3. The Raja’s Dream class 8 | कक्षा 8 अंग्रेजी राजा का सपना

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 8 अंग्रेजी के कविता पाठ तीन ‘The Raja’s Dream (राजा का सपना)’ के प्रत्‍येक पंक्ति के अर्थ को पढ़ेंगे।

The Raja's Dream class 8

THE RAJA’S DREAM

पाठ का परिचय-राजा का सपना’ एक मजाकिया कहानी है। कैसे दिमाग की तत्परता से दूसरो को मात दिया जा सकता है यही इस पाठ से छात्रों को सीख मिलती है। यह कहानी बताती है कि राजा कृष्ण चन्द्र ने अपने साथियों के साथ कई बार गोपाल को मर्ख बनाना चाहा, किन्तु उसने अपनी दिमागी तत्परता से हमेशा उन्हें छकाया।
Raja Krishna Chandra often heard his courtiers complaining that Gopal loved to make everyone appear like a fool. There was hardly anyone in the court who had not at one time or another tried to get their backs at Gopal but always ended up looking like utter idiots. The Raja knew that this was true. It often rankled him that without uttering a single objectionable word the jester had made him feel silly more than once. So one day Krishna Chandra decided to amuse himself by baiting Gopal.
“Ah, Gopal, I have had a strange dream”, announced the Raja the next day as soon as he saw Gopal in the court. And everyone fell silent in order to listen to the king’s dream.
वाक्यार्थ-राजा कृष्णचन्द्र ने अक्सर अपने दरबारियों को शिकायत करते समा गोपाल हरेक को मूर्ख की तरह देखना पसंद करता है। मुश्किल से दरबार में कोई हर जिसने कभी न कभी गोपाल की चुटकी न ली हो किन्तु हमेशा निरा मूर्ख की तरह दिखा हो। राजा जानता था कि यह सही था। इसने उसे अक्सर खिझाया कि बिना को भी आपत्तिजनक शब्द बोले उस मसखरे ने उसे अनेक बार बेवकूफी महसूस करा इसलिए, एक दिन कृष्णचन्द्र ने गोपाल का मजाक उड़ाकर स्वय मजा लेने का निश्चय किया।
“आह, गोपाल, मैने एक सपना देखा है”, राजा ने ज्यों ही अगले दिन गोपाल को दरबार में देखा, घोषणा की। और हर कोई राजा का सपना सुनने के लिए चुप हो गया।
“I dreamt Gopal, that you and I were going for a walk and we reached a place where there were two pools. One of the pools was filled with kheer made of rich thick milk and the other full of horribly smelly dung. Suddenly, I fell into the milky pool and you into rotting muck.”
On hearing this, the courtiers burst out laughing. They obviously relished the thought of the jester covered from head to toe in muck.
Gopal stood unruffled, waiting for everyone to finish laughing. And then surprised everyone by telling the king with great humility that he had exactly the same dream.

The Raja’s Dream class 8
वाक्यार्थ “गोपाल । मैं सपनाया कि तुम और मैं टहल रहे थे और हम लोग ऐसी जगह पहँचे जहाँ दो गड्ढे थे। उन गड्ढो में एक खब गाढ़े दूध से बने खीर से भरा था
और दसरा तेज दुर्गन्ध वाले गोबर से। अचानक मैं उस दूधिए गड्ढे में गिर पड़ा और तुम उस सड़े-गले मलमूत्र मे।’
यह सुनकर दरबारी ठठाकर हँस पड़े। वे स्पष्ट रूप से सिर से पैर तक मलमत्र में लिपटे उस मसखरे पर आनन्द ले रहे थे।
गोपाल सबकी हँसी रुकने की प्रतीक्षा करते हुए शान्त भाव से उठ खड़ा हुआ। और तब खूब नम्रता के साथ राजा को यह कहकर सबको चकित कर दिया कि उसने भी बिलकुल वही सपना देखा था।
The king looked questioningly at Gopal and asked, “You mean everything happened in your dream just the way they happened in mine?”
“Yes, Maharaj”, replied Gopal, “only your dream finished earlier. My dream continued a little longer. I saw both of us coming out of the pool. You covered in kheer and I covered in muck and then I saw that you were licking me and I was licking you in order to clean each other.”
The courtiers almost chocked when they heard this. But unfortunately for everyone, the king was in a good mood and did not mind his legs being pulled a little. In fact he had a good laugh at Gopal’s wit.

The Raja’s Dream class 8

Read more- Click here

Watch Video – Click here

Measure for Measure class 8th English

One Two Three class 8th English

कक्षा 9 इतिहास पाठ 1 भौगोलिक खोजें | Bhaugolik khoj class 9

इस पोस्‍ट में हमलोग कक्षा 9 इतिहास के इकाई एक ‘भौगोलिक खोजें (Bhaugolik khoj class 9)’ के महत्‍वपूर्ण टॉपिकों के बारे में अध्‍ययन करेंगें।

Bhaugolik khoj class 9

परिचय- भौगोलिक खोज ने वैज्ञानिक प्रगति, आर्थिक विकास और व्यापार के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भौगोलिक खोज की प्रारंभ स्पेन एवं पूर्त्तगाल से प्रांरभ हुआ, लेकिन इसमें इंगलैंड, हॉलैंड तथा फ्रांस को अधिक सफलता मिली।
भौगोलिक खाज के परिणामस्वरूप अमेरिका, आस्ट्रेलिया तथा एशिया के अन्य हिस्से का जुड़ाव विश्‍व के साथ हुआ। पृथ्वी के बारे में लोगों को ज्ञान हुआ तथा अंधविश्‍वास दूर हुआ। मध्यकाल में लोग पृथ्वी को चपटी मानते थे और समुद्र में लम्बी दूरी तय नहीं करते थे। उन्हें समुद्र में लम्बी दूरी जाने पर पृथ्वी के किनारों से अन्नत में गिरने का डर बना रहता था। दिशासूचक यंत्र न होने के कारण समुद्र में भटक जाने का भय बना रहता था।
भौगोलिक खाजों की पृष्टभूमि
15वीं शताब्दी तक यूरोप के सभी व्यापार कुस्तुनतुनिया के मार्ग से होता था। परन्तु 1453 ई. में कुस्तुनतुनिया पर तुर्की का अधिकार हो गया, जो यूरोपीय व्यापारियों से भारी कर वसुलने लगे। जिसका हल यूरोपीयनों ने ढ़ूँढ़ना चालू कर दिए। परिणामस्वरूप भौगोलिक खोज की रूपरेखा तैयार हुई।
पूर्त्तगालियों ने तेज चलने वाले जहाज बनाए, जिसे कैरावल कहा जाता था।
1488 में पूर्त्तगाली व्यापारी बार्थोलोमियो डियाज ने दक्षिण अफ्रिका के दक्षिणतम बिंदू उत्तमआशा अंतरिप की खोज किया। जिससे भारत आने में मदद मिली।
1492 ई० में क्रिस्टोफर-कोलम्बस ने अमेरिका की खोज की।
1498 ई० में पूर्त्तगाली नाविक वास्कोडिगामा उत्तमआशा अंतरिप होते हुए भारत की खोज की।
भारत आने में गुजराती व्यापारी अब्दुल मजीद ने वास्कोडिगामा की सहायता की।
वास्कोडिगामा द्वारा भारत से ले गए वस्तुओं को यूरोपीय बाजारों में 26 गुणा मुनाफा पर बेचा गया।
1492 में कोलम्बस ने अमेरिका की खोज की, तथा वह अमेरिका को भारतीय उपमाद्विप का हिस्सा बताया तथा वहाँ के निवासीयों को रेड इंडियन कहा। लेकिन बाद में अमेरिगु वेस्पुची ने इसे विस्तार से खोजा।
अमेरिका को नाम अमेरिगु वेस्पुची के नाम पर पड़ा क्योंकि इसी ने अमेरिका को विस्तार से ढूंढ़ा था।
1519 ई० मैग्लन ने पूरी दुनिया का चक्कर जहाज से लगाया। उसने पाया कि पूरी दुनिया के सभी समुद्र एक दूसरे से जुड़े हैं।
ऑस्ट्रेलिया की खोज कैप्टन कुक ने किया। साथ ही न्युजीलैंड के द्वीपों का पता लगाया।
सर जॉन और सेवास्टिन कैबोट ने न्यूफाउंडलैंड के द्वीपों का पता लगाया।
16वीं षताब्दी के पूर्वार्द्ध तक लगभग समस्त दुनिया की जानकारी यूरोप को हो चूकी थी।
अमेरिकी महाद्वीप को यूरोपीयों द्वारा नई दुनिया कहा गया। क्योंकि कोलम्बस की यात्रा से पहले इसकी जानकारी नहीं थी।
भौगोलिक खोजों का परिणाम :
व्यापार और वाणिज्य के विकास के साथ-साथ मुद्रा का विकास हुआ।
औपनिवेशिक साम्राज्यवाद का विकास हुआ। इंगलैंड, हॉलैंड, फ्रांस तथा कुछ कंपनीयों द्वारा अमेरिका, अफ्रिका, ऑस्ट्रेलिया तथा अन्य द्विप समूहों में उपनिवेश एवं बस्तियाँ बसाई गई।
आधुनिक पूँजीवाद का जन्म हुआ। विश्‍व स्तर पर सोने एवं चाँदी की लूट हुई।
ईसाई धर्म का प्रचार के साथ पश्‍चिमी सभ्यता का प्रसार हुआ।
दास-व्यापार का विकास हुआ।
अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया तथा अफ्रिका के मूल निवासीयों को पकड़कर यूरोपीय बाजारों में बेचा जाना षुरू हुआ। इन गुलामों से जंगल काटने, खेती करने, सड़क बनाने, जहाजों में ईंधन झोंकने आदि कठिन कार्य करवायें जाते थे।
यूरोप में धर्म सुधार आंदोलन शुरू हुआ। ‘पृथ्वी चपटी है’ इस अवधारण का भी अंत हुआ।
यूरोप से कहवा, चाय, मक्का, आलू, तम्बाकू, नील आदि वस्तुओं का आदान-प्रदान दूसरे महाद्वीपों में हुआ। तथा भारत के आम, गन्ना दूसरे क्षेत्रों में पहुँचा।

अभ्यास के प्रश्न तथा उनके उत्तर

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न :

निर्देश : नीचे दिए गए प्रश्नों में चार संकेत चिह्न हैं, जिनमें एक सही या सबसे उपयुक्त है। प्रश्नों का उत्तर देने के लिए प्रश्न- संख्या के सामने वह संकेत चिह्न (क, ख, ग, घ) लिखें, जो सही अथवा सबसे उपयुक्त हो ।

1. वास्कोडिगामा कहाँ का यात्री था ?
(क) स्पेन
(ख) पुर्तगाल
(ग) इंग्लैंड
(घ) अमेरिका

2. यूरोपवासियों ने दिशा-सूचक यंत्र का उपयोग किनसे सीखा ?
(क) भारत से
(ख) रोम से
(ग) अरबों से
(घ) चीन से

3. उत्तमाशा अंतदीप (Cape of Good Hope) की खोज किसने की ?
(क) कोलम्बस ने
(ख) वास्कोडिगामा ने
(ग) मैग्लेन ने
(घ) डियाज बार्थोलोमियो ने

4. अमेरिका की खोज किस वर्ष की गई ?
(क) 1453 में
(ख) 1492 में
(ग) 1498 में
(घ) 1519 मे

5. कुस्तुनतुनिया का पतन किस वर्ष किया गया ?
(क) 1420 में
(ख) 1453 में
(ग) 1510 में
(घ) 1498 में

6. विश्व का चक्कर किस यात्री ने सर्वप्रथम लगाया ?
(क) मैग्लेन
(ख) कैप्टन कुक
(ग) वास्कोडिगामा
(घ) मार्कोपोलो

उत्तर— 1. (ख), 2. (ग), 3. (घ), 4. (ख), 5. (ख), 6. (क) ।

II. नीचे दिए गए कथनों में जो सही (√) हो उसके सामने सही तथा जो गलत हों, उनके सामने गलत (x) का चिह्न लगाएँ ।

1. भारत के मूल निवासियों को रेड, इंडियन कहा जाता है । (x)
   (सही यह है कि यूरोप के मूल निवासियों को रेड इंडियन कहा जाता है ।)
2. उत्तमाशा अंतरीप की खोज ने भारत तक पहुँचने का मार्ग प्रशस्त किया । (√)
3. भारत अटलांटिक महासागर के पूर्वी तट पर स्थित हैं । (x)
    (सही यह है कि अमेरिका अटलांटिक महासागर के पूर्वी तट पर स्थित है ।)
4. मार्कोपोलो ने भारत की खोज की। (x)
    (सही यह है कि वास्कोडिगामा ने भारत की खोज की ।)
5. जेरुसलम वर्तमान ‘इजरायल’ में है । (√)
6. लिस्बन दास – व्यापार का बहुत बड़ा केन्द्र था । (√)
7. अमेरिगु ने नई दुनिया को विस्तार से खोजा । (√)

III. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में दीजिए :

प्रश्न 1. भारत आने में किस भारतीय व्यापारी ने वास्कोडिगामा की मदद की?
उत्तर—भारत आने में भारतीय व्यापारी अब्दुल मजीद ने वास्कोडिगामा की मदद की ।

प्रश्न 2. न्यू फाउंडलैंड का पता किसने लगाया ?
उत्तर—‘सर जॉन’ और ‘सेवास्टिन कैबोट’ ने न्यू फाउंडलैंड का पता लगाया ।

प्रश्न 3. यूरोपीयों द्वारा निर्मित तेज चलनेवाले जहाज को क्या कहा जाता था ?
उत्तर—यूरोपीयों द्वारा निर्मित तेज चलनेवाले जहाज को ‘कैरावल’ कहा जाता था ।

प्रश्न 4. दक्षिण अफ्रीका का दक्षिणतम बिंदु कौन-सा स्थल है ?
उत्तर— दक्षिण अफ्रीका का दक्षिणतम बिंदु उत्तमाशा अंतरीप है ।

प्रश्न 5. 11वीं-12वीं शताब्दी में ईसाइयों एवं मुसलमानों के बीच धर्म युद्ध क्यों हुआ था ?
उत्तर—11वीं-12वीं शताब्दी में जेरुसलम पर अधिकार के लिए ईसाइयों और मुसलमानों के बीच धर्म युद्ध हुआ था ।

प्रश्न 6. 1453 में कुस्तुनतुनिया पर किसने आधिपत्य जमाया ?
उत्तर—1453 में कुस्तुनतुनिया पर तुर्की ने आधिपत्य जमाया।

प्रश्न 7. पुर्तगाल और स्पेन किस महासागर के पास अवस्थित हैं ?
उत्तर—पुर्तगाल अटलांटिक महासागर तथा स्पेन अटलांटिक और भूमध्य सागर के पास अवस्थित हैं ।

IV. लघु उत्तरीय प्रश्न :

निर्देश : निम्न प्रश्नों के उत्तर कम-से-कम 30 एवं अधिकतम 50 शब्दों में दें :

प्रश्न 1. यूरोप में मध्यकाल काल अंधकार का युगक्यों कहा जाता है ?
उत्तर—यूरोप में मध्यकाल को अंधकर का युग इसलिए कहा जाता है, क्योंकि यह युग सामंती प्रवृतियों का युग था । इस युग में न तो वाणिज्य – व्यापार विकसित था और न ही धर्म का रूप ही निश्चित था । धर्म अनुदार और अमानवीय था । मध्ययुगीन यूरोपियनों का विश्वास था कि पृथ्वी चपटी है। चर्च के पादरियों ने लोग को दिग्भ्रमित कर रखा था । इससे यूरोप के लोग अंधविश्वास में जकड़े हुए थे । शिक्षा केवल चर्चों में दी जाती थी, जो मात्र पादरियों तक सीमित रहती थी । इसी कारण यूरोप में मध्यकाल को ‘अंधकार युग’ कहा जाता था ।

प्रश्न 2. भौगोलिक खोजों में वैज्ञानिक उपकरणों का क्या योगदान था ?
उत्तर- भौगोलिक खोजों में वैज्ञानिक उपकरणों का यह योगदान था कि उनकी मदद से समुद्र यात्रा आसान हो गई। इसमें सबसे बड़ा योगदान कम्पास’ अर्थात दिशासूचक का था । यूरोपवालों ने इसका ज्ञान अरबवालों से सीखा था । अब पहले की अपेक्षा मजबूत और बड़े जहाज़ बनने लगे । ‘कैरावल’ नामक जहाज बड़ा मजबूत और तेज चलनेवाला जहाज था । यह वैज्ञानिक आधार पर बना था । एस्ट्रोलोब नामक वैज्ञानिक उपकरण के आविष्कार से आक्षांश जानने में आसानी हुई। दूरबीन के आविष्कार से सामुद्रिक अभियानों में बहुत सहायता मिली ।

प्रश्न 3. भौगोलिक खोजों ने व्यापार वाणिज्य पर किस प्रकार प्रभाव डाले ?
उत्तर—भौगोलिक खोजों ने व्यापार-वाणिज्य पर क्रांतिकारी प्रभाव डाले । इन्हीं खोजों क़े परिणामस्वरूप नये-नये देशों का पता लगा और उन देशों से व्यापारिक सम्पर्क स्थापित किया गया। यूरोपीय व्यापार जो पहले भूमध्यसागर और बल्टिक सागर तक ही सीमित था, भौगोलिक खोजों के पश्चात अटलांटिक, हिन्द तथा प्रशांत महासागरों तक फैल गया ! इसी का परिणाम था कि पेरिस, लंदन, एमस्टरडम, एंटवर्फ आदि नगर विश्व स्तरीय व्यापार के केन्द्र बन गए। अब व्यापार पर से इटली का एकाधिकार समाप्त हो गया और उसके स्थान पर स्पेन, पुर्तगाल, हॉलैंड, इंग्लैंड तथा फ्रांस आदि देश अपना आधिपत्य जमा बैठे। क्रमशः इन देशों ने अपने उपनिवेश भी फैला लिए ।

प्रश्न 4. भौगोलिक खोजों ने किस प्रकार भ्रांतियों को तोड़ा ?
उत्तर—भौगोलिक खोजों ने यूरोपियनों की भ्रांतियों का अंतकर दिया । चर्च द्वारा फैलाई गई अवधारणाओं को लोग संदेह की दृष्टि से देखने लगे । इसी का परिणाम था कि धर्मसुधार आन्दोलन ने तेजी पकड़ा। नए गोलार्द्ध की जानकारी ने यूरोप का पोल खोलकर रख दिया । यूरोपवालों को स्वयं अपनी क्षुद्रता का क्षोभ हुआ । दुनिया की महत्ता की जानकारी ने उनकी आँखें खोल दीं। यही कारण था कि वे नए-नए आविष्कारों के लिए प्रयत्नशील हुए। स्पेनिश सिक्कों से यही ज्ञात हुआ कि सामने और भी है । नक्शे, कम्पास, नक्षत्र प्रणाली से समुद्री यात्राएँ काफी आसान हो गईं। पेशेवर वैज्ञानिक भी सामने आए ।

प्रश्न 5. भौगोलिक खोजों ने किस प्रकार विश्व के मानचित्र में परिवर्तन लाया ?
उत्तर—भौगोलिक खोजों ने कई अन्य देश-महादेशों का पता लगाया, जिनका इसके पूर्व किसी को पता नहीं था । भौगोलिक खोज से ही अमेरिका-चाहे वह उत्तरी अमेरिका हो या दक्षिणी अमेरिका-का पता चला । पुनः अफ्रीका और आस्ट्रेलिया की खोज हुई । इन देशों या महादेशों की खोजों के पश्चात ही विश्व को पाँच महादेशों या महीद्वीपों में बाँटा गया और विश्व का एक नया नक्शा बनाया। इस प्रकार हम देखेते हैं कि भौगोलिक खोजों ने विश्व के मानचित्र को पूरी तरह बदल डाला ।

V. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न :

निर्देश : निम्न प्रश्नों के उत्तर अधिकतम 200 शब्दों में दें :

प्रश्न 1. भौगोलिक खोजों का क्या तात्पर्य है? इसने किस प्रकार विश्व की दूरियाँ घटाईं ?
उत्तर—भौगोलिक खोजों का तात्पर्य है समुद्री मार्गों से नए-नए देशों अर्थात अनजान देशों का पता लगाना । भौगोलिक खोज ही थे, जिनसे नए-नए मार्ग मिले और कुछ अनजाने देश और महादेश भी । भौगोलिक खोजों ने निम्न प्रकार से विश्व की दूरियाँ घटा दीं:
       विश्व की आरंभिक सभ्यताओं के समय से ही व्यापार वाणिज्य परस्पर एक देश का दूसरे देश के साथ सम्पर्क का कारण था। लेकिन उस समय कुछ खास देश खास- खास देशों से ही व्यापारिक सम्बंध बना सके थे। उस समय के जहाज भी छोटे हुआ करते थे। वे नाव से कुछ ही बड़े होते थे। अपना रास्ता तय करने के लिए उन्हें हवा का सहारा लेना पड़ता था । लेकिन जैसे-जैसे भौगोलिक खोजें बढ़ती गईं, वैसे-वैसे बड़े- बड़े और तेज चलनेवाले जहाजों का आविष्कार होता गया । यूरोप से भारत आने का नया रास्ता मिला जो कम समय में ही यहाँ से वहाँ या वहाँ से यहाँ तक पहुँचा जा सकता था। इन देशों और मार्गों को खोजने मे यूरोप का केवल एक-दो देश ही नहीं वरन अनेक देश लगे हुए थे। इसी का परिणाम था कि कुछ वर्षों के अन्दर ही अनेक नए देशों का पता चला। वहाँ के लोगों से सम्पर्क हुआ। उन नए देशों में पहुँचने पर यूरोपीय देशों को वहाँ की जनशक्ति तथा खनिज सम्पदा का पता चला। उसकी प्राप्ति के लिए उनमें होड़ सी मच गई। इसके लिए ही तेज चलनेवाले और मजबूत जहाजों का निर्माण होने लगा । कस्तुनतुनिया पर तुर्कों के अधिकार ने यूरोपियनों को नए मार्गों की खोज और तेज चलनेवाले जहाजों को बनाने पर विवश कर दिया। इस प्रकार हम देखते हैं कि भौगोलिक खोजों ने विश्व की दूरियाँ कम कर दीं। अब कोई देश किसी देश से दूर नहीं समझा जाने लगा ।

प्रश्न 2. भौगोलिक खोजों के कारणों की व्याख्या करें ।
उत्तर—मध्ययुग में पहले अरबों ने और बाद में तुर्की ने विशाल अंतर्राष्ट्रीय साम्राज्य का निर्माण कर लिया था । इसके पूर्व 11वीं-12वीं शताब्दी में जेरुसलम पर अधिकार को लेकर जब धर्मयुद्ध हुआ तो यूरोपियनों को एशियाई देशों की शक्ति का पता चला । जिस सामंती गौरव की दुनिया में अपने को ईश्वर का अवतार समझ बैठे थे, सब मिथ्या लगने लगे। उनका गौरव चकनाचूर हो गया । कस्तुनतुनिया पर तुर्कों के अधिकार से यूरोपीय देशों के व्यापार का मार्ग ही बन्द हो गया। नए मार्गों की खोज के लिए इन्हें भौगोलिक खोजों के लिए मजबूर कर दिया ।
       इसके पूर्व कुछ ऐसे नये-नये आविष्कार हुए, जिनके सहारे समुद्री यात्रा आसान हो गयी । उससे नौसेना के विकास में भी मदद मिला। कम्पास और दूरबीन इन्हीं आविष्कारों में महत्वपूर्ण आविष्कार थे । पुर्तगालियों ने एक नई किस्म के हल्के और तेजी से चलनेवाले जहाज ‘कैरावल’ का निर्माण कर लिया था ।
         इन नये उपकरणों एवं साहस के बल पर यूरोपीय नाविक अटलांटिक महासागर तथा भूमध्य सागर में अपने जहाज को चलाकर प्रयोग भी कर लिया। इसी क्रम में 1488 में पुर्तगाली व्यापारी बार्थोलोमियो डियास ने अफ्रीका के पश्चिमी तट पर से गुजरते हुए दक्षिण अफ्रीका के दक्षिणी बिंदु उत्तमाशा अंतरीप तक पहुँचने में सफलता प्राप्त कर ली । अब उन्हें भारत पहुँचने का आसान मार्ग मिल गया । इससे उत्साहित होकर वे भी भौगोलिक जो आज खोजों में जुट गए। वे अफ्रीका के उन स्थानों तक पहुँचने मे सफल हो गए, तक विश्व के किसी भी अन्य व्यक्ति की पहुँच के बाहर था। वहाँ उनको अपार खनिज सम्पदा और मानव श्रम हाथ लग गया। इसका परिणाम हुआकि यूरोपीय लोग भोगोलिक खोजों में और भी अधिक जी-जान से जुट गए ।

प्रश्न 3. नए अन्वेषित भू-भागों को विश्व के मानचित्र पर अंकित करें । और यह बतावें कि भौगोलिक खोजों से पूर्व आप यदि यूरोप में होते तो भारत से किस प्रकार व्यापार करते ।
उत्तर :
नए अन्वेषित भू-भाग हैं : (1) उत्तर अमेरिकी, (2) दक्षिण अमेरिका, (3) आशा अंतरीप, (4) मेडागास्कर, (5) मॉरिशस, (6) भारत, (7) चीन, (8) सुदूर पूर्व के देश जापान कोरिया, हिन्देशिया आदि, (9) ऑस्ट्रेलिया ।
भौगोलिक खोजो के पूर्व यदि मैं यूरोप में होता तो भारत से व्यापार करने के लिए मैं इटली की राजधानी रोम से भूमध्य सागर होते हुए अटलांटिक महासागर से अफ्रीका के दक्षिणी भाग होते हुए हिन्द महारगगर से होते हुए भारत के पश्चिमी तट केरल तट पर पहुँच जाता।

प्रश्न 4. अंधकार युग से आप क्या समझते हैं? अंधकार युग से बाहर आने में भौगोलिक खोजों ने किस प्रकार मदद की?
उत्तर—मध्यकाल में जब यूरोप सामंतों के चंगुल में फँसा हुआ था, उस समय वहाँ का वाणिज्य-व्यापार भी शिथिलता की स्थिति में थे । धर्म का स्वरूप भी मानवीय नहीं था। पृथ्वी के सम्बंध में वे अज्ञानी ही थे। ज्ञानहीन होने के कारण उनमें अंधविश्वास भरा हुआ था। अंधविश्वास को बढ़ाने में चर्च और चर्च के पादरी हवा देते थे। इसी युग को ‘अंधकार युग’ से सम्बोधित किया जाता है ।
        यूरोपवाले अंधकार युग से तब बाहर निकले जब भौगोलिक खोजों के उपरांत भारत और चीन जैसे सभ्य और उन्नत देशों के सम्पर्क में वे आए। यूरोप के सामंतों के गौरव को तो पहले ही अरबों और तुर्कों ने चूर कर दिया था, अब नए सभ्य देशों के सम्पर्क से उनमें भी सभ्य बनने की लालसा पैदा हुई ।
       भारत, अरब, चीन आदि देशों के विद्वानों ने यूरोप में भी शिक्षा की ज्योति जलाने में मदद की। इसी का परिणाम था कि यूरोप में सुधार आन्दोलन हुए और पुनर्जागरण की लहर दौड़ी। छापाखाना की कला पहले ही चीन से यूरोप में पहुँच चुकी थी । फलतः यूरोपीय समाज में अनेक विचारकों का उदय हुआ और उनकी लिखी पुस्तकें छपकर आम लोगों तक पहुँचने लगी। पुनर्जागरण की पृष्ठभूमि तो धर्मयुद्धों ने ही तैयार कर दी थी, लेकिन भौगोलिक खोजों के पश्चात उनके ज्ञान में और भी वृद्धि हुई । भौगोलिक खोजों ने उपनिवेश बसाने का मार्ग प्रशस्त किया । उपनिवेशों के साथ व्यापार तो होता ही था, ज्ञान और विद्या का भी आदान-प्रदान होता था । फलतः यूरोप में सभ्यता, संस्कृति धर्म एवं साहित्य का प्रचुर प्रचार-प्रसार हुआ । यह सब भौगोलिक खोजों से ही सम्भव हो सका था

प्रश्न 5. भौगोलिक खोजों के परिणामों का वर्णन करें । इसने विश्व पर क्या प्रभाव डाला ?
उत्तर—भौगोलिक खोजों का बहुत ही व्यापक और दूरगामी परिणाम सामने आये । पहली बार लोगों को विश्व के विस्तृत भूखंड से परिचित होने का मौका मिला। व्यापार के प्रसार से पहले तो परस्पर दोनों देश – निर्यातक देश तथा आयातक देश लाभान्वित होते रहे। वाणिज्य-व्यापार की वृद्धि का क्रांतिकारी आविष्कार मुद्रा का आविष्कार था । कागजी मुद्रा का भी हुण्डी के रूप में प्रसार बढ़ गया। इससे एक देश का दूसरे देश के साथ व्यापार में भारी सहुलियत मिली ।
         इसका दूसरा विभत्स रूप तब सामने आया जब आयातक देश निर्यातक देशों का शोषण करने लगे । भौगोलिक खोज और व्यापार के लिए देश के आंतरिक भागों तक यूरोपियनों की पैठ ने अफ्रीका से दासों का आयात आरंभ कर दिया । वे बन्दूकों के बल पर सीधे-सादे अफ्रीकियों को जानवरों जैसे पकड़-पकड़ कर जंजीरों में जकड़ देते थे और जहाजों पर लाद कर अपने देशों में बेचा करते थे । पुर्तगाल की राजधानी तो दास व्यापार का एक विश्व प्रसिद्ध अड्डा बन गया । इन दासों से विकास का काम कराया जाता था । सड़क बनाने, माल ढोने, खेती करने आदि से लेकर घरेलू नौकरों के रूप में भी खटाया जाता था । यह भौगोलिक खोज का विभत्स रूप था ।
        कालान्तर में यूरोपवाले संसार के कोने-कोने में अपना उपनिवेश फैला लिए और उन औपनिवेदिशक देशों का शोषण करने लगे । साथ ही वहाँ उन्होंने अपने लाभ के लिए कुछ विकास के काम भी किए, जिनका लाभ उपनिवेशवासियों को भी मिला ।

Read More – Click here
Class 10th Ncert – Click here

पंचदशः पाठः विश्ववन्दिता वैशाली | Vishwvandita Vaishali class 9th sanskrit

इस पोस्‍ट में हमलोग कक्षा 9 संस्‍कृत के पाठ 15 विश्ववन्दिता वैशाली (Vishwvandita Vaishali class 9th sanskrit) के सभी टॉपिकों के अर्थ का अध्‍ययन करेंगे।

पंचदशः पाठः
विश्ववन्दिता वैशाली

पाठ-परिचयप्रस्तुत पाठ विश्ववन्दिता वैशाली’ आधुनिक गीत है जिसमें लिच्छवियों की प्रसिद्ध राजधानी वैशाली की महिमा गाई गई है। वैशाली ही ऐसा राज्य था, जहाँ सर्वप्रथम गणतन्त्र शासन स्थापित हुआ । इसी के दिव्य प्रकाश से आलोकित होकर सारे संसार में गणतंत्र का प्रचार-प्रसार हुआ। आधुनिक वैशाली जिले में लालगंज के निकट इस राजधानी के प्राचीन अवशेष द्रष्टव्य हैं।

प्रवहति गघ्गा दक्षिणभागे शुभा गण्डकी पश्चिमभागे ।
नृपविशालकुलपुरी वरेण्या विश्ववन्दिता वैशाली ।।1।।

अर्थ-जिसके दक्षिण भाग में गङ्ग तथा पश्चिम भाग में स्वच्छ जलवाली गण्डकी बहती हा जहाँ विशाल नाम का राजा हुआ था, वही संसार द्वारा वन्दित उत्तम वैशाली है।
आशय– प्रस्तुत गीत वैद्यनाथ मित्र द्वारा रचित ‘विश्ववन्दिता वैशाली’ पाठ से उद्धृत । है। इसमें वैशाली की महिमा का गान गाया गया है। सर्वप्रथम गणतन्त्र की स्थापना वैशाली में ही हुई थी। यह लिच्छवियों का केन्द्र था। इसके दक्षिण में निर्मल जल वाली गङ्गा बहती है तो पश्चिम में स्वच्छ जलवाली गण्डकी बहती है । विशाल नामक राजा के नाम पर इसका वैशाली नाम पड़ा। यह अति पवित्र तथा दर्शनीय स्थल है।।

Vishwvandita Vaishali class 9th sanskrit

पुरा विशाला नगरी रम्या सस्यश्यामला अरिभिरगम्या ।
रामलक्ष्मणाभ्यां विलोकिता विश्ववन्दिता वैशाली ।।2।। …… विश्व ………….

अर्थ-विश्ववन्दिता वैशाली पहले अति विशाल, सुन्दर, हरा-भरा, शत्रु का पहुच से बाहर तथा राम-लक्ष्मण द्वारा देखी गई नगरी थी।
भाव-वैशाली अति प्राचीन नगरी है। यह अति विशाल तथा धन-धान्य से पूर्ण थी। इसकी सुन्दरता देखकर भगवान राम तथा लक्ष्मण अभिभूत हो गए थे। तात्पर्य कि वैशाली अपने समय में सारे ऐश्वर्यों से सम्पन्न तथा धर्म की केन्द्रस्थली थी। इन्हीं विशेषताओं के कारण यह विश्व में विख्यात थी।

या सीता-जनिका विशिष्यते या जिनेन्द्रजननी प्रशस्यते ।
या विदेहजनकादिसेविता विश्ववन्दिता वैशाली ।।3।। …… विश्व ………….

अर्थ-जो सीता की जन्मदात्री है, महावीर जैन की जन्म स्थली है तथा जो विदेह जनक आदि द्वारा सेवित है, इसी विशेषता के कारण वैशाली विश्व में वन्दनीय है।
आशय-प्रस्तुत गीत के माध्यम से लेखक ने वैशाली की प्राचीन गौरवगाथा का वर्णन किया है। लेखक का कहना है कि यह भूमि सीता एवं जैन धर्म के संस्थापक महावीर की जन्म स्थली तथा राजा जनक द्वारा सेवित है। यह भूमि अति पवित्र एवं अनेक धर्मों की केन्द्रस्थली है। इसी विशेषता के कारण यह प्रशंसनीय एवं विश्व द्वारा पूज्य है।

यस्यां बु(कृता उपदेशाः सत्याहिंसादिकसन्देशाः ।
आम्रपालिका कलासाध्कि विश्ववन्दिता वैशाली ।।4।। …… विश्व ………….

अर्थ-जिसमें भगवान बुद्ध ने सत्य-अहिंसा का उपदेश दिया, जहाँ आम्रपाली जैसी कलासाधिका आम्रपाली उत्पन्न हुई, वह वैशाली संसार में पूज्य थी।
भाव-भाव यह है कि जहाँ भगवान बुद्ध ने अपने उपदेश द्वारा लोगों में मानवता का संचार किया था तथा भगवान महावीर ने सत्य-अहिंसा का संदेश देकर जैन धर्म की स्थापना की थी और अज्ञानता के अंधकार में भटकते लोगों में ज्ञान की ज्योति जलाई थी तथा आम्रपाली जैसी श्रेष्ठ गणिका उत्पन्न हुई । उनकी कर्मस्थली वैशाली ही थी। इसी महत्ता के कारण वैशाली विश्व में विख्यात एवं पूज्य हुई।

Vishwvandita Vaishali class 9th sanskrit

यत्राशोक-निर्मितः स्तूपः स्तम्भः पुष्करिणी अथ कूपः ।
यस्या ध्रा कीर्तिमातनुते विश्ववन्दिता वैशाली ।।5।। …… विश्व ………….

अर्थ-जहाँ अशोक निर्मित स्तम्भ तथा बौद्धों का गोलाकार स्मारक एवं विशाल तालाब था। उस विश्ववन्दिता वैशाली का यश सारे संसार में फैला हुआ था।
भाव-लेखक के कहने का भाव यह है कि वैशाली इतना समृद्धशाली राज्य था कि उसका यश सम्पूर्ण विश्व में फैला हुआ था । सम्राट अशोक ने वहाँ स्तम्भ एवं बौद्धों का गोलाकार स्मारक बनवाया । इस प्रकार वैशाली धार्मिक दृष्टि से इतना महत्त्वपूर्ण हो गया कि लोग इसे देखने के लिए लालायित हो उठे तथा श्रद्धा का भाव प्रकट करने लगे । फलतः वैशाली संसार में विख्यात हो गया।

यत्रा लिच्छिवी-बज्जिक-संघाः गणनिष्ठाः सुध्यिश्च गुणौघाः ।
प्रजापालने ते विख्याताः विश्ववन्दिता वैशाली ।।6।। …… विश्व ………….

अर्थ-विश्ववन्दिता वैशाली में लिच्छवी तथा बज्जि संघ प्रजा पालन के लिए प्रसिद्ध था। गणतन्त्रतात्मक शासन पद्धति थी। विद्वान लोग गुणों के भण्डार थे।
भाव-लेखक ने वैशाली की शासन-व्यवस्था की विशेषताओं की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए यह स्पष्ट किया है कि विश्व में सर्वप्रथम गणतान्त्रिक शासन पद्धति की स्थापना वैशाली में ही हुई थी। लिच्छवी एवं बज्जी प्रजा की सुरक्षा का पूर्ण ख्याल रखते थे। प्रजा काफी प्रसन्न थी। सभासद विद्वान एवं गुणवान् थे। चारों ओर शांति का वातावरण था। किसी के साथ भेदभाव नहीं किया जाता था। सभी बौद्ध धर्म के प्रति श्रद्धा रखते थे।

शासनविधै प्रकृष्टं तन्त्राम् संविधनसहितं गणतन्त्राम् ।
यस्य समुदयो यत्रा प्रथमतः विश्ववन्दिता वैशाली ।।7।। …… विश्व ………….

अर्थ-जिसकी शासन व्यवस्था उत्तम, संवैधानिक, लोकतांत्रिक तथा जहाँ गणतंत्र का सर्वप्रथम प्रादुर्भाव हुआ, वह विश्ववन्दिता वैशाली है,।।
भाव– प्रस्तुत गीत में लेखक बैद्यनाथ मिश्र ने वैशाली की महिमा का गुणगान किया है। लेखक का कहना है कि लोकतान्त्रिक शासन-व्यवस्था का प्रादुर्भाव सर्वप्रथम यही हुआ था। यहाँ लोकतान्त्रिक परम्परा के कारण शासन-शक्ति जनता के अधीन थी। जनता इस व्यवस्था से पूर्ण संतुष्ट थी तथा सुख-शांति से जीवन व्यतीत करती थी।

यत्रा जनानां वरं जनेभ्यः जनैः शासनं प्रियं समेभ्यः ।
जनतन्त्रां गणतन्त्रा-दिशैव विश्ववन्दिता वैशाली ।।8।। …… विश्व ………….

अर्थ- जहां जनता का, जनता के लिए तथा जनता के द्वारा शासन व्यवस्था का दिशा-निर्देश होता था, वह विश्ववन्दिता वैशाली है।
आशय- प्रस्तुत- गीत वैद्यनाथ मिश्र द्वारा लिखित ‘विश्ववन्दिता वैशाली’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है। इस गीत में लोकतान्त्रिक शासन-व्यवस्था के महत्त्व पर प्रकाश डाला। गया है। लोकतंत्र में शासन-सत्ता जनता के अधीन होती है। जनता अपना प्रतिनिधि चुनकर भेजती है। इसीलिए इस शासन तंत्र को जनता की, जनता के लिए तथा जनता द्वारा निर्वाचित पद्धति कहते हैं। तात्पर्य यह है कि ऐसी शासन परम्परा का प्रादुर्भाव सर्वप्रथम वैशाली में ही हुआ, जिसे विश्व ने मुक्तकंठ से प्रशंसा की।

Bihar Board Class 10th Social Science
Vishwvandita Vaishali class 9th sanskrit Video

चतुर्दशः पाठः राष्ट्रबोध्ः | Rashtrabodh Class 9th Sanskrit

इस पोस्‍ट में हमलोग कक्षा 9 संस्‍कृत के पाठ 14 राष्ट्रबोध्ः (Rashtrabodh Class 9th Sanskrit) के सभी टॉपिकों के अर्थ का अध्‍ययन करेंगे।

चतुर्दशः पाठः
राष्ट्रबोध्ः

पाठ-परिचयप्रस्तुत पाठ ‘राष्ट्रबोध’ में सच्ची राष्ट्रभक्ाि पर प्रकाश डाला गया। है। सच्ची राष्ट्रभक्ति उसे कहते है जब देश के नागरिक ईमानदारीपूर्वक काम करते है। भ्रष्टाचार का विरोध करते है तथा वैसे लोगों के विरुद्ध आवाज उठाते हैं जो प्रष्ट तरीके से धन कमाते हैं। लोगों की आँखों में धूल झोंक कर पैसे ऐंठते हैं। ऐसे राष्ट्रद्रोहियों को दण्डित कराना ही सच्ची राष्ट्रभक्ति है।
विवेकः ध्नंजयेन सह विद्यालयं गच्छन् आसीत्। तौ यावदेव कि×चद्दूरं गतौ तावदेव जलाप्लावनेन  मग्नं मार्गं दृष्ट्वा चिन्ताकुलौ जातौ। आतपे तिष्ठन्तौ उभौ पिपासया आकुलितावभवताम्। ध्न×जयः आपणात्  रेलनीरं क्रीत्वा स्वयं पीत्वा विवेकं च पाययति। ततो ध्न×जयस्तां जलकूपीं पार्श्वे अमर्दितामेव क्षिप्तवान्।  ध्न×जयस्य एतदनुचितं कार्यं यावद् विवेकः निन्दितुम् आरभते तावत् यायावरः कश्चित् बालकः तत्रागत्य तां  कूपीम् उत्थाप्य स्वस्यूते निगूढवान् आसीत्।
तं तया कुर्वन्तं वीक्ष्य विवेकः स्वनेत्रो रक्ते कुर्वन् तर्जयँश्च पृच्छतिµ फ्अरे दुष्ट! कस्त्वम्! एतत्  समाजविरोधि् कार्यं कथं करोषि?तिष्ठ त्वामहम् आरक्षिणे समर्पयामि। बालकः सभयं कम्पमानः निवेदयतिµ . …. हं हं स्वामिन्! अहं विजयः, मा मां तर्जयतु! निर्ध्नतया इतस्ततः विचरन् एकैकां कूपीं चित्वा चोरविपणौ  विक्रीय अल्पध्न×च प्राप्य यथा-तथा उदरज्वालां शमयामि। क्षम्यताम्! यदि भवान् तर्जयितुम् इच्छति साहसं च  धरयति तर्हि तान् …….. तर्जयतु …….। फ्कान् ….? रे दुष्ट! वद! वद! य् इति पृष्टवान् विवेकः।
अर्थ-विवेक धनंजय के साथ विद्यालय जा रहे थे। वे दोनो जैसे ही कुछ दूर गए. वैसे ही बाढ़ से रास्ते को डूबा देखकर चिन्तित हो उठे। धूप में रहने के कारण दोनों प्यास से व्याकुल हो गए । धनंजय बाजार से रेलजल खरीदकर स्वयं पीफर विवेक को पिलाता है। तब धनंजय ने उस जल के बोतल को बिना तोड़े बगल में फेक दिया । धनंजय के इस अनुचित कार्य की आलोचना करना विवेक आरंभ करता है, तभी इधर-उधर घूमने वाले कोई लड़का वहाँ आकर उस बोतल को अपने थैले में चुपचाप रख लिया।
उसे ऐसा करते देखकर विवेक क्रोधित होकर पूछा-अरे बदमाश! तुम कौन हो? समाज विरोधी ऐसा कार्य क्यों करते हो? रुको, मैं तुमको पुलिस के हवाले करता हूँ। लड़का भय से काँपते हुए निवेदन करता है। मैं विजय हूँ, मुझे मत रोके । गरीबी के कारण इधर-उधर घूमते हुए एक-एक बोतल को चुनकर चोरी के बाजार में बेचकर कुछ पैसे प्राप्त कर येन-केन प्रकार भूख शांत करता हूँ। क्षमा करें। यदि आग बंद कराना चाहते हैं और साहसी हैं ….. तो उनको …. बन्द करावें । किनको ….? रे दुष्ट! बोलो-बोलो! विवेक ने पूछा।

Rashtrabodh Class 9th Sanskrit
विजयः निःश्वस्य प्रत्यवदत्µ अहं यत् स्थानं स्यड्ढे.तं च निदर्शयामि तत्रा गत्वा विकृतवस्तु-  निर्माणरतान् तान् देशद्रोहिणः तर्जयतु। बालकस्य विजयस्य वचः श्रुत्वा आश्चर्यचकितौ विवेकः  ध्न×जयश्च तस्य प्रशंसां कुरुतः। तथा च तं पठितुं प्रेरयतः। सो{पि विवेकस्य ध्न×जयस्य मतेन प्रभावितः  पठितुं प्रतिज्ञाय स्वस्यड्ढे.तं प्रदाय ध्न्यवादं च विज्ञाप्य प्रस्थितः। अथ तेन बालकेन निर्दिष्टं स्यड्ढे.तं चादाय इमौ  छात्रौ नौकाम् आरुह्य विद्यालयं गतवन्तौ।
विवेकः ध्नंजयश्च स्वविद्यालयं विलम्बेन प्रविष्टौ। वर्गाध्यापकः विलम्बस्य कारणं ज्ञातुम् ऐच्छत्।  तयोः छात्रायोः कथनं श्रुत्वा वर्गाध्यापकः उद्वेलितः स×जातः।
अथ स तौ नीत्वा प्राचार्यकार्यालयं प्रविष्टः। शिक्षकः विवेकµध्नंजययोः वृत्तान्तं प्राचार्यम्  अश्रावयत्। प्राचार्यः गम्भीरतया विचारयन् आरक्षिस्थानकं सूचितवान्। आरक्षिणः तत्रा कुत्सितकर्मरतानां  राष्ट्रद्रोहिणां स्यड्ढे.तं स्थानं च गुप्तरीत्या परितः संवृत्य सावधनतया एकैकवस्तुनः परीक्षणं कृतवन्तः। तस्मिन्  क्रमे विकृतानाम् औषधनां तैलानां खाद्यानां चोष्याणां पेयानां च पदार्थानां प्रभूतराशिं प्राप्तवन्तः।
तत्रौव आत्यड्ढ.वादिनां पत्रास्यड्ढे.तादिकं विकृतरूप्यकाणि, साहित्यानि च उपलब्धनि। सूक्ष्मनिरीक्षणेन  अस्मिन् षड्यन्त्रो समाजस्य अनेके बहिःसभ्याश्च लिप्ताः प्रतीताः। आरक्षिनिरीक्षकः शीघ्रमेव उच्चाध्किरिणः  सूचयित्वा तेषां निर्देशं च प्राप्य तान् राष्ट्रद्रोहिणः विकृतवस्तुनिर्माणे संलग्नान् निगृह्य कारागारं प्रेषितवान्।  आरक्षिप्रशासनम् अस्य अभियानस्य प्रेरकौ विवेकं ध्न×जयं च पुरस्कृतौ अकरोत्।
अर्थ-विजय साँस छोड़ते हुए बोला कि मैं जिस जगह को बताता हूँ, वहाँ जाकर उन दूषित वस्तु निर्माण करने वाले देशद्रोहियों को रोकें । बालक विजय की बात सुनकर आश्चर्यचकित विवेक और धनंजय उसकी प्रशंसा करते हैं और वे दोनों उसे पढ़ने के लिए प्रेरित करते है। उसने भी उन दोनों के विचार से प्रभावित होकर पढ़ने की प्रतिज्ञा करके उन्हें धन्यवाद देते हुए प्रस्थान किया। इसके बाद उस बालक द्वारा बताए गए संकेत लेकर वे नाव पर चढ़कर विद्यालय को चल पड़े।
विवेक एवं धनंजय अपने विद्यालय देर से पहुँचे। वर्ग शिक्षक ने देर का कारण जानना चाहा । वर्ग शिक्षक उन दोनों की कहानी सुनकर उद्वेलित हो गए। इसके बाद वह उन दोना। को प्राचार्य के पास ले गए। शिक्षक ने विवेक तथा धनंजय की बातें प्रानार्ग को सुनाई।। प्राचार्य ने इस घटना को गंभीरता से लेते हुए पुलिस थाने को सूचित किया। पुलिस ने। गुप्त रूप से नकली सामान बनाने वाले राष्ट्रद्रोहियों की जगह चारों ओर से घरकर। सावधानीपूर्वक एक-एक वस्तु की जाँच की। उस दौरान नकली दवा, तेल तथा चूसने योग्य खाद्य पदार्थ तथा पेय वस्तुओं को काफी मात्रा में पाया।
वहीं आतंकवादियों के पत्रादि, नकली रुपये तथा साहित्य को पाया। गहन जाँच से उस षड्यंत्र में समाज के बाहर के तथा सभ्य लोगों के लिप्त होने का पता चला। पुलिस निरीक्षक शीघ्र ही अपने उच्च अधिकारियों को सूचित करके तथा उनसे आदेश प्राप्त करके उन राष्ट्रद्रोही. नकली सामान बनाने वालों को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया और इस अभियान के प्रेरक विवेक एवं धनंजय को पुरस्कृत किया।

Rashtrabodh Class 9th Sanskrit
अथ राजकीये शिक्षकदिवससमारोहे विद्यालयस्य प्राचार्यं वर्गाध्यापकं विवेकं ध्नंजयं विजयं च  सगौरवं सबहुमानं समादृत्य मुख्यमंत्रा समबोधयत्µ फ्देव्यः! सज्जनाश्च! अद्य वयं विवेकस्य ध्नंजयस्य  विजयस्य च समाजबोधेन राष्ट्रबोधेन च आनन्दम् अनुभवामः। अस्माकं छात्राः शिक्षकाश्च यदि सुसंस्कृता  भवन्ति तर्हि सर्वविध्समस्यानां निवारणं सुकरं वर्तते। अद्य छात्रासहयोगेन राष्ट्रद्रोहिणः निगृहीताः सन्ति। एकैकः  नागरिकः एवमेव आचरेत् तर्हि अस्माकं समाजस्य राष्ट्रस्य च उपरि यत् स्यड्ढ.टम् अस्ति तस्य निवारणं भवेत्।  यद्येको{पि जनः मार्गं दूषितं कुर्वन्तं, वृक्षं छिन्दन्तं, देशविरोधिना सह षड्यन्त्रां रचयन्तं राष्ट्रविरोधे च जनंजनसमूहं सघ्घटनं च रोध्यति, यथासम्भवं च आरक्षिभ्यः समर्पयति तर्हि तस्य महती देशभक्तिः स्यात्, तस्य  महान् राष्ट्रबोध्श्च स्यात्। अस्माभिः राष्ट्रभक्तैः भवितव्यम्। एतदर्थं राष्ट्रबोध्ः अपेक्षितः।
अर्थ-इसके बाद राजकीय शिक्षक दिवस के अवसर पर विद्यालय के प्राचार्य वीशक्षक, विवेक, धनंजय तथा विजय को गौरव के साथ बहुत आदर करके मुख्यमत्रा का सबोधित किया-हे देव और सज्जन बन्धु ! आज मैं विवेक, धनंजय एवं विजय का समाज भक्ति तथा राष्ट्रभक्ति संबंधी ज्ञान से अभिभूत आनंद का अनुभव करता हूँ। याद हमारे छात्र तथा शिक्षक सुसभ्य हो जाते हैं तो सारी समस्याओं का निदान आसानापूर्वक हो जाता है। आप के सहयोग से देशद्रोही कैद हैं। सभी नागरिक यदि ऐसा ही आवरण कर तो हमारे समाज और राष्ट्र के ऊपर कोई खतरा है तो उसका निदान हो जाता है। याद काई भी व्यक्ति गलत काम करता है, पेड़ काटता है, देश के विरोधियों के साथ षड्यन्त्र रचता है, देश के हित करने वालों को संगठित होने से रोकता है तो ऐसे लोगों को पुलिस को सौंपकर अपनी देशभक्ति का परिचय देना चाहिए। यही सच्ची राष्ट्रभक्ति है। हम भी। राष्ट्रभक्त होना चाहिए। इसीलिए राष्ट्रभक्ति आवश्यक है। और कहा गया है
यः समाजस्य देशस्य सर्वकालेषु यत्नतः ।
रक्षां करोति तस्यैव राष्ट्रबोध्ः प्रशस्यते ।।
अर्थ- जो (व्‍यक्ति) हर स्थिति में समाज एवं उद्देश्‍य की सत्‍नपूर्वक रक्षा करता है, उसकी ही राष्‍ट्रभक्ति प्रशंशा पाती है।

Bihar Board Class 10th Social Science
Rashtrabodh Class 9th Sanskrit Video

त्रायोदशः पाठः किशोराणां मनोविज्ञानम् | Kishoranan Manovigyanam

इस पोस्‍ट में हमलोग कक्षा 9 संस्‍कृत के पाठ 13 किशोराणां मनोविज्ञानम् (Kishoranan Manovigyanam) के सभी टॉपिकों के अर्थ का अध्‍ययन करेंगे।

त्रायोदशः पाठः
किशोराणां मनोविज्ञानम्

पाठ-परिचय-ग्यारह से पन्द्रह वर्ष के बीच आयुवाले बच्चों को किशोर कहा जाता है। इसी समय लड़के अपने भावी जीवन की नींव रखते हैं तथा उसके अनुरूप अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रयास करते हैं। यह सच है कि यही अवस्था बच्चों के भावी जीवन का आधार होती है, इसलिए वे एक-दूसरे से आगे निकलने के लिए जी-तोड़ परिश्रम करना आरंभ करते हैं।

Kishoranan Manovigyanam
जीवने परिवर्तनं प्रकृतेर्नियमः। न सदा एकरूपता तिष्ठति। अतएव कृष्णः गीतायां ‘कौमारं यौवनं  जरा’ इति रूपेण जीवने{वस्थात्रायं निर्दिशति। तत्रा कौमारमेव किशोरावस्था कथ्यते।  बालावस्थायुवावस्थयोरन्तराले च सा भवति। उच्चविद्यालये{ध्ीयानाः किशोराः किशोर्यश्च भवन्ति। विद्यालये  सामान्यशिक्षाक्रमेण ते परम्परागतं पाठमेवानुसरन्ति। ¯कतु तेषां शारीरिको मनोवैज्ञानिकश्च पक्षावुपेक्षितौ स्तः।  न शिक्षका न चाभिभावका विषये{स्मिन् दत्तावधनाः।
किशोराणां किशोरीणां च शरीरं मनश्च युवावस्थां प्रति प्रवर्तेते। शरीरे तावन्मार्दवं बाललक्षणं शनैः  शनैः परुषतां प्राप्नोति, यौवनलक्षणानि च समाविशन्ति। शरीरेण सह मनसो{पि वृत्ति-विकारः आगच्छति।  अनुशासनं तदानीमप्रियं भवति, स्वैरवृत्तिः स्वच्छन्दता वा पदं धरयति मानसे। विशेषरूपेण एकलपरिवारे  स्थितानां किशोराणां तु सैव कथा, संयुत्तफपरिवारे तु सहिष्णुता बन्ध्ुभावो वा न विनश्यति। सम्पन्नपरिवारे  पालिताः किशोराः यदा कदा स्वमित्राणि विकृतानि कुर्वते। तेषां महत्त्वाकाघ्क्षां वर्ध्यन्ति। एते च स्वपरिवारं  प्रति आक्रोशभावमपि प्रकटयन्ति। किशोरेषु विकसितस्य तादृशस्य दिवास्वप्नस्य परिशोध्नं परिमार्जनं  चावश्यकं भवति। तदर्थं शिक्षकाभिभावकयोर्मध्ये काले काले संवादः विचारविमर्शश्चानिवार्यः।
अर्थ-जीवन में परिवर्तन प्रकृति का नियम है। जीवन में हमेशा एकरूपता नहीं। रहती। इसीलिए श्रीकृष्ण गीता में कौमार्य, यौवन तथा बुढ़ापा के रूप में जीवन को तीन भागों में बाँट दिया है। वहाँ कौमार्य को ही किशोर कहते है। यह अवस्था बाल्यवास्था तथा युवावस्था के बीच में होती है। उच्च विद्यालयों में पढ़ने वाले किशोर-किशोरियाँ होते है। विद्यालय में सामान्य शिक्षा द्वारा वे परम्परागत पाठ को ही पढ़ते हैं। किन्तु उनका शारीरिक एवं मनोवैज्ञानिक पक्ष उपेक्षित रहते हैं। न तो शिक्षक और न ही अभिभावक इस विषय में सावधान रहते हैं।
किशोर और किशोरियों का शरीर एवं मन युवावस्था में बदल जाते हैं। शारीरिक विकास के कारण बाल्यावस्था की मुदता धीर-धार कठोरता में बदल जाती है। और जवानी के सारे लक्षण प्रतीत होने लगते है। शरीर के साथ मन भी दूषित हो जाते है। उस समय अनुशासन अपिय लगने लगता है। मन में मनमाने ढंग से रहने का विचार आ जाता है। खासकर एकल परिवार में किशोरों की स्थिति तो ऐसी है किन्तु संयुक्त परिवार में सहनशीलता तथा बंधुत्व की भावना नष्ट नहीं होती। सम्पन्न परिवार में पले हए किशोर अपने मित्रों को कभी-कभी दषित कर देते है अर्थात् उनके चरित्र का बिगाड देते
है। उनको आकांक्षा को बढ़ा देते हैं और अपने परिवार के प्रति आक्रोश प्रकट करते है। किशोरों में विकसित इस प्रकार की अवास्तविक कल्पना को रोकना अति आवश्यक है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए शिक्षक एवं अभिभावक के बीच समय-समय पर विचारविमर्श होना अनिवार्य है।

Kishoranan Manovigyanam
जीवनं प्रति आशावदभिः किशौरैर्भवितव्यम्। किन्तु स्वकीयं मूलं साध्नजातं च न विस्मरणीयम्।  समाजे सुलभानां साध्नानामुपयोगेन स्वाभिलाषस्य पूरणं श्रेयः। लक्ष्यं च दूरतो दृश्यमानमपि सदानुबन्ध-  शालिभिर्लभ्यते। एतदर्थं महतां जनानां जीवनचरितस्यापि यदा कदानुशीलनम् अनुसरणं च कर्तव्यम्।
नारीणां जागरणकाले{ध्ुना किशोर्यो{पि स्वाभिलाषस्य सोद्देश्यतां पूरयितुं क्षमाः सन्ति। नैकमपि कार्यं  सम्प्रति ताभिरलभ्यं दृश्यते। तथापि संकल्पस्य दृढता, साध्नानां स्वाभीष्टदिशया च प्रवर्तनमपि काम्यं स्यात्।  साध्नाभावे कुण्ठापालनं नोचितम्। अन्यथा प्रतिभाया विनाशः, सुलभस्यापि साध्नस्यानुपयोग इति। अत्रा  नीतिकारस्य पद्यांशस्याभिनवः अर्थः अनुसरणीयःµ
अर्थ-किशोरावस्था से ही जीवन के प्रति आशानान् होना चाहिए। किन्तु अपनी क्षमता और साधन को नहीं भूलना चाहिए। समाज में उपलब्ध साधनों के उपयोग द्वारा अपनी इच्छा को पूर्ति करना श्रेयस्कर होता है। और लक्ष्य को दूर देखते हुए भी सदा द्रद निश्चयवालों द्वारा ही प्राप्त किया जाता है. इसलिए महान् लोगों के जीवन चरित का कभी-कभी अध्ययन तथा अनुसरण करना भी कर्त्तव्य अर्थात् आवश्यक है।
नारी के जागरणकाल में अब किशोरियाँ भी अपनी इच्छा के अनुसार अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए सक्षम है। वर्तमान समय में कोई भी ऐसा कार्य नहीं है जो किशोरया के लिए अलभ्य है। अर्थात् वे हर क्षेत्र में विद्यमान हैं। फिर भी दृढ़ निश्चय के साथ साधनों का मनोनुकूल दिशा से अपेक्षित उपयोग हो। साधन के अभाव में कुण्ठित होना अनुचित है। क्योंकि इससे प्रतिभा नष्ट होती है और साधनों का दुरूपयोग होता है। यहाँ नीतिकार के पद्यांश का नवीन अर्थ अपनाने योग्य है

Kishoranan Manovigyanam

दैवं निहत्य कुरु पौरुषमात्मशक्त्या
यत्ने कृते यदि न सिध्यति को{त्रा दोषः ।

अर्थ-भाग्य को छोड़कर अपनी सामर्थ्य भर परिश्रम करो। यदि प्रयल करने पर भा सफलता नहीं मिलती है तो इसमें किसका दोष है ? किसी का नहीं।
भाव-भाव यह है कि जब कोई व्यक्ति अपनी शक्ति से पुरुषार्थ प्राप्त करना चाहतात. किन्तु प्रयत्न करने के बावजूद वह असफल हो जाता है तो ऐसा स्थिति म कसा पर दाप थोपने के बजाय तब तक परिश्रम करना चाहिए जब तक उद्देश्य का पात न हो जाए। भाग्य को दोष देकर हाथ-पर-हाथ रखकर बैठ जाना उचित नहीं है।
अर्थात् प्रयत्नस्य पफलं यदि सत्वरं न लभ्यते तदा चिन्तनीयमेतद् यन्मम प्रयत्ने कः कुत्रा च दोषः आसीत्।  सिद्ध कथं न जाता इति। पुनः प्रयासो{वधेयः। ‘प्रारब्ध्मुत्तमजना न परित्यजन्ति’ इति कवेर्वचनम् ।  शिक्षाकाले तु वर्तमानकार्यमेव चिन्तयेत् । नातिदूरं पश्येत् अन्यथा वर्तमानमपि गतं स्यात् श्रेष्ठः कालो  वर्तमानः इति सुध्यिः कथयन्ति। संकल्पस्य दृढता, दृष्टेः व्यापकता चेति किशोरजीवनस्य मन्त्राद्वयं सदा  स्मरणीयम्।
अर्थ-अथात् प्रयत्न का परिणाम यदि शीघ प्राप्त नहीं होता है तब यह साचना क मेरे प्रयास म कहा और कौन-सी त्रुटि या कमी थी. सफलता क्यों नहीं मिली। फिर स प्रयास करना चाहिए। महापुरुष आरंभ किये हुए कार्य का त्याग नहीं करते हैं, ऐसा कवियों का मानना है।
विधार्थी जीवन में जो उपस्थित कार्य के विषय में सोंचना चाहिए। उच्‍छाकांक्षी न होना चाहिए क्‍योंकि इससे वर्तमान भी खो जाता है।  विद्वानो का मानना है कि वर्तमान ही सबसे मुल्‍यवान् समय होता है। दृढ़ संकल्‍प और व्‍यापक दृष्टि किशोरावस्‍था के ये दो मंत्र सदा स्‍मरण रखने योग्‍य है।

Bihar Board Class 10th Social Science
Kishoranan Manovigyanam Class 9th Sanskrit Video

द्वादशः पाठः वीर कुँवर सिंहः | Veer Kunwar Singh class 9th Sanskrit

इस पोस्‍ट में हमलोग कक्षा 9 संस्‍कृत के पाठ 12 वीर कुँवर सिंहः (Veer Kunwar Singh class 9th Sanskrit) के सभी टॉपिकों के अर्थ का अध्‍ययन करेंगे।

द्वादशः पाठः
वीर कुँवर सिंहः

पाठ-परिचय-1857 ई. के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में अंग्रेजों के विरुद्ध काला अग्रदूत जगदीशपुर (भोजपुर) के सामन्त बाबू कुंवर सिंह का नाम गर्व से लिया जाता है। वे अपनी वीरता, साहस एवं पराक्रम के लिए प्रसिद्ध हैं। इन्होने अपना जीवन देशी आजादी के लिए मातृभूमि को बलिवेदी पर अर्पित कर दिया। प्रस्तुत पाठ में इस महान योद्धा एवं देशभक्त कुंवर सिंह का संक्षिप्त जीवन वर्णित है।
शौर्यस्य पराक्रमस्य धैर्यस्य च समन्वयरूपो वीरकुँवरसिंहः देशस्य स्वतन्त्रातार्थम् आन्दोलनस्य  अनुपमः सेनानीः आसीत्। बिहारराज्यस्य भोजपुरमंडलस्य जगदीशपुरग्रामे{स्य जन्माभवत्। जनको{स्य  साहेबजादासिंहः अतीव प्रभावशाली पुरुषः। देवीभक्तः कुँवरसिंहः आखेटकुशलः आसीत्।
तारुण्ये एतस्य विवाहः गयाप्रमण्डले स्थितस्य सूर्यतीर्थस्य ‘देव’ नामकस्य भूस्वामिनः  पफतेहनारायणसिंहस्य कन्यया जातः। कुँवरसिंहे सिंहासनमारूढे सति जगदीशपुरे अनेके जनकल्याणस्य  कार्यक्रमाः स×चालिताः। अनेन उदारहृदयेन न्यायव्यवस्थायां सर्वेषां वर्गाणां प्रतिनिध्त्विं नियोजितम्। सर्वत्रा  शान्तिः समृ(श्च संस्थापिते।
अर्थ-वीरता, पराक्रम तथा धैर्य का समन्वित रूप वीर कुंवर सिंह देश की स्वतंत्रता के लिए आंदोलन के अद्वितीय सेनापति थे। बिहार राजग के भोजपुर जिलान्तर्गत जगदीशपुर गांव में इनका जन्म हुआ। इनके पिता साहेबजादा सिंह अति प्रभावशाली पुरुष थे। देवीभक्त कुंवर सिंह शिकार करने में निपुण थे।
जवानी में इनका विवाह गया जिलान्तर्गत सूर्यतीर्थ देव नाम के जमींदार फतेहनारायण सिंह को पत्री से हुआ। कुवर सिह ने सिहासन पर बठत हा जगदीशपुर में अनेक जनकल्याण का कार्यक्रम आरंभ किया। इनके द्वारा उदारतापूर्वक न्याय व्यवस्था में सभी वर्गों के प्रतिनिधित्व की व्यवस्था की गई। इन्होंने सर्वत्र शांति तथा समृद्धि की स्थापना की।

Veer Kunwar Singh class 9th Sanskrit
1845 तमे खीष्टवर्षे भारते प्रखररूपेण आंग्लशासनविरोध्स्य ज्वाला प्रज्वलिता। तदानीम्  आंग्लशासकेषु भयं व्याप्तम्। आंग्लानां विरोधे प्रचलितेषु आन्दोलनेषु कुँवरसिंहस्य सक्रिया भूमिका बभूव।  1857 तमे खीष्टवर्षे भारतस्य प्रथमः स्वतंत्रातासंग्रामो{भवत्। कुँवरसिंहः स्वसेनायां वीरयुवकान् गृहीतवान्।  आंग्लाध्किरिणः आन्दोलनं विपफलीकर्तुं तथा आन्दोलनकारिणः अवरोद्धु निग्रहीतुं, ताडयितुं च अनेकान्  उपायान् अकुर्वन्। 1857 तमे खीष्टवर्षे जूनमासस्य 19 तमे दिना्यड्ढे. पाटलिपुत्रो स्वतंत्रातासेनानिनः त्रिरघ्गं  ध्वजं समुत्तोलितवन्तः। तत्रा टेलरस्य दमनचक्रेण अनेके वीरपुत्राः निगृहीताः मृत्युदण्डं च प्राप्ताः।
अर्थ-1845 ई. में भारत में अंग्रेजों के विरोध की आग ने उग्र रूप धारण कर लिया। उस समय अंग्रेज शासकों में भय छा गया। अंग्रेजों के विरुद्ध चल रहे आंदोलन में कुँवर सिंह ने सक्रिय भूमिका निभाई। 1857 ई. में भारत का प्रथम स्वातंत्र्य संग्राम आरंभ हुआ। कुँवर सिंह अपनी सेना में वीर युवकों को बहाल किया। अंग्रेज अधिकारी आंदोलन को विफल करने तथा आंदोलनकारियों को रोकने के लिए, गिरफ्तार करने तथा उन्हें दण्ड देने हेतु अनेक उपाय किए। 1857 ई. के 19 जून को पटना में, स्वतंत्रता सेनानियों ने तिरंगा झंडा फहराया। वहाँ टेलर के दमनचक्र के फलस्वरूप अनेक वीरपुत्र कैद हुए तथा उन्होंने फाँसी की सजा पाई।
तद्वर्षे जुलाईमासस्य 26 तमे दिनांके दानापुर-शिबिरस्य विद्रोहिणः सैनिकाः आरां प्रति प्रस्थातुम्  आरब्ध्वन्तः कुँवरसिंहस्य नेतृत्वे आत्मनः उत्सर्गाय प्रस्तुताः। जुलाईमासस्य 29/30 दिना्यड्ढे. 500 सेनिकैः  सह डनवरनामकः आंग्लसैन्याध्किरी वीरकुँवरसिंहेन पराजितो{भवत्। अनया घटनया 
क्रांतिकारिषु उत्साहः वधि्र्तः। तदा सम्पूर्णे प्राचीनशाहाबादमंडले कुँवरसिंहस्य अध्किरः स×जातः। कुँवरसिंहः  क्षेत्रात् क्षेत्रान्तरं गत्वा विद्रोहम् उदघोषयत् जनान् च संघटितान् अकरोत्। अस्मिन् क्रमे तेन रामगढस्यमिर्जापुरस्य, विजयगढस्य च यात्रा कृता। नवम्बरस्य सप्तमे दिना्यड्ढे. ग्वालियरस्य सेना कुँवरसिंहस्य सेनायां  समाविष्टा। कुँवरसिंहस्य विजयाभियानम् आजमगढे, गाजीपुरे, सिकन्दरपुरे च सपफलतया सम्पन्नम्।
अर्थ-उसी वर्ष जुलाई मास के 26 तारीख को दानापुर छावनी के विद्रोही सैनिकों ने आरा की ओर प्रस्थान करना आरंभ किया। वे कुंवर सिंह की अगुवाई में अपने आपको -उत्सर्ग के लिए तैयार हो गये। जुलाई मास की उनतीस एवं तीस तारीख को सैनिकों के साथ डरवन नामक अंग्रेज अधिकारी वीर कुंवर सिंह से पराजित हो गया। इस घटना से क्रांतिकारियों का उत्साह बढ़ा। तब सम्पूर्ण पुराने शाहाबाद जिले पर कुँवर सिंह का अधिकार । हो गया। कुंवर सिंह ने एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र जाकर विद्रोह की घोषणा की तथा लोगों को संगठित किया। इस क्रम में उनके द्वारा रामगढ़, मिर्जापुर, विजयगढ़ की यात्रा की गई। नवम्बर के सात तारीख को ग्वालियर की सेना कुंवर सिंह में मिल गई। कुँवर सिंह का विजय अभियान आजमगढ़, गाजीपुर, सिकन्दरपुर में सफलता के साथ सम्पन्न हुआ।

Veer Kunwar Singh class 9th Sanskrit
1858 तमे खीष्‍टाब्‍दे अपै्रल मासस्य 22 तमे दिना्यड्ढे. वीरकुँवरसिंहस्य स्वसैनिकैः सह गङ्गापारंगच्छतः आंग्लानां भुशुण्डीगोलिकाप्रहारेण दक्षिणहस्तो विकृतो जातः। सः स्वयमेव हस्तं खड्गेन  खण्डयित्वा गघ्गायै समर्पितवान्। ततो द्वितीये दिने 23 तमे दिना्यड्ढे. ‘ले गै्रण्ड’ नामकम् आंग्लसेनापतिं स  पराजितवान्। अनेन सर्वत्रा वीरकुँवरसिंहस्य जयघोषः समारब्ध्ः। अपै्रलमासस्य अयमेव 23 तमो दिनांक विजयदिवसः इति समुद्घोषितः।
युद्धे सततं संघर्षरतस्य वीरकुँवरस्य शरीरावयवाः विकृताः व्रणान्विताश्च जाताः। पफलतः अपै्रलमासस्य  26 तमो दिना्यड्ढे. भारतमातुः वीरपुत्रो{यं दिवंगतः । सत्यमेव भणितम्µ ‘कीतिर्यस्य स जीवति।’
अर्थ-1858 ई. के 22 अप्रैल को वीर कुंवर सिंह का अपने सैनिको के साथ गंगा पार करते समय अंग्रेजों की बन्दूक की गोली लगने से दाहिना हाथ बेकार हो गया। उन्होंने अपने हाथ को तलवार से काटकर गंगा को अर्पित कर दिया। तत्व दूसरे दिन 23 अप्रैल को उन्होंने की ‘ले अण्ड’ नाम के अंग्रेज सेनापति को पराजित किया। इससे सर्वत्र वीर कुँवर सिंह का जयघोष होने लगा। अप्रैल माह 23 तारीख को विजय दिवस घोषित किया गया।
सदा युद्ध लड़ते रहने के कारण वीर कुंवर सिंह के शरीर के सारे अंग बेकार तथा घावों से युक्त हो गये। परिणामतः अप्रैल मास के 26 तारीख को भारत माता के इस वीर पुत्र का निधन हो गया। सत्य ही कहा गया है-‘अच्छे कर्म वाले अमर हो जाते है।

Bihar Board Class 10th Social Science
Veer Kunwar Singh class 9th Sanskrit Video

एकादशः पाठः ग्राम्यजीवनम् | Gram Jeevanam Class 9th Sanskrit

इस पोस्‍ट में हमलोग कक्षा 9 संस्‍कृत के पाठ 11 ग्राम्यजीवनम् (Gram Jeevanam Class 9th Sanskrit) के सभी टॉपिकों के अर्थ का अध्‍ययन करेंगे।

एकादशः पाठः
ग्राम्यजीवनम्

पाठ-परिचय-प्रस्तुत पाठ ‘पागजीवनम्’ में ग्रामीण जीवन की दुःस्थिति का वर्णन किया गया है। ऐसा माना जाता है कि आरंभ में ग्रामीण जीवा को ईश्वर का वरदान तथा आनन्द का रूप माना जाता था, किन्तु आज ग्राम अभिशाप बने हुए हैं। भारत की आत्मा गाँवों में निवास करती है, यह कथनी भर के लिए रह गई है। आज के वैज्ञानिक युग में ‘भा गाव का दशा बद से बदतर होती देखकर लोग यहाँ से नगरों की ओर पलायन करने लगे है। पाठ में ग्राम्य जीवन की दशा और सुधार को दिशा का निरूपण किया गया है।
अस्माकं देशे जनाः ग्रामे नगरे च वसन्ति। ग्रामाणां संख्या नगरापेक्षया नूनमध्कि वर्तते। नगराणां  संख्या तु क्रमशः वर्ध्ते किन्तु ग्रामसंख्या न तथा वृद्ध लभते। अधुना ये नगरवासिनः, प्राचीनकाले ते  ग्रामवासिनः एव। केचित् स्वग्रामेण संबन्ध्मद्यापि निर्वहन्ति।
एका प्राचीनोत्तिफर्वर्तते-प्रकृतिर्ग्राममसृजत्, नगरं तु मानवस्य रचनेति। अस्यार्थस्तुµ ग्रामस्य  विकासः प्राकृतिकः, नगराणि तु कृत्रिमाणि सन्ति। मानवः स्वस्य भौतिकीं सुखसमृद्ध कल्पयित्वा महता  प्रयासेन नगराणि निर्ममे। भोजनं वसनम् आवासश्चेति तिस्रः आवश्यकताः मानवस्य वर्तन्ते। ग्रामे एताः  न्यूनतमाः प्राप्यन्ते इति तत्रात्याः जनाः सन्तोषप्रधनाः। किन्तु एतल्लाभार्थं ध्नमावश्यकम्। कृषिप्रधना  ध्नव्यवस्था ग्रामे{द्यापि वर्तते। क्वचिदेव व्यापारः उद्योगो वा विद्यते। अतएव ग्राम्यजनाः ध्नार्जनाय नगरं  प्रति पलायमाना दृश्यन्ते।
अर्थ-हमारे देश में लोग गाँव तथा नगर में रहते हैं। गाँव की संख्या नगर का अपेक्षा निश्चय ही अधिक है। नगरों की संख्या तो क्रमशः बढ़ रही है, किन्तु ग्रामाण वैसा विकास नहीं कर रहे है। आज जो नगरवासी है, वे पूर्व में ग्रामवासी था कुछ आज भी अपने मागीण संबंध का निर्वाह कर रहे हैं।
एक प्राचीन कहावत है कि प्रकृति ने गाँवों की सृष्टि की। नगर तो मानव द्वारा स्थापित है। इसका अर्थ है कि गाँतों का विकास प्राकृतिक है जबकि नगर तो कृत्रिम है। मनुष्य ने अपनी भौतिक सुख-समृद्धि की कल्पना करके काफी प्रयलपूर्वक नगरी का निर्माण किया। मनुष्य की तीन मुख्य आवश्यकताएँ हैं-भोजन, वस्त्र तथा आवास । ग्रामीण कम आमदनी के बावजूद संतुष्ट रहते हैं। किन्तु इतने से अधिक लाभ के लिए धन आवश्यक है। गांवों में कृषिप्रधान व्यवस्था आज भी विद्यमान है। व्यापार तथा उद्योग तो नहीं के बराबर हैं। इसीलिए ग्रामीण लोग धन कमाने के लिए नगर की ओर भागते हुए दिखाई देते हैं।

Gram Jeevanam Class 9th Sanskrit
प्राचीनकाले ग्राम्यजीवनं बहुसुखमयं बभूव। सन्तुष्टाः ग्रामवासिनः यदा कदैव नगरं गच्छन्ति स्म।  सुखस्य साध्नानि तदानीमुपलब्धनि ग्रामीणेभ्यो रोचन्ते। शुद्ध जलं निर्मलो वायुः, स्वपरिश्रमार्जितमसमाजे सामंजस्यं, जनानां परिमिता च संख्या-एतत्सर्वं ग्राम्यजीवनस्य लक्षणं बभूव। कृत्रिमा भौतिकी  संस्कृतिः भारतस्य ग्रामान् बहुकालं यावत् नास्पृशत्। विदेशेषु तु ग्रामे{पि वैज्ञानिकी समृ(रागता यथा-  विद्युत्प्रवाहः, आधुनिकसंचारव्यवस्था, यातायातसाध्नानि, कृषिकर्मणे यन्त्रोपस्करादीनि च। नेदं  भारतीयग्रामेषु दृश्यते प्रायेण। अतएवाद्य ग्राम्यजीवनं न वरदानरूपं मन्यते। सम्पन्नाः ग्रामीणा अपि 
नगरं प्रति पलायनपराः, तत्रा का कथा विपन्नानां वृत्तिहीनानां ग्रामजनानाम्?इमे नगरेषु जीविकां लभन्ते, पूर्वे तु  सुखसमृ(जातं भौतिकीं सुविधां चेति।
अर्थ-प्राचीन काल में प्रामीण जीवन अति सुखमय था। सन्तुष्ट मामवासी सदाकदा ही नगर (शहर) जाते थे। सुख के सारे साधन उस समय उपलब्ध होने के करण गाँव अच्छा लग रहा था। शुद्ध जल, स्वच्छ हवा, अपने द्वारा उपार्जित अन्न, सामाजिक प्रेम, लोगों द्वारा लागू नियम तथा संख्या, ये सभी ग्रामीण जीवन के मुख्य लक्षण थे। कृत्रिम भौतिक संस्कृति भारत के गाँवों को दीर्घकाल तक प्रभावित नहीं किया। विदेश में तो गाँवों में भी वैज्ञानिक विकास हो गया है, जैसे—बिजली, संचार, यातायात तथा कृषि यंत्र उपलब्ध है किन्तु भारतीय गाँवो में ये सब नहीं देखे जाते । इसलिए आज गाँव का जीवन वरदान के रूप में नहीं माना जाता । सुखी-सम्पन्न ग्रानवासी र्भी नगर की ओर भाग रहे है तो निर्धन एवं आजीविका के साधन से रहित लोगों का क्या कहना । गे नगरों में जीविका (नौकरी) प्राप्त करते हैं। पहले तो गे सुख-समृद्धि तथा भौतिक सुविधा प्राप्त करते हैं।

Gram Jeevanam Class 9th Sanskrit
अपि च, ग्रामे नाद्य स्वर्गस्य कल्पना वर्तते। अतः नाद्यत्वे ग्राम्यजीवनं प्रशस्तमिति साहित्येषु गीयते।  अद्य क्वचिद् ग्रामेषु अनावृष्टिकारणात्, क्वचिच्चातिवृष्टिनिमित्तात्, कदाचिन्नदीषु जलपूरेण तटबन्ध्भघ्गात्  महदेव ग्रामजनसंकटम् आपद्यते। विहारप्रदेशे तु सर्वमिदं युगपद् दृश्यते इत्यभिशापमेव मन्यन्ते ग्राम्यजीवनम्।  समाजे च राजनीतिप्रसारेण दलप्रतिब(ता, जातिवादः भूमिविवादः इत्याद्यपि संकटकारणं विशेषेण ग्रामेषु  दृश्यते।
तदर्थं मानवतावादस्य विकासः आवश्यकः। युवका जने जने समताभावं दर्शयन्तु। प्रकृतिः सर्वान्  मानवान् समानशरीरावयवैः रचयति। कुतस्तत्रा कृत्रिमो मानवकृतो वैरभावः?ग्रामे कामं न भवतु भौतिकी  समृद्ध, किन्तु पर्यावरणस्य निर्मलता तत्रौव बाहुल्येन वर्तते इति न सन्देहः। नगरजीवनस्य समृद्धग्रामे{पि  समानेया प्रशासनेन। तदैव ग्राम्यजीवनं सुखदं काम्यं च भविष्यति। नगरं प्रति पलायनं चावरुद्धं स्यात्।
अर्थ आज गाँवों में स्वर्ग की कल्पना नहीं है। इसलिए आजकल ग्राम्यजीवा प्रशसा साहित्य में नहीं गाया जाता। आज गाँवो में कभी अनावृष्टि, कभी अतिवृष्टि की
सष्ट, कभी नदियों में बाढ़ के कारण बाँध के टूटने से गाँवों में भयंकर विपत्ति आ पड़ती है। जिस राज्य मे तो ये सभी एक साथ देखे जाते हैं। इससे प्राग्यजीवन अभिशाप माने जाते है। समाज में राजनीतिक प्रसार से दलबंदी, जातिवाद, भूमि-विवाद आज गाँवों मे विशेष रूप से पाए जाते हैं। इस कारण मानवता का विकास आवश्यक है। युवक लोगों में समानता का व्यवहार करें। प्रकृति ने सारे मनुष्यों को एक समान रूप-रंग दिए हैं। वहाँ (गाँवों में मानव द्वारा विकसित कृत्रिम बैरभाव कहाँ। गाँव में भले ही भौतिक समृद्धि न हो, किन्त स्वच्छ पर्यावरण की सुविधा गाँव में ही पायी जाती है, इसमें कोई संदेह नहीं। नगरीय जीवन की समृद्धि के समान ही गाँवों में भी प्रशासन के सहयोग से विकास हो तभी ग्रामीण जीवन सुखद होगा। नगर की ओर भागने की प्रवृत्ति बंद होगी।

Bihar Board Class 10th Social Science
Gram Jeevanam Class 9th Sanskrit Video

दशमः पाठः ईद-महोत्सवः | Eid Mahotsav Class 9th Sanskrit

इस पोस्‍ट में हमलोग कक्षा 9 संस्‍कृत के पाठ 10 ईद-महोत्सवः (Eid Mahotsav Class 9th Sanskrit) के सभी टॉपिकों के अर्थ का अध्‍ययन करेंगे।

दशमः पाठः
ईद-महोत्सवः

पाठ-परिचय प्रस्तुत पाठ ईद-महोत्सव’ में मुसलमानों के महान पर्व ईद के महत्व, स्वरूप तथा विधानों का वर्णन किया गया है। यह पर्व सामाजिक एवं मानवीय सद्भावनाओं का प्रतीक है। इसमें सभी लोग आपस में एक-दूसरे को गले लगाते हैं। साथ-साथ खाते है तथा मिलजुल कर उत्सव का आनन्द लेते है। यह पर्व प्रेग, सौहार्द, भाईचारे तथा खुशी का पर्व है। इस दिन लोग सारे भेदभावों को भूल एकसाथ नमाज अता करते है तथा एकता का परिचय देते हैं।
भारतदेस्य परम्परा र्ध्मप्रधना। देशे{स्मिन् नाना र्ध्माः सन्ति। येन प्रकारेण हिन्दूनां मुख्योत्सवाः  दीपावली-रक्षाबन्ध्न-दुर्गापूजा-प्रभृतयः सन्ति तथैव महम्मदीयानाम् उत्सवेषु सर्वोत्तमः ‘ईद’ इति मन्यते।  मूलतः उत्सवो{यं तपस्यायाः उपासनायाश्च पर्व मन्यते। सामाजिक-मानवीय-सद्भावनायाः दृष्ट्या अपि  अत्याकर्षकमिदं पर्व। अस्मिन् पर्वणि महम्मदीयाः रमजानमासे चन्द्रमसं विलोक्य ‘रोजा’ इति व्रतं प्रारभन्ते।  अस्यां रोजायां पूर्णं दिनं व्रतधरिणः उपवासं कुर्वन्ति। पुनः संध्याकाले सम्मिल्य ‘इफ्रतार’ नामकम्  उपवासभंगं कुर्वन्ति। मासमेकं यावत् इदम् पर्व भवति। 
अर्थ भारत देश की परंपरा धर्मप्रधान है। इस देश में अनेक धर्मो के लोग रहते है। जिस प्रकार हिन्दुओं का मुख्य पर्व दीपावली, रक्षा बंधन, दुर्गापूजा, होली आदि है, उसी प्रकार मुसलमानों का सबसे महान् पर्व ‘ईद’ है। यह उत्सव तपस्या तथा उपासना का पर्व माना जाता है। सामाजिक एवं मानवीय सद्भावना की दृष्टि से भी यह अति महत्त्वपूर्ण पर्व है। इस पर्व में मुसलमान रमजान के महीनों में चन्द्रमा को देखकर अर्थात् शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि से अगले महीने की द्वितीया तिथि तक दिन भर उपवास रखते । है। रोजा के समय दिन भर उपवास करते है तथा संध्या होने पर इफ्तार करते अर्थात् । उपवास तोड़ते हैं। एक महीना तक यह व्रत चलता है।

Eid Mahotsav Class 9th Sanskrit
मासस्यान्तिमे शुक्रवारे ;जुमा इति ख्यातेद्ध ते रमजानस्य मासावसाने च संध्यायां पुनः चन्द्रं दृष्ट्वा  अन्येद्युः प्रातःकाले ईदस्य ‘नमाज’ इति प्रार्थनां कुर्वन्ति। अनुष्ठानमिदं सामूहिकरूपेण पूर्णं क्रियते।  एतदर्थमेव नमाजस्थानम् ‘ईदगाह’ कथ्यते। नैतादृशम् आनन्ददायकम् अन्यत् पर्व। ईदमहोत्सवस्य दिने जनाः  नवानि वसनानि धरयन्ति। मध्ुराणि पक्वान्नानि च मिलित्वा खादन्ति। पक्वान्नेषु- सूत्रिका ;सेवईद्ध प्रधना।  दुग्ध्युक्तानि अन्यानि वस्तूनि च खाद्यन्ते। चिकित्साशास्त्रादृष्ट्या मनसः वचसः कर्मणश्च शुद्ध्यर्थमिदं पर्व  मन्यते। अवसरे{स्मिन् प्रायः सर्वें जनाः निर्ध्नाः ध्निकाश्च यथाशक्ति दीनार्तानाम् सेवार्थं दानं कुर्वन्ति।  तदेव दानं ‘जकात’ इति ‘पिफतरा’ इति च कथ्यते। तद्दानम् अनिवार्यं मन्यते। वर्षे वर्षे समागतस्य  ईदमहोत्सवस्य प्रतीक्षा सर्वैः क्रियते। यतः सर्वानपि आनन्दसागरे{यं निमज्जयति। ध्न्यो{यमुत्सवः एकतायाः  प्रसन्नतायाश्च औदार्यस्य च प्रतीकः।
अर्थ-महीना का अन्तिम शुक्रवार जुमा के नाम से प्रसिद्ध है। वे रमजान नहीने के अन्तिम दिन संध्या में पुनः चन्द्रमा को देखकर अगले दिन सुबह के समय ईद’ की प्रार्थना नमाज अता करते है। यह वत समूह रूप में पूर्ण किया जाता है। इसीलिए नमाज अता करने के स्थान को ‘ईदगाह’ कहा जाता है। इस पर्व के समान आनन्ददायक दूसरा पर्व नहीं होता। ईद महोत्सव के दिन लोग नये वस्त्र पहनते हैं। मिठाई और पकवानों को सब मिलकर खाते हैं। पकवानों में ‘सेवई’ मुख्य होती है। साथ हो, दूध से बनी अन्य वस्तुएँ खाते हैं । चिकित्साशास्त्र के अनुसार मन-वचन-कर्म की शुद्धता के लिए यह गर्व मनाया
जाता है। प्रायः सब लोग तथा धनवान् गरीबो की सहायता के लिए यथाशक्ति दार देते । हैं। इस प्रकार के दान को ‘जकात’ और ‘फितरा’ कहा जाता है। इसमें दान देना अनिवार्य होता है। प्रत्येक साल आने वाले ईद महोत्सव की प्रतीक्षा सभी करते हैं। क्योंकि यह पर्व लोगों को काफी आनन्द प्रदान करता है। धन्य है यह पर्व जो लोगों को एकता, प्रसन्तता तथा उदारता का पाठ पढ़ाता है।

Eid Mahotsav Class 9th Sanskrit

सर्वर्ध्मसमत्वेन भारते{पि महोत्सवः ।
ईदाख्यो वार्षिको{प्येष परमानन्ददायकः ।।

अर्थ-भारत में सभी धर्मों के लोग समानता की भावना से महोत्सव मनाते हैं । ईद नाम का यह वार्षिक पर्व भी अति आनन्ददायक होता है।
भाव-भाव यह है कि भारत में हर धर्म के महोत्सव को समान दृष्टि से देखा जाता है। हर कोई दूसरे धर्म के पर्व (उत्सव) को सम्मान से देखते हैं तथा मनाते हैं। यह वार्षिक पर्व भी उसी का हिस्सा है जो मानव जाति को एकता, भाईचारा, उदारता तथा प्रसन्नता का संदेश लेकर आता है, जिसे लोग उत्साहपूर्वक मनाते हैं। सभी धर्मों के पों का उद्देश्य मानवता की शिक्षा देना होता है। भारत इस क्षेत्र में विश्व में अग्रगण्य है।

Bihar Board Class 10th Social Science
Eid Mahotsav Class 9th Sanskritt Video

नवमः पाठः बिहारस्य सांस्कृतिकं वैभवम् | Biharasya Sanskritikan Vaibhavam

इस पोस्‍ट में हमलोग कक्षा 9 संस्‍कृत के पाठ 9 बिहारस्य सांस्कृतिकं वैभवम् (Biharasya Sanskritikan Vaibhavam) के सभी टॉपिकों के अर्थ का अध्‍ययन करेंगे।

नवमः पाठः

बिहारस्य सांस्कृतिकं वैभवम्

पाठ-परिचय-प्रस्तुत पाठ ‘बिहारस्य सांस्कृतिक वैभवम् में बिहार की सांस्कृतिक उपलब्धि का संक्षिप्त परिचय दिया गया है। यह राज्य न केवल धर्म, दर्शन, ज्योतिष व्याकरण आदि शास्त्रों का केन्द्र रहा है, बल्कि संगीत, नृत्य, चित्र तथा मूर्ति कला के क्षेत्र में भी अग्रगण्य रहा है । इस प्रकार परम्परा-प्राप्त सांस्कृतिक क्षेत्रों में सारे धर्मावलंबी तथा भिन्न-भिन्न जातियों के योगदान है।
Biharasya Sanskritikan Vaibhavam
संगीतं कलासु प्रमुखम्। गीतं नृत्यं त्रा वाद्यं च चयं संगीतमुच्यते। देवाराध्नस्य पुरुषार्थसम्प्राप्तेः  . प्रमुखं साध्नमेतत्। एतदर्थं लोकजीवनस्य अभिन्नम् अ्र्यिं मदम्। जनैः समायोजितेषु संस्कारोत्सवेषु  तत्तद्भावपुरस्सरं गीतानि गीयन्ते। तानि च गीतानि संस्कारगीतानि कथ्यन्ते। तेषु मुण्डन -यज्ञोपवीत – विवाह -कोहवर -सोहर – समदाओन-गीतानि मुख्यानि। अत्रा संगीत-परम्परायां केचिद् विशिष्टाः  साध्काः अभवन्। तेषु स्वनामध्न्याः पण्डित रामचतुरµमल्लिक-पण्डित सियाराम तिवारीµ प्रभृतयः  विश्वविश्रुताः। नृत्यं भाव-प्रकाशकं वर्तते। आचार्यज्योतिरीश्वर ठक्कुरेण ‘वर्णरत्नाकरे’ नृत्यस्य लास्य-ताण्डव  सम्भा-हल्लीस-रासकेति बहवो भेदाः कथिताः। तत्रा लास्यं माध्ुर्यभावसूचकं भवति। 
अर्थ— कलाओं में संगीत प्रमुख माना जाता है। गीत, नृत्य वाजा को संगीत कहा जाता है। इस प्रकार लोक जीवन का यह अभिन्न अंग है। लोगों द्वारा आयोजित संस्कार उत्सवों में भाव के अनुसार गीत गाये जाते हैं। इन गीतों को संस्कार गीत कहते हैं। इन गीतों में गुण्डन, यज्ञोपवीत (जनेऊ), विवाह, कोहबर, सोहर, समदीन आदि गीत मुख्य हैं। यहाँ संगीत-परम्परा में कई श्रेष्ठ साधकं हुए। उनमें पंडित रामचतुर मल्लिक, पंडित सियाराम तिवारी आदि-आदि विश्वविख्यात हुए। नृत्य के भावो को प्रकट करने वाला कहते है। आचार्य ज्योतिः ईश्वर ठाकुर द्वारा लिखित ‘वर्णरत्नाकर’ ग्रंथ में नृत्य के लास्य-ताण्डव, सम्भा, हल्लीस, रास-इस प्रकार अनेक भेदों की चर्चा की गई है। उनमें लास्य को माभुर्यभाव को व्यंजित करने वाला बताया गया है।
Biharasya Sanskritikan Vaibhavam
अस्मिन् राज्ये लोकनृत्यस्य प्राचीना परम्परा। सर्वेषु अ×चलेषु स्व-स्वलोकनृत्यानि प्रसि(ानि। तत्रा  मिथिलायां जटजटिन सामा चकेवा-मिझिया-होली कमलापूजेति नृत्यप्रकाराः प्रचलिताः। एवमेव  अ×चलान्तरेष्वपि बहूनि लोकनृत्यानि। यथा मगध्मण्डले ‘खेलडिन’-डोमकचादयः भोजपुरमण्डले  नेटुआ-जोगीरा-चैता-गौंड इत्यादयः नृत्यभेदाः प्रसिद्धा।
नाट्यं जनरुचिव(र्कं लोकाराध्नक्षमं विज्ञैः पंचमो वेदः कथ्यते। अत्रा राज्ये विशिष्टेषु समारोहेषु  पूजनावसरेषु च जनैः ऐतिहासिकवृत्तमिश्रितानि सामाजिकानि च नाट्यानि सोत्साहं प्रस्तूयन्ते जनैश्च  बहुमन्यन्ते। गीत-नृत्यसमन्वितानि लोकनाट्यान्यपि प्रचलितानि। यथा मिथिलायां
रामलीला-किरतनिया-विदापत प्रभृतीनि नाट्यानि। भोजपुरी-अ×चले भिखारी ठाकुरस्य ‘विदेशिया’ इति  नामकं लोकनाट्यम् अतीव लोकप्रियम्।
अर्थ- इस राज्य में लोकनृत्य की पुरानी परम्परा है। सभी क्षेत्रों में अपना अपना लोकनृत्य प्रसिद्ध है। मिथिला में जट-जटी, सामा-चकेवा, मिझिया-होली, कमला पूजा आदि से संबद्ध भिन्न-भिन्न प्रकार के गीत प्रचलित हैं। इसी प्रकार दूसरे क्षेत्रों में भी अनेक प्रकार के लोकनृत्य प्रचलित हैं। जैसे—मगध क्षेत्र में ‘खेलाडन, डोगकच’ आदि, भोजपुर क्षेत्र में नेटुआ, जोगीरा, चैता, गोंडऊ आदि प्रकार के नृत्य प्रसिद्ध है। नाटक को उत्साहवर्द्धक तथा सबके लिए सुखकर होने के कारण विद्वानों ने इसे पंचम वेद माना है। इस राज्य में विशिष्ट आयोजनों, पूजा आदि के अवसरों पर लोगों द्वारा ऐतिहासिक, सामाजिक मिश्रित कथाओं से संबंधित नाटक उत्साह के साथ प्रस्तुत किये जाते है तथा लोगों द्वारा मनाये जाते हैं। यहाँ गीत-नृत्य समन्वित नाटकों का प्रचलन भी है। जैसे मिथिला में रामलीला, किरतनिया, विद्यापति आदि प्रचलित है। भोजपुरी क्षेत्र में भिखारी ठाकुर का विदेशिया’ नामक लोकनृत्य अति लोकप्रिय है।
Biharasya Sanskritikan Vaibhavam
राज्ये{स्मिन् सर्वेषु अ×चलेषु चित्राकलायाः प्रचलनं संस्कारकार्येषु दृश्यते। मिथिलाक्षेत्रो देवपूजनावसरे  संस्कारोत्सवेषु च स्त्राभिः भूमौ ‘अल्पना’ भित्तिचित्राणि च निर्मीयन्ते। तानि च चित्राणि प्रायः गृहे प्राघ्गणेभित्तौ, तुलसीचत्वरे कोवरगृहे च रच्यन्ते। इयं हि चित्राकला इदानीं मिथिला चित्राकला-नाम्ना विख्याता जाता।  अस्यां चित्राविद्यायां कुशलाः पप्रश्री सम्मानिताः जगदम्बाµमहासुन्दरीµ प्रभृतयः स्त्रियः बिहारराज्यस्य  गौरवभूताः।
मूर्तिकला अपि राज्यस्य वैभवम्। अत्रा मृन्मयानि विविध्वस्तुरचितानि च क्रीडनकानि आपणेषु बहुध  दृश्यन्ते। धर्मिकावसरेषु च प्रायः मूर्तिकलाविद्भिः तृण-कर्गद-मृद्भिः संरचिताः देवमूर्तयः स्थाप्यन्ते जनैः  पूज्यन्ते च। कुम्भकारैः मृत्तिकानिर्मिताः गजानां घोटकाना×च मूर्तयः विवाहावसरेषु विशेषतः मण्डपाभ्यन्तरे  स्थाप्यन्ते।
वस्तुतः बिहारः भारतवर्षे सांस्कृतिकदृष्ट्या गौरवमयं पदं धरयति। 
अर्थ— इस राज्य के सारे क्षेत्रों में चित्रकला का प्रचलन संस्कार कार्य अर्थात् मुण्डन जनेऊ, विवाहादि अवसरों पर देखे जाते है। मिथिला क्षेत्र में देवपूजन, नुग्डन, उपनयन एवं विवाह के अवसर पर स्वियो द्वारा भूमि पर ‘ऐपन’ (अल्पना) रेखाचित्रों का निर्माण किया जाता है। उन चित्रों को प्रायः घर में, प्रांगण में, दीवाल पर, तुलसो चबूतरा पर, कोहवर घर में खींचते है या रचना करते हैं। यही चित्रकला इस समय मिथिला चित्र कला के नाम से प्रसिद्ध है। इस चित्रविद्या में निपुण जगदम्बा, महासुन्दरी आदि ने ‘पद्मन्त्री से सम्मानित होकर बिहार की स्वियों को गौरवान्वित किया। मूर्तिकला भी राज्य का धरोहर है। यहां मिट्टी से बनी अनेक प्रकार की वस्तुएँ तथा खेल-सामग्री बाजारों में अक्सर देखे जाते हैं। धार्मिक कार्य के अवसर पर प्रायः मूर्तिकार द्वारा पास, कागज तथा मिट्टियों से निर्मित देवताओं की मूर्तियाँ स्थापित की जाती हैं तथा पूजी जाती हैं। कुम्हार द्वारा मिट्टी निर्मित हाथी तथा घोड़ो की मूर्ति विवाह के अवसर पर विवाह मंडप के अंदर स्थापित किए जाते हैं।

Bihar Board Class 10th Social Science
Biharasya Sanskritikan Vaibhavam Class 9th Sanskrit Video

अष्टमः पाठः नीतिपद्यानि (निति विषय‍क पध) | Nitipadhani Class 9th Sanskrit

इस पोस्‍ट में हमलोग कक्षा 9 संस्‍कृत के पाठ 8 नीतिपद्यानि (निति विषय‍क पध) (Nitipadhani Class 9th Sanskrit) के सभी टॉपिकों के अर्थ का अध्‍ययन करेंगे।

अष्टमः पाठः

नीतिपद्यानि (निति विषय‍क पध)

पाठ-परिचय-संस्कृत वाङ्मय में भर्तृहरि का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इन्होंने सूक्ति साहित्य की रचना कर अपनी जान-गरिमा का परिचय दिया है। इनके प्रसिद्ध शतक काव्य है- वैराग्यशतक, शृंगारशतक तथा नीतिशतक । प्रस्तुत पाठ नोतिशतक से लिया गया। अंश है। इसमें जीवनोपयोगी शाश्वत मूल्यों, अच्छे मित्रों के कर्तव्य, सद्जनों के चरित्र, धन के उपयोग, उत्तमजनों की क्रियाशीलता, महापुरुषों की दिनचर्या आदि के बारे में बड़े रोचक ढंग से विचार व्यक्त किए गए हैं। सामान्यतः सूक्तियों में गूढभाव छिपे होते है, जो पाठक के मन-मस्तिष्क में हलचल पैदा कर देते हैं।
Nitipadhani Class 9th Sanskrit

अज्ञः सुखमाराध्यः सुखतरमाराध्यते विशेषज्ञः ।
ज्ञानलवदुर्विदग्ध्ं ब्रह्मापि नरं न रंजयति ।।1।।

अर्थ— अज्ञानी व्‍यक्ति बड़ी कठिनाई से किसी बात को स्‍वीकार करते है। ज्ञानी किसी भी सच्‍चाई को तुरंत स्‍वीकार कर लेते है।ह किन्‍तु वैसे मनुष्‍य जो न तो मुर्ख है और न ही ज्ञानी वैसे मनुष्‍य को ब्रहमा भी संतुष्‍ट नहीं कर सकतें हैं।

येषां न विद्या न तपो न दानं न चापि शीलं न गुणो न र्ध्मः ।
ते मर्त्यलोके भुवि चारभूता मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति ।।2।।

अर्थ-मृत्युलोक में जिसे विद्या, तपस्या, दान, ज्ञान, शील, गुण तथा धर्म नहीं है वह पृथ्वी पर (पृथ्वी का) बोझ बन कर जानवरों के समान पूमता (फिरता) है।
भाव-‘नीतिशतकम् से संकलित प्रस्तुत श्लोक मे वैसे व्यक्ति के संबंध में कहा गया है जिसे विद्या, तपस्या, दान, ज्ञान, शील तथा धर्म नहीं है, वह धरती पर (पृथ्वी का) बोझ बनकर जानवरों के समान घूमता-फिरता है। अतः नीतिकार के कहने का तात्पर्य है। कि संसार में वही व्यक्ति पूज्य होता है जिसमें कोई गुण होता है। गुणहीन व्यक्ति को पशुवत् जीवन व्यतीत करना पड़ता है। क्योंकि ऐसे व्यक्ति से समाज का कोई उपकार नहीं होता है।
Nitipadhani Class 9th Sanskrit

जाड्यं ध्यि हरति सि×चति वाचि सत्यं मानोन्नतिं दिशति पापमपाकरोति ।
चेतः प्रसादयति दिक्षु तनोति कीर्तिं सत्संगतिः कथय किं न करोति पुंसाम् ।।

अर्थ-अच्छी संगति बौद्धिक जड़ता (नंदता) को हरती है, वाणी में सचाई का संचार करती है, प्रतिष्ठा एवं उन्नति प्रदान करती है। पाप को दूर कर चित्त को प्रसन्नता प्रदान करती है, सभी दिशाओं में यश फैलाती है। इस प्रकार सद्संगति मनुष्यों का क्या नहीं करती है अर्थात् सब कुछ करती है।
भाव-नीतिपद्यानि’ पाउ से उद्धृत प्रस्तुत श्लोक में सद्संगति के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है। नीतिकार के अनुसार सद्संगति उस औषधि के समान होती है जो व्यक्ति के सारे दोषों को दूर कर सब प्रकार से उत्थान करती है। इससे व्यक्ति की बुद्धि का विकास होता है, चित्त प्रसन्न रहता है, वाणी में सत्य का संचार होता है, मान, उन्नति. यश तथा गौरव की प्राप्ति होती है। इस प्रकार सद्संगति व्यक्ति में ऐसा संस्कार प्रदान करती है कि व्यक्ति का जीवन धन्य हो जाता है।

प्रारभ्यते न खलु विघ्नभयेन नीचैः प्रारभ्य विघ्नविहता विरमन्ति मध्याः ।
विघ्नैः पुनः पुनरपि प्रतिहन्यमाना प्रारब्ध्मुत्तमजना न परित्यजन्ति ।। 4।।

अर्थ-नीच लोग बाधाओं के भय से कोई काम आरभ नहीं करते हैं, मध्यम कोटि के लोग काम शुरू तो करते है परन्तु वाभाओ के उपस्थित होने पर काम बंद कर देते है। किंतु उत्तम लोग जब काम आरंभ करते है तो बार-बार बाधाओं से पीड़ित होने के बावजूद अपना काम जारी रखते हैं अर्थात् काम करना बंद नहीं करते हैं।
Nitipadhani Class 9th Sanskrit
भाव-नीतिपद्यानि’ पाठ से उद्धृत प्रस्तुत श्लोक में नीच, मध्यम तशा उत्तम जनो. के आचरण पर प्रकाश डाला गया है। नीतिकार का कहना है कि निम्न कोटि के लोग कमजोर दिल के होते हैं, जिस कारण वे विघ्न-बाधाओं से भयभीत रहते हैं। फलत: कोई भा काम करने से पहले ही हिचक जाते हैं। मध्यम श्रेणी के मनुष्य किसी प्रकार साहस जुटाकर काम तो आरंभ कर देते है लेकिन बाधा उपस्थित होते ही काम छोड़ देते है, परन्तु उत्तमजन काम आरंभ करने के बाद हर विघ्नो का मुकाबला करते हुए अपने लक्ष्य पर पहुंच ल जात है। ऐसे लोग विघ्न-बाधाओ से नहीं डरते, बल्कि विघ्न-बाधा ही इनकी दृढ़ता देखकर भाग खड़ी होती है। उत्तमजन ही समाज को निश्चित लक्ष्य तक पहुंचाने में समर्थ होत हो।

निन्दन्तु नीतिनिपुणा यदि वा स्तुवन्तु लक्ष्मीः समाविशतु गच्छतु वा यथेष्टम् ।
अद्यैव वा मरणमस्तु युगान्तरे वा न्यायात्पथः प्रविचलन्ति पदं न धीराः ।। 5।।

अर्थ-यदि नीति में कुशल लोग (धीर पुरुषों की) निंदा करें अथवा वे स्तुति कर, यदि लक्ष्मी उसके पास आ जाएँ अथवा अपनी इच्छा से चली जाएँ, यदि आज हो मृत्यु हो रही हो अथवा युग के बाद हो, किंतु धीर पुरुष न्यायोनित मार्ग से एक कदम भी विचलित नहीं होते हैं।
भाव-‘नीतिपद्यानि’ पाठ से उड़त प्रस्तुत श्लोक में धीर पुरुष की विशेषता पर प्रकाश डाला गया है। नीतिकार का कहना है कि धीर पुरुष किसी भी परिस्थिति में न्याय के मार्ग से च्युत नहीं होते । वे हर स्थिति में अपने मार्ग पर आरूढ़ रहते हैं। व निदान स्तुति, धनलाभ, धनाभान, मृत्यु अथवा जीवन-राभी परिस्थितियों में न्यायोचित गार्ग का ही अवलम्बन करते हैं। तात्पर्य कि धीर पुरुष पक्के सिद्धान्त के होते हैं, वे किसी भी विपरीत परिस्थिति मे घबड़ाते नहीं। किसी भी कीमत पर वे न्याय पथ का त्याग नहीं करत बल्कि पर्वत के समान न्यायमार्ग पर आरूढ़ रहते हैं।

सिंहः शिशुरपि निपतति मदमलिनकपोलभित्तिषु गजेषु ।
प्रकृतिरियं सत्त्ववतां न खलु वयस्तेजसो हेतुः ।। 6।।

अर्थ-सिंह का बच्चा भी मदोन्मत्त हधी के गाल पर आक्रमण करता है। संसार में बलवानों का कारण उम्र नहीं बल्कि उसका पराक्रम होता है अर्थात् जो पराक्रमी होता है. उसके लिए उम्र का कोई महत्त्व नहीं होता।
भाव- ‘नीतिपद्यानि’ पाठ रो उद्धृत प्रस्तुत श्लोक के द्वारा नोतिकार ने यह संदेश देना चाहा है कि गुणवान् अर्थात् ज्ञानी या विद्वान व्यक्ति की उम्र को नहीं देखा जाता, बल्कि उसकी विद्या या ज्ञान को देखा जाता है। जैसे सिंह का बच्चा छोटा होने के बावजूद हाथी पर आक्रमण कर देता है । उसी प्रकार यदि बालक कम उम्र का है किन्तु उसमें परिपक्व ज्ञान है तो वही श्रेष्ठ है। क्योंकि बल. या उम्र से कोई श्रेष्ठ नहीं होता, अपितु अपने ज्ञान से श्रेष्ठता हासिल कर लेता है। संसार में वही महान् है जो बुद्धि से श्रेष्ठ होता है।

आरम्भगुर्वी क्षयिणी क्रमेण लघ्वी पुरा वृ(मुपैति पश्चात् ।
दिनस्य पूर्वार्ध्परार्ध्भिन्ना छायेव मैत्रा खलसज्जनानाम् ।। 7।।

अर्थ- दुष्टों और सज्जनों को मित्रता क्रमशः दिन के पूर्वार्द्ध तथा उत्तरार्द्ध की छाया जैसी भिन्न-भिन्न प्रकार की होती है। दोपहर के पहले छाया लम्बी होती है। पुनः छोटी होती जाती है, दुष्टों की मित्रता में (भी) यही स्थिति होती है। किन्तु सज्जनों के साथ मित्रता में दोपहर के बाद वाली छाया की स्थिति की होती है जो क्रमशः बढ़ती जाती है।
व्याख्या— प्रस्तुत श्लोक भर्तृहरि द्वारा रचित नीतिशतकम से अवतरित है। इसे हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘नीतिपद्यानि’ शीर्षक पाठ से संकलित किया गया है। इस नीति-पद में कवि भर्तृहरि ने दुष्टो एवं सज्जनों की मित्रता की तुलना की है।
कवि ने दुष्टो और मित्रों की तुलना दिन की छाया से की है। जिस प्रकार सुबह में । छाया लम्बी रहती है किन्तु बाद में धीरे-धीरे छोटो होती जाती है, वैसे ही दुष्ट पहले अपना प्रेम विस्तार से दिखाते हैं, वह प्रेम कुछ दिनों के बाद क्षीण होता जाता है। किन्तु सज्जनों का प्रेम दिन के उत्तरार्द्ध की छाया की तरह होता है. जो लगातार बढ़ता जाता है । अर्थात् दुष्टों का प्रेम बाद में क्षीण होते जाता है, जबकि सज्जन का प्रेम धीरे-धीरे वृद्धि को प्राप्त होता । जाता है। अच्छे मित्र परिस्थिति के अनुसार अपने शुद्ध आचरण का परिचय देते हैं।

विपदि ध्ैर्यमथाभ्युदये क्षमा सदसि वाक्पटुता युधि् विक्रमः ।
यशसि चाभिरुचिर्व्यसनं श्रुतौ प्रकृतिसि(मिदं हि महात्मनाम् ।।8।।

अर्थ-विपति में धैर्य, सम्पन्नता में क्षमाशीलता, सभा में कुशल सम्भाषण, युद्ध में पराकम, प्रशंसा सुनकर घमंड न होना-ये महापुरुषों (महान व्यक्तियों) के स्वाभाविक गुण है। अर्थात् महान् व्यक्ति अपने दायित्व निर्वाह पर ही ध्यान रखते हैं।
व्याख्या-भर्तृहरि रचित नीतिशतक से संकलित प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘नीतिपद्यानि’ शीर्षक पाठ से अवतरित है। इस नीति पद में नीतिकार ने महापुरुषों के लक्षण बताये हैं।
नीतिकार का कहना है कि महापुरुष हर परिस्थिति में एक-सा रहते हैं। वे न तो. विपत्ति में घबड़ाते हैं और न ही सम्पन्नता में अत्याचार करते हैं। वे पूर्णतः वाक्पटु एव पराक्रमशाली होते हैं। उन्हें अपनी यश की कामना नहीं होती, बल्कि वे सब कुछ कर्तव्य समझ कर करते हैं।

Bihar Board Class 10th Social Science
Nitipadhani Class 9th Sanskrit Video