Sudama Charit Class 10 Non Hindi – सुदामा चरित

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड के वर्ग 10 के अहिन्‍दी (Non Hindi) के पाठ 22 (Sudama Charit) “सुदामा चरित” के व्‍याख्‍या को जानेंगे। इसके लेखक नरोत्तम दास है। इस पाठ में कृष्‍ण और सुदामा के दोस्‍ती की गहराई को दर्शाया गया है।

sudama charitra
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पाठ परिचय- सुदामा और कृष्ण बाल-सखा थे। सुदामा बहुत गरीब थे। भिक्षा माँगकर भोजन करते थे और हरि-भजन में लीन रहते थे। उनकी पत्नी को अपनी दरिद्रता पर बड़ा क्षोभ था। उन्होनें दरिद्रता दूर कराने के लिए सुदामा को द्वारिकाधीश श्रीकृष्ण के पास जाने को विवश कर दिया। श्रीकृष्ण अपने दीन मित्र सुदामा को अपार धन देकर जिस उदारता एवं मित्रभाव का परिचय दिया वह अद्वितीय है।

पाठ का सारांश (Sudama Charit)

प्रस्तुत कविता ‘सुदामा चरित‘ के लेखक नरोत्तम दास है। कवि ने इस कविता के माध्यम से कृष्ण-सुदामा की मित्रता की सराहना की है।

सुदामा कृष्ण के द्वार पर खड़े हैं। उनकी धोती फटी हुई है। पाँव में जुता नहीं है। कृष्ण के घर का पूछताछ कर रहे हैं और अपना नाम सुदामा बताते हैं।

द्वारपाल ने कृष्ण को सुदामा के आने की सूचना दी। कृष्ण राज काज छोड़कर द्वार पर भागे। वे सुदामा से लिपट गये। श्रीकृष्ण ने कहा कि तुम्हारे पाँव फटे हैं। तुम इतने दुख में थे फिर क्यों न आए। उन्होंने सुदामा का पाँव अपने आँसुओं में धो डाले। उन्होंने कहा कि गुरुमाता के द्वारा दिए गये चना को तुम अकेले खा गए, हमें नहीं दिए।

लगता है तुम्हारी आदत अभी तक नहीं गई है। तुम भाभी के भेजे चावलों के साथ उसी तरह का व्यवहार कर रहे हो।

सुदामा कृष्ण के पास कुछ दिन रहने के बाद जब घर पहुँचे। उन्होंने अपनी मड़ैया के स्थान पर एक विशाल भवन देखा। लोगों से झोपड़ी के बारे में पूछा लेकिन उन्हें जवाब नहीं मिला। उन्हें ज्ञात हुआ कि कृष्ण ने बिना मांगे अपार धन दे दिया।

इस प्रकार, श्रीकृष्ण अपने मित्र सुदामा को अपार धन देकर जिस उदारता एवं मित्रभाव का परिचय दिया वह अद्वितीय है।

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