संस्कृत कक्षा 10 राष्‍ट्रस्‍तुति ( राष्‍ट्र की प्रार्थना ) – Rastrastuti in Hindi

इस पोस्‍ट में हम बिहार बोर्ड के वर्ग 10 के संस्कृत द्रुतपाठाय (Second Sanskrit) के पाठ 17 (Rastrastuti) “ राष्‍ट्रस्‍तुति ( राष्‍ट्र की प्रार्थना ) ” के अर्थ सहित व्‍याख्‍या को जानेंगे।

Rastrastuti

17. राष्‍ट्रस्‍तुति

     अखण्ड राष्ट्रदेवं स्वं, नमामो भारतं दिव्यम् ।
नगेन्द्रः सैनिको भूत्वा, बलिष्ठो विस्तृतताकार ।
अरिभ्यो दुष्टवायुभ्यः, स्वदेशं त्रायते नित्यम् ॥ अखण्डं ….
  

  त्रिवृत्तः सागरः शिष्टो, विनीतः सेवको भूत्वा ।
    पदप्रक्षापालनं कुर्वन्, विधत्ते वन्दनं पुष्पम् ॥ अखण्डं ……

वहन्त्यः स्नेहजलधाराः, सुनद्यः मातृका भूत्वा।
स्ववान् पालवन्त्यस्ताः ददत्यः श्यामलं शश्यम् । अखण्डं…..

    समधिकः स्वर्गतो रम्यः, स्वभारतवर्ष भूभागः ।
    निवास कर्तुमिच्छन्तः, सुदेवाः सन्ति यत्रत्यम् ।। अखण्डं……

प्रथमतो ज्ञानदीपो चैः, प्रज्वलितो भारतीयास्ते।
जगद्गुरवो हि संपूज्या, तदनु शिक्षितमहो विश्वम् ।। अखण्ड …….
  

  किमधिकं भाषणं कुर्मः, स्वदेश ! त्वत्कृते नूनम् ।
    महत्पुण्येन हि लब्धं, स्जन्म भारते धन्यम् ॥ अखण्ड……

अतः प्राणार्पणं कृत्वा, तथा सर्वस्वमपि हित्वा ।
सुरक्ष्यं भारतं श्रेष्ठं, स्वराष्ट्र दैवतं नित्यम् ॥ अखण्डं ….

अर्थ- अपने श्रेष्ठ राष्ट्ररूपी देवता अखण्ड भारत को हमलोग प्रणाम करते हैं। विस्तृत आकार वाला बलवान हिमालय सैनिक बनकर दुश्मनों और गन्दी हवाओं से अपने देश को सदैव बचाता है। उस श्रेष्ठ राष्ट्ररूपी देवता अखण्ड भारत को हमलोग प्रणाम करते हैं।

शिष्ट और विनम्र सेवक बनकर सागर तीन ओर से जिसका पैर प्रक्षालन कर रहा है तथा पुष्प और वन्दना से पूजित होने वाला श्रेष्ठ राष्ट्रारूपी देवता, अखण्ड-भारत को हमलोग प्रणाम करते हैं।

अच्छी-अच्छी नदियाँ माताएं बनकर अपने स्नेहरूपी जलधारा के साथ बहती हैं वे अपने पुत्रों की हरी-हरी फसल देकर पालन करती हैं। जहाँ उस श्रेष्ठ राष्ट्ररूपी देवता अपने अखण्ड भारत को हमलोग प्रणाम करते हैं।

स्वर्ग से भी जो अधिक रमणीय है अपना भारतवर्ष का भू-भाग । यहाँ अच्छे-अच्छे देवता लोग भी निवास करना चाहते हैं। हमलोग अपने राष्ट्रदेव, अखण्ड, श्रेष्ठ भारत को प्रणाम करते हैं।

वे भारतीय लोग थे जिन्होंने सबसे पहले ज्ञान के दीप को जलाया तथा जगद् गुरु के तरह पूजित हुए । सारा संसार इसका अनुकरण कर सिख लिया। उस श्रेष्ठ राष्ट्रदेव अखण्ड भारत को हमलोग प्रणाम करते हैं।

हे मेरे देश । आपके लिए मैं अधिक क्या कहूँ। अवश्य हम धन्य हैं जो बहुत बड़ी पुण्य प्रभाव से भारत में अपना जन्म प्राप्त किया है। उस श्रेष्ठ राष्ट्रदेव अखण्ड भारत को हमलोग प्रणाम करते हैं।

अतः प्राण को न्योछावर कर तथा अपना सब कुछ त्याग कर भी अपने श्रेष्ठ राष्ट्र देवता भारत को सदैव सुरक्षित रखुँगा। श्रेष्ठ राष्ट्रदेव अखण्ड भारत को हमलोग प्रणाम करते हैं।

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