Raiyatwari Vyavastha | रैयतवाड़ी व्यवस्था से क्‍या समझते हैं

Raiyatwari Vyavastha

रैयतवारी व्यवस्था किसे कहते हैं (Raiyatwari Vyavastha)-

  • एक नई व्यवस्था दक्षिण एवं पश्चिम भारत में रैयतवारी व्यवस्था के नाम से शुरू की गई।
  • इसमें किसानों के साथ सीधा करार किया गया।
  • सन् 1802 में मद्रास के तत्कालीन गवर्नर टॉमस मुनरो ने रैयतवाड़ी व्यवस्था आरंभ की।
  • यह व्यवस्था 1792 ई. में मद्रास प्रैज़िडन्सी के बारामहल जिले में सर्वप्रथम लागू की गई
  • यह व्यवस्था मद्रास, बंबई एवं असम के कुछ भागों में लागू की गई।
  • इस व्‍यवस्‍था के तहत लगभग 51 प्रतिशत भूमि आई।
  • इन इलाकों में परंपरागत रूप से जमींदार नहीं होते थे इसलिए कंपनी सरकार ने किसी नए व्यक्ति को जमींदार बना कर स्थापित करने की जगह सीधा किसानों से ही संबंध स्थापित किया।
  • इस व्यवस्था में लगान उपज के आधार पर तय हुआ।
  • पहले जमीन की गुणवत्ता देखी गई, फिर पिछले कुछ वर्षों की उपज का औसत निकाला गया, उसमें किसानों की खेती पर होने वाले खर्च को काट कर जो बचता था उसका 50 प्रतिशत लगान के रूप में तय कर दिया गया।
  • इसे स्थायी नहीं बनाया गया।
  • प्रत्येक 30 वर्ष बाद लगान की राशि में बदलाव किया जाना तय किया गया।
  • इस व्यवस्था में किसानों को जमीन का मालिक माना गया था।
  • भूमिदार के पास भूमि को रहने, रखने व बेचने का अधिकार होता था।
  • इस व्‍यवस्‍था के कारण किसान गरीब तथा भूमिहीन हो गए  तथा ऋणग्रस्तता में फँसकर रह गये।
  • थॉमस मुनरो 1819 ई. से 1826 ई. के बीच मद्रास का गवर्नर रहा। रैयतवाड़ी व्यवस्था के प्रारंभिक प्रयोग के बाद मुनरो ने इसे 1820 ई. में संपूर्ण मद्रास में लागू कर दिया।

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