कक्षा 10 भूगोल बिहार : कृषि एवं वन संसाधन – Bihar Krishi evam Van Sansadhan 10th Geography

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड के कक्षा 10 के भूगोल के इकाई पाँच का पाठ ‘बिहार : कृषि एवं वन संसाधन’ (Bihar Krishi evam Van Sansadhan) के महत्‍वपूर्ण टॉपिक को पढ़ेंगें।

Bihar Krishi evam Van Sansadhan
Bihar Krishi evam Van Sansadhan

5. बिहार : कृषि एवं वन संसाधन
कृषि एवं वन संसाधन (Bihar Krishi evam Van Sansadhan)

बिहार एक कृषि प्रधान राज्य है, यहाँ की 80 प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर है।

यहाँ चार फसलें-भदई, अगहनी, रबी एवं गरमा लगाई जाती है।

भदई- इसकी शुरूआत मई-जून से होती है और अगस्त-सितम्बर में कटाई कर ली जाती है। भदई धान, ज्वार, बाजरा, मकई के अंतिरिक्त जूट और सब्जी की खेती इस समय में की जाती है।

अगहनी- यह बिहार की सबसे महत्वपूर्ण फसल है। यह फसल मध्य जून से अगस्त तक लगाई जाती है और नवम्बर दिसम्बर में काट ली जाती है। धान, ज्वार, बाजरा, अरहर, गन्ना इस फसल की मुख्य पैदावार है।

रबी- जिस फसल को अक्टूबर-नवम्बर के मध्य में लगाया जाता है और अप्रैल में काट लिया जाता है। गेंहूँ, जौ, दलहन, तेलहन इस फसल की खास उपज है।

गरमा- इस फसल को गरमी के मौसम में उन क्षेत्रो में लगाया जाता है जहाँ सिंचाई की समुचित व्यवस्था है, या फिर निम्न भूमि में जहाँ स्थानीय जल श्रोतों में मिट्टी गिली रहती है, इस फसल में गरमा, धान और ग्रीष्मकालीन सब्जियाँ उगाई जाती है।

खाद्यान्न फसलें :

धान : धान बिहार की महत्वपूर्ण खाद्यान्न फसलें हैं। इसकी खेती राज्य के सभी भागों में की जाती है।
धान का सबसे अधिक उत्पादन पश्चिमी चम्पारण, रोहतास तथा औरंगाबाद में होता है। पहले स्थान पर पश्चिमी चम्पारण है जबकि रोहतास और औरंगाबाद क्रमशः द्वितीय और तृतीय स्थान पर है।

गेहूँ- खाद्यान्न फसलों में धान के बाद गेहूँ दूसरा महत्वपूर्ण फसल है। गेहूँ के उत्पादन में रोहतास जिला प्रथम स्थान पर है।

मक्का : यह बिहार का तीसरा मुख्य खाद्यान्न फसल है। यह भदई, अगहनी, रबी एवं गरमा चारों फसलों में पैदा होता है। मक्का का सबसे अधिक उत्पादन खगड़िया जिला में होता है, दूसरे और तीसरे स्थान पर क्रमशः समस्तीपुर एवं बेगूसराय है।

मोटे अनाज : मोटे अनाजों में महुआ, मिलेट, ज्वार और बाजरा को शामिल किया जाता है। प्रथम स्थान पर मोटे अनाज के उत्पादन में मधुबनी जिला आता है। दूसरे स्थान पर किशनगंज है।

तेलहन : राई, सरसों, तीसी, सूरजमुखी, कुसुम, रेड़ी, तिल, मूँगफली मुख्य रूप से तेलहन फसलें हैं। तिलहन उत्पादन में सबसे आगे पश्चिम चंपारण है।

दलहन : बिहार में दलहन फसल में चना, मसूर, खेसारी, मटर, मूँग, अरहर, उरद तथा कुरथी प्रमुख है।  चना, मसूर, खेसारी, मटर एवं गरमा मूँग रबी दलहन की फसलें हैं तथा अरहर तथा मूँग खरीफ की फसलें हैं।

दलहन उत्पादन में पटना प्रथम स्थान पर है। तथा औरंगाबाद और कैमुर क्रमशः द्वितीय और तृतीय स्थान पर है।
व्यावसायिक फसलें

गन्ना :  हमारे राज्य में गन्ना की खेती के लिए सभी अनुकुल भौगोलिक परिस्थितियाँ विद्यमान हैं, फिर भी यहाँ गन्ना का प्रति हेक्टेयर उत्पादन बहुत कम है, यहाँ के उत्तरी पश्चिम भाग में इनकी खेती प्रमुखता से होती है।

गन्ने के उत्पादन में पश्चिमी चम्पारण पहले स्थान पर हैं जबकि दूसरे और तीसरे स्थान पर क्रमश: गोपालगंज और पूर्वी चम्पारण जिले हैं।

जूट : जूट का उत्पादन बिहार के उत्तर पूर्वी जिलों में होता है, क्योंकि यह अधिक वर्षा वाला क्षेत्र हैं, जो कि जूट उत्पादन के लिए उपयुक्त हैं। सम्पूर्ण देश का आठ प्रतिशत जूट उत्पादन बिहार में होता है। पश्चिम बंगाल और असम के बाद, बिहार का तिसरा स्थान हैं।

तम्बाकू : तम्बाकू उत्पादन में बिहार का भारत में छठा स्थान हैं, इसकी खेती के लिए गंगा का दियारा क्षेत्र सबसे उपयुक्त हैं।

सब्जियाँ, फल एवं मशाले : बिहार में सब्जियों के अंतर्गत आलू, प्याज, भिन्डी, परोर, लौकी, पालक, लाल साग, लूबिया, फूलगोभी पटल, पत्तागोभी आदि की खेती की

जाती हैं। इनमें आलू सबसे प्रमुख सब्जी ही नही बल्कि एक महत्वपूर्ण खाद्य पदार्थ भी हैं। इसकी खेती बिहार के लगभग सभी जिलों में होती हैं।

मिर्च :  मिर्च की खेती दियरा क्षेत्र में गंगा के दोनों किनारे पर वृहत पैमाने पर की जाती है। बिहार में अन्य मसालें जैसे- हल्दी, धनियां, अदरक, सौफ एवं लहसुन की भी खेती की जाती हैं।

मौसमी फलां में आम, लीची, अमरूद, केला, पपीता, सिंघाड़ा एवं मखाने बिहार में उत्पन्न किए जाते हैं। आम के लिए भागलपूर, मुजफ्फरपूर, पूर्णिया, दरभंगा जिले प्रसिद्ध है। लीची के लिए मुजफ्फरपूर और वैशाली को ख्याति प्राप्त हैं।

कुषि की समस्याएँ : बिहार की 90 प्रतिशत आबादी देहातों में रहती हैं और 80 प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर आश्रित है। बिहार में कृषि निम्नलिखित समस्याओं से जूझ रहा है।

1.मिट्टी कटाव एवं गुणवत्ता का ह्रास – भारी वर्षा और बाढ़ के कारण मिट्टी का कटाव होता है, साथ ही वर्षां से लगातार रासायनिक खादों के उपयोग से भी मिट्टी की ह्रास हो रहा है।
2.घटिया बीजों का उपयोग – उच्च कोटी के बीज का उपयोग नहीं होने के कारण प्रति एकड़ उपज अन्य राज्यों की अपेक्षा कम है।
3.खेतों का छोटा आकार का होना – हमारे राज्य में खेतों का छोटा आकार होने के कारण वैज्ञानिक खेती संभव नहीं हो पाती है।
4.किसानों में रूढ़िवादिता – यहाँ के किसान परिश्रम पर कम और रूढ़िवादिता पर ज्यादा भरोसा करते हैं।
5.सिंचाई की समस्या – यहाँ की कृषि मॉनसून पर निर्भर है, सिंचाई की समुचित व्यवस्था नहीं है।
6.बाढ़ – यहाँ की ज्यादातर नदियाँ विनाशकारी बाढ़ के लिए प्रसिद्ध है। प्रत्येक वर्ष यहाँ बाढ़ की समस्याओं से किसान परेशान रहते हैं।
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जल संसाधन :

बिहार में जल का भंडार है, जो दो स्त्रोतों से प्राप्त होता है-
1.धरातलीय जल : इसमें नदियाँ, जलाशय , तालाब आते हैं।
2.भूमिगत जल : इसमें कुआँ, झरने, नलकूप, हैंडपम्प आदि आते हैं।

बिहार में 95 प्रतिशत से अधिक जल संसाधन का उपयोग सिंचाई में होता है। यहाँ मॉनसून से वर्षा की अवधि मात्र चार महिने की होती है।
बिहार में सिंचाई के लिए नहर प्रमुख साधन है। यहाँ कुल सिंचित भूमि का 40.63 प्रतिशत भूमि की सिंचाई नहरों द्वारा होती है।

आजादी के पहले की नहरें :

सोन नहर : यह सिंचाई परियोजना का एक भाग है, यह बिहार का पहला आधुनिक नहर है, इसे 1874 में डिहरी पर निर्मित किया गया, इससे दो नहरें निकाली गई है।

सारण नहर- गोपालगंज प्रखंड में 1880 में इस नहर का निर्माण किया गया था।
त्रिवेणी नहर- इस नहर का निर्माण 1903 में पश्चिमी चम्पारण में भारत-नेपाल सीमा पर गण्डक नदी त्रिवेणी नामक स्थान के निकट हुआ, इसकी कुल लम्बाई 1,094 किमी है।

आजादी के बाद की नहरें :

कोसी नहर- कोसी नदी पर भारत-नेपाल सीमा पर हनुमान नगर के पास बाँध बनाकर दो नहरें निकाली गई है- पूर्वी कोसी के किनारें पर पूर्वी कोसी नहर और पश्चिमी किनारें पर पश्चिमी कोसी नहर

पूर्वी कोसी नहर की लम्बाई 44 किमी है तथा पश्चिमी कोसी नहर की लंबाई 115 किमी है।

गण्डक नहर- गण्डक नदी पर त्रिवेणी नामक स्थान से 85 किमी दक्षिण बाल्मीकि नगर के पास एक 743 किमी लम्बा और 760 मी० ऊँचा बाँध बनाया गया था। इस बाँध से पश्चिम की ओर तिरहुत नहर और पूरब की ओर सारण नहर निकाली गई है।

नलकूप- सिंचाई के लिए नलकूप नहर के बाद दूसरा प्रमुख साधन है।
कुआँ- बिहार में कुँऐं का उपयोग प्राचीन काल से होता आ रहा है, लेकिन अब इसका प्रचलन कम हो गया है। इसके जगह पर अब पम्पसेटों का प्रयोग होने लगा है।

कुआँ से सिंचाई का काम बिहार में मात्र 2 प्रतिशत है।

तालाब- भारत में 9 प्रतिशत कृषि योग्य भूमि की सिंचाई तालाबों द्वारा किया जाता है। जबकि बिहार में मात्र 2.10 प्रतिशत ही भूमि की सिंचाई तालाबों द्वारा किया जाता है।

तालाबों द्वारा सिंचाई में मधुबनी जिला प्रथम स्थान पर है तथा दूसरे स्थान पर नालंदा जिला है।

बिहार में सिंचाई के अन्य साधनों में झील, पोखर, पईन अहर, कृत्रिम झील, ढेकू और मोट आदि है।
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बिहार की नदी घाटी योजनाऐं :
बिहार में बहुत सारी बहुउद्देशीय नदी घाटी योजनाओं का विकास किया गया है जिससे जल-विद्युत, उत्पादन, सिंचाई मछली पालन, पेय-जल, औद्योगिक उपयोग, मनोरंजन एवं यातायात का विकास हो सके। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए कई योजनाएँ बनाई कई हैं। जिसमें तीन प्रमुख योजनाऐं हैं-
1.सोन नदी घाटी परियोजना
2.गण्डक नदी घाटी परियोजना
3.कोसी नदी घाटी परियोजना

अन्य परियोजनाएँ हैं-
1.दुर्गावती जलाशय परियोजना
2.चन्दन बहुआ परियोजना
3.बागमती परियोजना
4.बरनार जलाशय परियोजना

1.सोन नदी घाटी परियोजना :
यह परियोजना बिहार की सबसे पुरानी और पहली नदी घाटी परियोजना है इसका विकास अंग्रजी सरकार ने 1874 में सिंचाई के लिए किया था। इसकी कुल लम्बाई 130 किमी है।

2.गण्डक नदी घाटी परियोजना :
यह उत्तर प्रदेश और बिहार की संयुक्त परियोजना है जो भारत और नेपाल के सहयोग से बाल्मीकिनगर के पास शुरू किया गया है। इस परियोजना से बिजली, सिंचाई और जल की आपूर्ति नेपाल को भी की जाती है।

इस परियोजना से भैंसालोटन स्थान पर एक बाँध बनाकर जलाशय का भी निर्माण किया गया है जिससे दो नहरें निकाली गई है। प्रथम पश्चिमी नहर द्वारा गोपालगंज, सारण और सिवान में लगभग 4 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जाती है। पूर्वी नहर द्वारा पश्चिमी चम्पारण, पूर्वी चम्पारण, मुजफ्फरपुरए वैशाली तथा समस्‍तीपुर जिले की लगभग 4.5 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जाती है।
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3.कोसी नदी घाटी परियोजना :
इस परियोजना की परिकल्पना 1896 में किया गया था किन्तु वास्तविक रूप से 1955 में कार्य प्रारंभ हुआ।

इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य नदी के बदलते मार्ग को रोकना है। उपजाऊ भूमि की बर्बादी पर नियंत्रण, भयानक बाढ़ से क्षति पर रोक, जल से सिंचाई का विकास, जल विद्युत उत्पादन, मत्स्य पालन, नौका रोहण और पर्यावरण पर नियंत्रण आदि है।

वन संसाधन :
बिहार विभाजन के बाद अधिकतर वन क्षेत्र झारखंड राज्य में चला गया। वर्तमान में बिहार में मात्र 7.68 प्रतिशत ही क्षेत्र में वन है। बिहार में कुल 6374 वर्ग किमी अधिसूचित वन क्षेत्र है। मात्र 76 वर्ग किमी में अतिसघन वन है।
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वनों एवं वन्य जीवों का संरक्षण :

बिहार में कुल भौगोलिक क्षेत्र का मात्र 6.87 प्रतिशत भाग ही वनों से अच्छादित है। जबकि राष्ट्रीय नीति के अनुसार 33 प्रतिशत भू-भाग पर वन होना चाहिए।

बिहार में वन्य प्राणीयों के संरक्षण के लिए प्राचीन काल से ही कई रीति-रिवाजों का प्रचलन है। कई धार्मिक अनुष्ठान वृक्षों के नीचे ही किए जाते हैं। यहाँ परम्परागत रूप से वट, पीपल, आँवला और तुलसी की पूजा की जाती है। यहाँ चींटी से लेकर साँप जैसे विषैले जंतु को भोजन दिया जाता है। पक्षियों को दाना देने की प्रथा है। साथ ही

राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर वन्य प्राणीयों के संरक्षण के लिए कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।
बिहार में 14 अभ्यारण्य और एक राष्ट्रीय उद्यान है। पटना का संजय गाँधी जैविक उद्यान, बेगूसराय का कावर झाल, दरभंगा का केशेश्वर स्थान वन्य जीवों के संरक्षण के लिए प्रसिद्ध है।

वन एवं वन्य जीवों के संरक्षण के लिए राज्य सरकार की वन, पर्यावरण तथा जल संसाधन विकास विभाग प्रमुख है। इसके अलावा वन्य जीवों के संरक्षण के लिए कई स्वयंसेवी संस्थाऐं भी काम कर रही है। (Bihar Krishi evam Van Sansadhan)

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