कक्षा 12 भूगोल पाठ 9 भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास | Bharat ke sandarbh me niyojan aur satat poshniya vikas class 12 Notes

इस लेख में बिहार बोर्ड कक्षा 12 भूगोल के पाठ नौ ‘भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास (Bharat ke sandarbh me niyojan aur satat poshniya vikas class 12th Notes)’ के नोट्स को पढ़ेंगे।

Bharat ke sandarbh me niyojan aur satat poshniya vikas

अध्याय 9
भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास

केंद्र, राज्य तथा जिला स्तर पर योजनाओं को तैयार करने की जिम्मेदारी योजना आयोग की थी। परंतु जनवरी 1, 2015 को योजना आयोग का स्थान नीति आयोग ने ले लिया।

केंद्रीय तथा राज्य सरकारों को युक्तिगत तथा तकनीकी सलाह देने के लिए भारत के आर्थिक नीति निर्माण में राज्यों की भागीदारी सुनिश्चित करने के उद्देश्य से नीति आयोग स्थापित किया गया है।

केस अध्ययन-भरमौर क्षेत्र में समन्वित जनजातीय विकास कार्यक्रम

भरमौर जनजातीय क्षेत्र में हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले की दो तहसीलें, भरमौर और होती शामिल हैं। यह 21 नवंबर, 1975 से अधिसूचित जनजातीय क्षेत्र है। इस क्षेत्र में ‘गद्दी‘ जनजातीय समुदाय का आवास है। इस समुदाय की हिमालय क्षेत्र में अपनी एक अलग पहचना है क्योंकि गद्दी लोग ऋतु-प्रवास करते हैं

भरमौर जनजातीय क्षेत्र में जलवायु कठोर है, आधारभूत संसाधन कम हैं और पर्यावरण भंगुर है। इन यह हिमाचल प्रदेश के आर्थिक और सामाजिक रूप से सबसे पिछड़े इलाकों में एक है।

1974 में पाँचवीं पंचर्षीय योजना के अंतर्गत जनजातीय उप-योजना प्रारंभ हुई और भरमौर को हिमाचल प्रदेश में पाँच में से एक समन्वित जनजातीय विकास परियोजना (आई.टी.डी.पी.) का दर्जा मिला। इस क्षेत्र विकास योजना का उद्देश्य गद्दियों के जीवन स्तर में सुधार करना और भरमौर तथा हिमाचल प्रदेश के अन्य भागों के बीच में विकास के स्तर में अंतर को कम करना है। इस योजना के अंतर्गत परिवहन तथा संचार, कृषि और इससे संबंधित क्रियाओं तथा सामाजिक व सामुदायिक सेवाओं के विकास को सर्वाधिक प्राथमिकता दी गई।

जनजातीय समन्वित विकास उपयोजना लागू होने से हुए सामाजिक लाभों में साक्षरता दर में तेजी से वृद्धि, लिंग अनुपात में सुधार और बाल-विवाह में कमी शामिल हैं। इस क्षत्र में स्त्री साक्षरता दर 1971 में 1.88 प्रतिशत से बढ़कर 2011 में 65 प्रतिशत हो गई।

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सतत पोषणीय विकास

साधारणतया ‘विकास‘ शब्द से अभिप्राय समाज विशेष की स्थिति और उसके द्वारा अनुभव किए गए परिवर्तन की प्रक्रिया से होता है।

विकास की संकल्पना गतिक है और इस संकल्पना का प्रादुर्भाव 20वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में हुआ है। द्वितीय विश्व युद्ध के उपरांत विकास की संकल्पना आर्थिक वृद्धि की पर्याय थी जिसे सकल राष्ट्रीय उत्पाद, प्रति व्यक्ति आय और प्रति व्यक्ति उपभोग में समय के साथ बढ़ोतरी के रूप में मापा जाता है।

1960 के दशक के अंत में पश्चिमी दुनिया में पर्यावरण संबंधी मुद्दों पर बढ़ती जागरूकता की सामान्य वृद्धि के कारण सतत पोषणीय धारणा का विकास हुआ। इससे पर्यावरण पर औद्योगिक विकास के अनापेक्षित प्रभावों के विषय में लोगों की चिंता प्रकट होती थी। 1968 में प्रकाशित एहरलिच की पुस्तक ‘द पापुलेशन बम‘ और 1972 में मीडोस और अन्य द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘द लिमिट टू ग्रोथ‘ के प्रकाशन ने इस विषय पर लोगों और विशेषकर पर्यावरणविदों की चिंता और भी गहरी कर दी। इस घटनाक्रम के परिपेक्ष्य में विकास के एक नए माडल जिसे ‘सतत पोषणीय विकास‘ कहा जाता है, की शुरूआत हुई। पर्यावरणीय मुद्दों पर विश्व समुदाय की बढ़ती चिंता को ध्यान में रखकर संयुक्त संयुक्त राष्ट्र संघ ने ‘विश्व पर्यावरण और विकास आयोग‘ की स्थापना की जिसके प्रमुख नार्वे की प्रधान मंत्री गरो हरलेम ब्रंटलैंड थीं।

केस अध्ययन

इंदिरा गांधी नहर कमान क्षेत्र

इंदिरा गांधी नहर, जिसे पहले राजस्थान नहर के नाम से जाना जाता था, भारत में सबसे बड़े नहर तंत्रों में से एक है। यह नहर परियोजना 31 मार्च, 1958 को प्रारंभ हुई। यह नहर पंजाब में हरिके बाँध से निकलती है और राजस्थान के थार मरूस्थल (मरूस्थली) पाकिस्तान सीमा के समानांतर 40 कि.मी. की औसत दूरी पर बहती है। इस नहर तंत्र की कुल नियोजित लंबाई 9060 कि.मी. है कुल कमान क्षेत्र में से 70 प्रतिशत क्षेत्र प्रवाह नहर तंत्रों और शेष क्षेत्र लिफ्ट तंत्र द्वारा नहर का निर्माण कार्य दो चरणों में पूरा किया गया है। लिफ्ट नहर में ढाल के विपरीत प्रवाह के लिए जल को बार-बार मशीनों से ऊपर उठाया जाता है। नहरी सिंचाई के प्रसार से इस प्रदेश की कृषि अर्थव्यवस्था बोये गये क्षेत्र में विस्तार हुआ है और फसलों की सघनता में वृद्धि हुई है। पारंपरिक फसलों, चना, बाजरा और ग्वार का स्थान गेहूँ, कपास, मूँगफली और चावल

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सतत पोषणीय विकास को बढ़ावा देनो वाले उपाय

बहुत से विद्धानों ने इंदिरा गांधी नहर परियोजना की पारिस्थितिकीय पोषणता पर प्रश्न उठाए हैं। पिछले चार दशक में, जिस तरह से इस क्षेत्र में विकास हुआ है और इससे जिस तरह भौतिक पर्यावरण का निम्नीकरण हुआ है, ने विद्धानों के इस दृष्टिकोण को काफी हद तक सही ठहराया भी।

इस कमान क्षेत्र में सतत पोषणीय विकास को बढ़ावा देने वाले प्रस्तावित सात उपायों में से पाँच उपाय पारिस्थतिकीय संतुलन पुनः स्थापित करने पर बल देते हैं। (1) पहली और सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता है जल प्रबंधन नीति का कठोरता से कार्यान्वय करना।  

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