Kabir Ke Pad Class 10 Non Hindi – कबीर के पद

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड के वर्ग 10 के अहिन्‍दी (Non Hindi) के पाठ 11 (Kabir Ke Pad) “कबीर के पद” के व्‍याख्‍या को जानेंगे। जिसके लेखक कबीर हैं।

Kabir Ke Pad

पाठ परिचय- कबीर भक्तिकाल के अप्रतिम भक्त कवि थे। उन्होंने अपनी रचना के माध्यम से भक्ति के नाम पर व्याप्त बाह्य आडंबरों एवं व्यर्थ अनुष्ठानों पर करारा प्रहार किया है। पाठ में शामिल पदों में उनका यह रूप मुखर हो उठा है। पदों की महत्ता इस अर्थ में खासतौर पर उल्लेखनीय है कि उनका भाव बोध न सिर्फ तत्कालीन समय से जुड़ता है। बल्कि समकालीन समय में भी उनकी उपादेयता यथावत है।

पहले पद में स्थापित रूढ़ियों के समानान्तर सच के सीधे साक्षात्कार की प्रस्तावना है। अर्थात ’कागद की लेखी’ की जगह ’आँखिन देखी’ की प्रतिष्ठा, वहीं दूसरे पद में ईश्वर या अल्लाह को कहीं बाहर ढूंढ़ने के जगह उसका अपने भीतर ही साक्षात्कार की बात कही गयी है।

11. कबीर के पद (Kabir Ke Pad)

मेरा तेरा मनुआँ कैसे इक होई रे।

मैं कहता हौं आँखिन देखी, तू कहता कागद की लेखी।

मैं कहता सुरझावनहारी, तू राख्यौ उरझाई रे।

मैं कहता तू जागत रहियो, तू रहता है सोई रे।

मैं कहता निर्मोही रहियो, तू जाता है मोही रे।

जुगन-जुगन समुझावत हारा, कही न मानत कोई रे।

सतगुरु धारा निर्मल बाहै, वामैं काया धोई रे।

कहत कबीर सुनो भाई साधो, तब ही वैसा होई रे।

कबीर कहते हैं कि तेरा और मेरा मन कभी एक जैसा नहीं हो सकता है। तुम कागज के लिखा हुआ कहते हो और मैं अपनी आँखों से देखा हुआ कहता हुँ। तुम मनुष्य की समस्याओं को उलझाते रहते हो, लेकिन मैं उसकी समस्याओं को सुलझाने वाली बातें करता हुँ। मैं इस संसार को सावधान बनाना चाहता हुँ, लेकिन तुम अपने को विद्वान कहते हो और खुद सोए हुए हो। मैं कहता हुँ संसार की चीजों के साथ मोह मत करो, किन्तु तुम मोह में पड़े हुए हो। मैं युग-युग से समझा कर हार गया, लेकिन कोई मेरी बात को समझने को तैयार नहीं है। इस संसार में ईश्वर रूपी नदी बह रही है। अपनी इस गंदी शरीर को ईश्वर रूपी नदी में धोएंगे, तब ही हम उसके (परमात्मा) जैसे हो सकेंगे।

मोको कहाँ ढूंढे बंदे, मैं तो तेरे पास में।

ना मैं देवल ना मैं मस्जिद, न काबे कैलास में।

ना तो कौनों क्रिया करम में नाहिं जोग बैराग में।

खोजी होय तो तुरतहि मिलिहौ, पलभर की तलास में।

कहै कबीर सुनो भाई साधो, सब साँसों की साँस में।

कबीर कहते हैं कि लोग भगवान को इधर-उधर ढ़ूढ़ते फिरते हैं जबकि ईश्वर का निवास आत्मा में है। भगवान न तो मंदिर, मस्जिद और कावा में रहते हैं, न वे बाह्य क्रिया एवं अनुष्ठानों में रहते हैं, वे तो आत्मा में निवास करते हैं।

यदि तुम सच्चे खोजी होगे, तो मुझे पल भर में ही पा सकते हो। मैं तो प्रत्येक प्राणी की सांस में मौजुद हूँ। तुम्हारे ही अंदर हूँ। इस सत्य को जिस दिन जान लोगे, उसी दिन उसी पल मुझे पा लोगे।

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