संस्कृत कक्षा 10 कन्‍याया: पतिनिर्णय: ( पति के लिए कन्‍या का निर्णय ) – kanyaya patinirnirnay in Hindi

इस पोस्‍ट में हम बिहार बोर्ड के वर्ग 10 के संस्कृत द्रुतपाठाय (Second Sanskrit) के पाठ 16 (kanyaya patinirnirnay) “ कन्‍याया: पतिनिर्णय: ( पति के लिए कन्‍या का निर्णय ) ” के अर्थ सहित व्‍याख्‍या को जानेंगे।

kanyaya patinirnirnay

                               kanyaya patinirnirnay

कस्मिंश्चित् ग्रामे कश्चन् पण्डितः निवसति स्म । तस्मिन् ग्रामे सः सर्वमान्यः आसीत् । तस्य एका सर्वगुणसम्पन्ना कन्या आसीत् । आशैशवात् अतीव स्नेहसमादरसहिततया सा वर्धिता आसीत् । क्रमशः तस्याः वयोवृद्धिः अभवत् । तस्याः परिणयार्थं बहवः प्रस्तावाः आगताः । किन्तु उच्याकाक्षिणी सा कन्या प्रतिज्ञाबद्धा आसीत् यत् सर्वे यं प्रशंसन्ति यैश्च शक्तिशाली भवति, तमेव अहं वणोमि इति ।

एकदा तस्य राजस्य महाराजः हस्तिपृष्ठं समारुहय तदग्रामाभ्यन्तरं समागतः । पण्डितल्य कन्या राजानम् अपश्यत् । समीपस्थाः सर्वे ग्रामवासिनः तत्र आगत्य राजानं नमस्कृतवन्तः ।

उच्चाकाक्षिणी सा कन्या ज्ञातवती यद् राजा एव महाशक्तिशाली न्यायवांश्च इति । अतः सा मानसि एव तं पतिम् अचिन्तयत् ।

यदा महाराजः स्वकर्तव्यं समाप्य हस्तिपृष्ठं समारूहय राजधानी प्रत्यगच्छत् तदा कन्या अषि तम् अनुसृत्य गतवती । पथि महाराजः स्वस्य गुरुम् अपश्यत् । सः गुरुः साधुवषम आसीत् । तं दृष्ट्वा राजा सहसा हस्तिपृष्ठाद् अवतीर्य सद्गुरो चरणस्पर्शम् अका पण्डितस्य कन्या एतत् दृष्ट्वा अचिन्तयत् यद वस्तुतः राजा नैव सर्वश्रेष्ठ व्यक्तिः तदा तम्य गुरुः एव श्रेष्ठः अस्ति, यः साधुवेषधारी इति। अतः सा राजानं विहाय अनुसरणं कुर्वती वनं गतवती । किञ्चिदरं गतौ तौ शिवमन्दिरम् एकं प्रविष्टवन्त महादेवस्य मूर्तः पुरतः साधुगुरुः दण्डवत् प्रणामम् अकरोत् । पण्डितकन्या एतद् १ चिन्तिावती यत् साधोरपि परतरः अस्ति देवतधिदेवः अयं महादेवः शिवः इति ।

अतः सा महादेवमेव पतिं भावयन्ति तस्मिन एव मन्दिो वासं कृतवती । किञ्चित कश्चन् कुकुरः तत् मन्दिरम् आगत्य महादेवस्य परतः स्थापितं नैवेदयं तस्य । प्रसादं च खादितवान्।

एतत् दृष्ट्वा पण्डितस्य कन्या अचितन्यत् यत् एषः कुक्कुरः एव महादेवात् अपि श्रेष्ठः, भगवतः महादेस्य विषये अन्यः को वा एतादृशं व्यवहारं कर्तुं समर्थः स्यात् इत । अतः सा मन्दिरवासं परित्यज्य तं कुक्कुर अनुसृतवती । सः कुक्कुरः तु धावन् गत्या कस्यचिद् ग्रामस्य पण्डितस्य गृहं प्रविचष्टवान्। पण्डितस्य सुकुमारः तरुणः पुत्रः गृहस्य पुरत: पीठस्य उपरि उपविश्य चिन्तारतः आसीत् । कुक्कुरः तस्य पाश्वं गत्वा सस्नेह तस्य पादलेहनम् आरब्धवान् एतद् दृष्ट्वा पण्डितस्य पुत्री चिन्तितवती यत् पण्डितस्य युवकपुत्रः एव यतावता मया दृष्टेभ्यः सर्वेभ्यः अपि श्रेष्ठः । अतः एषः एव मम पति भवितुं योग्यः अस्ति इति।

अन्ततोगत्वा पण्डितस्य पुत्रेण सह तस्याः पण्डितकन्यायाः परिणयः अभवत् । एवम् उच्चाकाक्षिण्याः तस्याः कन्यायाः मनसः इच्छा परिपूर्णतां गता । सा सुखेन दीर्घकालं यावत् जीवनम् अयापयत्।

अर्थ- किसी गाँव में कोई पंडित रहता था। उस गाँव में वह सर्वमान्य था । उसको सर्व गुण सम्पन्न एक कन्या थी। बचपन से ही स्नेह और समादर भाव से वह बढ़ी थी । क्रम से उसका उम्र बढ़ा। उसकी शादी के लिए अनेक प्रस्ताव आये। किन्तु उच्च आकांक्षा वाली वह कन्या प्रतिज्ञाबद्ध थी कि सभी जिसकी प्रशंसा करेगा और जो शक्तिशाली होगा उसी को वरण करूंगी।

एक दिन उसके राज्य का महाराजा हाथी पर चढ़कर उस गाँव में आया । पण्डित की कन्या ने राजा को देखी। समीप में स्थित सभी ग्रामवासियों ने वहाँ जाकर राजा को नमस्कार किया।

उच्‍च आकांक्षा वाली वह कन्या समझी कि- राजा ही महाशक्तिशाली और न्यायवान हैं। अतः वह मन में ही उसको पति मान ली।
जब महाराज ने अपना काम समाप्त कर हाथी पर चढ़कर राजधानी की ओर लौटे, तब कन्या भी उनके पीछे-पीछे गई। रास्ता में महाराज ने अपने गुरु को देखा। वह गुरु साधुवेशधारी थे। उनको देखकर राजा जल्दी में हाथी के पीठ पर से उतरकर सद्गुरु के चरण स्पर्श किये । पण्डित की कन्या यह देखकर सोची कि— वस्तुतः राजा सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति नहीं है उसकी अपेक्षा उसका गुरु ही श्रेष्ठ है। जो साधुवेश धारण किये हुए हैं। अत: वह राजा को छोड़कर साधु के पीछे पीछे चलती हुई वन में गई। थोड़ा दूर जाने पर एक शिव मंदिर में दोनों प्रवेश कर गये। वहाँ महादेव की मूर्ति के सामने साघु गुरु ने दण्डवत् प्रणाम किया। पण्डित कन्या यह देखकर सोची कि साधु से भी बढ़कर है यह देवताओं के देवता महादेव शिव।

अतः वह महादेव को ही पति मानकर उसी मंदिर में वास करने लगी। कुछ समय के बाद कोई कुत्ता उस मंदिर में आकर महादेव के सामने रखा हुआ नैवेद्य और उसके समीप स्थित प्रसाद भी खा लिया।

यह देखकर पण्डित की कन्या सोची कि— यह कुत्ता महादेव से भी श्रेष्ठ है। भगवान महादेव के विषय में अन्य कौन ऐसा व्यवहार करने में समर्थ हो सकता है।
इसके बाद वह मंदिर में रहना छोड़कर उस कुत्ता के पीछे-पीछे चलने लगी। वह कुता दौड़ता हुआ किसी गांव के पण्डित के घर में प्रवेश कर गया।

पण्डित का सुकुमार नवयुवक पुत्र घर के आगे पीढ़ा पर बैठकर चिन्ता में लगा था। कुत्ता उसके समीप जाकर स्नेह से उसका पैर चाटने लगा। यह देखकर पण्डित की कन्या सोची कि पण्डित का युवक पुत्र ही इन सबों में मेरे दृष्टि से श्रेष्ठ है । इसलिए यह ही मेरा पति होने योग्य है।’    अंत में जाकर पण्डित के पुत्र के साथ उस पंडित की कन्या का विवाह हुआ । इस प्रकार ऊँची आकांक्षा रखने वाले उस कन्या की मनोइच्छा पूरी हुई। वह सुख से लम्बे समय तक जीवन-यापन करने लगी।

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