुंबई-कोलकाता रेलवे मार्ग के बहुत निकट स्थित है। यहाँ के इस्पात के निर्यात के लिए सबसे नजदीक (लगभग 240 किलोमीटर दूर) पत्तन कोलकाता है।

भारतीय लोहा और इस्पात कंपनी

भारतीय लोहा और इस्पात कंपनी ने अपना पहला कारखाना हीरापुर में और दूसरा कुल्टी में स्थापित किया। 1937 में भारतीय लोहा और इस्पात कंपनी के साहचर्य से बंगाल स्टील कार्पोशन की स्थापना की गई, बर्नपुर (पश्चिम बंगाल) में लोहा और इस्पात के उत्पादन की दूसरी इकाई की स्थापना की गई।

विश्वेश्वरैया आयरन एंड स्टील वर्क्स

तीसरा एकीकृत इस्पात संयंत्र-विश्वेश्वरैया आयरन एंड स्टील वर्क्स-जो प्रारंभ में मैसूर लोहा और इस्पात वर्क्स के नाम से जाना जाता था, बाबाबूदन की पहाड़ियों के केमान गुंडी के लौह-अयस्क क्षेत्रों के निकट स्थित है। चूना पत्थर और मैंगनीज भी आसपास के क्षेत्रों में उपलब्ध है।

स्वतंत्रता के बाद, द्वितीय पंचवर्षीय योजना (1956-57) में विदेशी सहयोग से तीन नए एकीकृत इस्पात संयंत्रों की स्थापना की गई। ये संयंत्र हैं-राउरकेला (ओडिशा), भिलाई (छत्तीसगढ़) और दुर्गापुर (पश्चिम बंगाल)। 1973 में, इन संयंत्रों के प्रबंधन के लिए स्टील अथॉरिटी आफ इंडिया की स्थापना की गई।

राउरकेला इस्पात संयंत्र

राउरकेला इस्पात जर्मनी के सहयोग से 1959 में ओडिशा के सुंदरगढ़ जिले में स्थापित किया गया था

भिलाई इस्पात संयंत्र

भिलाई इस्पात संयंत्र की स्थापना रूस के सहयोग से छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में की गई एवं 1959 में इसमें उत्पादन प्रारंभ हो गया।

दुर्गापुर इस्पात संयंत्र

दुर्गापुर इस्पात संयंत्र यूनाइटेड किंगडम की सरकार के सहयोग से पश्चिम बंगाल में स्थापित किया गया था और 1962 में उसमें उत्पादन प्रारंभ हो गया। यह  संयंत्र रानीगंज और झरिया कोयला पेटी में स्थित है और लौह अयस्क नोआमंडी (मानचित्र) से प्राप्त होता है।

बोकारो इस्पात संयंत्र

यह इस्पात संयंत्र रूस के सहयोग से 1964 में बोकारो में स्थापित किया गया था। इस संयंत्र की स्थापना परिवहन लागत न्यूनीकरण सिद्धांत के आधार पर की गई थी जिसके अनुसार बोकारो और राउरकेला संयुक्त रूप से राउरकेला प्रदेश से लौह अयस्क प्राप्त करते हैं और वापसी में मालगाड़ी के डिब्बे राउरकेला के लिए कोयला ले जाते हैं।

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सूती वस्त्र उद्योग

सूती वस्त्र उद्योग भारत के परंपरागत उद्योगों में से एक है। भारत संसार में उत्कृष्ट कोटि का मलमल, कैलिको, छींट और अन्य प्रकार के अच्छी गुणवत्ता वाले सूती कपड़ों के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध था।

1854 में, पहली आधुनिक सूती मिल की स्थापना मुंबई में की गई। सूती वस्त्र मिलों के लिए आवश्यक मशीनों का आयात इंग्लैंड से किया जा सकता था। 1947 तक भारत में मिलों की संख्या 423 तक पहुँच गई 19 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में मुंबई और अहमदाबाद में पहली मिल की स्थापना के पश्चात् सूती वस्त्र उद्योग का तेजी से विस्तार हुआ।

वर्तमान में अहमदाबाद, भिवांडी, शोलापुर, कोल्हापुर, नागपुर, इंदौर और उज्जैन सूती वस्त्र उद्योग के मुख्य केंद्र हैं। महाराष्ट्र, गुजरात और तमिलनाडु अग्रणी कपास उत्पादक राज्य हैं।

तमिलनाडु राज्य में सबसे अधिक मिलें हैं और उनमें से अधिकांश कपड़ा न बनाकर सूत का उत्पादन करती हैं। उत्तर प्रदेश में कानपुर सबसे बड़ा केंद्र है।

चीनी उद्योग

चीनी उद्योग देश का दूसरा सबसे अधिक महत्वपूर्ण कृषि-आधारित उद्योग है। भारत विश्व में गन्ना और चीनी दोनों का सबसे बड़ा उत्पादक देश है और यह विश्व के कुल चीनी उत्पादन का लगभग 8 प्रतिशत उत्पादन करता है। इसके अतिरिक्त गन्ने से खांडसारी और गुड़ भी तैयार किए जाते हैं। यह उद्योग 4 लाख से अधिक लोगों को प्रत्यक्ष रूप से और एक बड़ी संख्या में किसानों को अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार प्रदान करता है।

आधुनिक आधार पर उद्योग का विकास 1903 में प्रारंभ हुआ जब बिहार में एक चीनी मिल की स्थापना की गई।

उद्योग की अवस्थिति

गन्ना एक भार-ह्रास वाली फसल है। चीनी और गन्ने का अनुपात 9 प्रतिशत से 12 प्रतिशत के बीच होता है जो इसकी गुणवत्ता पर निर्भर करता है।

गन्ने को खेत से काटने के 24 घंटे के अंदर ही पेरा जाय तो अधिक चीनी की मात्रा प्राप्त होती है। महाराष्ट्र देश में अग्रणी चीनी उत्पादक राज्य के रूप में विकसित हुआ और देश में कुल चीनी उत्पादन के एक-तिहाई से अधिक भाग का उत्पादन करता है। राज्य में 119 चीनी मिलें हैं चीनी उत्पादन में उत्तर प्रदेश का द्वितीय स्थान है। बिहार, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश और गुजरात अन्य चीनी उत्पादक राज्य हैं।

पेट्रो-रसायन उद्योग

उद्योगों का यह वर्ग भारत में तेजी से विकसित हो रहा अपरिष्कृत पेट्रोल से कई प्रकार की वस्तुएँ तैयार की जाती हैं जो अनेक नए उद्योगों के लिए कच्चा माल उपलब्ध कराती हैं, इन्हें सामूहिक रूप से पेट्रो-रसायन उद्योग के नाम से जाना जाता है। उद्योगों के इस वर्ग को चार उपवर्गों में विभाजित किया गया है- (1) पॉलीमर, (2) कृत्रिम रेशे, (3) इलैस्टोमर्स, (4) पृष्ठ संक्रियक

पटाखों के उद्योग औंरैया (उत्तर प्रदेश), जामनगर, गांधीनगर और हजीरा (गुजरात), नागोथाने, रत्नागिरी महाराष्ट्र, हल्दिया (पश्चिम बंगाल) और विशाखापट्नम (आंध्र प्रदेश) में भी स्थित हैं।

मुंबई, बरौनी, मेटूर पिम्परी और रिशरा में स्थित संयंत्र प्लास्टिक की वस्तुओं के मुख्य उत्पादक हैं। संश्लिष्ट तंतु का अपने मजबूती, टिकाऊपन, प्रक्षालनता, धोने पर न सिकुड़ने के गुणों के कारण इसका व्यापक रूप से प्रयोग कपड़ा बनाने के लिए किया जाता है।

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ज्ञान-आधारित उद्योग

भारतीय सॉफ्टवेयर उद्योग यहाँ की अर्थव्यवस्था में सबसे तेजी से विकसित हुए सेक्टरों में से एक हैं। भारत के सॉफ्टवेयर उद्योग को उत्तम उत्पाद उपलब्ध कराने में असाधारण प्रतिष्ठा प्राप्त हो चुकी है। अधिकांश बहुराष्ट्रीय कंपनियों के या तो सॉफ्टवेयर विकास केंद्र अथवा अनुसंधान विकास केंद्र भारत में हैं।

भारत में उदारीकरण, निजीकरण तथा वैश्वीकरण एवं औद्योगिक विकास

नई औद्योगिक नीति की घोषणा 1991 में की गई। इस नीति के मुख्य उद्देश्य थे-अब तक प्राप्त किए गए लाभ को बढ़ाना, इसमें विकृति अथवा कमियों को दूर करना, उत्पादकता और लाभकारी रोजगार में स्वपोषित वृद्धि को बनाए रखना और अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता प्राप्त करना।

इस नीति के अंतर्गत किए गए उपाय हैंः (1) औद्योगिक लाइसेंस व्यवस्था का समापन, (2) विदेशी तकनीकी का निःशुल्क प्रवेश, (3) विदेशी निवेश नीति, (4) पूँजी बाजार में अभिगम्यता, (5) खुला व्यापार, (6) प्रावस्थबद्ध निर्माण कार्यक्रम का उन्मूलन, (7) औद्योगिक अवस्थिति कार्यक्रम का उदारीकरण। नीति के तीन मुख्य लक्ष्य हैं-उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण। नई औद्योगिक नीति में, आर्थिक विकास का ऊँचा स्तर प्राप्त करने के लिए सीधा विदेशी सीधा निवेश घरेलू निवेश के पूरक के रूप में देखा गया है।

औद्योगिक नीति में उदारता, घरेलू और बहुराष्ट्रीय दोनों व्यक्तिगत पूँजी निवेशकों को आकर्षित करने के लिए, दिखाई गई।

वैश्वीकरण का अर्थ देश की अर्थव्यवस्था को संसार की अर्थव्यवस्था के साथ एकीकृत करना है।

भारत के औद्योगिक प्रदेश

देश में उद्योगों का वितरण समरूप नहीं है। देश के प्रमुख औद्योगिक प्रदेशों का सविस्तार विवरण आगे प्रस्तुत है

मुंबई-पुणे औद्योगिक प्रदेश

यह मुंबई-थाने से पुणे तथा नासिक और शोलापुर जिलों के संस्पर्शी क्षेत्रों तक विस्तृत है। इस प्रदेश का विकास मुंबई में सूती वस्त्र उद्योग की स्थापना के साथ प्रारंभ हुआ। मुंबई में कपास के पृष्ठ प्रदेश में स्थिति होने और नम जलवायु के कारण मुंबई में सूती वस्त्र उद्योग का विकास हुआ। 1869 में स्वेज नहर के खुलने के कारण मुंबई पत्तन के विकास को प्रोत्साहन मिला। मुंबई हाई पेट्रोलियम क्षेत्र और नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र की स्थापना ने इस प्रदेश को अतिरिक्त बल प्रदान किया।

हुगली औद्योगिक प्रदेश

हुगली नदी के किनारे बसा हुआ, यह प्रदेश उत्तर में बाँसबेरिया से दक्षिण में बिडलानगर तक लगभग 100 किलोमीटर में फैला है। उद्योगों का विकास पश्चिम में मेदनीपुर में भी हुआ है। कोलकाता-हावड़ा इस औद्योगिक प्रदेश के केंद्र हैं।

इसका विकास हुगली नदी पर पत्तन के बनने के बाद प्रारंभ से हुआ।

कोलकाता ने अंग्रेजी ब्रिटिश भारत की राजधानी (1773-1911) होने के कारण ब्रिटिश पूँजी को भी आकर्षित किया। 1855 में रिशरा में पहली जूट मिल की स्थापना ने इस प्रदेश के आधुनिक औद्योगिक समूहन के युग का प्रारंभ किया। जूट उद्योग का मुख्य केंद्रीकरण हावड़ा और भटपारा में है।

बेंगलूरू-चेन्नई औद्योगिक प्रदेश

यह प्रदेश स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद अत्यधिक तीव्रता से औद्योगिक विकास का साक्षी है। कोयला क्षेत्रों से दूर होने के कारण इस प्रदेश का विकास पायकारा जलविधुत संयंत्र पर निर्भर करता है जो 1932 में बनाया गया था।

वायुयान (एच. ए. एल.), मशीन उपकरण, टेलीफोन और भारत इलेक्ट्रानिक्स इस प्रदेश के औद्योगिक स्तंभ हैं। टेक्सटाइल, रेल के डिब्बे, डीलन इंजन, रेडियों, हल्की अभियांत्रिकी वस्तुएँ, रबर का सामान, दवाएँ, एल्युमीनियम, शक्कर, सीमेंट, ग्लास, कागज, रसायन, फिल्म, सिगरेट, माचिस, चमड़े का सामान आदि महत्वपूर्ण उद्योग हैं।

गुजरात औद्योगिक प्रदेश

इस प्रदेश का केंद्र अहमदाबाद और वडोदरा के बीच है लेकिन यह प्रदेश दक्षिण में वलसाद और सूरत तक और पश्चिम में जामनगर तक फैला है। इस प्रदेश का विकास 1860 में सूती वस्त्र उद्योग की स्थापना से भी संबंधित है।

कपड़ा (सूती, सिल्क और कृत्रिम कपड़े) और पेट्रो-रासायनिक उद्योगों के अतिरिक्त अन्य उद्योग भारी और आधार रासायनिक, मोटर, ट्रैक्टर, डीजल, इंजन, टेक्सटाइल मशीनें, इंजीनियरिंग, औषधि, रंग रोगन, कीटनाशक, चीनी, दुग्ध उत्पाद और खाद्य प्रक्रमण हैं।

छोटानागपुर प्रदेश

यह प्रदेश झारखंड, उत्तरी ओडिशा और पश्चिमी बंगाल में फैला है और भारी धातु उद्योगों के लिए जाना जाता है। इस प्रदेश में छः बड़े एकीकृत्र लौह-इस्पात संयंत्र जमशेदपुर, बर्नपुर, कुल्टी, दुर्गापुर बोकारो और राउकेला में स्थापित है।

विशाखापट्नम-गुंटूर प्रदेश

यह औद्योगिक प्रदेश विशाखापत्तनम् जिले से लेकर दक्षिण में कुरूनूल और प्रकासम जिलों तक फैला है।

आयातित पेट्रोल पर आधारित पेट्रोलियम परिशोधनशाला ने कई पेट्रो-रासायनिक उद्योगों की वृद्धि को सुगम बनाया है। शक्कर, वस्त्र, जूट, कागज, उर्वरव, सीमेंट, एल्युमिनिय और हल्की इंजीनियरिंग इस प्रदेश के मुख्य उद्योग हैं।

गुरूग्राम-दिल्ली-मेरठ प्रदेश

इलेक्ट्रॉनिक, हल्के इंजीनियरिंग और विद्युत उपकरण इस प्रदेश के प्रमुख उद्योग हैं। इसके अतिरिक्त यहाँ सूती, ऊनी और कृत्रिम रेशा वस्त्र, होजरी, शक्कर, सीमेंट, मशीन उपकरण, ट्रैक्टर, साईकिल, कृषि उपकरण, रासायनिक पदार्थ और वनस्पति घी उद्योग हैं जो कि बड़े स्तर पर विकसित हैं।

कोलम-तिरूवनंतपुरम प्रदेश

यह औद्योगिक प्रदेश तिरूवनंतपुरम, कोलम, अलवाय, अरनाकुलम् और अल्लापुझा जिलों में फैला हुआ है। उनमें से सूती वस्त्र उद्योग, चीनी, रबड़, माचिस, शीशा, रासायनिक उर्वरक और मछली आधारित उद्योग महत्वपूर्ण हैं।

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