1. Saraswati Wandna Class 9th Sanskrit | कक्षा 9 सरस्वती-वन्दना

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 9 संस्‍कृत भाग दो के कविता पाठ एक ‘सरस्वती-वन्दना’ (Saraswati Wandna Class 9th Sanskrit)’ के अर्थ को पढ़ेंगे।

Saraswati Wandna Class 9th Sanskrit

1. सरस्वती-वन्दना

पाठ-परिचय-प्रस्तुत पाठ ‘सरस्वती वंदना’ में विद्या की देवी सरस्वती की प्रार्थना की गई है। प्रार्थना में कहा गया है कि हे माँ ! तुम्ही ज्ञान-विज्ञान, बुद्धि-विवेक की दात्री हो। तुम्ही मानव-मस्तिष्क को रंजित करती हो। सद्विवेक प्रदान करके जगजीवन को मधुमय बनाती हो। इसलिए हे माँ! हमें भी विद्या का दान दो, ताकि हम जनकल्याण में सहयोगी बन सकें।

जय जय विद्यादेवि !सरस्वति !
तव चरणौ प्रणमामः ।
तव चरणौ प्रणमामो मातः
तव चरणौ प्रणमामः ।।
जय जय विद्यादेवि सरस्वति !

अर्थ-हे माते ! विद्या की देवी सरस्वती ! आपकी बार-बार जय हो। हे माँ ! हम तुम्हारे चरणों की वंदना करते हैं, तुम्हारे चरणों को प्रणाम करते हैं। हे विद्या की देवी .. सरस्वती ! तुम्हारी जय हो। बार-बार जय हो।

श्वेतकमलमासनतिरन्यं,
हंस स्तव शुभयाप ।
वीणा-वाकमरियपधुरम्,
पुस्तक प्रापिणि मातः ।।
जय जय विद्यादेवि सरस्वति !

अर्थ हे वीणावादिनी पुस्तक धारिणी माता सरस्वती ! तुम्हारा श्वेत (धवल) कमल रूपी आसन अतिरमणीय (मनोहर) है। तुम्हारी सवारी (वाहन) हंस है। तुम्हारी वीणा की आवाज अति कर्णप्रिय एवं मनमन्दिर को आह्लादित करने वाली है। हे माते! तुम्हारे हाथ में सदा पुस्तक विराजमान रहती है। तात्पर्य यह कि निर्मल बुद्धि प्रदान करनेवाली माँ सरस्वती का वस्त्र, वाहन, आसन-सब कुछ शुभ्र (स्वच्छ) है। विद्या की देवी सरस्वती ! तुम्हारी जय हो, सदा जय हो। Saraswati Wandna Class 9th Sanskrit

ब्रानन्द-विहारिणि जननि !
जडपाते हारिणि मातः ।
विमल-वसन-परिधारिणि धन्ये,
बुद्धि-प्रकाशिनि मातः ।।
जय जय विद्यादेवि सरस्वति !

अर्थ-हे माते! तुम अद्भुत आनंद प्रदान करनेवाली हो। तुम हमारी अज्ञानता को नष्ट करके हमारे मन-मंदिर को ज्ञान-प्रकाश से जगमग कर देती हो। तुम्हारे वस्त्र स्वच्छ एवं निर्मल हैं अर्थात् तुम श्वेतवसना हो। हे माते! तुम सद्बुद्धि प्रदान करनेवाली हो। हे विद्या की देवि! तुम्हारी जय हो। सदा जय हो।

उपकारं मम कल्याणं कुरु,
सुमतिं देहि प्रकामम् ।
नाना-विघ्नदलं हर अम्ब !
निर्विघ्नं कुरु कामम् ।।
जय जय विद्यादेवि सरस्वति !

अर्थ-हे माँ शारदे । हमें सद्बुद्धि प्रदान कर हमारी भलाई करो। हमें कल्याणकारी . भावों से भर दो। जीवन मार्ग में आनेवाली सारी बाधाओं को नष्ट करके हमारी मनोकामना पूरी करो। हे माते! हमारे जीवन को सहज, सरल तथा बाधाओं से मुक्त कर दो। हे विद्या की देवि सरस्वती! तुम्हारी सदा जय हो। जय हो। Saraswati Wandna Class 9th Sanskrit

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Bihar Board Class 8th Sanskrit Solutions Notes अमृता भाग 3 कक्षा 8 संस्‍कृत

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड के कक्षा 8 के संस्‍कृत अमृता भाग 3 Bihar Board Class 8th Sanskrit Solutions and Notes All Topics के सभी पाठ के व्‍याख्‍या को पढ़ेंगें।

यह पोस्‍ट बिहार बोर्ड के परीक्षा की दृष्टि से काफी महत्‍वपूर्ण है। इसको पढ़ने से आपके किताब के सभी प्रश्‍न आसानी से हल हो जाऐंगे। इसमें चैप्‍टर वाइज सभी पाठ के नोट्स को उपलब्‍ध कराया गया है। सभी टॉपिक के बारे में आसान भाषा में बताया गया है।

BSEB Bihar Board Class 8th Sanskrit Book Solutions Amrita Bhag 3

यह नोट्स NCERT तथा SCERT बिहार पाठ्यक्रम पर पूर्ण रूप से आ‍धारित है। इसमें संस्‍कृत के प्रत्‍येक पाठ के बारे में व्‍याख्‍या किया गया है, जो परीक्षा की दृष्टि से बहुत ही महत्‍वपूर्ण है। इस पोस्‍ट को पढ़कर आप बिहार बोर्ड कक्षा 8 के संस्‍कृत अमृता भाग 3 के किसी भी पाठ को आसानी से समझ सकते हैं और उस पाठ के प्रश्‍नों का उत्तर दे सकते हैं। जिस भी पाठ को पढ़ना है उस पर क्लिक कीजिएगा, तो वह पाठ खुल जाऐगा। उस पाठ के बारे में आपको वहाँ सम्‍पूर्ण जानकारी मिल जाऐगी।

Amrita Sanskrit Book Class 8 Solutions

Class 8th Sanskrit Solutions Notes संस्‍कृत के सम्‍पूर्ण पाठ का व्‍याख्‍या

Bihar Board Class 8th Sanskrit Solutions संस्‍कृत अमृता भाग 3

Chapter 1 मंगलम्
Chapter 2 संघे शक्तिः
Chapter 3 अस्माकं देश:
Chapter 4 प्रहेलिकाः
Chapter 5 सामाजिक कार्यम्
Chapter 6 रघुदासस्य लोकबुद्धिः
Chapter 7 प्राचीनाः विश्वविद्यालयः
Chapter 8 नीति श्लोका:
Chapter 9 संकल्प वीर: दशरथ माँझी
Chapter 10 गुरु-शिष्य-संवाद:
Chapter 11 विज्ञानस्य उपकरणानि
Chapter 12 सदाचार:
Chapter 13 रविषष्टि-व्रतोत्सवः
Chapter 14 कृषिगीतम् (कृषि संबंधी गीत)

Bihar Board Class 8th Sanskrit Solutions

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आशा करता हुँ कि आप को संस्‍कृत के सभी पाठ को पढ़कर अच्‍छा लगेगा। इन सभी पाठ को पढ़कर आप निश्चित ही परीक्षा में काफी अच्‍छा स्‍कोर कर सकेंगे। इन सभी पाठ को बहुत ही अच्‍छा तरीका से आसान भाषा में तैयार किया गया है ताकि आप सभी को आसानी से समझ में आए। इसमें कक्षा 8 संस्‍कृत अमृता भाग 3 के सभी पाठ का व्‍याख्‍या हिन्‍दी अर्थ के साथ किया गया है। यदि आप बिहार बोर्ड कक्षा 8 संस्‍कृत से संबंधित किसी भी पाठ के बारे में जानना चाहते हैं, तो नीचे कमेन्‍ट बॉक्‍स में क्लिक कर पूछ सकते हैं। यदि आप और विषय के बारे में पढ़ना चाहते हैं तो भी हमें कमेंट बॉक्‍स में बता सकते हैं। आपका बहुत-बहुत धन्‍यवाद.

14. Krishigeetam class 8 Sanskrit | कक्षा 8 कृषिगीतम् (कृषि संबंधी गीत)

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 8 संस्‍कृत के कविता पाठ चौदह ‘कृषिगीतम् ( कृषि संबंधी गीत )’ (Krishigeetam class 8 Sanskrit)’ के अर्थ को पढ़ेंगे।

Krishigeetam class 8 Sanskrit

14. चतुर्दशः पाठः
कृषिगीतम्
( कृषि संबंधी गीत )

पाठ-परिचयप्रस्तुत पाठ नवरचित संस्कृत गीत के रूप में है। किसानाें का विपन्नवस्था तथा जीवन के उनके मोदमय दृष्टिकोण के विषय में इस गीत में बताया गया है। यह विडम्बना है कि धरती को शस्य-श्यामला बनाने वाला अर्थात् हरे-भरे परिधान से सम्पन्न करनेवाला किसान स्वयं आवश्यक परिधान से वञ्चित रहता है। जो सबके भोजन के लिए दिन-रात परिश्रम करता है, वह स्वयं प्रायः भूखा रहता है। संतोष की मूर्ति किसान विचारों से ईमानदार है। इसे वह अपनी नियति मानकर संतुष्ट रहता है, किसी का कुछ बिगाड़ता नहीं है। यही गरीब किसानों की विशेषता है।

वयं गायाम कृषिगीतं धरा परिधानयुक्तेयम्।

अर्थ परिधान युक्त (हरी-भरी) धरती का कृषिगीत हमलोग गाते हैं।

तदासीद् या विकृतवेषा कुरूपा निर्जला चेयम् ।
इदानीं नः श्रमेणाप्ता धरा परिधानयुक्तेयम् ॥

अर्थ-पहले यह धरती फसलविहीन होने के कारण सूखी (विरान) तथा कुरूप दिखाई पड़ती थी, लेकिन अब परिश्रम के फलस्वरूप शस्य-श्यामला दिखाई देती है। Krishigeetam class 8 Sanskrit

समेषां चिन्तयास्माकं कथंचित् कर्मणा फलितम् ।
बहूनां कर्षकाणां नः श्रमैः सस्यं समाकलितम् ॥

अर्थ- सभी किसानों को इस बात की चिन्ता सता रही है कि उनका परिश्रम किस सफल होगा। हम सब किसानों ने काफी परिश्रम से फसल लगाया है।

परं ते मध्यमाः सर्वे समेषामन्नराशीनाम्।
क्रयं कृत्वाल्पमूल्येन, पुनर्नो निर्धनान् कुर्युः ॥

अर्थ –लकिन वे सब निर्धन किसानों का अनाज कम मूल्य में खरीद कर उन्हें गरीबी | में जीने के लिए मजबूर करते हैं। अर्थात् ऋणग्रस्त किसानों का बिचौलिये कम दाम में 

अन्न खरीदकर ऊँचे मूल्य में बाजार में बेचते हैं। बेचारा किसान जी तोड़ परिश्रम के | बावजूद निर्धन ही बना रहता है।

धराऽस्माकं भवेत्कामं न चान्नं नो हितायेदम ।
वयं गायाम कृषिगीतं तथापीत्थं सुखायेदम् ॥

अर्थ-निश्चय ही यह धरती हमारे कल्याण के लिए अन्न देती है। हमें यह सुख • Krishigeetam class 8 Sanskrit

प्रदान करे इसलिए परिश्रम करता हूँ, लेकिन ऐसा होता नहीं है। तात्पर्य यह कि अन्न । भले ही किसानों के हित में नहीं है फिर भी किसानों को सुख है कि उनके परिश्रम के परिणामस्वरूप लोग अपनी भूख शांत करते हैं। इसीलिए वे खुशी के गीत गाते हैं।

ऋतूनां कष्टमाघातैः वयं सर्वे समाभ्यस्ताः ।
शरीरे नास्ति परिधानं कृषिः परिधानयुक्तेयम्  ॥

अर्थ-हम किसान जाड़ा, गर्मी, वर्षा आदि से होने वाले कष्ट सहन करने के आदी हैं। यद्यपि हमारे शरीर पर वस्त्र नहीं हैं, लेकिन खेतों में लहलहाती फसल देखकर हमारा मन-मोर नाचता रहता है। ऋतु संबंधी कष्टों से हम विचलित नहीं होते।

सुखं सन्तोषवाचा यत् प्रशस्यं कल्पयामस्तत् ।
समेषामन्नभाजां सा कृषिः सुखलब्धे भूयात ॥

अर्थ-किसानों को इस बात की खुशी है कि वे अपने परिश्रम से लोगों की मिटाते हैं। अन्न खाने वालों को खुश देखकर ही उनका मन संतुष्ट हो जाता है । उन्होंने कष्ट सहकर प्रशंसनीय कार्य किया है। इसलिए खेत में खूब अन्न पैदा है।

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13. Ravishashthi vratsav class 8 sanskrit | कक्षा 8 रविषष्ठी व्रतोत्सवः

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 8 संस्‍कृत के कहानी पाठ तेरह ‘रविषष्ठी व्रतोत्सवः’ (Ravishashthi vratsav class 8 sanskrit)’ के अर्थ को पढ़ेंगे।

Ravishashthi vratsav class 8 sanskrit

13. त्रयोदशः पाठः
रविषष्ठी व्रतोत्सवः

पाठ-परिचय-प्रस्तुत पाठ में छठ पर्व के विषय में बताया गया है। बिहार के त्योहारों में छठ का पर्व सबसे महत्वपूर्ण है। इसमें कठोर संयम उपवास तथा प्रकृति के सर्वाधिक तेजस्वी देवता सूर्य की पूजा की जाती है। यह पर्व किसी नदी, तालाब तथा जलाशय के किनारे मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि सूर्य की पूजा करने से लोग स्वस्थ रहते हैं। साथ ही, संतान लाभ के उद्देश्य से भी लोग श्रद्धा एवं विश्वास से यह त्योहार मनाते हैं।

प्राकृतिकपदार्थेषु सूर्यः सर्वाधिकः तेजस्वी आरोग्यप्रदश्च मन्यते । अनेन सर्वे जीताः प्राणिनः वनस्पतयः प्राणान् लभन्ते । अस्य उपयोगिता विचार्य देवरूपेण इमं पूजयन्ति जनाः । प्राचीनकालात् सूर्यः भगवान् इति पूज्यते । सूर्यस्य पूजने कश्चित् पुरोहितः मध्यस्थः न अपेक्षितः भवति इति अस्य विशिष्टता वर्तते । Ravishashthi vratsav class 8 sanskrit

कार्तिको मासः वर्षाशीतयोः मध्ये अवस्थितः । एवमेव चैत्रो मासः शीतग्रीष्मयोः सन्धिकालः । सन्धिस्थितयोः अनयोः मासयोः अनेके रोगाः ज्वरकासादयः प्रभवन्ति । तत्र रोगाणां विनाशाय उपवासः आवश्यक । उपवास. रविषठीव्रते अनिवार्यतया जायते । अतः अस्य व्रतस्य वैज्ञानिक महत्त्वं वर्तते । अपि च चैत्रमासे रविसप्तानि अन्नानि पच्यन्ते गोधूमादीनि । तेषां प्रयोगः अस्य व्रतस्य नैवेद्याय भवति । अतः चैत्रकालिकः व्रतोत्सवः ग्रामेषु प्रसिद्धः । कार्तिककालिकः व्रतोत्सवस्तु नगरेषु बहुधा आयोजितः । सर्वथापि जलाशयः अस्मिन् व्रतोत्सवे आवश्यकः तडागो वा नदी वा । सागरतटेष स्थिताः जनाः सागरेऽपि स्नात्वा अर्घ्यदानं कर्वन्ति ।

अर्थ-प्राकृतिक पदार्थों में सूर्य सबसे अधिक आत्मबल एवं आरोग्य प्रदान करने वाला माना जाता है। इससे सभी जीवित प्राणी और पेड़-पौधे जीवन प्राप्त करते हैं। इसी महत्व के कारण लोग इन्हें देवता के रूप में पूजा करते हैं। प्राचीनकाल से ही सूर्य की पूजा होती आ रही है। सूर्य की पूजा में किसी पुरोहित अथवा बिचौलिया की जरूरत नहीं पड़ती है, यही इस पूजा की विशेषता है। कार्तिक का महीना वर्षा और जाड़े के बीच आता हैं। इसी प्रकार चैत का महीना भी जाड़े तथा गर्मी के बीच आता है। दोनों महीनों के बीच इन महीनों में विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ ज्वरादि का प्रकोप होता है। उन रोगों से बचने के लिए उपवास रखना आवश्यक माना गया है। छठव्रत में उपवास अनिवार्य रूप से रखा ही जाता है। इसलिए इस व्रत का वैज्ञानिक महत्व है। और चैत मास में सूर्य की गर्मी से गेहूँ आदि अन्न पकते हैं। उन अन्नों का प्रयोग इस व्रत के नैवेद्य के लिए होता है। इसलिए चैत महीनों में यह व्रत गाँवों में प्रसिद्ध है। कार्तिक मास के व्रत अक्सर नगरों (शहरों) में मनाया जाता है। व्रत में किसी नदी, तालाब (जलाशय) आदि का होना आवश्यक होता है। सागर के किनारे रहने वाले लोग सागर में ही स्नान करके अर्घ्यदान (पूजन) करते हैं।

यस्मिन् मासे रविषष्ठीव्रतोत्सवः आयोजितः भवति परिवारे तस्य प्रथमदिवसादेव परिवारे अभक्ष्याः पदार्थाः वर्जिताः भवन्ति । शुक्लपक्षस्य चतुर्थदिवसः संयतः नाम क्रियाकलापः । तदा स्नात्वा पवित्रं सिद्धान्नम् ओदनादिकं पचन्ति, इष्टजनानपि भोजयन्ति वतिनः । वस्तुतः तस्मादेव दिवसात् संयमः प्रारभते । पञ्चमदिवसे एकवारमेव व्रतिनः पायसरोटिकयोः सूर्यास्तादनन्तरं भोजनं कुर्वन्ति । इष्टजनानपि भोजयन्ति । ततः षष्ठदिवसे सम्पूर्ण दिवसम् अनाहाराः वतिनः सायंकाले शूर्पेषु फलानि धारयित्वा दीपकं च प्रज्वाल्य सूर्याय अर्घ्यदानं कुर्वन्ति । इदं दृश्यं अतीव पवित्रं मनोहरं च । रात्रौ भूमौ शयित्वा वतिनः पुनः प्रातःकाले सप्तमदिवसे उदीयमानाय सूर्याय स्नानपूर्वकम् अर्घ्यदानं पूर्ववत् कुर्वन्ति । तदनन्तरं पारणं क्रियते । व्रतिनः स्वयं प्रसादग्रहणं कुर्वन्ति अपरेभ्यश्च प्रयच्छन्ति । इत्थं रविषष्ठी व्रतोत्सवः सूर्योपासनाया: महत्त्वपूर्णः अवसरः । वस्तुतः अत्र षष्ठीदेवीपूजनं सन्तानलाभाय, सूर्यपूजनम् आरोग्याय इति द्वयोः पूजनयोः मिश्रणरूपः व्रतोत्सवः । क्रमशः अस्य प्रसारः वर्धमानः दृश्यते। Ravishashthi vratsav class 8 sanskrit

अर्थ-जिस महीने में छठ व्रत मनाया जाता है, उस परिवार में प्रथम दिन से ही अभक्ष्य (मांस/मछली, प्याज-लहसून) भोजन बन्द कर दिया जाता है। शक्लपक्ष को संयत (नहाय-खाय) का काम होता है। उस दिन स्नान करके पवित्र साथ भात आदि पकाया जाता है और व्रती अपने लोगों को भी खिलाती है। वास्तव में उसी दिन से ही संयम-नियम आरंभ होता है। पंचमी तिथि को व्रती एकबार ही खीररोटी सूर्यास्त के बाद खाते हैं और अन्य लोगों को भी खिलाते हैं। उसके बाद पष्ठी तिथि को बिना कुछ भोजन किए व्रती संध्या समय सूप में पकवान और फल रखकर और दीप जलाकर सूर्य का पूजन करते हैं। यह दृश्य अति सुन्दर तथा पवित्र होता है। रात में व्रती जमीन पर सोकर फिर सप्तमी तिथि को उगते हुए सूरज को स्नान करके अर्घ्यदान करते हैं। उसके बाद अन्न ग्रहण (पारण) करते हैं। व्रती स्वयं भी प्रसाद खाती है और दूसरों को भी प्रसाद देती हैं। इस प्रकार छठ पर्व सूर्य उपासना का महत्वपूर्ण अवसर है। वास्तव में यह व्रत संतानप्राप्ति एवं आरोग्यता दोनों के लिए मनाया जाता है। धीरे-धीरे इसका प्रसार बढ़ता हुआ देखा जाता है। Ravishashthi vratsav class 8 sanskrit

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12. Sadachar class 8 sanskrit | कक्षा 8 सदाचारः

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 8 संस्‍कृत के कविता पाठ बारह ‘सदाचारः’ (Sadachar class 8 sanskrit)’ के अर्थ को पढ़ेंगे।

Sadachar class 8 sanskrit

12. द्वादशः पाठः
सदाचारः

पाठ-परिचयप्रस्तुत पाठ ‘सदाचारः’ में आदर्श व्यवहार के महत्व के विषय में कहा गया है। सदाचार शब्द सत् + आचार के योग से बना है। ‘सत्’ का अर्थ होता है-सज्जन तथा ‘आचार’ का अर्थ होता है-व्यवहार या आचार अर्थात् शिष्टतापूर्ण आचार (व्यवहार) को सदाचार कहा जाता है। जीवन में सदाचार का विशेष महत्व है, समाज में वही व्यक्ति सम्मान पाता है जिसका व्यवहार शिष्ट होता है । सदाचारी व्यक्ति की विशेषता होती है कि वह ईमानदार, सच्चा एवं मधुरभाषी, परिश्रमी तथा सहयोगी स्वभाव का होता है। दैनिक जीवन में ऐसे नियमों का पालन करने से व्यक्ति का महत्व तो बढ़ता ही है, साथ ही विकास भी होता है। इसलिए बच्चों को सदाचारी बनने का हर संभव प्रयास करना चाहिए।

नापृष्टः कस्यचिद् ब्रूयात् न चान्यायेन पुच्छतः ।
जानन्नपि हि मेधावी जडवल्लोकमाचरेत् ॥

अर्थ-किसी के पूछे बिना बोलना नहीं चाहिए। यदि कोई जबरदस्ती पूछता है तो भी __नहीं बोलना चाहिए । बुद्धिमान मनुष्य को चाहिए कि इस स्थिति में मूर्ख जैसा व्यवहार करें। Sadachar class 8 sanskrit

अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः ।
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम् ।।

अर्थ माता-पिता तथा गुरुजनों आदि को नमस्कार करने वाले और उनकी सेवा करने वाले की चार बातें बढ़ती हैं, यथा : आयु, विद्या, यश तथा बल।

वित्तं बन्धुर्वयः कर्म विद्या भवति पञ्चमी।
एतानि मान्यस्थानानि गरीयो यद् यदुत्तरम् ।।

अर्थ-धन, सगा-संबंधी, उम्र, कर्म और पाँचवीं चीज विद्या है। इनसे लोगों की प्रतिष्ठा बढ़ती है। इनमें एक के बाद दूसरा श्रेष्ठ होता है। जैसे-जैसे ये बढ़ते जाते हैं, उनकी श्रेष्ठता बढ़ती जाती है। Sadachar class 8 sanskrit

ब्राह्म मुहूर्ते बुध्येत स्वस्थो रक्षार्थमायुषः ।
शरीरचिन्तां निर्वर्त्य कृतनित्यक्रियो भवेत् ॥

अर्थ-व्यक्ति को स्वस्थ रहने के लिए सूर्योदय से पूर्व जागना चाहिए । नित्यक्रिया (शौचादि) पूरा करके किसी काम में लगना चाहिए। जो व्यक्ति ऐसा करता है, उसकी आयु बढ़ती है तथा वह किसी रोग का शिकार नहीं होता।

आचार्यश्च पिता चैव माता भ्राता च पूर्वजः ।।
नार्तेनाप्यवमन्तव्याः पुंसा कल्याणकामिना ॥

अर्थ-गुरु (शिक्षक), पिता, माता, भाई और पूर्वज कल्याण चाहने वाले होते हैं इसलिए किसी विवशता की स्थिति में भी व्यक्ति को उनका अपमान नहीं करना चाहिए।

विषादप्यमृतं ग्राह्यं बालादपि सुभाषितम् ।
अमित्रादपि सवत्तममेध्यादपि काञ्चनम् ॥

अर्थ-अच्छी वस्तुओं के उद्भव स्थान पर ध्यान नहीं देना चाहिए। जहर से अमृत ग्रहण करना चाहिए। इसी प्रकार यदि बच्चा सुन्दर वचन बोलता है तो उसे ग्रहण कर लेने में ही बुद्धिमानी है। दुश्मन भी यदि सदाचारी है तो उसे ग्रहण करने का प्रयास करना चाहिए तथा गंदे स्थानों पर भी सोना हो तो उठा लेना चाहिए।

सर्वलक्षणहीनोऽपि यः सदाचारवान् नरः ।।
श्रद्धावान् अनसूयश्च शतं वर्षाणि जीवति ॥

अर्थ-जो मनुष्य सभी लक्षणों से हीन होते हुए भी यदि आचरणवान, श्रद्धावान् हारहित है तो वह सौ वर्षों तक जीता है। तात्पर्य कि जो सदाचारी होता है, की प्रशंसा सभी करते हैं। ऐसा व्यक्ति सदा प्रसन्न रहता है। Sadachar class 8 sanskrit

सर्वेषामेव शौचानामर्थशौचं परं स्मृतम्।
योर्षे शुचिः स हि शुचिः न मृद्वारिशुचिः शुचिः ।।

अर्थ-जो धन से पवित्र है, वास्तव में वही पवित्र है। मिट्टी एवं जल पवित्र होते हुए भी अपवित्र हैं। इसीलिए पवित्रताओं में धन की पवित्रता को सबसे श्रेष्ठ कहा गया है।

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11. Vigyanasya upkarani class 8 sanskrit | कक्षा 8 विज्ञानस्य उपकरणानि

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 8 संस्‍कृत के कहानी पाठ ग्‍यारह ‘विज्ञानस्य उपकरणानि’ (Vigyanasya upkarani class 8 sanskrit)’ के अर्थ को पढ़ेंगे।

Vigyanasya upkarani class 8 sanskrit

11. एकादशः पाठः
विज्ञानस्य उपकरणानि

पाठ-परिचयप्रस्तुत पाठ “विज्ञानस्य उपकरणानि’ में वैज्ञानिक उपकरणों के आविष्कर्ता तथा उपयोग की चर्चा की गई है। ये उपकरण पूरे विश्व में जन-जन तक व्याप्त हैं। इस वैज्ञानिक आविष्कार के कारण सौ वर्षों में जितनी प्रगति हुई है, उतनी प्रगति हजारों वर्षों में भी संसार ने नहीं की। आज घर बैठे लोग सम्पूर्ण संसार का चित्र ही नहीं देखते, अपित आमने-सामने बात भी करते हैं। इन वैज्ञानिक उपकरणों के कारण सम्पूर्ण संसार एक परिवार जैसा हो गया है। आज ऐसे-ऐसे उपकरणों का निर्माण हुआ है, जिनमें महीनों की दूरी घण्टों में तय कर ली जाती है।

अधुना वैज्ञानिक युगं सर्वे अनुभवन्ति । अद्य मानवः तथैव नास्ति यथा शतं वर्षाणि पूर्वमासीत् । विज्ञानप्रभवाणि उपकरणानि सर्वेषां जीवने प्रविष्टानि सन्ति । नगरेषु वा ग्रामेषु वा सर्वे स्व-स्व-कार्येषु विज्ञानस्य साध नानि व्यवहरन्ति । आधुनिकानि वैज्ञानिकान्युपकरणानि सर्वाण्यपि वैदेशिकैः जनैराविष्कृतानि सन्ति । रेलयानं सम्प्रति लोकप्रियं वाहनं दूरं गन्तुम् । देशे बहूनि रेलस्थानकानि वर्तन्ते । प्रथम रेलचालकयन्त्रं जार्ज स्टीफेन्सनेन निर्मितमासीत् ।

एमेव मुद्रणयन्त्रैः पुस्तकानि शीघ्रमेवासंख्यानि मुद्रितानि भवन्ति । कैक्सटनेन तस्य यन्त्रस्य आविष्कारेण संसारस्योपकारः कृतः । एडीसन नामकः आंग्लदेशीयो वैज्ञानिकः ग्रामोफोनस्य विद्युबल्बस्य चाविष्कारं कृतवान् । विद्युतः उत्पादनाय डायनेमोनामक यन्त्रमनिवार्य वर्तते । तदाविष्काराय वयं माइकल फेराडे नामकं वैज्ञानिकं प्रति कृतज्ञाः । दूरस्थितानां वस्तुना साक्षात्करणाय दूरबीन-नामकस्य उपकरणस्य आविष्कारम् इटलीदेशवासी गैलीलियो नामकः वैज्ञानिकः कृतवान् । रेडियो यन्त्रेण दूरस्थाः शब्दाः गृह्यन्ते । अस्य आविष्कारः इटलीवासिना मारकोनी महोदयेन कृतः । मोटरकारस्य आविष्काराय ऑस्टिनमहोदयः प्रसिद्धः । वायुयानम् अमेरिकावासिनौ राइटभ्रातारौ आविष्कृतवन्तौ । Vigyanasya upkarani class 8 sanskrit

अर्थ-आज सभी वैज्ञानिक युग का अनुभव करते हैं। आज का मानव सौ वर्ष पहले का मानव नहीं है। विज्ञान द्वारा निर्मित वस्तुएँ सभी के जीवन में प्रवेश कर गया है। नगरों तथा गाँवों में सभी अपने कार्यों में वैज्ञानिक साधनों का व्यवहार करते है। आज के सभी वैज्ञानिक उपकरण विदेशियों द्वारा आविष्कृत हैं। इस समय रेल दूरस्थ स्थान तक जाने का लोकप्रिय सवारी है। देश में बहुत सारे रेलवे स्टेशन हैं। प्रथम रेल इंजन जॉर्ज स्टीफेन्सन ने बनाया था। इसी प्रकार पुस्तक छापने की मशीन द्वारा अतिशीघ्र असंख्य पुस्तकों को छापना संभव हुआ है। कैक्सटन ने इस मशीन का आविष्कार संसार के उपकार के लिए किया। एडीसन नाम आंग्लदेशी वैज्ञानिक ने ग्रोमोफोन तथा बिजली बल्ल का आविष्कार किया। बिजली उत्पादन करने के लिए डाइनेमो नामक यन्त्र अनिवार्य है। इस यंत्र के आविष्कार के लिए हम माइकल फेराडे नामक वैज्ञानिक के एहसानमंद हैं। दूर स्थित वस्तुओं को देखने के लिए दूरबीन नामक यंत्र का आविष्कार इटलीवासी गैलीलियो नामक वैज्ञानिक ने किया। रेडियोयंत्र द्वारा दूरस्थ आवाज ग्रहण किए जाते हैं। इसका आविष्कार इटलीवासी मारकोनी महोदय ने किया। मोटरगाड़ी का आविष्कार के लिए ऑस्टीन महोदय प्रसिद्ध हैं। वायुयान का आविष्कार अमेरिकावासी राइटभाइयों ने किया।

अधुना टेलीविजनयन्त्रं महदुपकारकं सिध्यति तेन गृहे स्थिताः वयं चित्राणि, पश्यामः चित्रस्थपात्राणां वचनानि च शृणुमः । जे. एल. बेयर्ड महोदयः अस्य यन्त्रस्य आविष्कारकः तथैव कम्प्यूटरयन्त्रं लघुकायमपि गणनाकार्ये, श्रेणीकरणे, विषलेषणे, तालिकादिनिर्माणे, मुद्रणे, स्मृतिसंग्रहणे च आधुनिकयुगे महदुपकारकं वर्तते । यद्यपि भारतवर्षे बिलम्बेन समागतं किन्तु अस्य आविष्कारः 1946 वर्षे एव. ब्रेनर्ड इंकटमैन्युली महोदयाभ्यां कृतः आसीत् । हेलीकाप्टरनामकं वायुयानं दुर्गम स्थलेष्वपि यानवाहनयोः कार्य संचालयति । तस्याविष्कार: एटीन ओहमिसेन नामकेन वैज्ञानिकेन अभवत् । जी. ब्रैड शॉ महोदयः अत्युपयोगिनः स्कूटरयानस्य आविष्कारमकरोत् । डायनामाइट-नामकेन प्रभावशालिना चूर्णेन कठोराः पर्वताः अपि भज्यन्ते । तस्य आविष्कारम् अल्फ्रेड नोबेल महोदयः स्वीडेन निवासी कृतवान् । तस्यैव नाम्ना तेन दत्तेन राशिना च विश्वप्रसिद्धः नोबलपुरस्कार प्रदीयते । आविष्कारैः रोगा: दूरीक्रियन्ते जीवनावधिश्च जनानां वर्धितः । अत्र कानिचनैव उपकरणानि सुचितानि

अर्थ– आज दूरदर्शन अति उपयागी सिद्ध हो रहा है। घर बैठे हम चित्र देखते हैं। चित्र स्थित व्यक्तियों की बातों को सुनते हैं। इस यंत्र के आविष्कारक जे. ए. बेयर्ड महोदय थे। उसी प्रकार कम्प्यूटर यंत्र छोटे आकार का होते हुए भी गणनाकार्य, वर्गीकरण, विश्लेषण, तालिका निर्माण, मुद्रण तथा तथ्यों को इकट्ठा करने में अति उपयोगी है। यद्यपि भारत में देर से आया, किंतु इसका आविष्कार 1946 ई. में ही बेनर्ड इंकटमैन्युली महोदय द्वारा किया गया। हेलीकॉप्टर नामक वायुयान दुर्गमस्थानों में भी सवारी तथा माल ढुलाई के काम को पूरा करता है। उसका आविष्कार एटीन ओहमिशेन नामक वैज्ञानिक द्वारा किया गया। जी. ब्रेड शॉ महोदय ने अति उपयोगी स्कूटर सवारी का आविष्कार किया। कठोर पर्वत को तोड़ने के लिए डायनामाइट जैसे शक्तिशाली विस्फोटक का आविष्कार स्वीडेन निवासी अल्फ्रेड नोबल महोदय ने किया। उनके ही नाम पर उनके द्वारा दी गई रकम और विश्व प्रसिद्ध नोबल पुरस्कार दिये जाते हैं। Vigyanasya upkarani class 8 sanskrit

यद्यपि हजार से भी अधिक वैज्ञानिक उपकरणों का प्रयोग नित्य होता है फिर भी लोगों की सुविधा के लिए नित्य नए-नए आविष्कार हो रहे हैं। चिकित्साशास्त्र के आविष्कार द्वारा बीमारी दूर किये जाते हैं, जिससे लोगों का जीवनकाल बढ़ता है। इसमें कुछ ही उपकरणों के विषय में बताया गया है।

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10. Guru sisya sanwad sanskrit class 8 | कक्षा 8 गुरु-शिष्य संवादः ( गुरु एवं शिष्य का वार्तालाप )

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 8 संस्‍कृत के कहानी पाठ दस ‘गुरु-शिष्य संवादः ( गुरु एवं शिष्य का वार्तालाप )’ (Guru sisya sanwad sanskrit class 8)’ के अर्थ को पढ़ेंगे।

Guru sisya sanwad sanskrit class 8

10. दशमः पाठः
गुरु-शिष्य संवादः
( गुरु एवं शिष्य का वार्तालाप )

पाठ परिचय-प्रस्तुत पाठ ‘गुरु-शिष्य संवाद:’ में छात्रों और शिक्षक के बीच के रूप में विद्या के महत्व और जीवन के प्रति किशोरों की मनोवृत्ति पर प्रकाश गया है। जीवन-कौशल को विकसित करने के लिए विद्या एवं जीवन के प्रति स्वस्थ का होना आवश्यक होता है। शिक्षा मनुष्य में समझ प्रदान करती है तो स्वस्थ कोण जीवन-सुख प्रदान करता है। वार्तालाप के माध्यम से शिक्षक छात्रों को जीवनादर्श के महत्व को समझाते हैं।
अष्टमकक्षायाः दृश्यम्, आसनेषु स्थिता: बालकाः बालिकाश्च । पृष्ठभूमौ कृष्णपट्टः समक्षं फलकम्, तस्योपरि मार्जनी पट्टलेखी च । शिक्षकस्य प्रवेशः, सर्वे छात्राः उत्तिष्ठन्ति ।)
छात्राः (समवेतस्वरेण) प्रणमामो वयं सर्वे।
शिक्षक (दक्षिणं हस्तमुत्थाप्य) – तिष्ठन्तु सर्वे । ।
भावना – गुरुवर ! अद्य किं पाठयिष्यति ?
शिक्षकः – अद्य अनेकान् विषयान् कथयिष्यामि । आदौ विद्यायाः ‘महत्त्वम् ।
शीला – शोभनम् । विद्याविषये तु अस्माकमपि जिज्ञासा वर्तते।।
शीला – शोभनम् । विद्याविषये तु अस्माकमपि जिज्ञासा वर्तते ।
शिक्षकः तर्हि एवं प्राचीनं श्लोकं स्मरतु :
अर्थ (आठवीं कक्षा का दृश्य, लड़के और लड़कियाँ अपनी जगह पर बैठे हैं। म में-श्यामपट्ट, सामने टेबुल. पर डस्टर और चॉक है। शिक्षक प्रवेश, सभी छात्र
उठ जाते हैं। Guru sisya sanwad sanskrit class 8
सभी छात्र (एक स्‍वर में) – हम सबों का प्रणाम स्‍वीकार करें।
शिक्षक– (दायां हाथ उठाकर) – सभी (छात्र) बैठ जाओ।
भावना – गुरूवर आज क्‍या पढाएंगे
शिक्षक– आज अनेक विषयों पर कहूंगा । प्रारंभ से विधा का महत्‍व बताउंगा।
शीला – बहुत अच्‍छा विधा के विषय में जानने की हमारी इच्‍छा भी है।
शिक्षक–  तो इस प्रकार प्राचीन श्‍लोक को स्‍मरण करें।
न चौरहार्यं न च राजहार्य, न भ्रातृभाज्यं न च भारकारि।..
व्यये कृते वर्धत एव नित्यं, विद्याधनं सर्वधनप्रधानम ॥
अर्थ-विद्या धन सभी धनों में प्रधान होता है क्योंकि इस धन को न तो न तो चोर चुरा सकता है न राजा छीन सकता है और न ही भाई बाँट सकता है। यह बोझ  जैसा भारी भी नहीं होता। यह खर्च करने पर नित्य बढ़ता ही है।
मोईन:-अयं तु अतीव प्रसिद्धः श्लोकः । धनानां सीमा वर्तते, विद्या तु असीमा । अपि किञ्चिदस्ति विद्याविषयकं सुभाषितम् ?
शिक्षकः-बहूनि सन्ति । यथा-विद्ययाऽमृतमश्नुते, विद्या ददाति विनयम, विद्याविहीनः पशुः इत्यादीनि । अपरमपि अद्य वदिष्यामि ।
पंकज – तत्रापि रोचकं किमपि कथयतु । वयं किशोराः स्मः । अस्माकं जीवनस्य लक्ष्यं वदतु भवान् ।
शिक्षक: यस्मिन् देशे समाजे च वयं निवसामः तं प्रति सर्वेषां किशोराणां कर्त्तव्यमस्ति । अस्याम् अवस्थायां स्वस्थम् आचरणं यदि भवेत् तदा सर्वत्र कल्याणं
शान्तिः सुखं च प्रसरेत् । कुत्रापि विषमताभावं न ध रियेत् । यदपि शारीरिक मानसिकं च परिवर्तनं किशोरावस्थायां भवति, तत् सर्व प्राकृतिकमेव । अतः आश्चर्यं नास्ति । Guru sisya sanwad sanskrit class 8
वसुन्धरा-गुरुवर ! किशोरान् प्रति भवतः कः उपदेशः ?
शिक्षकः – किशोराः अस्मिन् वयसि उद्विग्नाः भवन्ति, सर्वत्र शीघ्रतां कुर्वन्ति । तत् नास्ति उचितम् । सर्वं कार्य कालेन भवति । ईर्ष्या, द्वेषः, लोभः, क्रोधः, अपशब्दानां प्रयोगः, आलस्यम् इत्येते सर्वे दोषाः सन्ति । अतः तेषां परित्यागेन किशोराः किशोर्यश्च विद्यायाः पात्राणि भवन्ति । अन्यथा सर्वम् अध्ययनं व्यर्थम् अपि च येन कार्येण वयं उद्विग्नाः भवामः तथा अपरान् प्रति न करणीयम् । उक्तञ्च
अर्थ : मोईन : यह तो अति प्रसिद्ध श्लोक है। धन की सीमा निशिन
है, लेकिन विद्या असीमित होती है। कुछ विद्या से संबंधित
श्लोक भी हैं। शिक्षक : बहत हैं। जैसे विद्या से अमरता प्राप्त होती है, विद्या से विनम्रता
आती है। विद्या से रहित मनुष्य पशुवत् होता है। दूसरा
आज बोलूँगा। पंकज : उनमें से कुछ रोचक (मनोरंजक) श्लोक बोलिए। हमलोग
किशोर हैं। हमारे जीवन के लक्ष्य के बारे में बताएँ।। शिक्षक : जिस देश तथा समाज में रहते हैं उनके प्रति हम किशोरों का
कुछ कर्तव्य होता है। इस अवस्था में यदि स्वस्थ आचरण (चरित्र) रहता है तो हर ओर शांति और सुख फैलता है। कहीं भी भेदभावपूर्ण आचरण नहीं करना चाहिए। शारीरिक और मानसिक विकास इसी अवस्था में होता है। यह सब प्राकृतिक
नियम है। इसलिए आश्चर्य नहीं करना चाहिए। वसुन्धरा : गुरुवर! किशोरों के प्रति आपकी क्या सलाह (उपदेश) है ? शिक्षक : किशोर इस उम्र में उत्तेजित हो जाते हैं, हर काम में जल्दबाजी
करते हैं जो उचित नहीं है। सभी कार्य समय पर होते हैं। ईर्ष्या, द्वेष, लोभ, क्रोध तथा गालियों का प्रयोग, आलस्य ये सभी दुर्गुण हैं। इसलिए इसका त्याग करने से किशोर तथा किशोरियाँ शिक्षा पाने के योग्य होते हैं। अन्यथा सारी विद्या (शिक्षा) व्यर्थ साबित होती हैं। जिस कार्य से हम उत्तेजित या दुःखी होते हैं, वह कार्य हमें नहीं करना चाहिए। और कहा गया है : Guru sisya sanwad sanskrit class 8

पालनीयं तु सर्वत्र किशोरैरनुशासनम् ।
न क्रोधेन न लोभेन तेषामपि हितं भवेत् ॥

अर्थ-बिना क्रोध तथा लोभ के किशोरों द्वारा अनुशासन का पालन होना चाहिए (ताकि) उनका भी हर जगह कल्याण हो।

त्याज्यं च मादकं द्रव्यं त्यजेदपि कुसंगतिम् ।
पितरौ प्रणमेत् नित्यम् आद्रियेत गुरुनपि ।

अर्थ छात्रों को मादक पदार्थ का सेवन नहीं करना चाहिए। बुरे लोगों का साथ छोड़ देना चाहिए । माता-पिता तथा गुरुओं का आदर-सम्मान करना चाहिए।

समाजस्योपकाराय कुर्याद् देशहिताय च ।
एवं कृते किशोराणां कल्याणं सार्वकालिकम् ॥

अर्थ-समाज का उपकार तथा देश-हित का काम करने पर किशोरों का हमेशा के लिए कल्याण होता है। इसलिए समाज तथा देशहित के लिए काम करना चाहिए ।

छात्रा: – अतीव कल्याणकरं वस्तुं दर्शितं भवता।
(छात्राः प्रमुदिताः प्रतीयन्ते । शिक्षकः वर्गात् निर्गच्छति ।) 

अर्थ-छात्रगण आपके द्वारा अति कल्याणकारी संदेश दिया गया है।
(छात्रगण प्रसन्नता महसूस करते हैं और शिक्षक वर्ग से चले जाते हैं।) Guru sisya sanwad sanskrit class 8

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9. Sankalpveer dasrath manjhi Sanskrit | कक्षा 8 संकल्पवीरः दशरथ मांझी

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 8 संस्‍कृत के कहानी पाठ नौ ‘संकल्पवीरः दशरथ मांझी’ (Sankalpveer dasrath manjhi Sanskrit )’ के अर्थ को पढ़ेंगे।

Sankalpveer dasrath manjhi Sanskrit

9. नवमः पाठः
संकल्पवीरः दशरथ मांझी

पाठ-परिचय प्रस्तुत पाठ “संकल्पवीरः दशरथ माँझी’ में बिहार के एक ऐसे कर्मवीर कर्मठ भूमिहीन किसान के अथक प्रयास का वर्णन है जिसने बाईस वर्षों तक 360 फुट लंबी, 30 फुट चौड़ी तथा 25 फुट ऊँची पर्वत घाटी को काटकर चौड़ा किया और दो स्थानों की दूरी कमकर दी । दशरथ मांझी ने जैसा साहसपूर्ण एवं समाज कल्याण का कार्य किया, वह हर व्यक्ति के लिए अनुकरणीय है। सामाजिक कार्य बंधनमुक्त होता है। जिसमें कुछ करने की अभिलाषा होती है वही ऐसे कार्य के प्रति उन्मुख होता है।

जयन्ति कर्मवीरास्ते कृतभूरिपरिश्रमाः।
सर्वेषामुपकाराय येषां संकल्पसिद्धयः ॥ 

अर्थ-वे कर्मवीर, जो दूसरों के कल्याण के लिए दृढ़ संकल्प के साथ परिश्रमपूर्वक कार्य करते हैं, उनका जीवन धारण करना सफल हो जाता है। तात्पर्य यह कि कर्मवीर का जीवन दूसरों के उपकार के लिए होता है। वे तब तक परिश्रम करते हैं जबतक उनका उद्देश्य पूरा हो नहीं जाता।

दुर्बलकायः स्वदेमुख: रिक्तोदरः कौपीनवसनः कृषिकः ग्रामक्षेत्रेषु सर्वदा श्रमं करोति । ग्रामेषु प्रायेणार्थव्यवस्थायाः आधारः कृषिरेव वर्तते । किन्तु कृषिकाः आवश्यकवस्तूनि क्रेतुं निकटस्थान् अट्टान् आपणान् च. गच्छन्ति । बिहारप्रान्तस्य गयामण्डले उटजप्रधाने ग्रामे गहलौरनामके कश्चित् कृषिश्रमिकः न्यवसत् । तस्य नाम दशरथ माँझी इत्यासीत् । अतीव परिश्रमी संकल्पवान् चासीत् । सः तस्य ग्रामः राजगीर-पर्वतमालायाः एकभागे अवर्तत । तस्य ग्रामस्य आपणस्थानं वजीरगंजे आसीत् । उभयोः ।

अर्थ-दुर्बल शरीर वाला, पसीनायुक्त मुँह, खाली पेट, लँगोटी धारण किए किसान ग्रामीण इलाकों में हमेशा परिश्रम करते हैं। ग्रामीणों का प्रायः आजीविका का आधार कृषि ही होती है। लेकिन किसान आवश्यक वस्तुओं को खरीदने के लिए निकट के हाल तथा दुकानों को जाते हैं। बिहार प्रांत के गया जिले में झोपड़ी बहुल गहलौर नामक गाँव में कोई खेतिहर मजदूर रहता है। उसका नाम दशरथ माँझी था । वह अति परिश्रमी एवं दृढ विचार वाला व्यक्ति था। वह गाँव राजगीर पर्वत समूह के एक भाग में था। उस गाँव का बाजार वजीरगंज में था। दोनों स्थान वजीर गंज उसके गाँव के बीच में अति तंग रास्ता था। पैदल चलने वालों को भी बोझा के साथ उस मार्ग से चलना संभव नहीं था। Sankalpveer dasrath manjhi Sanskrit

अनेन संकल्पेन दशरथं प्रति ग्रामीणाः जनाः उपहासं कृतवन्तः । किन्तु निरक्षरोऽपि दशरथः दृढसंकल्पवान् जातः। यद्यपि स कुठारेण काष्ठानयनस्य कार्याणि कृत्वा क्षेत्राणां कर्षणं च कृत्वा जीवनं यापयति, तथापि तस्मात् दिवसात् प्रस्तरछेदनाय अपि उपकरणानि क्रीत्वा स स्वसंकल्पस्य पूरणे प्रवृत्तः । दिनानि व्यतीतानि वर्षानि च गतानि । शैनः-शनैः अस्य श्रमिकस्य परिश्रमः प्रत्यक्षो जातः । द्वाविंशतिवर्षेषु एकः विस्तीर्णः मार्ग: पर्वतमध्ये निर्मितः, नाव कस्यापि शारीरिकः सहयोगः प्राप्तः । प्रस्तरखण्डानि भग्नानि । गहलौरात् वजीरगंजस्य मार्ग: अल्पीभूतः । एतेषु वर्षेषु दशरथ माँझी बहून सम्मानान् लब्धवान् । पर्वतमार्गश्च तस्य नाम्ना अभिहितः । ग्रामे प्रशासनेन तदनु सामुदायिक भवनं निर्मितं चिकित्सालयश्च तस्य नाम्ना स्थापितः । राज्यप्रशासनं तस्मै ‘पर्वतपुरुष’ इति सम्मानोपाधिम् अयच्छत् । दशरथस्य उदाहरणेन स्पष्टं भवति यत् कोऽपि जनः दृढेन संकल्पेन कठिनं किञ्च असम्भवमपि कार्य कृत्वा यशो लभते एतादृशाः कर्मवीराः एव समाजस्य वास्तविकाः सेवकाः Sankalpveer dasrath manjhi Sanskrit

अर्थ- दशरथ मांझी के इस निश्चय पर ग्रामीण लोगों ने उसका मजाक उड़ाया। – लेकिन निरक्षर होते हुए भी दशरथ माँझी दृढ़ निश्चय वाला था। यद्यपि वह कल्हाडी से लकड़ी काटकर लाने तथा खेत की जुताई करके भरण-पोषण करता था. फिर भी उस दिन से पत्थर काटने के लिए भी औजार खरीदकर वह अपना संकल्प पूरा करने में लग गया। दिन बीतते वर्ष बीत गए। धीरे-धीरे इस मजदूर का परिश्रम सफल होता दिखाई दिया। बाइस वर्षों में एक चौड़ा मार्ग पहाड़ के बीच में तैयार हो गया। किसी का भी सहयोग नहीं मिला। चट्टानें टूट गईं। गहलौर से वजीरगंज की दूरी घट गई। इन वर्षों में दशरथ माँझी को बहुत सम्मान मिला । पहाड़ी रास्ते का नाम ‘दशरथ’ रखा गया। गाँव में प्रशासन के द्वारा सामुदायिक भवन और चिकित्सालय उनके नाम पर स्‍थापित हुआा राज्‍य प्रशासन उन्‍हें पर्वत पुरूष की उपाधि से सम्‍मानित किया । दशरथ के उदाहरण से स्‍पष्‍ट होता है कि कोई भी अपने दृढ निश्‍चय से कठिन और असंभव को संभव करके यश पाते हैं। इस प्रकार के क्रमवीर एवं सच्‍चा सेवक दशरथ मांझी थे।

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8. Niti sloka class 8 sanskrit | कक्षा 8 नीतिश्लोकाः

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 8 संस्‍कृत के कहानी पाठ आठ ‘नीतिश्लोकाः’ (Niti sloka class 8 sanskrit)’ के अर्थ को पढ़ेंगे।

Niti sloka class 8 sanskrit

8. अष्टमः पाठः
नीतिश्लोकाः

पाठ-परिचयप्रस्तुत पाठ ‘नीतिश्लोकाः’ में जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिए नीतिविशारदों ने अपना अनुभव बताया है। श्लोकों में यह बताया गया है कि किस स्थिति में व्यक्ति का जीवन सुखमय होता है तथा किस स्थिति में दुःखमय होता है। जब व्यक्ति अपने पूर्वाचार्यों द्वारा निर्धारित नियमों का पालन करता है तो उसका जीवन सदा सुखमय रहता है। यदि वह इन नियमों की अवहेलना करता है तो वह दुःखमय तो रहता ही है, उसे उपहास का भी पात्र बनना पड़ता है। इसी उद्देश्य से पाठ में कुछ ऐसे श्लोक दिए गए हैं, जिनका अनुपालन करने पर व्यक्ति अपना, समाज तथा देश का गौरव बढ़ाने में सफल होता है। Niti sloka class 8 sanskrit

कस्य दोषः कुले नास्ति व्याधिना के न पीडिताः।
व्यसनं केन न प्राप्तं कस्य सौख्यं निरन्तरम् ॥ (3.1)

अर्थसंसार में भला कौन ऐसा व्यक्ति है जिसके कुल में दोष नहीं है। इसी प्रकार संसार में कौन ऐसा प्राणी होगा, जो किसी रोग से पीड़ित न हुआ हो। इस धरती पर कौन ऐसा व्यक्ति है जिस पर विपत्ति न आई हो और ऐसा कौन व्यक्ति है जिसे हमेशा सुख-ही-सुख मिला हो।

आचारः कुलमाख्याति देशमाख्याति भाषणम् ।
सम्भ्रमः स्नेहमाख्याति वपुराख्याति भोजनम्॥ (3.2)

अर्थ-किसी अन्छे-बुरे वंश (खानदान) का पता उस परिवार के सदस्य के आचरण चलन से चलता है। भाषा या बोलचाल से देश का पता चलता है। किसी के

पता स्नेही जन के प्रति उसके आदर-भाव से चलता है तो किसी के शरीर ने उसके खान-पान (भोजन) का चलता है।

अधमा धनमिच्छन्ति धनं मानं च मध्यमाः ।
उत्तमा मानमिच्छन्ति मानो हि महतां धनम् ॥ (8.1)

अर्थ-नीच लोग सिर्फ धन के पीछे दौड़ते हैं। मध्यम श्रेणी के लोग धन और सम्मान दोनों के अभिलाषी होते हैं, किन्तु श्रेष्ठ जनों के लिए सबसे बड़ा मान-सम्मान ही होता है क्योंकि सम्मान से बढ़ कर कुछ भी नहीं होता।

विद्वान् प्रशस्यते लोके विद्वान सर्वत्र गौरवम ।
विद्यया लभते सर्व विद्या सर्वत्र पूज्यते ॥ (8.20)

अर्थविद्वान संसार में प्रशंसित होता है। सर्वत्र आदर पाता है। अर्थात विटा सब कुछ प्राप्त होता है। विद्या सब जगह पूजी जाती है। तात्पर्य यह कि विद्या से निजी व्यक्ति हर जगह आदर की दृष्टि से देखा जाता है। Niti sloka class 8 sanskrit

दृष्टिपूतं न्यसेत्पादं वस्त्रपूतं पिबेजलम् ।
शास्त्रपूतं वदेद्वाक्यं मनः पूतं समाचरेत् ॥ (10.2)

अर्थ-देखकर पैर रखना चाहिए। कपड़े से छानकर जल पीना चाहिए। शास्त्र सम्मत वचन बोलना चाहिए तथा मन से सोच-विचारकर आचरण करना चाहिए।

अनित्यानि शरीराणि विभवो नैव शाश्वतः।
नित्यं सन्निहितो मृत्युः कर्त्तव्यो धर्मसंग्रहः ॥ (12.12)

अर्थ-मनुष्य का शरीर, धन-संपत्ति सभी चीजें नाशवान् हैं। धर्म ही एक चीज है जो अजर-अमर है। इसलिए हर व्यक्ति को धर्म-संग्रह में प्रवृत्त रहना चाहिए।

जलबिन्द्रनिपातेन क्रमशः पूर्यते घटः ।
स हेलेः सर्वविद्यानांस्य च धनस्य च ॥ (12.22)

अर्थ –जिस प्रकार जल की बूंदों के गिरने से घड़ा धीरे-धीरे भर जाता है. उसी प्रकार सभी विद्याएँ धन और धर्म धीरे-धीरे बढ़ते जाते हैं।

यथा धेनुसहस्रेषु वत्सो गच्छति मातरम् ।
तथा यच्च कृतं कर्म कर्तारमनुगच्छति ॥ (13.15) Niti sloka class 8 sanskrit

अर्थ- जैसे हजारों गायों में बछड़ा अपनी माँ को पहचान कर उसके पास चला जाता है वैसे ही किया कर्म (उस) कर्म करने वाले के पास चला जाता है।

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7.Prachin vishwavidyalaya sanskrit class 8 | कक्षा 8 प्राचीनाः विश्वविद्यालयाः (प्राचीन विद्यालय)

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 8 संस्‍कृत के कहानी पाठ सात ‘प्राचीनाः विश्वविद्यालयाः’ (Prachin vishwavidyalaya sanskrit class 8)’ के अर्थ को पढ़ेंगे।

.Prachin vishwavidyalaya sanskrit class 8

7. सप्तमः पाठः
प्राचीनाः विश्वविद्यालयाः
(प्राचीन विद्यालय)

पाठ-परिचयप्रस्तुत पाठ ‘प्राचीनाः विश्वविद्यालयाः’ में भारतीय – प्राचीन सांस्कृतिक तथा शैक्षणिक धरोहरों के रूप में स्थित तक्षशिला, नालंदा एवं विक्रमशिला नामक विश्वविद्यालयों के स्वर्णिम युगों का स्मरण किया गया है, जहाँ दूर-दूर से देशीविदेशी छात्र अपनी ज्ञान-पिपासा की भूख सुयोग्य शिक्षकों के सान्निध्य में शांत करते थे। इन विश्वविद्यालयों के संचालन के लिए राजाओं ने अनेक ग्रामों की आमदनी दात्रपत्र द्वारा निर्धारित कर दी थी। जिस समय इन विश्वविद्यालयों का स्वर्णिम युग था। उस समय विदेशों में एकाध स्थान पर ही ऐसे विश्वविद्यालय हो। इन्हीं विश्वविद्यालयों का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत पाठ में दिया गया है। Prachin vishwavidyalaya sanskrit class 8

बहूनां शास्त्राणां ज्ञानविषयाणां च यत्र शिक्षा दीयते तस्यैव अभिधानं विश्वविद्यालय इति । तत्र सुयोग्याः अध्यापकाः निष्पक्षभावेन छात्रान् पाठयन्ति । छात्राश्च परीक्षानन्तरमेव तत्र प्रवेशं लभन्ते । विश्वविद्यालयाः ज्ञानकेन्द्राणि भवन्ति ज्ञानस्य विकासोऽपि तत्र निरन्तरं जायते ।

प्राचीने भारते तक्षशिलायां प्रसिद्धः विश्वविद्यालयः षष्ठशतके ईस्वीपूर्वमेव अवर्तत । बौद्धसाहित्ये तक्षशिलायाः भूयो भूयः उल्लेखो वर्तते । अयं विश्वविद्यालयः गान्धारदेशे आसीत्। तस्य देशस्य तक्षशिलायां राजधानी बभूव । सम्प्रति तक्षशिलाया: भग्नावशेषाः पाकिस्तानदेशे रावलपिण्डीसमीपे सन्ति। अत्र धनुर्वेदस्य, आयुर्वेदस्य तथा अन्यासां विद्यानामपि शिक्षणम् आसीत् । अत्र बुद्धकालिकः वैद्यः जीवकः, वैयाकरण: पाणिनिः, मौर्यराज्यस्य संस्थापकः चन्द्रगुप्तः, कूटनीतिज्ञः चाणक्यः इत्यादयः प्रसिद्धः छात्राः अधीतवन्तः।

अर्थअनेक प्रकार के शास्त्रों और ज्ञान विषयों की शिक्षा जहाँ दी जाती है, उसे विश्वविद्यालय कहते हैं। वहाँ सुयोग्य शिक्षक निष्पक्ष भाव से छात्रों को पढ़ाते हैं और छात्र प्रवेश परीक्षा पास करने के बाद वहाँ नामांकन कराते हैं। विश्वविद्यालय ज्ञान का केन्द्र होता है। वहाँ हमेशा ज्ञान का विकास होता है। Prachin vishwavidyalaya sanskrit class 8

प्राचीन भारत में छठी शताब्दी ईस्वी पूर्व में तक्षशिला में विश्वविख्यात विश्वविद्यालय था। बौद्ध साहित्य में तक्षशिला का बार-बार उल्लेख किया गया है। यह विश्वविद्यालय गांधार देश में था। उस देश की राजधानी तक्षशिला में बनी (हुई थी)। इस समय तक्षशिला का खण्डहर पाकिस्तान में रावलपिण्डी के समीप है। यहाँ धनुर्विद्या, आयुर्वेद तथा अनेक प्रकार की विद्याओं की शिक्षा दी जाती थी। यहाँ बौद्धकालीन वैद्दा जीवक, व्याकरण के विद्वान पाणिनि, मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चन्द्रगुप्त, कूटनीति के महान् ज्ञाता चाणक्य इत्यादि छात्र यहीं पढ़ते थे।

नालन्दा विश्वविद्यालयः बिहारे एव आसीत् । अस्य भग्नावशेषाः विशालक्षेत्रे अवस्थिताः सन्ति । कुमारगुप्तेन पञ्चमशतके ख्रीष्टाब्दे अस्य स्थापना कृता । प्रायः सप्तशतानि वर्षाणि अयम् अवस्थितः । बर्बराणाम् आक्रमणेन अस्य विध्वंसी जातः। अत्रानेके चीनयात्रिका: बहूनि वर्षाणि अधीतवन्तः । तेषु हुएनसांगः प्रधानः । तेन विश्वविद्यालयस्य विस्तृतं विवरणं दत्तम् । अत्र दशसहस्राणि छात्रा: एकसहस्रमध्यापकाः निवसन्ति । स्म । यद्यपि बौद्धधर्म अस्य अभिनिवेशः आसीत् किन्तु बहूनां शास्त्राणामपि वर्णनं स करोति । तानि अत्र पाठ्यन्ते स्म । अस्य विश्वविद्यालयस्य त्रयः महान्तः पुस्तकालयाः सप्तसु तलेषु अविद्यन्त । भग्नावशेषेण विश्वविद्यालयस्य विशालता ज्ञायते।

अर्थ-नालदा विश्वविद्यालय बिहार में ही था। इसका खंडहर विस्तृत भूभाग पर अवस्थित हैं। इस विश्वविद्यालय की स्थापना पाँचवीं शताब्दी में कुमारगुप्त द्वारा की गई थी। यह प्रायः सात सौ वर्षों तक अवस्थित रहा। आक्रमणकारियों के बर्बर आक्रमण से इसका विनाश हुआ। यहाँ अनेक तीर्थयात्रियों ने कई वर्षों तक अध्ययन किया था। इनमें हएनसांग मुख्य थे। उनके द्वारा विश्वविद्यालय का विस्तृत विवरण दिया गया है। यहाँ दस हजार छात्र और एक हजार अध्यापक रहते थे। यद्यपि बौद्ध धर्म के प्रति लगाव था, लेकिन बहुत-से शास्त्रों का वर्णन उन्होंने किया, जो यहाँ पढ़ाये जाते थे। इस विश्वविद्यालयों के विशाल तीन पुस्तकालय, सात महलों (तलों) में मौजूद थे। खण्डहर से ही विश्वविद्यालय की विशालता का पता चलता है। Prachin vishwavidyalaya sanskrit class 8

बिहारराज्ये एव पालवंशीयेन राज्ञा धर्मपालेन अष्टम-शतके संस्थापितः विक्रमशिला- विश्वविद्यालयः अपि अनेक शास्त्राणां शिक्षणाय प्रसिद्धः आसीत् । अत्रापि नालन्दायामिव चीनतिब्बतादि-देशेभ्यः आगताः छात्राः अधीयते स्म । केचन अध्यापका अपि उभाभ्यां विद्यापीठाभ्यां तिब्बते चीने वा निमन्त्रिता: गच्छन्ति स्म । अस्यापि विक्रमशिलाविश्वविद्यालयस्य विनाश: नालन्दया सार्धं बबरैः कृतः धनलुण्ठनाशया । उभौ विश्वविद्यालयौ बिहारस्य गौरवभूतौ स्तः ।

अर्थ-बिहार राज्य में ही पालवंशीय राजा धर्मपाल द्वारा आठवीं शताब्दी में विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना की गई। विक्रमशिला विश्वविद्यालय भी अनेक शास्त्रों की शिक्षा देने के लिए प्रसिद्ध था। यहाँ भी नालंदा की भाँति चीन-तिब्बत से आए हुए छात्र पढ़ते थे। कुछ अध्यापक भी दोनों विद्यापीठों से चीन एवं तिब्बत की यात्रा पर जाते थे। इस विक्रमशिला विश्वविद्यालय का विनाश भी नालंदा के साथ बर्बरों ने धन लूटने की आशा में किया। दोनों विश्वविद्यालय बिहार के गौरव थे।

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