17. Sona class 7 Saransh in Hindi | कक्षा 7 साेना

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 7 हिन्‍दी के कहानी पाठ सतरह ‘ Sona ( साेना )’ के सारांश को पढ़ेंगे। जिसके लेखक महादेवी वर्मा है।

Sona class 7 Saransh in Hindi

17. साेना
(महादेवी वर्मा)

पाठ का सारांश- प्रस्तुत पाठ ‘सोना’ महादेवी वर्मा द्वारा लिखित निबंध है। इसमें हिरण शावक सोना का रेखाचित्र अंकित किया गया है। एक बार महादेवी बद्रीनाथ की यात्रा पर गईं। उनकी अनुपस्थिति में वह बावली-सी हो गई । कोई मांसलोभी इसे मार न दे, इस डर से माली ने उसे रस्सी में बाँध दिया था। एक दिन अपनी बंधी अवस्था से बेखबर सोना ने छलांग लगाई। रस्सी छोटी थी इसलिए आखिरी सीमा तक पहुँचने के बाद वह मुँह के बल गिर पड़ी और उसका अन्त हो गया। Sona class 7 Saransh in Hindi
सोना की मौत की बात जानकर लेखिका ने निश्चय किया कि अब हिरन नहीं पालूँगी, न जब स्व. धीरेन्द्रबसु की पौत्री ने लिखा कि उसे अपने पड़ोस में एक हिरन-शावक मला है। उसे अब घूमने-फिरने के लिए अधिक विस्तृत स्थान चाहिए। ऐसी जगह आपके हाँ ही यह संभव है। कृपा करके आप इसे स्वीकार कर लें। मैं आपकी आभारी रहूँगी। इसी क्रम में लेखिका को सोना की याद आई, क्योंकि सोना भी इसी प्रकार दुधमुँही अवस्था में आई थी। लेकिन समय बीतने के साथ-साथ उसका रूप निखरने लगा था। एक साल बीतते-बीतते उसके पीले-पीले रोएँ कुछ गाढ़े हो गए और उसमें ताँबे जैसी चमक आने लगी। सोना सचमुच सोना हो उठी। उसकी पीठ में भराव आ गया और टाँगें सुडौल हो चली तथा खरों में कालेपन की चमक आ गई। गर्दन लचीली हो चली और आँखों में आकर्षण आ गया। कज्जल कोरों के बीच उसकी नीली चमकीली दृष्टि ऐसी लगने लगी. जैसे. नीलम के बल्बों से बिजली की चमक आ रही हो। उसकी मासम दृष्टि आत मोहक थी। धीरे-धीरे उसने सब कुछ सीख लिया। रात में वह लेखिका के पलंग के पाए से सटकर बैठना सीख लिया। अंधेरा होते ही वह उनके पलंग के पास आ बैठती तथा सवेरा होते ही बाहर निकल जाती। जहाँ तक क्रियाकलाप का संबंध है, सोना का सब कुछ निश्चित था और विलक्षण भी। दूध पीकर भीगे चने खाकर आवास के प्रांगण में चौकड़ी भरती और उसके बाद छात्रावास का निरीक्षण करने चल देती। वहाँ किसी से पूजा के बताशे खाती तो कोई छात्रा उसके गले में रिबन बाँध देती तो कोई टीका लगा. देती। उसके बाद सोना मेस में पहुँच जाती । वहाँ खाने-खिलाने का दौर चलता। जलपान के बाद सोना घास के मैदान में पहुँचती । वहाँ घास-तृण चरती और लोट-पोट के पश्चात् लेखिका के भोजन के समय उनसे सटी खड़ी रहती और फिर छलांग लगाकर उन्हें प्रफुल्लित करती। लेखिका के बैठे रहने पर वह उनकी साड़ी का छोर मुँह में भर लेती तो कभी पीछे खड़ा होकर चोटी ही चबा डालती। Sona class 7 Saransh in Hindi
लेखिका का मानना है कि पशु मनुष्य के निश्छल स्नेह से परिचित होते हैं। उनको ऊँची-नीची सामाजिक स्थितियों से नहीं होता, इस सच्चाई का पता लेखिका को सोना से अनायास प्राप्त हो गया। कुत्ता अपने स्वामी के मनोभाव से परिचित होता है, किंतु हिरन इस बात से अनजान होता है। वह अपने पालक की दृष्टि से दृष्टि मिलाकर खड़ा रहता है। वह केवल स्नेह पहचानता है। इसी बीच फ्लोरा ने चार बच्चों को जन्म दिया। फ्लोरा अपने बच्चों के संरक्षण में व्यस्त हो गई तो सोना अपनी सखी को खोजने लगी। एक दिन फ्लोरा कहीं बाहर गई और सोना उस कोठरी में लेट गई, जिसमें फ्लोरा ने बच्चे दिए थे। अक्सर वह फ्लोरा के बच्चों के साथ घूमने निकलती। लेखिका उसके । विशेष स्नेह का हकदार थी। ..
लेखिका जब बद्रीनाथ से वापस लौटी, तब बिछुड़े हुए पालतू जीवों में कोलाहल होने लगा। फ्लोरा के बच्चे मेरे चारों ओर परिक्रमा करके हर्ष की ध्वनियों से मेरा स्वागत करने लगे। जब सोना के बारे में पूछा तो ज्ञात हुआ कि छात्रावास के सन्नाटे और मेरे , अभाव के कारण सोना इतनी बेचैन हो गई थी कि वह लेखिका की खोज में बाहर निकलने लगी, इसलिए उसे रस्सी में बाँध दिया। एक दिन सोना काफी ऊँचाई तक छलांग लगा हो । रस्सी में बँधे होने के कारण वह औंधे मुँह आ गिरी। फलत: उसकी मौत हो गई। यह सुनकर लेखिका ने भविष्य में हिरण न पालने का निश्चय कर लिया।

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