तत्वों का आवर्त वर्गीकरण | Periodic classification of Elements in Science

इस पोस्‍ट में हमलोग कक्षा 10 विज्ञान के पाठ 5 तत्वों का आवर्त वर्गीकरण (Periodic classification of Elements in Science) के सभी टॉपिकों के बारे में अध्‍ययन करेंगे।

Periodic classification of Elements in Hindi

Chapter 5 तत्वों का आवर्त वर्गीकरण

तत्‍वों के आवर्ती वर्गीकरण की आवश्यकता क्यों ?

प्रारंभ में जब बहुत ही कम तत्‍व ज्ञात थे तब उनके गुणों का अलग-अलग अध्ययन करने में कोई विशेष कठिनाई नहीं होती थी। किंतु जब एक-एक करके बहुत-से तत्‍वों का आविष्कार हुआ तो उनके गुणों का अलग-अलग अध्ययन करने में कठिनाई महसुस होने लगी। अब तक 111 तŸवों का आविष्कार हो चुका है।

तत्‍वों के वर्गीकरण के लाभ-

तत्‍वों के वर्गीकरण से निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं-

  1. इसमें तत्‍वों के गुणों का अध्ययन नियमित तरीके से किया जा सकता है।
  2. सभी तत्‍वों के गुणों का अलग-अलग अध्ययन करने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। किसी समुह के एक विशिष्ट तत्‍व के गुणों की जानकारी हो जाने पर उस समुह के अन्य तत्‍वों के गुणों का अनुमान लगाया जा सकता है।
  3. किसी समूह के तŸवों के गुणों में होनेवाले क्रमिक परिवर्तन को समझना आसान हो जाता है।
  4. इससे विभिन्न समुहों के तŸवों के पारस्परिक संबंध की जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

डोबरेनर के त्रियक-

19वीं शताब्दी के प्रारंभ में जर्मन रसायनज्ञ जॉन डोबरेनर ने रासायनिक दृष्टि से सदृश तŸवों को तीन-तीन समूहों में वर्गीकृत किया। ये समुह त्रियक कहलाते हैं। इन्होंने त्रियक के नियम की घोषणा की जिसके अनुसार-

   त्रियक के तत्‍वों को उनके परमाणु द्रव्यमानों के क्रम में सजाने पर मध्यवर्ती तत्‍व का परमाणु द्रव्यमान किनारे वाले शेष दोनों तत्‍वों के परमाणु द्रव्यमानों का औसत होता है।

इसे ‘डोबरेनर का त्रियक‘ भी कहते हैं।

न्यूलैंड्स का अष्टक नियम- यदि तत्‍वों को उनके बढ़ते हुए परमाणु द्रव्यमानों के क्रम में सजाया जाए तो किसी भी तत्‍व से प्रारंभ करने पर आठवें तत्‍व के गुण पहले तत्‍व के गुणों के समान होते हैं, जैसा कि संगीत का आठवाँ स्वर पहले स्वर के समान होता है।

अष्टक के दोष-

    न्यूलैंड्स का अष्टक नियम हल्के तत्‍वों (कैल्सियम तक) के लिए ही लागु होता है, भारी तŸवों के लिए नहीं, क्योंकि कैल्सियम के बाद प्रत्येक आठवें तत्‍व के गुण प्रथम तत्‍व के गुण से भिन्न होते हैं।

    न्यूलैंड्स का अनुमान था कि प्रकृति में सिर्फ 56 तत्‍व ही हैं और आगे चलकर अन्य तत्‍वों का आविष्कार नहीं होगा। किंतु, यह अनुमान गलत निकला। आगे चलकर अन्य बहुत-से नए तत्‍वों के आविष्कार हुए जिनके आचरण अष्टक नियम के प्रतिकुल थे।

    अक्रिय गैसों का आविष्कार हो जाने पर नवम् तत्‍व प्रथम तत्‍व के समान गुण वाला होता है, न कि आठवाँ।

मेंडलीव का आवर्त नियम-

न्यूलैंड्स के अष्टक नियम से प्रेरित होकर 1869 में रूसी रसायनज्ञ दमित्री मेंडलीव ने तत्‍वों के भौतिक और रासायनिक गुणों का गहन अध्ययन करके तत्‍वों के वर्गीकरण की एक नई प्रणाली विकसित की। तत्‍वों के उनके बढ़ते हुए परमाणु द्रव्यमानों के क्रम में सजाकर उन्होंने देखा कि

  1. तत्‍वों के गुणों में क्रमिक परिवर्तन होता है,
  2. तत्‍वों के एक निश्चित संख्या के बाद लगभग समान गुणवाले तŸव पाए जाते हैं।

   अपने निष्कर्षों के आधार पर मेंडलीव ने एक नियम का प्रतिपादन किया जिसे मेंडलीव का आवर्त नियम कहते हैं।

मेंडलीव के आवर्त नियम के अनुसार-

   तत्‍वों के भौतिक व रासायनिक गुण उनके परमाणु द्रव्यमानों के आवर्तफलन होते हैं, दूसरे शब्दों में यदि तŸवों को उनके बढ़ते हुए परमाणु द्रव्यमानों के क्रम में सजाया जाए तो एक निश्चित संख्या के बाद समान गुणवाले तत्‍व पाए जाते हैं।

मेंडलीव की आवर्त सारणी की मुख्य विशेषताएँ-

  1. वर्ग और उपवर्ग

   आवर्त सारणी की उदग्र स्तंभों को वर्ग कहते हैं। इन्हें रोमण अंकों द्वारा निरूपित किया गया है। प्रत्येक वर्ग को । और ठ , दो उपवर्गों में बाँटा गया है।

  1. आवर्त

    आवर्त सारणी की क्षैतिज कतारें आवर्त कहलाती हैं। सारणी में 1 से लेकर 7 तक कुल सात आवर्त हैं।

मोसले का आवर्त नियम-

   तत्‍वों के भौतिक एवं रासायनिक गुण उनकी परमाणु संख्याओं के आवर्तफलन होते हैं।

   मोसले ने आधुनिक आवर्त सारणी का निमार्ण परमाणु द्रव्यमान पर नहीं, बल्कि परमाणु संख्याओं के आधार पर किया।

    परमाणु संख्या के आधार पर तत्‍वों को सजाकर आवर्त सारणी को संशोधित रूप में प्रस्तुत किया जिसे आधुनिक आवर्त सारणी कहते हैं। इसे आवर्त सारणी का दीर्घ या वृहद रूप भी कहते हैं।

आधुनिक आवर्त सारणी का विवरण

1.आधुनिक आवर्त सारणी में तत्‍वों को उनकी बढ़ती हुई परमाणु संख्या के क्रम में सजाया गया है।

2 इसमें कुल सात आवर्त हैं।

  1. आधुनिक आवर्त सारणी में लैंथेनाइड्स एवं ऐक्टिनाइड्स को छोड़कर 18 उदग्र स्तंभ है। ये 1, 2, 3, 4, ….., 18 संख्याओं द्वारा व्यक्त किए गए हैं।
  2. इस आवर्त सारणी के नीचे दो कतारों में लैथेंनाइड्स और ऐक्टिनाइड्स हैं। ये वर्ग 3 के सदस्य हैं।

लैंथेनाइड्स : La(57), Ce (58) – Lu(71)

ऐक्टिनाइड्स : Ac (89), Th (90) – Lr (103)

    इस आवर्त सारणी को चार ब्लॉकों में बाँट दिया गया है। ये चार ब्लॉक हैं- s, p, d और f

आवर्त सारणी की विशेषताएँ-

  1. इलेक्ट्रॉनिक विन्यास- किसी वर्ग-विशेष के सभी तŸवों के बाह्य इलेक्ट्रॉनिक विन्यास समान होते हैं, अर्थात सभी तŸवों के परमाणुओं में संयोजी इलेक्ट्रॉनों की संख्या समान होती है।
  2. संयोजकता- किसी वर्ग के सभी तŸवों की संयोजकता समान होती है।
  3. परमाणु का आकार या त्रिज्या- आवर्त सारणी के किसी वर्ग में ऊपर से नीचे आने पर परमाणु का आकार बढ़ता जाता है।
  4. धातुई गुण- किसी वर्ग में ऊपर से नीचे आने पर तŸव का धातुई गुण बढ़ने लगता है।
  5. भौतिक गुण- किसी वर्ग में ऊपर से नीचे आने पर धातुई तŸवों के भौतिक गुण (द्रवनांक, क्वथनांक आदि) क्रमशः घटते जाते हैं, किंतु घनत्व में बढ़ने की प्रवृति होती है।

वर्ग में ऊपर से नीचे आने पर अधातुओं के भौतिक गुण क्रमशः बढ़ते जाते हैं।

आधुनिक आवर्त सारणी के दोष-

   आधुनिक आवर्त सारणी में मेंडलीव की आवर्त सारणी के अधिकांश दोष दूर कर दिए गए हैं, फिर भी इसमें निम्नलिखित दोष रह गए हैं-

  1. हाइड्रोजन का स्थान- इस आवर्त सारणी में भी मेंडलीव की सारणी की भाँति हाइड्रोजन का स्थान अनिर्णित है।
  2. हीलियम का स्थान- इलेक्ट्रॉनिक विन्यास के अनुसार हीलियम का स्थान वर्ग 2 में क्षारीय मृदा धातुओं के साथ होना चाहिए था, किंतु इसे उत्कृष्ट गैसों के साथ वर्ग 18 में रख दिया गया है।

    आवर्त सारणी के वर्ग 0 या वर्ग 18 वाले तŸव गैस है जिन्हें उत्कृष्ट गैसें कहते हैं। ये सभी तŸव रासायनिक दृष्टि से अक्रिय होते हैं।

    वर्ग 1 के तत्‍व क्षार धातु कहलाते हैं।

    वर्ग 2 के तत्‍व क्षारीय मृदा धातु कहलाते हैं।

    वर्ग 17 के तत्‍व हैलोजन्स कहलाते हैं।

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