इस लेख में बिहार बोर्ड कक्षा 12 भूगोल के पाठ दस ‘परिवहन तथा संचार (Parivahan tatha sanchar class 12th Notes)’ के नोट्स को पढ़ेंगे।
अध्याय 10
परिवहन तथा संचार
परिवहन तथा संचार का उपयोग एक वस्तु की उपलब्धता वाले स्थान से उसके उपयोग वाले स्थान पर लाने-ले जाने की हमारी आवश्यकता पर निर्भर करता है।
स्थल परिवहन
आर्थिक तथा प्रौद्योगिक विकास के साथ भारी मात्रा में सामानों तथा लोगों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने के लिए पक्की सड़कों तथा रेलमार्गो का विकास किया गया है।
सड़क परिवहन
भारत का सड़क जाल विश्व का दूसरा सबसे बड़ा सड़क-जाल है। इसकी कुल लंबाई 54.8 लाख कि.मी. (आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17) है।
क्या आप जानते हैं?
शेरशाह सूरी ने अपने साम्राज्य को सिंधु घाटी (पाकिस्तान) से लेकर बंगाल की सोनार घाटी तक सुदृढ़ एवं संघटित (समेकित) रखने के लिए शाही राजमार्ग का निर्माण कराया था। कोलकाता से पेशावर तक जोड़ने वाले इसी मार्ग को ब्रिटिश शासन के दौरान ग्रांड ट्रंक (जी.टी.) रोड के नाम से पुनः नामित किया गया था। वर्तमान में यह अमृतसर से कोलकात्ता के बीच विस्तृत है और इसे दो खंडों में विभाजित किया गया है (क) राष्ट्रीय महामार्ग NH-1 दिल्ली से अमृतसर तक और (ख) राष्ट्रीय महामार्ग NH-2 दिल्ली उसे कोलकात्ता तक। निर्माण एवं रख-रखाव के उद्देश्य से सड़कों को राष्ट्रीय महामार्गो (NH), राज्य महामार्गों (SH), प्रमुख जिला सड़कों तथा ग्रामीण सड़कों के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
राष्ट्रीय महामार्ग
वे प्रमुख सड़कें, जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा निर्मित एवं अनुरक्षित किया जाता है, राष्ट्रीय महामार्ग के नाम से जानी जाती है। ये महामार्ग राज्यों की राजधानियों, प्रमुख नगरों, महत्वपूर्ण पत्तनों तथा रेलवे जंक्शनों को भी जोड़तें हैं।
राष्ट्रीय महामार्गों की लंबाई पूरे देश की कुल सड़कों की लंबाई की मात्र 2 प्रतिशत हैः किंतु ये सड़क यातायात के 40 प्रतिशत भाग का वहन करते हैं
भारतीय राष्ट्रीय महामार्गो प्राधिकरण (एन.एच.ए.आई.) का प्रचालन 1995 में हुआ था। यह भूतल परिवहन मंत्रालय के अधीन एव स्वायत्तशासी निकाय है। इसे राष्ट्रीय महामार्गों के विकास, रख-रखाव तथा प्रचालन की जिम्मेदारी सौंपी गई है।
राष्ट्रीय महामार्ग विकास परियोजनाएँ
स्वर्णिम चतुर्भुज
परियोजनाः इसके अंतर्गत 5,846 कि.मी. लंबी 4/6 लेन वाले उच्च सघनता के यातायात गलियारे शामिल हैं जो देश के चार विशाल महानगरों-दिल्ली-मुंबई-चेन्नई-कोलकात्ता को जोड़ते हैं।
उत्तर-दक्षिण तथा पूर्व-पश्चिम गलियाराः उत्तर-दक्षिण गलियारे का उद्देश्य जम्मू व कश्मीर के श्रीनगर से तमिलनाडु के कन्याकुमारी (कोच्चि-सेलम पर्वत स्कंध सहित) को 4,016 कि.मी. लंबे मार्ग द्वारा जोड़ना है। पूर्व एवं पश्चिम गलियारे का उद्देश्य असम में सिलचर से गुजरात में पोरबंदर को 3,640 कि.मी. लंबे मार्ग द्वारा जोड़ना है।
राज्य महामार्ग
इन मार्गों का निर्माण एवं अनुरक्षण राज्य सरकारों द्वारा किया जाता है। ये राज्य की राजधानी से जिला मुख्यालयों तथा अन्य महत्वपूर्ण शहरों को जोड़ते हैं। ये मार्ग राष्ट्रीय महामार्गों से जुड़े होते हैं। इनके अंतर्गत देश की कुल सड़को की लंबाई का 4 प्रतिशत भाग आता है।
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जिला सड़के
ये सड़के जिला मुख्यालयों तथा जिले के अन्य महत्वपूर्ण स्थलों के बीच संपर्क मार्ग का कार्य करती हैं। इनके अंतर्गत देश-भर की कुल सड़कों की लंबाई का 14 प्रतिशत भाग आता है।
ग्रामीण सड़कें
ये सड़कें ग्रामीण क्षेत्रों को आपस में जोड़ने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होती हैं। भारत की कुल सड़को की लंबाई का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा ग्रामीण सड़कों के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
अन्य सड़कें
अन्य सड़कों के अंतर्गत सीमांत सड़कें एवं अंतर्राष्ट्रीय महामार्ग आते हैं। मई 1960 में सीमा सड़क संगठन (बी.आर.ओ.) को देश की उत्तरी एवं उत्तर-पूर्वी सीमा से सटी सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण सड़कों के तीव्र और समन्वित सुधार के माध्यम से आर्थिक विकास को गति देने एवं रक्षा तैयारियों को मजबूती प्रदान करने के उद्देश्य से स्थापित किया गया था। यह एक अग्रणी बहुमुखी निर्माण अभिकरण है। इसने अति ऊँचाई वाले पर्वतीय क्षेत्रों में चंडीगढ़ को मनाली (हिमाचल प्रदेश) तथा लेह (लद्दाख) से जोड़ने वाली सड़क बनाई है।
अंतर्राष्ट्रीय महामार्गों का उद्देश्य पड़ोसी देशों के बीच भारत के साथ प्रभावी संपर्कों को उपलब्ध कराते हुए सद्भावपूर्ण संबंधों को बढ़ावा देना है
रेल पविहन
भारतीय रेल जाल विश्व के सर्वाधिक लंबे रेल जालों में से एक है। भारतीय रेल की स्थापना 1853 में हुई तथा मुंबई (बंबई) से थाणे के बीच 34 कि.मी. लंबी रेल लाइन निर्मित की गई। देश में भारतीय रेल सरकार का विशालतम उद्यम है। भारतीय रेल जाल की कुल लंबाई 66030 कि.मी. है भारतीय रेल को 16 मंडलों में विभाजित किया गया है।
बड़ी लाइन- ब्रॉड गेज में रेल पटरियों के बीच की दूरी 1.616 मीटर होती है।
मीटर लाइन- इसमें दो रेल पटरियों के बीच की दूरी एक मीटर होती हैं।
छोटी लाइन- इसमें दो रेल पटरियों के बीच की दूरी 0.762 मीटर या 0.610 मीटर होती है।
जल परिवहन
भारत में जलमार्ग यात्री तथा माल वहन, दोनों के लिए परिवहन की एक महत्वपूर्ण विधा है। यह परिवहन का सबसे सस्ता साधन है
जल परिवहन दो प्रकार का होता है- (क) अन्तः स्थलीय जलमार्ग और (ख) महासागरी जलमार्ग।
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अंतः स्थलीय जलमार्ग
रेलमार्गों के आगमन से पहले यह परिवहन की प्रमुख विधा थी। भारत में 14,500 कि.मी. लंबा जलमार्ग नौकायन हेतु उपलब्ध है जो देश के परिवहन में लगभग 1प्रतिशत का योगदान देता है। देश में राष्ट्रीय जलमार्गों के विकास, अनुरक्षण तथा नियमन हेतु 1986 में अंतः स्थलीय जलमार्ग प्राधिकरण स्थापित किया गया था।
जलमार्ग | विस्तार | विशिष्टता |
रा.ज.मा.1 रा.ज.मा.2 | इलाहाबाद-हल्दिया विस्तार (1,620 कि.मी.)
सदिया-धुबरी विस्तार (891 कि.मी |
यह भारत के सर्वाधिक महत्वपूर्ण जलमार्गों में से एक है जो यंत्रीकृत नौकाओं द्वारा पटना तक साधारण नौकाओं द्वारा हरिद्वार तक नौकायन योग्य है।
ब्रह्रापुत्र नदी स्टीमर द्वारा डिब्रूगढ़ (1384 कि.मी.) तक नौकायान योग्य है
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महासागरीय मार्ग
भारत के पास द्वीपों सहित लगभग 7,517 कि.मी. लंबा व्यापक समुद्री तट है। 12 प्रमुख तथा 185 गौण पत्तन इन मार्गों को संरचनात्मक आधार प्रदान करते हैं।
भारत में भार के अनुसार लगभग 95 प्रतिशत तथा मूल्य के अनुसार 70 प्रतिशत विदेशी व्यापार महासागरीय मार्गों द्वारा होता है।
वायु परिवहन
वायु परिवहन एक स्थान से दूसरे स्थान तक गमनागमन का तीव्रतम साधन है। इसने यात्रा समय को घटाकर दूरियों को कम कर दिया है।
भारत में वायु परिवहन की शुरूआत 1911 में हुई, जब इलाहाबाद से नैनी तक की 10 कि.मी. की दूरी हेतु वायु डाक प्रचालन संपन्न किया गया था।
भारतीय वायु प्राधिकरण (एयर अथॉरिटी ऑफ इंडिया) भारतीय वायुक्षेत्र में सुरक्षित, सक्षम वायु यातायात एवं वैमानिकी संचार सेवाएँ प्रदान करने के लिए उत्तरदायी है। भारत में वायु परिवहन का प्रबंधन-एयर इंडिया द्वारा किया जाता है। अब अनेक निजी कंपनियों ने भी यात्री सेवाएँ देनी प्रारंभ कर दी हैं।
पवन हंस एक हेलीकॉप्टर सेवा है जो पर्वतीय क्षेत्रों में सेवारत है और उत्तर-पूर्व सेक्टर में व्यापक रूप से पर्यटकों द्वारा उपयोग में लाया जाता है।
तेल एंव गैस पाइप लाइन
पाइप लाइनें गैसों एवं तरल पदार्थों के लंबी दूरी तक परिवहन हेतु अत्यधिक सुविधाजनक एवं सक्षम परिवहन प्रणाली है।
एशिया की पहली 1157 कि.मी. लंबी देशपारीय पाइपलाइन (असम के नहरकटिया तेल क्षेत्र से बरौनी के तेल शोधन कारखाने तक) का निर्माण आई.ओ.एल. ने किया था।
पश्चिम भारत में एक दूसरे विस्तीर्ण पाइप लाइन का महत्वपूर्ण नेटवर्क-अंकलेश्वर-कोयली, मुंबई-हाई-कोयली तथा हजीरा-विजयपुर-जगदीशपुर का निर्माण किया गया।
संचार जाल
आरंभिक समय में ढ़ोल या पेड़ के खोखले तने को बजाकर, आग या धुएँ के संकेतों द्वारा अथवा तीव्र धावकों की सहायता से संदेश पहुँचाए जाते थे। उस समय घोड़े, ऊँट, कुत्ते, पक्षी तथा अन्य पशुओं को भी संदेश पहुँचाने के लिए प्रयोग किया जाता था।
डाकघर, तार, प्रिंटिंग प्रेस, दूरभाष तथा उपग्रहों की खोज ने संचार को बहुत त्वरित एवं आसान बना दिया। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विकास ने संचार के क्षेत्र में क्रांति लाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
संचार के साधन
वैयक्तिक सार्वजनिक
पत्रादि, दूरभाष (टेलीफोन), तार (टेलीग्राम), फैक्स, ई-मेल इंटरनेट आछि रेडियो, टेलीविजन, सिनेमा, उपग्रह (सेटेलाइट), समाचार पत्र, पत्रिकाएँ व पुस्तकें, जन सभाएँ/ गोष्ठियाँ एवं सम्मेलन आदि
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वैयक्तिक संचार तंत्र
वैयक्तिक संचार तंत्रों में इंटरनेट सर्वाधिक प्रभावी एवं अधुनातन है। यह उपयोगकर्ता को ई-मेल के माध्यम से ज्ञान एवं सूचना की दुनिया में सीधे पहुँच बनाने में सहायक होता है।
जनसंचार तंत्र
रेडियो
भारत में रेडियो का प्रसारण सन् 1923 में रेडियोक्लब ऑफबाम्बे द्वारा प्रारंभ किया गया था।
अल्पकाल में ही इसने देश-भर में प्रत्येक घर में जगह बना ली है। सरकार ने इस सुअवसर का लाभ उठाया और 1930 में इंडियन ब्रॉडकासि्ंटग सिस्टम के अंतर्गत इस लोकप्रिय संचार माध्यम को अपने नियंत्रण में ले लिया। 1936 में इसे ऑल इंडिया रेडियो और 1957 में आकाशवाणी में बदला दिया गया ऑल इंडिया रेडियो सूचना, शिक्षा एवं मनोरंजन से जुड़े विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों को प्रसारित करता है।
टेलीविजन (टी.वी.)
सूचना के प्रसार और आम लोगों को शिक्षित करने में टेलीविजन प्रसारण एक अत्यधिक प्रभावी दृश्य-श्रव्य माध्यम के रूप में उभरा है। टी.वी. सेवाएँ 1959 में प्रारंभ किया गया था। सन् 1976 में टी.वी. को ऑल इंडिया रेडियो (ए.आई.आर.) से विगलित कर दिया गया और इसे दूरदर्शन (डी.डी.) के रूप में एक अलग पहचान दी गई।
उपग्रह संचार
उपग्रह, संचार की स्वयं में एक विधा हैं और ये संचार के अन्य साधनों का भी नियमन करते हैं। उपग्रह से प्राप्त चित्रों का मौसम के पूर्वानुमान, प्राकृतिक आपदाओं की निगरानी, सीमा क्षेत्रों की चौकसी आदि के लिए उपयोग किया जा सकता है।
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