Rah Bhatke Hiran Ke Bachhe Ko Class 10 Non Hindi – राह भटके हिरन के बच्चे को

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड के वर्ग 10 के अहिन्‍दी (Non Hindi) के पाठ 23 (Rah Bhatke Hiran Ke Bachhe Ko) “राह भटके हिरन के बच्चे को” के व्‍याख्‍या को जानेंगे। इस पाठ में एक माँ को अपने बच्‍चे से प्रेम को दर्शाया गया है।

rah bhatke hiran ke bachhe ko

पाठ परिचय- इस कविता में हिरन का बच्चा राह भटक गया है। उसके दुख को देखकर लेखक भी बहुत दुखी हो जाते हैं।

पाठ का सारांश (Rah Bhatke Hiran Ke Bachhe Ko)

प्रस्तुत कविता ‘राह भटके हिरण के बच्चे को‘ डा० नि० वियतनाम के द्वारा रचना किया गया है। इस कविता का अनुवाद राजेन्द्र प्रसाद मिश्र के द्वारा किया गया है।

हिरण का बच्चा माँ से अलग होकर पहाड़ पर रो रहा है। कवि उस हिरण के बच्चे के बारे में सोच कर दुखी हो जाते हैं कि वह कितना वेदना सह रहा है।

कवि कहते हैं कि बांस के वन तुझे लोरी सुना रहे हैं। आकाश में तारे जगमग कर रहे हैं। नीचे कितने नरम पत्ते पड़े हैं। तुम बेहिचक सो जाओ तुम्हारी माँ कल जरूर मिलेगी।

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