13. Shakti or Kshama class 7 Saransh | कक्षा 7 शक्ति और क्षमा

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 7 हिन्‍दी के कविता पाठ तेरह ‘ Shakti or Kshama ( शक्ति और क्षमा )’ के प्रत्‍येक पंक्ति के अर्थ को पढ़ेंगे।

Shakti or Kshama class 7 Saransh

13 शक्ति और क्षमा
क्षमा, दया, तप, त्याग, मनोबल
सबका लिया सहारा,
पर नर-व्याघ्र, सुयोधन तुमसे
कहो कहाँ, कब हारा?
क्षमाशील हो रिपु समक्ष
तुम हुए विनत जितना ही,
दुष्ट कौरवों ने तुमको
कायर समझा उतना ही ।
क्षमा शोभती उस भुजंग को
जिसके पास गरल हो,
उसको क्या, जो दंतहीन,
विषहीन, विनीत, सरल हो

सरलार्थ-भीष्म युधिष्ठिर को समझाते हुए कहते हैं कि क्षमा, दया, तपस्या, त्याग, नैतिक साहस सबका तो तुमने सहारा लिया (सभी उपाय तो तुमने किये) लेकिन मनुष्यों में बाघ के समान हिंसक दुर्योधन कहाँ कभी तुम्हारे आगे झुका? शत्रु के सामने क्षमाशील बनकर तुम जितने ही नम्र हुए, दुष्ट कौरवों ने तुम्हें उतना ही डरपोक समझा।
क्षमा तो उस सर्प के लिए सराहनीय है जिसके पास विष भी हो। जिस साँप के ‘ पास दाँत ही न हो, विष भी न हो, वह साँप यदि अहिंसा या क्षमा का व्रत धारण कर ले, तो उसकी क्षमा को कौन सराहेगा? वह तो उसकी लाचारी होगी। Shakti or Kshama class 7 Saransh

तीन दिवस तक पंथ माँगते
रघुपति सिन्धु किनारे,
बैठे पढ़ते रहे,
अनुनय के प्यारे-प्यारे।
उत्तर में जब एक नाद भी
उठा नहीं सागर से;
उठी अधीर धधक पौरुष की
आग राम के शर से ।
सिन्धु देह धर ‘त्राहि-त्राहि’
करता आ गिरा शरण में,
चरण पूज, दासता ग्रहण की
बँधा मूढ़ बंधन में।

सरलार्थ–उदाहरण देते हुए भीषण आगे कहते हैं कि राम लंका-विजय के लिए समद्र पर पुल बाँधना चाहते थे। समुद्र उनके कार्य में बाधा डाल रहा था। तीन दिनों तक राम समुद्र से प्रार्थना करते रहे। किन्तु समुद्र पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। यह हठी एकदम मौन रहा। ____ तब राम को धैर्य न रहा। उनका पुरुषार्थ जग उठा। उन्होंने धनुष पर वाण चढ़ाया। समुद्र को सुखा डालने के लिए वाणं से ज्वालाएँ निकलने लगीं।
यह देखते ही समुद्र घबड़ा-कर शरीर धारण कर ‘रक्षा करें, रक्षा करें’ कहता राम की शरण में आ गिरा। उसने राम के चरण पूजे। वह राम का सेवक बना और उस पर पुल बाँध दिया गया। Shakti or Kshama class 7 Saransh

सच पूछो, तो शर में ही
वसती है दीप्ति विनय की,
संधि-वचन संपूज्य उसी का
जिसमें शक्ति विजय की ।
सहनशीलता, क्षमा, दया को
तभी पूजता जग है,
बल का दर्प चमकता उसके
पीछे जब जगमग है।     

 
सरलार्थ–रामचरितमानस की कथा से उदाहरण देते हुए भीष्म युधिष्ठिर से कहते हैं कि सच तो यह है कि वीरता में ही नम्रता की आभा निवास करती है। शक्ति है तभी नम्रता का प्रभाव भी हो सकता है। जिसमें युद्ध जीतने की शक्ति है उसी का सुलहप्रस्ताव भी आदर पाता है। जिसके पास शक्ति है, उसी की क्षमा, दया, सहनशीलता आदि गुणों को संसार पूजता है।

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