Shram Vibhajan Aur Jati Pratha Subjective Questions – हिन्‍दी कक्षा 10 श्रम विभाजन और जाति प्रथा

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 10 हिन्‍दी के पाठ एक ‘श्रम विभाजन और जाति प्रथा (Shram Vibhajan Aur Jati Pratha Subjective Questions) के महत्‍वपूर्ण विषयनिष्‍ठ प्रश्‍नों के उत्तर को पढ़ेंगे।

Shram Vibhajan Aur Jati Pratha VVI Subjective Questions

Shram Vibhajan Aur Jati Pratha Subjective QuestionsHindi Chapter 1 श्रम विभाजन और जाति प्रथा

लेखक-भीमराव अंबेदकर

प्रश्न 1. लेखक किस विडंबना की बात करते हैं ? विडंबना का स्वरूप क्या है? (2012C)
उत्तर- आधुनिक युग में भी जातिवाद का पोषण होना, इसके पोषकों की कमी नहीं होना, इस तरह की प्रथा को बढ़ावा देना, लेखक के विचार से विडंबना माना गया है।

प्रश्न 2. जाति भारतीय समाज में श्रम-विभाजन का स्वाभाविक रूप क्यों नहीं कही जा सकती? (2014A, 2016A)
उत्तर- भारतीय समाज में जाति प्रथा, श्रम-विभाजन का स्वाभाविक रूप नहीं कही जा सकती, क्योंकि यह मनुष्य की रुचि पर आधारित नहीं है। इसमें मनुष्य की निजी क्षमता का विचार किए बिना उसका पेशा निर्धारित कर दिया जाता है।

प्रश्न 3. सच्चे लोकतंत्र की स्थापना के लिए लेखक ने किन विशेषताओं को आवश्यक माना है? (2016A)
उत्तर- लोकतंत्र मूलतः सामूहिक जीवनचर्या की एक रीति तथा समाज के सम्मिलित अनुभवों के आदान-प्रदान का नाम है । सच्चे लोकतंत्र की स्थापना के लिए समरसता, भ्रातृत्व एवं स्वतंत्रता आवश्यक है।

प्रश्न 5. अम्बेदकर के अनुसार जाति-प्रथा के पोषक उसके पक्ष में क्या तर्क देते हैं? (2014A)
उत्तर- जातिवाद के पक्ष में इसके पोषकों का तर्क है कि आधुनिक सभ्य समाज ’कार्य-कुशलता’ के लिए श्रम-विभाजन को आवश्यक मानता है और चूँकि जाति प्रथा भी श्रम-विभाजन का ही दूसरा रूप है, इसलिए इसमें कोई बुराई नहीं है।

प्रश्न 4. लेखक ने पाठ में किन प्रमुख पहलुओं से जाति प्रथा को एक हानिकारक प्रथा के रूप में दिखाया है? (2015A)
उत्तर- जाति प्रथा में श्रम-विभाजन मनुष्य की स्वेच्छा पर निर्भर नहीं रहता । इसमें मानवीय कार्यकुशलता की वृद्धि नहीं हो पाती। इसमें स्वभावतः मनुष्य को दुर्भावना से ग्रस्त रहकर कम और टालू कार्य करने को विवश होना पड़ता है।

प्रश्न 6. जातिवाद के पक्ष में दिए गए तर्कों पर लेखक की प्रमुख आपत्तियाँ क्या हैं?(2016C)
उत्तर- (क) जाति प्रथा श्रम-विभाजन के साथ-साथ श्रमिक विभाजन का भी रूप लिए हुए है।
(ख) इस प्रथा में श्रमिकों को अस्वाभाविक रूप से विभिन्न वर्गों में विभाजित किया जाता है।
(ग) इसमें विभाजित वर्गों को एक-दूसरे की अपेक्षा ऊँच-नीच भी करार दिया जाता है।
(घ) जाति प्रथा पर आधारित विभाजन मनुष्य की रुचि पर आधारित नहीं है।

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