13. Ravishashthi vratsav class 8 sanskrit | कक्षा 8 रविषष्ठी व्रतोत्सवः

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 8 संस्‍कृत के कहानी पाठ तेरह ‘रविषष्ठी व्रतोत्सवः’ (Ravishashthi vratsav class 8 sanskrit)’ के अर्थ को पढ़ेंगे।

Ravishashthi vratsav class 8 sanskrit

13. त्रयोदशः पाठः
रविषष्ठी व्रतोत्सवः

पाठ-परिचय-प्रस्तुत पाठ में छठ पर्व के विषय में बताया गया है। बिहार के त्योहारों में छठ का पर्व सबसे महत्वपूर्ण है। इसमें कठोर संयम उपवास तथा प्रकृति के सर्वाधिक तेजस्वी देवता सूर्य की पूजा की जाती है। यह पर्व किसी नदी, तालाब तथा जलाशय के किनारे मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि सूर्य की पूजा करने से लोग स्वस्थ रहते हैं। साथ ही, संतान लाभ के उद्देश्य से भी लोग श्रद्धा एवं विश्वास से यह त्योहार मनाते हैं।

प्राकृतिकपदार्थेषु सूर्यः सर्वाधिकः तेजस्वी आरोग्यप्रदश्च मन्यते । अनेन सर्वे जीताः प्राणिनः वनस्पतयः प्राणान् लभन्ते । अस्य उपयोगिता विचार्य देवरूपेण इमं पूजयन्ति जनाः । प्राचीनकालात् सूर्यः भगवान् इति पूज्यते । सूर्यस्य पूजने कश्चित् पुरोहितः मध्यस्थः न अपेक्षितः भवति इति अस्य विशिष्टता वर्तते । Ravishashthi vratsav class 8 sanskrit

कार्तिको मासः वर्षाशीतयोः मध्ये अवस्थितः । एवमेव चैत्रो मासः शीतग्रीष्मयोः सन्धिकालः । सन्धिस्थितयोः अनयोः मासयोः अनेके रोगाः ज्वरकासादयः प्रभवन्ति । तत्र रोगाणां विनाशाय उपवासः आवश्यक । उपवास. रविषठीव्रते अनिवार्यतया जायते । अतः अस्य व्रतस्य वैज्ञानिक महत्त्वं वर्तते । अपि च चैत्रमासे रविसप्तानि अन्नानि पच्यन्ते गोधूमादीनि । तेषां प्रयोगः अस्य व्रतस्य नैवेद्याय भवति । अतः चैत्रकालिकः व्रतोत्सवः ग्रामेषु प्रसिद्धः । कार्तिककालिकः व्रतोत्सवस्तु नगरेषु बहुधा आयोजितः । सर्वथापि जलाशयः अस्मिन् व्रतोत्सवे आवश्यकः तडागो वा नदी वा । सागरतटेष स्थिताः जनाः सागरेऽपि स्नात्वा अर्घ्यदानं कर्वन्ति ।

अर्थ-प्राकृतिक पदार्थों में सूर्य सबसे अधिक आत्मबल एवं आरोग्य प्रदान करने वाला माना जाता है। इससे सभी जीवित प्राणी और पेड़-पौधे जीवन प्राप्त करते हैं। इसी महत्व के कारण लोग इन्हें देवता के रूप में पूजा करते हैं। प्राचीनकाल से ही सूर्य की पूजा होती आ रही है। सूर्य की पूजा में किसी पुरोहित अथवा बिचौलिया की जरूरत नहीं पड़ती है, यही इस पूजा की विशेषता है। कार्तिक का महीना वर्षा और जाड़े के बीच आता हैं। इसी प्रकार चैत का महीना भी जाड़े तथा गर्मी के बीच आता है। दोनों महीनों के बीच इन महीनों में विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ ज्वरादि का प्रकोप होता है। उन रोगों से बचने के लिए उपवास रखना आवश्यक माना गया है। छठव्रत में उपवास अनिवार्य रूप से रखा ही जाता है। इसलिए इस व्रत का वैज्ञानिक महत्व है। और चैत मास में सूर्य की गर्मी से गेहूँ आदि अन्न पकते हैं। उन अन्नों का प्रयोग इस व्रत के नैवेद्य के लिए होता है। इसलिए चैत महीनों में यह व्रत गाँवों में प्रसिद्ध है। कार्तिक मास के व्रत अक्सर नगरों (शहरों) में मनाया जाता है। व्रत में किसी नदी, तालाब (जलाशय) आदि का होना आवश्यक होता है। सागर के किनारे रहने वाले लोग सागर में ही स्नान करके अर्घ्यदान (पूजन) करते हैं।

यस्मिन् मासे रविषष्ठीव्रतोत्सवः आयोजितः भवति परिवारे तस्य प्रथमदिवसादेव परिवारे अभक्ष्याः पदार्थाः वर्जिताः भवन्ति । शुक्लपक्षस्य चतुर्थदिवसः संयतः नाम क्रियाकलापः । तदा स्नात्वा पवित्रं सिद्धान्नम् ओदनादिकं पचन्ति, इष्टजनानपि भोजयन्ति वतिनः । वस्तुतः तस्मादेव दिवसात् संयमः प्रारभते । पञ्चमदिवसे एकवारमेव व्रतिनः पायसरोटिकयोः सूर्यास्तादनन्तरं भोजनं कुर्वन्ति । इष्टजनानपि भोजयन्ति । ततः षष्ठदिवसे सम्पूर्ण दिवसम् अनाहाराः वतिनः सायंकाले शूर्पेषु फलानि धारयित्वा दीपकं च प्रज्वाल्य सूर्याय अर्घ्यदानं कुर्वन्ति । इदं दृश्यं अतीव पवित्रं मनोहरं च । रात्रौ भूमौ शयित्वा वतिनः पुनः प्रातःकाले सप्तमदिवसे उदीयमानाय सूर्याय स्नानपूर्वकम् अर्घ्यदानं पूर्ववत् कुर्वन्ति । तदनन्तरं पारणं क्रियते । व्रतिनः स्वयं प्रसादग्रहणं कुर्वन्ति अपरेभ्यश्च प्रयच्छन्ति । इत्थं रविषष्ठी व्रतोत्सवः सूर्योपासनाया: महत्त्वपूर्णः अवसरः । वस्तुतः अत्र षष्ठीदेवीपूजनं सन्तानलाभाय, सूर्यपूजनम् आरोग्याय इति द्वयोः पूजनयोः मिश्रणरूपः व्रतोत्सवः । क्रमशः अस्य प्रसारः वर्धमानः दृश्यते। Ravishashthi vratsav class 8 sanskrit

अर्थ-जिस महीने में छठ व्रत मनाया जाता है, उस परिवार में प्रथम दिन से ही अभक्ष्य (मांस/मछली, प्याज-लहसून) भोजन बन्द कर दिया जाता है। शक्लपक्ष को संयत (नहाय-खाय) का काम होता है। उस दिन स्नान करके पवित्र साथ भात आदि पकाया जाता है और व्रती अपने लोगों को भी खिलाती है। वास्तव में उसी दिन से ही संयम-नियम आरंभ होता है। पंचमी तिथि को व्रती एकबार ही खीररोटी सूर्यास्त के बाद खाते हैं और अन्य लोगों को भी खिलाते हैं। उसके बाद पष्ठी तिथि को बिना कुछ भोजन किए व्रती संध्या समय सूप में पकवान और फल रखकर और दीप जलाकर सूर्य का पूजन करते हैं। यह दृश्य अति सुन्दर तथा पवित्र होता है। रात में व्रती जमीन पर सोकर फिर सप्तमी तिथि को उगते हुए सूरज को स्नान करके अर्घ्यदान करते हैं। उसके बाद अन्न ग्रहण (पारण) करते हैं। व्रती स्वयं भी प्रसाद खाती है और दूसरों को भी प्रसाद देती हैं। इस प्रकार छठ पर्व सूर्य उपासना का महत्वपूर्ण अवसर है। वास्तव में यह व्रत संतानप्राप्ति एवं आरोग्यता दोनों के लिए मनाया जाता है। धीरे-धीरे इसका प्रसार बढ़ता हुआ देखा जाता है। Ravishashthi vratsav class 8 sanskrit

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