2. अंतोन चेखव रचित ‘क्लर्क की मौत’ शीर्षक पाठ का सारांश लिखिए।

उत्तर-‘क्लर्क की मौत’ शीर्षक कहानी के रचयिता अंतोन चेखव (1860-1904) हैं। ‘चेखव’ एक अतुलनीय कलाकार हैं। निश्चित रूप से अद्वितीय। वह जीवन के कलाकार हैं। उनकी रचनाओं का गुण यह है कि वह बोधगम्य और भावनाओं के निकट हैं, न केवल प्रत्येक रूसी के लिए बल्कि प्रत्येक मानव के लिए……….।’  ‘क्लर्क की मौत’ शीर्षक कहानी में छींक की घटना ने क्लर्क की जान ले ली। वह पश्चाताप के कारण मर गया। क्लर्क जिसका नाम इवान दमित्रिच मात्रिच चेख्यकोव था, एक खेल  देख रहा था। वह अपने को सबसे सुखी मनुष्य समझ रहा था।

जिन्दगी अचम्भों से भरी है ! उसे एकाएक छींक आ गयी। यूँ तो हर किसी को जहाँ चाहे छींकने का हक है। हर कोई छींकता है। चेख्यकोव को इससे कोई झेंप नहीं लगी, रूमाल से उसने अपनी नाक पोंछी और एक शिष्ट व्यक्ति होते हुए अपने चारों तरफ देखा कि कहीं उसकी छींक से किसी को असुविधा तो नहीं हुई ? और तभी वह सचमुच झेंप गया क्योंकि उसने एक वृद्ध व्यक्ति को पहली पंक्ति में अपने ठीक आगे बैठा हुआ देखा जो अपनी गंजी खोपड़ी और गरदन को दस्ताने से पोंछ रहा था और कुछ बड़बड़ाता जा रहा था। चेख्यकोव ने उस बूढ़े को पहचान लिया कि वह यातायात मंत्रालय के सिविल जनरल ब्रिजालोव हैं। वह उसके अफसर नहीं हैं। यह सही है, किन्तु तब भी यह कितना भद्दा है। क्लर्क चेख्यकोव ने सोचा कि उसे माफी माँगनी चाहिए।

चेख्यकोव ने ब्रिजालोव से माफी माँगी-“मैं क्षमाप्रार्थी हूँ, महानुभाव,

मैं छींका था।” ब्रिजालोव ने उत्तर दिया-“अजी कोई बात नहीं।” फिर क्लर्क ने कहा-“कृपया मुझे क्षमा कर दें। मैं जान-बूझकर नहीं छींका।” ब्रिजलोव कुछ नाराज हुए-“क्या तुम चुप नहीं रह सकते ?”

कुछ घबड़ाया हुआ चेख्यकोव झेंप में मुस्कराया और खेल की तरफ मन लगाने की कोशिश की। वह खेल देख रहा था। किंतु उसे

आनन्द नहीं आ रहा था। बेचैनी उसका पीछा नहीं छोड़ रही थी। मध्यांतर में वह ब्रिजालोव के पास पहुँचा, थोड़ी देर के लिए उनके

आसपास घूमा-फिरा और फिर साहस बटोरकर भिनभिनाया-“हुजूर! मैंने आपके ऊपर छींक दिया। मुझे क्षमा करें।” जनरल को थोड़ा गुस्सा आया-“अरे बस। मैं तो यह भूल भी गया था, छोड़ो अब इस बात को।”

चेख्यकोव ने जनरल की ओर संदेह की नजरों से देखते हुए सोचा-कहते हैं कि भूल गए हैं, लेकिन आँखों में विद्वेष भरा है और बात नहीं करना चाहते!

घर पहुँचकर क्लर्क चेख्यकोव ने अपनी पत्नी को अपने अभद्र व्यवहार के बारे में बताया। उसने भी इस घटना को गम्भीरता से नहीं लिया।

अगले दिन क्लर्क चेख्यकोव ने नई वर्दी पहनी, बाल कटवाए और जनरल ब्रिजालोव से माफी मांगने गया-“हुजूर, कल रात, ‘आर्केडिया’ में मुझे छींक आ गई थी ।” जनरल ने कोई ध्यान नहीं दिया। फिर निजी कमरे में जब जनरल जा रहा था तो क्लर्क ने कहा’हुजूर मुझे माफ कर दें । हार्दिक पश्चाताप होने के कारण ही मैं आपको कष्ट देने का दुस्साहस कर पा रहा हूँ।”

जनरल ने रूऔंसा चेहरा बनाया, हाथ हिलाया और कहा-“तुम तो मेरा मजाक उड़ा रहे हो, जनाब!”

फिर भेंट होने पर जनरल ने क्लर्क को डॉटा-“निकल जाओ यहाँ से।

क्लर्क चेख्यकोव को लगा जैसे उसके भीतर कुछ टूट सा गया हो लड़खड़ाते हुए पीछे चलकर वह दरवाजे तक पहुँचा, दरवाजे से बाहर आया और सड़क पर चलने लगा। वह न कुछ देख रहा था,

न कछ सन रहा था। वह संझा-शून्य, यंत्रचालित-सा वह सड़क पर बढ़ता गया। घर पहुँचकर वह बिना वर्दी उतारे, जैसा का तैसा, सोफे पर लेट गया और मर गया। ‘क्लर्क की मौत’ क्लर्क की मौत के कारण एक अत्यन्त कारुणिक कहानी बन गयी है।

1. गाइ-डि मोपासाँ, रचित ‘रस्सी का टुकड़ा’ शीर्षक पाठ का सारांश लिखें।

उत्तर- ‘रस्सी का टुकड़ा’ शीर्षक कहानी के रचयिता गाइ-डि मोपासा (1850-1893) हैं। मोपासाँ फ्राँस के थे। अपने लेखन में उन्होंने बुर्जुआ समाज के चाल-चरित्र को बेपर्द किया है। मानव जीवन की गहराइयों को अभिव्यक्त करनेवाला मोपासाँ का लेखन युग की सीमाओं का अतिक्रमण करता हुआ हमारे वर्तमान के लिए भी उतना ही प्रासंगिक और चुनौतीपूर्ण है।”

साप्ताहिक हाट का दिन था। गोदरविल जानेवाली सड़क पर किसानों और उनकी पत्नियों का सैलाब-सा उमड़ा पड़ा था। मनुष्यों की भीड़ थी। स्त्री-पुरुषों की भीड़ थी। पशुओं की भीड़ थी। किसानों की भीड़ थी। इन सबसे अस्तबल, मवेशियों और गोबर, भूसे और पसीने की गंध फूट रही थी। मनुष्य और पशुओं की एक अजीब-सी गंध पूरे वातावरण में फैली थी, जिससे किसान भली-भाँति परिचित होते हैं।

ब्रोत का मैत्र होशेकम गोदरविल पहुँचा। वह तेजी से चौराहे की ओर कदम बढ़ा रहा था कि उसकी नजर जमीन पर पड़े रस्सी के एक छोटे से टुकड़े की ओर गई। होशेकम का मानना था कि हर काम के लायक चीज को उठा लेना चाहिए। उसने रस्सी के टुकडे को उठा लिया। मैत्र मलांदे ने उसे देख लिया। दोनों के रिश्ते खराब थे। दोनों ही दुश्मनी जन्दी भूलने वाले नहीं थे। होशेकम को यह सोचकर बड़ी शर्म आई कि उसके दुश्मन ने उसे धूल में पड़ा रस्सी का टुकडा उठाते देख लिया।

सभी बाजार में आए लोग तरह-तरह का भोजन होटलों में कर रहे थे। अचानक बाहर अहाते में नगाड़ा पीटने की आवाज

दी-“गोदरविल के सभी निवासियों और बाजार में मौजूद सभी लोगों को सूचित किया जाता है कि आज सुबह नौ से दस बजे के बीच बेजेविल जानेवाली सड़क पर एक काले चमड़े का बटुआ खो गया

मैत्र होशकम पर बटुआ उठा लेने का आरोप लगा। खबर आग की तरह चारों ओर फैल गई। लोगों की भीड़ ने बूढ़े आदमी को घेर लिया और उससे तरह-तरह के सवाल करने लगे। उसने रस्सी के टुकड़ेवाली कहानी सुनाई लेकिन किसी ने उस पर यकीन नहीं किया । लोग उस पर हँसने लगे। वह रात भर बेचैन रहा।

अगले दिन करीब एक बजे यीमानविल के पशु व्यापारी मैत्र ब्रेतों के एक कर्मचारी मारियस पोमेल ने भरा हुआ बटुआ मानविल के मैत्र हुलब्रेक को लौटा दिया ।

मैत्र होशेकम को भी इसकी सूचना दी गई। वह फौरन गाँव में घूमने लगा और इस सुखद अंत के साथ अपनी कहानी फिर से सबको सुनाने लगा। विजय गर्व से वह तनकर चलने की कोशिश कर रहा था।

पर उसे एक घुँसा भी खाना पड़ा। मैत्र होशेकम चकरा गया। उसे बदमाश भी कहा गया। होशेकम अवाक् रह गया। लोग उसपर इल्जाम लगा रहे थे कि उसने अपने एक साथी से बटुआ लौटवा दिया था क्योंकि बात खुल गई थी।

होशेकम को क्षोभ एवं शर्मिंदिगी हुई। दिसम्बर का अंत आतेआते उसने बिस्तर पकड़ लिया। जनवरी के शुरुआती दिनों में उसकी मौत हो गई। मरने के पहले तक वह सन्निपात में भी अपनी बेगुनाही का दावा करता रहा और दोहराता रहा-“रस्सी का एक टुकड़ा, रस्स का एक टुकड़ा।”

निष्कर्षतः एक निर्दोष व्यक्ति के जान जाने की कहानी ‘रस्सी क टुकड़ा अत्यन्त प्रभावशाली कहानी बन गई है। इसका अन्त दर्दनाक है।

3. पेशगी कहानी का सारांश और व्‍याख्‍या | Peshgi Kahani Class 12th Hindi

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 12 हिन्‍दी के प्रतिपूर्ति के पाठ तीन ‘पेशगी (Peshgi Kahani Class 12th Hindi)’ के व्‍याख्‍या सारांश सहित जानेंगे।

‘पेशगी’ शीर्षक कहानी के रचयिता हेनरी लोपेज (1937) हैं । अफ्रीकी देश कांगो में जन्मे हेनरी लोपेज हमारे समय के अत्यन्त समर्थ लेखक हैं। उन्होंने अपने लेखकीय कर्म को गम्भीरता से निभाया है। उनका लेखन विकसित या विकासशील दुनिया तथा अविकसित अफ्रीका के बीच की दूरी को दिखाता है । इस तरह उनका लेखन न केवल अफ्रीका बल्कि दुनिया की वृहत्तर आबादी, उसके जीवन और उसकी पीड़ा का रचनात्मक साक्ष्य बनकर प्रस्तुत होता है ।”

‘पेशगी’ समाज द्वारा शोषण का अत्यन्त संवेदनशील चित्र प्रस्तुत करता है । सम्पन्नता और विपन्नता में आसमान-जमीन का अन्तर है । मालकिन सम्पन्न वर्ग का प्रतिनिधित्व करती है तो उसकी नौकरानी विपन्न वर्ग की ।

‘पेशगी’ अफ्रीकी देश कांगो के सामाजिक जीवन की विसंगति प्रस्तुत करती है।

घर की मालकिन अपने पति के साथ बैठक में थी । वह ब्रिज खेलने के लिए आमंत्रित मित्रों का मनोरंजन कर रही थी । वह पहले ही कई बार कारमेन को मना कर चुकी थी कि जब वह ‘अपनी कंपनी’ में होती हैं, तो उसे तंग नहीं करे। ऐसे में कारमेन भला यह साहस जुटा पाती कि उन लोगों की मौज-मस्ती में खलल डाले । उसे फटकार सुनने का डर नहीं था। वह मानती थी कि लोग ऊँची आवाज में बोलकर खुद का तनाव दूर करते हैं ।

चौकीदार फर्डिनांड के अनुसार, चूँकि मैडम का पति उसे पीटता था। वह अपना गुस्सा नौकरों पर उतारती थी ।

मैडम को एक बुरी आदत थी। वह बच्ची के साथ इस तरह बात करती मानो वह वयस्क हो । बच्ची को लोरी सुनाकर सुलाती थी । कारमेन का बेटा गुजर गया । उसे दवा पैसे के अभाव में नहीं दिया जा सका।

अंतोन ने सामाजिक विषमता का अत्यन्त मार्मिक चित्रण इस ‘पेशगी’ कहानी में प्रस्तुत किया है । Peshgi Kahani Class 12th Hindi

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Bihar Board Class 12th Hindi Solution Notes दिगंत भाग 2

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड के कक्षा 12 के हिन्‍दी दिगंत भाग 2 Bihar Board Class 12th Hindi Solution with Notes के सभी पाठ के व्‍याख्‍या को पढ़ेंगें।

यह पोस्‍ट बिहार बोर्ड के परीक्षा की दृष्टि से काफी महत्‍वपूर्ण है। साथ ही यह पोस्‍ट रेलवे, बैंकिग, प्रशासनिक सेवा तथा विभिन्‍न प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए भी महत्‍वूपर्ण है।

इसको पढ़ने से आपके किताब के सभी प्रश्‍न आसानी से हल हो जाऐंगे। इसमें चैप्‍टर वाइज सभी पाठ के नोट्स को उपलब्‍ध कराया गया है। सभी टॉपिक के बारे में आसान भाषा में बताया गया है।

यह नोट्स NCERT तथा SCERT बिहार पाठ्यक्रम पर पूर्ण रूप से आ‍धारित है। इसमें हिन्‍दी के प्रत्‍येक पाठ के बारे में व्‍याख्‍या किया गया है, जो परीक्षा की दृष्टि से बहुत ही महत्‍वपूर्ण है। इस पोस्‍ट को पढ़कर आप बिहार बोर्ड कक्षा 10 के हिन्‍दी गोधूलि भाग 2 और वर्णिका भाग 2 के किसी भी पाठ को आसानी से समझ सकते हैं और उस पाठ के प्रश्‍नों का उत्तर दे सकते हैं। जिस भी पाठ को पढ़ना है उस पर क्लिक कीजिएगा, तो वह पाठ खुल जाऐगा। उस पाठ के बारे में आपको वहाँ सम्‍पूर्ण जानकारी मिल जाऐगी।

Class 12th Hindi Solution Notes हिन्‍दी के सम्‍पूर्ण पाठ का व्‍याख्‍या

Bihar Board Class 12th Hindi Solution Notes with Lecture गद्य खण्ड

Chapter 1 बातचीत
Chapter 2 उसने कहा था
Chapter 3 संपूर्ण क्रांति
Chapter 4 अर्द्धनारीश्वर
Chapter 5 रोज
Chapter 6 एक लेख और एक पत्र
Chapter 7 ओ सदानीरा
Chapter 8 सिपाही की माँ
Chapter 9 प्रगीत और समाज
Chapter 10 जूठन
Chapter 11 हँसते हुए मेरा अकेलापन
Chapter 12 तिरिछ
Chapter 13 शिक्षा

Bihar Board Class 12th Hindi Digant Bhag 2 Solutions Notes with Lecture पद्य खण्ड

Chapter 1 कड़बक
Chapter 2 सूरदास के पद
Chapter 3 तुलसीदास के पद
Chapter 4 छप्पय
Chapter 5 कवित्त
Chapter 6 तुमुल कोलाहल कलह में
Chapter 7 पुत्र वियोग
Chapter 8 उषा
Chapter 9 जन-जन का चेहरा एक
Chapter 10 अधिनायक
Chapter 11 प्यारे नन्हें बेटे को
Chapter 12 हार-जीत
Chapter 13 गाँव का घर

Digant Hindi Book Class 12 Bihar Board 100 Marks Solutions प्रतिपूर्ति

Chapter 1 रस्सी का टुकड़ा
Chapter 2 क्लर्क की मौत
Chapter 3 पेशगी
Important Links
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आशा करता हुँ कि आप को हिन्‍दी के सभी पाठ को पढ़कर अच्‍छा लगेगा। इन सभी पाठ को पढ़कर आप निश्चित ही परीक्षा में काफी अच्‍छा स्‍कोर करेंगें। इन सभी पाठ को बहुत ही अच्‍छा तरीका से आसान भाषा में तैयार किया गया है ताकि आप सभी को आसानी से समझ में आए। इसमें हिन्‍दी दिगंत भाग 2 (गद्य भाग और पद्य भाग) के सभी पाठ को समझाया गया है। यदि आप बिहार बोर्ड कक्षा 12 हिन्‍दी दिगंत भाग 2 से संबंधित किसी भी पाठ के बारे में जानना चाहते हैं, तो नीचे कमेन्‍ट बॉक्‍स में क्लिक कर पूछ सकते हैं। यदि आप और विषय के बारे में पढ़ना चाहते हैं तो भी हमें कमेंट बॉक्‍स में बता सकते हैं। आपका बहुत-बहुत धन्‍यवाद.

सूरदास के पद कक्षा 12 भावार्थ | Surdas ke Pad Class 12

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 12 हिन्‍दी के पद्य भाग के पाठ दो सूरदास रचित पद (Surdas ke Pad Class 12) का अर्थ सहित व्‍याख्‍या को जानेंगे।

surdas ke pad class 12

कवि- सूरदास
कवि परिचय

सूरदास का जन्म सन् 1478 ई के आसपास माना जाता है।
वे दिल्ली के निकट ‘सीही’ नामक गाँव के रहनेवाले थे।
उनके गुरु का नाम महाप्रभु वल्लभाचार्य था।
वे पर्यटन, सत्संग, कृष्णभक्ति, और वैराग्य में रुचि लेते थे।
जन्म से अंधे थे अथवा बड़े होने पर दोनों आंखे जाती रही।
उनकी प्रमुख रचनाओं मे सुरसागर, साहित्यलहरी, राधारसकेलि, सुरसारावाली इत्यादि प्रमुख है।

कक्षा 12 हिन्‍दी के सम्‍पूर्ण पाठ का व्‍याख्‍या जानें।

पाठ परिचय: प्रस्‍तुत पाठ के दोनों पद सुरदास रचित सूरगार से लिया गया है। इन पदों में सूर की काव्‍य और कला से संबंधित विशिष्‍ट प्रतिभा की अपूर्व झलक मिलती है। प्रथम पद में दुलार भरे कोमल-मधुर स्‍वर में सोए हुए बालक कृष्‍ण को भोर होने की सूचना देते हुए जगाया जा रहा है। द्वितीय पद में पिता नंद की गोद में बैठकर बालक श्रीकृष्‍ण को भोजन करते दिखाया गया है।

पद
( 1 )

जागिए ब्रजराज कुंवर कंवल-कुसुम फूले।
कुमुद -वृंद संकुचित भए भुंग लॅता भूले॥

प्रस्तुत पद वात्सल्य भाव के हैं और सुरसागर से संकलित है जिसमें सूरदास जी मातृ स्नेह का भाव प्रदर्शित कर रहे हैं। माता यशोदा अपने पुत्र कृष्ण को सुबह होने पर जगा रही है। वह कहती हैं कि हे ब्रज के राजकुमार! अब जाग जाओ। कमल पुष्प खिल गए हैं तथा कुमुद भी बंद हो गए हैं। (कुमुद रात्रि में ही खिलते हैं, क्योंकि इनका संबंध चंद्रमा से हैं) भ्रमर कमल-पुष्पों पर मंडाराने लगे हैं।

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तमचूर खग रोर सुनह बोलत बनराई।
रांभति गो खरिकनि में, बछरा हित धाई॥

प्रस्तत पद वात्सल्य भाव के हैं और सूरसागर से संकलित है जिसमें सूरदास जी मातृ स्नेह का भाव प्रदर्शित कर रहे हैं। माता यशोदा अपने पुत्र कृष्ण को सुबह होने पर जगा रही है। वह कहती हैं कि हे ब्रज के राजकुमार! अब जाग जाओ। सवेरा होने के प्रतीक मुर्गे बांग देने लगे हैं और पक्षियों व चिड़ियों का कलरव प्रारंभ हो गया है। गोशाला में गाएं बछड़ों के लिए रंभा रही हैं।

विधु मलीन रवि प्रकास गावत नर नारी।
सूर स्याम प्रात उठौ, अंबुज-कर-धारी ।।

प्रस्तुत पद वात्सल्य भाव के हैं और सुरसागर से संकलित है जिसमें सूरदास जी मातृ स्नेह का भाव प्रदर्शित कर रहे हैं। माता यशोदा अपने पुत्र कृष्ण को सुबह होने पर जगा रही है। वह कहती हैं कि हे ब्रज के राजकुमार! अब जाग जाओ। चंद्रमा का प्रकाश मलिन हो गया है अर्थात चाँद चुप गया है तथा सूर्य निकल आया है। नरनारियां प्रात:कालीन गीत गा रहे हैं। अत: हे श्यामसुंदर! अब तुम उठ जाओ। सूरदास कहते हैं कि यशोदा बड़ी मनुहार करके श्रीगोपाल को जगा रही हैं वे कहती है हे हाथों मे कमल धारण करने वाले कृष्ण उठो।

हिन्‍दी कक्षा 12 कड़‍बक कविता का व्‍याख्‍या

( 2 )
जेवत स्याम नंद की कनियाँ।
कछुक खात, कछु धरनि गिरावत, छबि निरखति नंद-रनियाँ।

प्रस्तुत पद वात्सल्य भाव के हैं और सुरसागर से संकलित है जिसमें सूरदास जी मातृ-पितृ स्नेह का भाव प्रदर्शित कर रहे हैं। श्री कृष्ण नंद की गोद में बैठकर भोजन कर रहे हैं। वे कुछ खाते हैं कुछ धरती पर गिराते हैं तथा इस मनोरम दृश्य को नंद की रानी (माँ यशोदा) देख रही है।

बरी, बरा बेसन, बहु भाँतिनि, व्यंजन बिविध, अंगनियाँ।
डारत, खात, लेत, अपनैं कर, रुचि मानत दधि दोनियाँ।

प्रस्तुत पद वात्सल्य भाव के हैं और सूरसागर से संकलित है जिसमें सूरदास जी मातृ-पितृ स्नेह का भाव प्रदर्शित कर रहे हैं। श्री कष्ण नंद की गोद में बैठकर भोजन कर रहे है । उनके खाने के लिए अनगिनत प्रकार के व्यंजन जैसे बेसन के बाड़े, बरियाँ इत्यादि बने हए है। वे अपनी हाथों से कुछ खाते हैं और कँछ गिराते हैं लेकिन उनकी रुचि केवल दही के पात्र में अत्यधिक होती है।

भारत में राष्‍ट्रवाद कैसे, क्‍यों और कब ? जानें प्रत्‍येक घटनाओं के बारे में। 

मिस्री,दधि माखन मिस्रीत करि, मुख नावत छबि धनियाँ।
आपुन खात, नंद-मुख नावत, सो छबि कहत न बानियाँ।

प्रस्तुत पद वात्सल्य भाव के हैं और सुरसागर से संकलित है जिसमे सरदास जी मातृ-पितृ स्नेह का भाव प्रदर्शित कर रहे हैं। श्री कृष्ण नंद की गोद में बैठकर भोजन कर रहे है । उन्हे दही अधिक पसंद है। वे मिश्री, दही और मक्खन को मिलाकर अपने मुख में डालते है यह मनोरम दृश्य देखकर माँ यशोदा धन्य हो जाती है। वे खुद भी खाते हैं और कुछ नंद जी के मुंह में भी डालते हैं ये मनोरम छवि का वर्णन करते नहीं बनता।

जो रस नंद-जसोदा बिलसत, सो नहि तिहू भुवनियाँ।
भोजन करि नंद अचमन लीन्हौ, मांगत सूर जुठनियाँ।।

प्रस्तुत पद वात्सल्य भाव के हैं और सूरसागर से संकलित है जिसमें सूरदास जी मातृ-पितृ स्नेह का भाव प्रदर्शित कर रहे हैं। श्री कृष्ण नंद की गोद में बैठकर भोजन कर रहे हैं। इस दिव्य क्षण का जो आनंद नंद और यशोदा को मिल रहा है यह तीनों लोको में किसी को प्राप्त नहीं हो सकता। भोजन करने के बाद नंद और श्री कृष्ण कुल्ला करते है और सूरदास उनका जूठन मांग रहे है।

कड़‍बक कविता का अर्थ | Karbak Class 12

Karbak Class 12

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 12 हिन्‍दी के पद्य भाग के पाठ एक ‘कड़‍बक (Karbak Class 12)’ कविता का अर्थ सहित व्‍याख्‍या को जानेंगे।

Karbak Class 12

कड़‍बक कविता का अर्थ | Karbak Class 12

कवि – मलिक मुहम्‍मद जायसी
कवि परिचय

जायसी निर्गुण भक्ति धारा के प्रेममार्गी शाखा के प्रमुख कवि है |
जायसी का जन्म सन् 1492 ई० के आसपास माना जाता है। वे उत्तर प्रदेश के जायस नामक स्थान के रहनेवाले थे।
उनके पिता का नाम मलिक शेख ममरेज (मलिक राजे अशरफ) था
जायसी कुरुप व काने थे।

चेचक के कारण उनका चेहरा रूपहीन हो गया था तथा बाईं आँख और कान से वंचित थे।
उनकी 21 रचनाओं के उल्लेख मिलते हैं जिसमें पद्मावत, अखरावट, आखिरी कलाम, कहरनामा, चित्ररेखा, कान्हावत आदि प्रमुख हैं।

जायसी की मृत्यु 1548 के करीब हुई।

मलिक मुहम्‍मद जायसी ‘प्रेम के पीर’ के कवि हैं।

इस पाठ में दो कड़बक प्रस्तुत किया गया है। पहला कड़बक पद्मावत के प्रारंभिक छंद तथा दूसरा कड़बक पद्मावत के अंतिम छंद से लिया गया है। प्रथम कड़बक में कवि अपने रूपहीनता  और एक आंख के अंधेपन के बारे में कहते हैं। वह रूप से अधिक अपने गुणों की ओर अपना ध्‍यान खींचते हैं।

द्वितीय कड़बक में कवि अपने काव्‍य और उसकी कथासृष्टि के बारे में हमें बताते हैं। वह कहते हैं कि मनुष्‍य मर जाता हैं पर उसकी कीर्ति सुगंध की तरह पीछे रह जाती है।

कड़बक
(1)

एक नैन कबि मुहमद गुनी | सोई बिमोहा जेइँ कबि सुनी |
भावार्थ- स्तुत पंक्तियाँ मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित महाकाव्य पद्मावत के अंश है जिसमे कवि कहते है कि एक नैन के होते हुए भी जायसी गुणी (गुणवान) है। जो भी उनकी काव्य को सुनता है वो मोहित हो जाता है 

चाँद जईस जग विधि औतारा | दीन्ह कलंक कीन्ह उजिआरा। जग सूझा एकइ नैनाहाँ।उवा सूक अस नखतन्ह माहाँ ।
भावार्थ- प्रस्तुत पंक्तियाँ मलिक मुहम्मद जायसी दवारा रचित महाकाव्य पदमावत के अंश है जिसमें कवि कहते है ईश्वर ने उन्हें चंद्रमा की तरह इस धरती पर उतारा लेकिन जैसे चंद्रमा में कमी है वैसे ही कवि मे भी फिर भी कवि चंद्रमा की तरह अपने काव्य की प्रकाश पूरे संसार में फैला रहे है।
जिस प्रकार अकेला शुक्र नक्षत्रों के बीच उदित है। उसी प्रकार कवि ने भी अपनी एक ही ऑख से इस दुनिया को भली-भांति समझ लिया है।

जौ लहि अंबहि डाभ न होई | तौ लहि सुगन्ध बसाइ न सोई।
भावार्थ- प्रस्तुत पंक्तियाँ मलिक मुहम्मद जायसी दवारा रचित महाकाव्य पदमावत के अंश है जिसमे कवि कहते है कि जबतक आम मे नुकीली डाभ (मंजरी) नहीं होती तबतक उसमे सुगंध नहीं आती।

कीन्ह समुन्द्र पानि जौ खारा | तौ अति भएउ असुझ अपारा।
भावार्थ- प्रस्तुत पंक्तियों मलिक मुहम्मद जायसी दवारा रचित महाकाव्य पदमावत के अंश है जिसमे कवि कहते है कि समुन्द्र को पनि खारा है इसलिए ही वह असूझ और अपार है।

जौ सुमेरु तिरसूल बिनासा | भा कंचनगिरि आग अकासा।
भावार्थ- प्रस्तुत पंक्तियाँ मलिक मुहम्मद जायसी दवारा रचित महाकाव्य पदमावत के अंश है जिसमे कवि कहते है कि जबतक सुमेरु पर्वत को त्रिशूल से नष्ट नहीं किया गया तबतक वो सोने का नहीं हआ।

जौ लहि घरी कलंक न परा | कॉच होई नहिं कंचन करा।
भावार्थ- प्रस्तुत पंक्तियों मलिक मुहम्मद जायसी दवारा रचित महाकाव्य पद्मावत के अंश है जिसमे कवि कहते है कि जबतक घेरिया (सोना गलाने वाला पात्र) मे सोने को गलाया नहीं जाता तबतक वह कच्ची धातु सोना नहीं होती।

एक नैन जस दरपन औ तेहि निरमल भाउ।
सब रूपवंत गहि मुख जोवहि कइ चाउ ।।
भावार्थ- प्रस्तुत पंक्तियाँ मलिक मुहम्मद जायसी दवारा रचित महाकाव्य पदमावत के अंश है जिसमें कवि कहते है कि वे एक नैन के होते हए भी दर्पण की तरह निर्मल और स्वच्छ भाव वाले है और उनकी इसी गुण की वजह से बड़े-बड़े रूपवान लोग उनके चरण पकड़ कर कुछ पाने की इच्छा लिए उनके मुख की तरफ ताका करते हैं।

( 2 )

मुहमद कबि यह जोरि सुनावा | सुना जो पेम पीर गा पावा॥
जोरी लाइ रकत कै लेई । गाढ़ी प्रीति नयनन्ह जल भेई॥
भावार्थ- प्रस्तुत पंक्तियाँ मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित महाकाव्य पद्मावत के अंश है जिसमें कवि कहते हैं कि जिसमें कवि अपने काव्य के बारे में बताते हए कहते हैं कि मैंने (मुहम्मद) यह काव्य रचकर सुनाया है और जिसने भी इसे सुना उसे प्रेम की पीड़ा का अनुभव हुआ। मैंने इस काव्य को रक्त की लेई लगाकर जोड़ा है तथा गाढ़ी प्रीति को आँसुओं के जल मे भिंगोया है।

औ मन जानि कबित अस कीन्हा। मक यह रहै जगत महँ चीन्हा॥
कहाँ सो रतनसेन अस राजा | कहाँ सुवा असि बुधि उपराजा॥
कहाँ अलाउदीन सुलतानू । कहँ राघौ जेई कीन्ह बखानू॥
कहँ सुरूप पदुमावति रानी | कोइ न रहा, जग रही कहानी॥
भावार्थ- प्रस्तुत पंक्तियाँ मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित महाकाव्य पद्मावत के अंश हैं जिसमें कवि कहते हैं कि मैंने इसका काव्य की रचना यह जानकार की कि मेरे ना रहने के बाद इस संसार मे मेरी आखिरी निशानी यही हो । अब न वह रत्नसेन है और न वह रूपवती पद्मावती, न वह बुद्धिमान सुआ है और न राघवचेतन या अलाउद्दीन है। आज इनमें से कोई भी नहीं लेकिन यश के रूप में इनकी कहानी रह गई है।

धानि सोई जस कीरति जासू । फूल मरै, पै मरै न बासू॥
भावार्थ- प्रस्तुत पंक्तियाँ मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित महाकाव्य पद्मावत के अंश है जिसमें कवि कहते है कि वह पुरुष धन्य है जिसकी कीर्ति और प्रतिष्ठा इस संसार में है उसी तरह रह जाती है जिस प्रकार पुष्प के मुरझा जाने पर भी उसका सुगंध रह जाता है।

केइँ न जगत जस बेंचा, केइ न लीन्ह जस मोल।
जो यह पढ़ कहानी, हम सँवरै दुइ बोल॥
भावार्थ- प्रस्तुत पंक्तियाँ मलिक मुहम्मद जायसी दवारा रचित महाकाव्य पद्मावत के अंश है जिसमे कवि कहते हैं इस संसार मे यश न तो किसी ने बेचा है और न ही किसी ने खरीदा है | कवि कहते हैं कि जो मेरे कलेजे के खून से रचित कहानी को पढ़ेगा वह हमे दो शब्दों मे याद रखेगा।