13. Shakti or Kshama class 7 Saransh | कक्षा 7 शक्ति और क्षमा

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 7 हिन्‍दी के कविता पाठ तेरह ‘ Shakti or Kshama ( शक्ति और क्षमा )’ के प्रत्‍येक पंक्ति के अर्थ को पढ़ेंगे।

Shakti or Kshama class 7 Saransh

13 शक्ति और क्षमा
क्षमा, दया, तप, त्याग, मनोबल
सबका लिया सहारा,
पर नर-व्याघ्र, सुयोधन तुमसे
कहो कहाँ, कब हारा?
क्षमाशील हो रिपु समक्ष
तुम हुए विनत जितना ही,
दुष्ट कौरवों ने तुमको
कायर समझा उतना ही ।
क्षमा शोभती उस भुजंग को
जिसके पास गरल हो,
उसको क्या, जो दंतहीन,
विषहीन, विनीत, सरल हो

सरलार्थ-भीष्म युधिष्ठिर को समझाते हुए कहते हैं कि क्षमा, दया, तपस्या, त्याग, नैतिक साहस सबका तो तुमने सहारा लिया (सभी उपाय तो तुमने किये) लेकिन मनुष्यों में बाघ के समान हिंसक दुर्योधन कहाँ कभी तुम्हारे आगे झुका? शत्रु के सामने क्षमाशील बनकर तुम जितने ही नम्र हुए, दुष्ट कौरवों ने तुम्हें उतना ही डरपोक समझा।
क्षमा तो उस सर्प के लिए सराहनीय है जिसके पास विष भी हो। जिस साँप के ‘ पास दाँत ही न हो, विष भी न हो, वह साँप यदि अहिंसा या क्षमा का व्रत धारण कर ले, तो उसकी क्षमा को कौन सराहेगा? वह तो उसकी लाचारी होगी। Shakti or Kshama class 7 Saransh

तीन दिवस तक पंथ माँगते
रघुपति सिन्धु किनारे,
बैठे पढ़ते रहे,
अनुनय के प्यारे-प्यारे।
उत्तर में जब एक नाद भी
उठा नहीं सागर से;
उठी अधीर धधक पौरुष की
आग राम के शर से ।
सिन्धु देह धर ‘त्राहि-त्राहि’
करता आ गिरा शरण में,
चरण पूज, दासता ग्रहण की
बँधा मूढ़ बंधन में।

सरलार्थ–उदाहरण देते हुए भीषण आगे कहते हैं कि राम लंका-विजय के लिए समद्र पर पुल बाँधना चाहते थे। समुद्र उनके कार्य में बाधा डाल रहा था। तीन दिनों तक राम समुद्र से प्रार्थना करते रहे। किन्तु समुद्र पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। यह हठी एकदम मौन रहा। ____ तब राम को धैर्य न रहा। उनका पुरुषार्थ जग उठा। उन्होंने धनुष पर वाण चढ़ाया। समुद्र को सुखा डालने के लिए वाणं से ज्वालाएँ निकलने लगीं।
यह देखते ही समुद्र घबड़ा-कर शरीर धारण कर ‘रक्षा करें, रक्षा करें’ कहता राम की शरण में आ गिरा। उसने राम के चरण पूजे। वह राम का सेवक बना और उस पर पुल बाँध दिया गया। Shakti or Kshama class 7 Saransh

सच पूछो, तो शर में ही
वसती है दीप्ति विनय की,
संधि-वचन संपूज्य उसी का
जिसमें शक्ति विजय की ।
सहनशीलता, क्षमा, दया को
तभी पूजता जग है,
बल का दर्प चमकता उसके
पीछे जब जगमग है।     

 
सरलार्थ–रामचरितमानस की कथा से उदाहरण देते हुए भीष्म युधिष्ठिर से कहते हैं कि सच तो यह है कि वीरता में ही नम्रता की आभा निवास करती है। शक्ति है तभी नम्रता का प्रभाव भी हो सकता है। जिसमें युद्ध जीतने की शक्ति है उसी का सुलहप्रस्ताव भी आदर पाता है। जिसके पास शक्ति है, उसी की क्षमा, दया, सहनशीलता आदि गुणों को संसार पूजता है।

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Nachiketa in hindi class 7

12. Janm Badha class 7 Saransh | कक्षा 7 जन्‍म-बाधा

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 7 हिन्‍दी के कहानी पाठ बारह ‘ Janm Badha ( जन्‍म-बाधा )’ के सारांश को पढ़ेंगे।

12. Janm Badha class 7 Saransh

12जन्‍म-बाधा

पाठ का सारांश-प्रस्तुत कहानी ‘जन्म-बाधा’ समस्या प्रधान कहानी है। इसमें लेखिका सुधा ने लिंग-भेद की समस्या के विषय में अपना विचार प्रकट करते हुए लिखा है कि किस प्रकार माता-पिता की उपेक्षा का शिकार बारह वर्षीया गुड्डी अपनी मुक्ति के लिए प्रधानमंत्री से गुहार करने को मजबूर होती है।  गुड्डी बारह वर्षीया एक लड़की है । उससे छोटे तीन भाई-बबलू, गुड़, मुन्नू तथा तीन वहने रीता, मीता और छोटकी हैं । झाडू लगाते समय उसे एक लीड मिलती है जो अभी पूरी खत्म नहीं हुई थी। वह मन-ही-मन सोचती है कि ऐसी ही फिजूल खर्चियों | पर पापा नाराज होते हैं। परन्तु वह इसलिए चुप रह जाती है क्योंकि उसे अपनी मुक्ति के लिए प्रधानमंत्री को पत्र लिखना है। वह पापा के झोले से लिफाफे एवं कागज निकाल लेती है और पत्र लिखने का निश्चय करती है, क्योंकि माँ सो गई थी। पत्र लिखने से पूर्व उसके मन में प्रश्न उठता क्या लिखू ? कैसे शुरू करूँ? यदि गलत लिलूँगी तो मेरी बातों पर ध्यान देंगे या नहीं। लेकिन उसका अन्तर्मन विश्वास प्रकट करता है कि क्यों नहीं सुनी जाएगी मेरी बात, हिज्जे गलत हों, पर बातें तो सही हैं। इसी विश्वास के साथ जय गणेश जी, जय माता रानी आदि से निवेदन करती है, यह चिट्ठी लिखवा दो, भगवान! मेरी कोई मदद करनेवाला नहीं है. तथा पत्र लिखने लगी। Janm Badha class 7 Saransh
 प्रधानमंत्रीजी, प्रणाम !
            मैने सुना है, बंधुआ मजदूरों को उनके मालिकों से छुड़ाया जा रहा है। मुझे भी छुड़ा दीजिए। मेरे तीनों भाई स्कूल जाते हैं। मैं अपनी पढ़ाई के बारे में पूछती हूँ तो पापा । कहते हैं. बाद में देखा जाएगा। मैं दिन भर घर के कामों में लगी रहती हूँ। घर के सार बर्तनों तथा कपड़ों को धोना पड़ता है। रोटी बनानी पड़ती है। सब्जी माँ की तरह नहीं बना पाती हूँ. इसलिए नित्य डाँट सुननी पड़ती है। एक पल भी आराम का अवसर नहीं मिलता या फिर भी सब हमें धीमर (सुस्त) कहते हैं। मामाजी की जिद पर दो वर्ष पूर्व मेरा नाम स्कूल में लिखवाया था। एक महीने के बाद स्कूल जाना बंद हो गया, क्योंकि माँ को बच्चा होने के कारण घर का सारा काम मुझे करना पड़ता है। माँ से अपनी पढ़ाई के बारे में कहा तो पापा ने कहा, घर में जैसे ककहरा सीखा है, वैसे ही आगे भी कुछ पढ लेना। लेकिन न तो घर में कोई पढ़ाने वाला है और न ही मैं अपनी मर्जी से स्कूल जा सकती। ऐसी स्थिति में मुझे भी बंधुआ मजदूरों की भाँति मुक्त करा दीजिए।
आपकी बेटी गुड्डी।
           फिर पापा के आने की आवाज सुनकर दरवाजा खोलने दौड़ पड़ती है क्योंकि देर होने पर डाँट सुननी पड़ती। माँ सोयी थी, इसलिए चाय बनाने का आदेश मिला । पत्र लिखने के बाद उसके मन में यह विश्वास जगा कि तब तक चाय बनानी होगी, जब तक मेरी मुक्ति की घोषणा नहीं हुई है। परतंत्रता के बंधन से मुक्ति का विश्वास उसमें – एक अजीब-सा परिवर्तन पैदा कर दिया। Janm Badha class 7 Saransh

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11.Kabir ke dohe class 7 arth | कक्षा 7 कबीर के दोहे

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 7 हिन्‍दी के कविता पाठ ग्‍यारह ‘ Kabir ke dohe ( कबीर के दोहे )’ के प्रत्‍येक पंक्ति के अर्थ को पढ़ेंगे।

Kabir ke dohe class 7 arth

11 कबीर के दोहे

काल्ह करे सो आज कर, आज करे सो अब।
पल में परलै होयगी, बहुरि करेगा कब॥
अर्थ-कबीर दासजी लोगों को सलाह देते हैं कि कल का काम आज ही कर लो और आज का काम अभी तुरन्त, क्योंकि इस जीवन का कोई भराेसा नहीं, इसलिए दुबारा कब करोगे।
साँई इतना दीजिए, जामे कुटुम समाय।
मैं भी भूखा ना रहूँ, साधु न भूखा जाय ॥ Kabir ke dohe class 7 arth
सरलार्थ—संत कबीर ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहते हैं कि हे ईश्वर! मुझे इतनी ही सम्पत्ति दो, जिसमें हमारे परिवार वालों का भरण-पोषण हो जाए। हाँ, मुझे इतना ही चाहिए जिसमें मैं भी भूखा न रहूँ और मेरे द्वार पार आए कोई साधु-सज्जन (अतिथि) भूखा न लौट जाय।
निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय ।
बिन साबुन पानी बिना, निरमल करे सुभाय।।
सरलार्थ—सन्त कबीर कहते हैं कि जो मनुष्य निन्दा करने वाले हैं उनसे घृणा करना ठीक नहीं है। उन्हें तो अपने आँगन में झोपड़ी छवाकर सदा ही समीप रखना चाहिए । कारण, वे स्वभाव से ही बिना पानी और साबुन का खर्च बढ़ाए, हमारे दोप को दूर करते रहते हैं।
जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान
मोल करो तलवार का, पडा रहने रहने दो म्‍यान
संत कबीर का कथन है कि किसी साधु या सज्जन पुरुष की जाति मतजान या समझदारी की जानकारी प्राप्त करो। जैसे तलवार खरीदते समय माता की कीमत लगाओ और उसके म्यान को याही पड़ा रहने दो।
सोना, सज्‍जन, साधुजन,टूटे जूडे सौ बार ।
दुर्जन, कुम्‍भ-कुम्‍हार के, ऐकै धका दरार ।। Kabir ke dohe class 7 arth
सरलार्थ—सन्त कबीर कहते हैं कि सोना और सज्जन दोनों ही ऐसे हैं जो सौ बार टूट कर भी फिर से मिल जाते हैं—एक हो जाते हैं। किन्तु दुष्ट लोग जो कुम्हार के घड़े का स्वभाव रखनेवाले होते हैं—एक धक्का-एक बात पर ही उनमें सदा के लिए विलगाव पैदा हो जाता है।
पश्वी याद-पाढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय ।
ढाई अखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय ॥
अर्थ—कबीर दास जी कहते हैं कि ग्रंथों को पढ़ते-पढ़ते लोग मर गए लेकिन उन्हें
सच्चे ज्ञान की प्राप्ति नहीं हुई। ज्ञान की प्राप्ति उसे ही होती है जिसे अढ़ाई अक्षर प्रेम । का बोध होता है।
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलया कोय।
जो दिल खोजा आपनो, मुझ सा बुरा न कोय॥
अर्थ—कबीर कहते हैं कि जब मैं दूसरों की बुराई देखने चला तो मुझे कहीं बुराई देखने को नहीं मिली अर्थात् मुझे कोई बुरा व्यक्ति नहीं मिला। इस बात का पता तब चला जब अपने-आप के विषय में सोचा तो लगा कि बुरा व्यक्ति ही दूसरों की बुराई (नीचता) पर ध्यान देते हैं। अच्छे लोग तो दूसरों की अच्छाई पर ध्यान देते हैं। Kabir ke dohe class 7 arth

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9.Varsha Bahar class 7 poem in Hindi | कक्षा 7 वर्षा बहार 

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 7 हिन्‍दी के कविता पाठ नौ ‘ .Varsha Bahar ( वर्षा बहार )’ के हर पंक्ति के अर्थ को पढ़ेंगे।

Varsha Bahar class 7 poem in Hindi

9 वर्षा बहार
वर्षा बहार सबके, मन को लुभा रही है
नभ में छटा अनूठी, घनघोर छा रही है।
बिजली चमक रही है, बादल गरज रहे हैं
पानी बरस रहा है, झरने भी बह रहे हैं।

अर्थ-वर्षा ऋतु के आगमन से लोग अति प्रसन्न होने लगते हैं। काले-काले बादलों की घनघोर घटा से आकाश का दृश्य अति सुन्दर दिखने लगता है। बिजली चमकने लगती है। बादल के गर्जन-तर्जन से वातावरण उद्वेलित हो जाता है। वर्षा होते ही झरने के बहते जल से कल-कल की ध्वनि सुनाई देने लगती है।

चलती हवा है ठण्डी, हिलती हैं डालियाँ सब
बागों में गीत सुन्दर, गाती है मालिने अब।
तालों में जीव जलचर, अति हैं प्रसन्न होते,
फिरते लखो पपीहे, हैं ग्रीष्म ताप रखो।
करते हैं नृत्य वन में, देखो ये मोर सारे,
मेढक लुभा रहे हैं, गाकर सुगोत प्यारे।

अर्थ कवि कहता है कि वर्षा काल के समय ठण्डी-ठण्डी हवा चलती है। हवा के झोंके से वृक्ष की शाखाएँ हिलने लगती हैं। बागों में खिले फूलों को देखकर मालिने खुशी के गीत गाने लगती है। जलाशयों के जीव प्रसन्नता के साथ क्रीड़ा करने लगते हैं। ग्रीष्मऋतु की गर्मी से – संतप्त पपीहे वर्षाजल पाकर ‘पीऊ-पीऊ’ करते उड़ते नजर आते हैं। बादलों की घनघोर घटा देख वन में मोर नाचने लगते हैं तथा मेढ़क अपने टर्र-टर्र की आवाज से वातावरण को मधुमय, बना देते हैं। Varsha Bahar class 7 poem in Hindi

खिलमा गुलाब केसा, सौरभ उड़ा रहा है,
जागों में खूब सुख से, आमोद छा रहा है।
चलते कतार बाँधे, देखो ये हंस सुन्दर,
गाते हैं गीत कैसे, लेते किसान मनहर।
इस भाँति है अनोखी, वर्षा बहार भू पर,
सारे जगत की शोभा, निर्भर है इसके ऊपर।

अर्थ-कवि कहता है कि वर्षाजल से रससिक्त होते ही गुलाब में फूल खिल गए हैं और अपनी सुगंध से सम्पूर्ण बाग को सुगंधमय बना दिए हैं।
इतना ही नहीं, इस ऋतु में पंक्तिबद्ध उड़ते हंस समूह मन को मोह लेते हैं। खेतों में काम कर रहे किसान खेती करने की खुशी में मोहक गीत गाते हैं। कवि कहता है कि संसार में इस वर्षा बहार का विशेष महत्त्व है क्योंकि इसी वर्षा के जल पर सारे प्राणियों का जीवन एवं खुशी निर्भर करता है। Varsha Bahar class 7 poem in Hindi

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7.Cycle Ki Sawari class 7 Saransh in Hindi | कक्षा 7 साइकिल की सवारी 

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 7 हिन्‍दी के कहानी पाठ सात ‘ Cycle Ki Sawari ( साइकिल की सवारी  )’ के सारांश को पढ़ेंगे।

Cycle Ki Sawari class 7 Saransh in Hindi

7. साइकिल की सवारी

पाठ का सारांश-प्रस्तुत कहानी ‘साइकिल की सवारी’ में लेखक ने अपनी आपबीती घटनाओं का वर्णन किया है। लेखक जब अपने पुत्र को साइकिल चलाते देखता है तो उसके मन में हीनता का भाव जन्म लेता है कि हमारे भाग्य में दो विद्याएँ-साइकिल चलाना और हारमोनियम बजाना नहीं लिखा है। इसलिए लेखक ने साइकिल चलाना सीख लेने का निर्णय किया ।  सन् 1932 की बात है। लेखक के मन में ख्याल आया कि क्या हमी जमाने भर में फिसड्डी रह गए हैं कि साइकिल नहीं चला सकते। इस कारण उन्होंने निश्चय कर लिया कि चाहे जो भी हो जाए, साइलिक चलाना सीखेंगे। दूसरे ही दिन लेखक ने अपने फटे-पुराने कपड़े की तलाश की और उन्हें श्रीमतीजी के सामने मरम्मती के लिए पटक दिया। पत्नी के पूछने पर लेखक ने बताया कि वह साइकिल चलाना सीखेंगे।, पत्नी ने कहा— “मुझे तो आशा नहीं कि आपसे यह बेल मत्थे चढ़ सके । खैर; यत्नकर देखिए लेखक ने कहा-साइकिल सीखते समय एकाध बार गिरना स्वाभाविक है. इस बुद्धिमान लोग पुराने कपड़ों से काम चलाते हैं, जो मूर्ख होते हैं, वही नए कपड़े पहनक साइकिल चलाना सीखते हैं । लेखक के इस युक्ति पर पत्नी ने कपड़ों की मरम्मत कर दी।
साइकिल चलाना सीखने की तैयारी शुरू हो गई। लेखक ने बाजार जाकर ‘जंबक’ के दो डब्बे खरीद लाए, ताकि चोट लगने पर उसी समय इलाज किया जा सके । अभ्यास करने के लिए खुला मैदान तलाशा गया। अब उस्ताद किसे बनाया जाए, लेखक इसी ऊहापोह में बैठा था कि तिवारी जी आ गए। लेखक को खिन्न देखकर तिवारीजी ने पूछा-अरे भई! क्या मामला है कि खिन्न हो ? …
लेखक ने कहा-ख्याल आया कि साइकिल की सवारी सीख लें । मगर कोई आदमी नजर नहीं आता, जो सिखाने में मदद करे । तिवारी जी ने विरोध जताते हुए कहा- ‘मेरी मानो तो रोग न पालो।’ इस आयु में साइकिल पर चढ़ोगे, तिवारीजी के इस उत्तर का प्रतिकार करते हुए लेखक ने कहा- ”भाई तिवारी, हम तो जरूर सीखेंगे। कोई आदमी बताओ!” आदमी तो ऐसा है एक, मगर फीस लेंकर सिखाएगा। फीस दोगे? लेखक ने बताया कि दस दिनों का बीस रुपये लेगा। यह सुनते ही लेखक के मन में विचार आया कि यदि ऐसी तीन-चार ट्यूशनें मिल जएँ तो महीने में दो-चार सौ रुपये की आय हो सकती है। लेखक मन ही मन खुश हो रहा था कि साइकिल चलाना आ जाए तो एक ट्रेनिंग स्कूल खोलकर तीन-चार सौ रुपये मासिक कमाया जा सकता है। Cycle Ki Sawari class 7 Saransh in Hindi
इस प्रकार उस्तादजी बुलाए गए। उन्हें फीस के.बीस रुपये दिए गए और अगले दिन से साइकिल सीखने की योजना बन गई। साइकिल सीखने की इस खुशी में लेखक को रात भर नींद नहीं आई। रात भर चौंकते रहे। सपने में देखा कि हम साइकिल से गिरकर जख्मी हो गए हैं। सबेरे मिस्त्री के यहाँ से साइकिल आई। पुराने कपड़े पहन लिए और जंबक का डिब्बा जेब में रखकर लारेंसबाग की ओर चल पड़े। लेकिन निकलते ही बिल्ली रास्ता काट गई और एक लड़के ने छींक दिया। लेखक इसे अपशकुन मानकर कुछ देर बाद भगवान का पावन नाम लेकर आगे बढ़ा । इस बार भी उसे लोगा का हसो का पात्र बनना पड़ा, क्योंकि पाजामा एवं अचकन उल्टे पहन रखा था। दूसरे दिन पाव पर साइकिल गिर जाने से जख्मी हो गया। लँगड़ाते हुए घर आया, लेकिन साहस एवं धैर्य से कष्ट सहन करते हुए साइकिल सीखना जारी रखा। आठ-नौ दिनों में साइकिल चलाना सीख गए, लेकिन अभी उस पर चढ़ना नहीं आता था। जब कोई सहारा देता तो उसे चलाने लग जाते. थे। इस समय उनके आनंद की कोई सीमा न होती। वे मनही-मन सोचते कि हमने मैदान मार लिया। दो-चार दिनों में मास्टर, फिर प्रोफेसर इसके बाद प्रिंसिपल बन जाएँगे। फिर ट्रेनिंग कॉलेज और तीन-चार सौ रुपये मासिक आय। . तिवारीजी देखेंगे और ईर्ष्या से जलेंगे।
अब लेखक मन-ही-मन काफी प्रसन्न होता था, लेकिन हाल यह था कि जब कोई दो सौ गज के फासले पर होता तो गला फाड़-फाड़कर चिल्लाना शुरू कर देता कि साहब जरा बाईं तरफ हट जाइए। कोई गाड़ी दिखाई पड़ती तो प्राण सूख जाते थे। एक दिन तिवारीजी को भी अल्टीमेटम दे दिया कि बाईं तरफ हट जाओ वरना साइकिल तुम्हारे पर चढ़ा देंगे। तिवारीजी ने रगइकिल से उतर जाने को कहा तो लेखक ने उत्तर दिया-अभी चलाना सीखा है, चढ़ना नहीं यह कहते हुए आगे बढ़ा कि सामने से एक ताँगा आते दिखाई दिया। एकाएक घोड़ा भड़क उठा और हम तथा हमारी साइकिल दोनों .. ताँगे के नीचे आ गए। होश आने पर देखा कि हमारी देह पर कितनी पट्टियाँ बँधी थीं। हमें होश में देखकर श्रीमतीजी ने कहा-अब क्या हाल है ? तब लेखक ने तिवारीजी पर दोष मढ़ने का प्रयास किया तो श्रीमतीजी ने मुस्कुराते हुए कहा—उस ताँगे पर बच्चों के साथ मैं ही तो सैर करने निकली थी कि सैर भी कर लेंगे और तुम्हें साइकिल चलाते देख भी आएँगे। मैंने निरुत्तर होकर आँखें नीची कर ली और साइकिल चलाना बंद कर दिया। Cycle Ki Sawari class 7 Saransh in Hindi

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Bihar Board Class 9th Hindi Solutions Notes गोधूलि भाग 1 वर्णिका भाग 1

इस पोस्‍ट में हमलोग BSEB (Bihar Board) कक्षा 9 हिन्दी bihar board class 9th hindi solutions notes के सभी पाठों का व्‍याख्‍या प्रत्‍येक पंक्ति के अर्थ सहित जानेंगे। साथ ही प्रत्‍येक पाठ के वस्‍तुनिष्‍ठ और विषयनिष्‍ठ प्रश्‍नों के व्‍याख्‍या को जानेंगे। पाठ के व्‍याख्‍या के बाद जितने भी प्रश्‍न दिए होंगे, उनमें से अधिकांश प्रश्‍न बोर्ड परीक्षा में पूछे गए हैं।

कक्षा 9 के हिन्दी के प्रत्‍येक पंक्ति के व्‍याख्‍या हमारे एक्‍सपर्ट के द्वारा तैयार किया गया है। इसमें त्रुटी की संभावना बहुत ही कम है। नीचे दिया गया व्‍याख्‍या को पढ़ने के बाद परीक्षा में आप और बेहतर कर सकते हैं। हिन्दी में काफी अच्‍छा मार्क्‍स आ सकता है। हिन्दी में अच्‍छा मार्क्‍स लाने के लिए इस पोस्‍ट पर नियमित विजिट करें। बहुत से बच्‍चों को हिन्दी से डर लगता है। प्रत्‍येक पाठ का व्‍याख्‍या इतना आसान भाषा में तैयार किया गया है कि कमजोर से कमजोर छात्र भी इसे पढ़कर समझ सकता है।

यह नोट्स NCERT तथा SCERT बिहार पाठ्यक्रम पर पूर्ण रूप से आ‍धारित है। इस पोस्‍ट में बिहार बोर्ड कक्षा 9 हिन्दी के प्रत्‍येक पाठ के बारे में प्रत्‍येक पंक्ति का हिन्‍दी व्‍याख्‍या किया गया है, जो बोर्ड परीक्षा की दृष्टि से काफी महत्‍वपूर्ण है। इस पोस्‍ट के प्रत्‍येक पाठ को पढ़कर हिन्दी के परीक्षा में उच्‍च स्‍कोर प्राप्‍त कर सकते है। इस पोस्‍ट के व्‍याख्‍या पढ़ने से आपका सारा कन्‍सेप्‍ट क्लियर हो जाएगा। सभी पाठ बोर्ड परीक्षा की दृष्टि से बनाया गया है।  पाठ को आसानी से समझ कर उसके प्रत्‍येक प्रश्‍नों का उत्तर दे सकते हैं। जिस पाठ को पढ़ना है, उस पर क्लिक करने से उस पाठ का व्‍याख्‍या खुल जाएगा। जहाँ उस पाठ के प्रत्‍येक पंक्ति का व्‍याख्‍या पढ़ सकते हैं।

Bihar Board Class 9th hindi solutions Notes | कक्षा 9 हिन्दी का सम्‍पूर्ण व्‍याख्‍या

Bihar Board Class 9 hindi Solution in Hindi

Godhuli Bhag 1 Solutions Class 9 Hindi गद्य खण्ड

Chapter 1 कहानी का प्लाॅट
Chapter 2 भारत का पुरातन विद्यापीठ : नालंदा
Chapter 3 ग्राम-गीत का मर्म
Chapter 4 लाल पान की बेगम
Chapter 5 भारतीय चित्रपट : मूक फिल्मों से सवाक फिल्मों तक
Chapter 6 अष्टावक्र
Chapter 7 टॉलस्टाय के घर में
Chapter 8 पधारो म्हारे देश
Chapter 9 रेल-यात्रा
Chapter 10 निबंध
Chapter 11 सूखी नदी का पुल
Chapter 12 शिक्षा में हेर-फेर

Godhuli Bhag 1 Solutions Class 9 Hindi पद्य खण्ड

Chapter 1 रैदास के पद
Chapter 2 मंझन के पद
Chapter 3 गुरु गोविंद सिंह के पद
Chapter 4 पलक पाँवड़े (अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरीऔध’)
Chapter 5 मै नीर भरी दुःख की बदली (महादेवी वर्मा)
Chapter 6 आ रही रवि के सवारी (हरिवंशराय बच्चन)
Chapter 7 पूरा हिन्दुस्तान मिलेगा (केदारनाथ अग्रवाल)
Chapter 8 मेरा ईश्वर (लीलाधर जगूड़ी)
Chapter 9 रूको बच्चों (राजेश जोशी)
Chapter 10 निम्मो की मौत (विजय कुमार)
Chapter 11 समुद्र (सीताकांत महापात्र)
Chapter 12 कुछ सवाल (पाब्लो नेरुदा)

Varnika Hindi Book Class 9 Solutions Bihar Board
Varnika Bhag 1 Solutions Class 9 Hindi

Chapter 1 बिहार का लोकगायन
Chapter 2 बिहार की संगीत साधना
Chapter 3 बिहार में नृत्यकला
Chapter 4 बिहार में चित्रकला
Chapter 5 मधुबनी की चित्रकला
Chapter 6 बिहार में नाट्यकला
Chapter 7 बिहार का सिनेमा संसार

Bihar Board Class 9 hindi Book Solutions

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मुझे आशा है कि आप को Class 9 hindi (हिन्दी) के सभी पाठ के व्‍याख्‍या को पढ़कर अच्‍छा लगा होगा। इसको पढ़ने के पश्‍चात् आप निश्चित ही अच्‍छा स्‍कोर करेंगें।  इन सभी पाठ को बहुत ही अच्‍छा तरीका से आसान भाषा में तैयार किया गया है ताकि आप सभी को आसानी से समझ में आए। इसमें कक्षा 9 हिन्दी के सभी चैप्‍टर के प्रत्‍येक पंक्ति का व्‍याख्‍या को सरल भाषा में लिखा गया है। यदि आप बिहार बोर्ड कक्षा 9 से संबंधित किसी भी पाठ के बारे में जानना चाहते हैं, तो नीचे कमेन्‍ट बॉक्‍स में क्लिक कर पूछ सकते हैं। यदि आप और विषय के बारे में पढ़ना चाहते हैं तो भी हमें कमेंट बॉक्‍स में बता सकते हैं। अगर आपका कोई सुझाव हो, तो मैं आपके सुझाव का सम्‍मान करेंगे। आपका बहुत-बहुत धन्‍यवाद.

पलक पाँवड़े कवि ‘अयोध्या सिंह उपाध्याय’ | Palak Pawde Class 9 Hindi

इस पोस्‍ट में हमलोग कक्षा 9 हिंदी पद्य भाग का पाठ पाँच ‘पलक पाँवड़े कवि ‘अयोध्या सिंह उपाध्याय’ | Palak Pawde Class 9 Hindi को पढ़ेंगें, इस पाठ में हरिऔध ने सूर्योदयकालीन प्राकृतिक सौन्दर्य का वर्णन किया है।

Palak Pawde Class 9 Hindi

4. पलक पाँवड़े कवि अयोध्या सिंह उपाध्याय

आज क्यों भोर है बहुत भाता।

क्यों खिली आसमान की लाली॥

किसलिए है निकल रहा सूरज।

साथ रोली भरी लिए थाली ॥

इस तरह क्यों चहक उठी चिड़ियाँ।

सुन जिसे है बड़ी उमंग होती॥

ओस आकर तमाम पत्तों पर।

क्यों गई है बखेर यों मोती ॥

अर्थकवि हरिऔध सूर्योदयकालीन प्राकृतिक सौन्दर्य का वर्णन करते हुए कहते हैं कि आज सुबह इतनी सुहावनी क्यों लग रही है, आकाश का रंग लाल क्यों है ? सूरज लाल रंग के चंदन से सुसज्जित थाल के समान क्यों उदित हो रहा है। की सूर्योदय के इस बेला में चिड़ियों के चहकने से अद्भुत आनंद छा गया है। ओस के कण वृक्ष के सारे पत्तों पर मोती के समान प्रतीत हो रहे हैं। कवि जानना चाहता है – कि ये सारे परिवर्तन किस कारण हो गए हैं।

व्याख्या प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘अयोध्या सिंह उपाध्याय’ द्वारा लिखित कविता ‘पलक पाँवड़े’ से ली गई हैं। इसमें कवि ने प्रातःकालीन प्राकृतिक सुषमा का बड़ा ही हृदयहारी वर्णन किया है।

कवि ने इन प्राकृतिक दृश्यों के माध्यम से यह स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि जिस प्रकार सूर्य की किरणें छिटकते ही सारा वातावरण रक्तिम प्रतीत होने लगता है, चिड़ियों के कलरव से वातावरण मधुमय हो जाता है, पेड़ के पत्तों पर बिखरे ओसकण मोती के समान चमकते दिखाई पड़ते हैं, उसी प्रकार देशवासियों में देश-प्रेम एवं स्वतंत्रता की उत्कट भावना देख कवि अभिभूत हो जाता है। कवि को ऐसा लगता है, जैसे—एक नये प्रभात का आगमन हुआ है। कवि ने प्रश्नशैली में अपनी जिज्ञासा प्रकट कर यह दर्शाने का प्रयास किया है कि देशवासी तभी सुंदर लगते हैं जब उनमें देश-प्रेम की भावना प्रबल होती है। नई सुबह की खुशी में प्रकृति अपना सौंदर्य बिखेर रही है तो दूसरी ओर अपनी स्वतंत्रता का आभास पाकर देशवासी उल्लसित हैं।

पेड़ क्यों हैं हरे भरे इतने।

किसलिए फूल हैं बहुत फूले॥

इस तरह किसलिए खिली कलियाँ।

भौंर हैं किस उमंग में भूले॥

क्यों हवा है सँभलसँभल चलती।

किसलिए है. जहाँतहाँ थमती॥

सब जगह एकएक कोने में।

क्यों महक है पसारती फिरती॥

अर्थकवि प्रश्नशैली में जानना चाहता है कि आज पेड़ इतने हरे-भरे क्यों हैं, फूल इतने क्यों खिल उठे हैं, कलियाँ किसलिए इस तरह खिल गई हैं और भौरे किस मस्ती या आनंद में इतने बेसुध हो गए हैं।

हवा सँभल-सँभल कर क्यों चलती है तथा जहाँ-तहाँ ठहर क्यों जाती है? इन फूलों की सुगंध को हवा क्यों बिखेर रही है? कवि के कहने का तात्पर्य है कि इस मादक परिस्थिति में प्रकृति अपना सारा सौन्दर्य इस प्रकार बिखेर रही है कि जगत् का कण-कण आत्मविभोर हो गया है।

व्याख्याप्रस्तुत पंक्तियाँ अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ द्वारा लिखित कविता “पलक पाँवड़े’ पाठ से ली गई हैं। इसमें कवि ने प्रकृति के व्यापक मनोहारी दृश्य का वर्णन करते हुए देश-प्रेम तथा स्वतंत्रता की उत्कट भावना को व्यक्त किया है। कवि का कहना है कि जिस प्रकार वसंत के आगमन होते ही प्रकृति अपने सारे सौंदर्य से परिपूर्ण हो जाती है, उसी प्रकार देश-प्रेम तथा स्वतंत्रता की भावना से उत्फुल्ल सारे देशवासी इतने बेसुध हो गए हैं कि उन्हें मरने का भी भय नहीं है। वे स्वतंत्रता की सुगंध को सर्वत्र बिखेरते फिरते हैं ताकि सारा देश इस आनंद की प्राप्ति के लिए व्याकुल हो उठे । कवि यह कहना चाहता है कि जिस प्रकार वसंत के समय पेड़-पौधे हरे-भरे तथा फल-फूलों से लद जाते हैं। भौरे पराग रस का पान कर बेसुध हो जाते हैं हवा मंद-मंद बहती है तथा फूलों की सुगंध बिखेरती है, उसी प्रकार स्वतंत्रता के इस मधुर वातावरण में सारे देशवासी प्रसन्नचित्त हैं तथा देश-प्रेम की भावना को उद्दीप्त करते-फिरते हैं।

लाल नौले सफेद पत्तों में । भर गए फूल बेलि बहली क्यों ।।

झील तालाब और नदियों में । विछ गई चादरें सुनहली क्यों ॥

किसलिए ठाट बाट है ऐसा ।जी जिसे देखकर नहीं भरता ।।

किसलिए एक-एक थल सजकर । स्वर्ग की है बराबरी करता ।।

अर्थ—कवि जानना चाहता है कि ये लाल, नीले, सफेद पत्ते फूलों से भर गए, लताएँ बहलने लगीं तथा नदियों, झीलों एवं तालाबों के जल सोने की चादरें जैसी क्यों दिखाई पड़ते हैं। तात्पर्य कि प्रातः काल में पेड़-पौधे फूलों से लद जाते हैं तथा सूर्य की पहली किरणों के पड़ने से नदी, तालाब तथा झीलों के जल सुनहले प्रतीत होते हैं जससे जल-राशि का दृश्य अति मनोरंजक हो जाता है।

कवि यह भी जानना चाहता है कि इस प्रकार की सजावट किसके लिए की जाती है जिसे देखकर ऐसा लगता है, जैसे—स्वर्ग यही हो । अतः कवि के कहने का भाव यह है कि सूर्योदय के स्वागत में प्रकृति अपना सारा सौन्दर्य प्रस्तुत कर देती है।

व्याख्या- प्रस्तुत पंक्तियाँ अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ द्वारा लिखित कविता ‘पलक पाँवड़े’ से ली गई हैं। इसमें कवि ने सूर्योदय का मनोहारी वर्णन किया है। . .. कवि का कहना है कि सुबह होते ही प्रकृति में अद्भुत परिवर्तन हो जाता है। लाल, नीले, सफेद पत्ते फूलों से लद जाते हैं । सूर्य की लाल-लाल किरणों से नदी, झील तथा तलाब के जल सोने की चादर जैसे प्रतीत होते हैं। प्रकृति की ऐसी सुन्दरता देखते रहने की इच्छा बनी रहती है। प्रकृति की यह सजावट स्वर्ग जैसी प्रतीत होती है। लेकिन कवि की जिज्ञासा बनी रहती है कि प्रकृति में यह परिवर्तन क्यों होता है ? कवि के कहने का तात्पर्य है कि जिस प्रकार प्रकृति सूर्योदय की अगवानी में अपनी सारी सुषमा बिखेर देती है उसी प्रकार स्वतंत्रता की पहली किरण को पाने के लिए देशवासी अपना तन-मन-धन समर्पित कर स्वतंत्रता देवी के दर्शन के लिए लालायित हैं।

किसलिए है चहल-पहल ऐसी । किसलिए धूमधाम दिखलाई ॥

कौन-सी चाह आज दिन किसकी। आरती है उतारने आई ।।

देखते रह धक गई आँखें। क्या हुआ क्यों तुम्हें न पाते हैं ।

आ अगर आज आ रहा है तू। हम पलक पाँवड़े बिछाते हैं।

अर्थ- कवि हरिऔध जी जिज्ञासा भरे शब्दों में कहते हैं कि इतनी हलचल क्यों है अथवा इतनी खुशी किसलिए प्रकट की गई है ? किस इच्छा की पूर्ति के लिए आज के दिन का यशोगान होने वाला है। उद्देश्य की सफलता की प्राप्ति की प्रतीक्षा करतेकरते आँखें पथरा गई हैं। किस कारण यह सफलता हमें नहीं मिल रही है । अपना हार्दिक उदगार प्रकट करते हए कवि कहता है यदि आज वह सफलता मिल रही है तो हम तुम्हारे स्वागत में इस सफलता रूपी मार्ग को सजाकर जिज्ञासा भरी दृष्टि से प्रतीक्षारत हैं।

व्याख्या- प्रस्तुत पंक्तियाँ अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ द्वारा लिखित कविता – ‘पलक पाँवड़े पाठ से ली गई हैं। इसमें कवि ने चिरप्रतीक्षित स्वतंत्रता प्राप्ति के प्रति अपनी उत्कंठा प्रकट की है।

कवि का कहना है कि इस नव बिहान के अवसर पर लोगों में एक नया जोश आ गया है। वे स्वतंत्रता देवी की आरती उतारने के लिए उतावले हैं, क्योंकि इस स्वतंत्रता प्राप्ति की आशा में लोगों की आँखें पथरा-सी गई हैं। कवि अपना हार्दिक प्रसन्नता प्रकट करते हुए कहता है कि यदि आज हमें स्वतंत्रता प्राप्त होने जा रही है तो हम स्वतंत्रता देवी के स्वागत में पलक पाँवड़े बिछा देते हैं । अतः कवि के कहने का तात्पर्य है कि हम देशवासी अपनी स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए इतने उत्कंठित हैं कि हम अपना सर्वस्व स्वतंत्रता की खातिर अर्पित करने को तत्पर हैं, क्योंकि इसी स्वतंत्रता के माध्यम से हमें पराधीनता . के कलंक से मुक्ति संभव है।

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4. Dani per class 7 Saransh in Hindi | कक्षा 7 दानी पेड़ 

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 7 हिन्‍दी के कहानी पाठ चार ‘ Dani per ( दानी पेड़  )’ के सारांश को पढ़ेंगे।

Dani per class 7 Saransh in Hindi

4 दानी पेड़

पाठ का सारांश-प्रस्तुत पाठ ‘दानी पेड़ में एक पेड़ के त्याग एवं महानता का वर्णन किया गया है। पेड़ अपना सब कुछ खो चुकने के बाद भी खश है क्योंकि उसने जीवन का सही उपयोग किया है, जबकि सख-भोगी मानव जीवन के अन्तिम पड़ाव तक दुःखी ही रहता है। कहानी में इसी मर्म को उद्घाटित किया गया है।
एक पेड़ था। वह एक छोटे लड़के को बहुत प्यार करता था। लड़का भी नित्य उस पेड़ के पास आता। फूलों की माला बनाता, उसका फल खाता, उसकी डालियों से झूलता और थक जाने पर उसी पेड़ की छाया में सो जाता था । लड़के की इन क्रीड़ाओं से पेड़ काफी खुश रहता था।
लड़का जवान हो गया। वह अब पेड़ पर खेलने नहीं आता। फलत: पेड़ दु:खी रहने लगा। एक दिन लड़का उस पेड़ के पास आया तो उसे देखकर पेड़ खुश हो गया। लड़के ने पेड़ से कुछ पैसे की याचना की तो पेड़ ने कहा- “तुम मेरे फल तोड़ लो और उन्हें बाजार में बेच दो। इससे तुम्हें पैसे मिल जाएँगे।” Dani per class 7 Saransh in Hindi
पेड़ काफी खुश था, क्योंकि उसने लड़के की जरूरत पूरी की थी। कई साल के बाद लड़का फिर उस पेड़ के पास आया। उसने कहा-मेरी शादी होने वाली है, इसलिए मझे घर की जरूरत है। पेड़ ने घर के लिए अपनी डालियाँ काटकर ले जाने को कहा। युवक सभी शाखाओं को काटकर ले गया। पेड़ का मात्र तना बचा रह गया था, फिर भी वह खुश था।
लड़का पुन: उस पेड़ के पास तब आया, जब वह अधेड़ उम्र का आदमी बन गया था। उसे मछली पकड़ने के लिए एक नाव की जरूरत थी। उसने पेड़ से एक नाव की याचना की तो पेड़ ने अपना तना उसे नाव बनाने के लिए दे दिया। पेड़ लूंठ बचा था, फिर भी वह काफी खुश था, क्योंकि उसने अपने शरीर को दूसरों के उपकार में अर्पित कर दिया था।
इस प्रकार कई साल बीत गए । एक दिन एक बूढ़ा आदमी उस के लूंठ के पास आया, जिसे ढूंठ ने पहचान लिया कि यह वही छोटा लड़का है। पेड़ उसे देखकर बहुत खुश हुआ। इसी खुशी के आवेग में उसने कहा-बेटा, मैं तुम्हें कुछ देना चाहता था, किंतु मैं तो अब ढूंठ हूँ। बूढ़े ने कहा-मैं बहुत थक गया हूँ। मुझे आराम के लिए कुछ जगह चाहिए। पेड़ ने उसे अपनी लूंठ पर आराम करने की सलाह दी। बूढ़ा वहीं शांतिपूर्वक आराम करने लगा। पेड़ अब भी बहुत खुश था।
तात्पर्य यह कि महापुरुष अपना सर्वस्व त्याग करने के बाद भी पेड़ की भाँति खश ही रहते हैं। जबकि स्वार्थी व्यक्ति जीवनपर्यन्त अशांत एवं असंतुष्ट रहते हैं। Dani per class 7 Saransh in Hindi

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Ganga stuti class 7th Hindi

Manav Bano in hindi class 7

6. Ganga Stuti class 7 in Hindi | कक्षा 7 गंगा स्तुति 

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 7 हिन्‍दी के कविता पाठ छ: ‘ Ganga Stuti (गंगा स्तुति )’ के प्रत्‍ये‍क पंक्ति के अर्थ काे पढ़ेंगे।

Ganga Stuti class 7 in Hindi

6 गंगा स्तुति
बड़-सुख सार पाओल तुअ तीरे ।
छोड़इत निकट नयन बह नीरे ।।
कर जोरि विनमओं विमल तरंगे ।
पुन दरसन होए, पुनमति गंगे ।

अर्थ-कवि विद्यापति माँ गंगा से प्रार्थना करते हैं कि हे पुण्यमयी गंगे ! तुम्हारे सान्निध्य में रहते हुए हमें अपार सुख का अनुभव हुआ। अब उसे छोड़ते हुए मेरा मन विकल हो उठा है और इसी विकलता के कारण आँख से आँसू बहने लगे हैं। इसलिए है माँ गंगे ! हाथ जोड़कर निवेदन करता हूँ कि तुम्हारे निर्मल, पुण्यमयी जलधारा का . पुन: दर्शन हो। Ganga Stuti class 7 in Hindi

एक अपराध छेमब मोर जानी ।
परसल माय पाय तुअ पानी !!
कि करब जप-तप जोग भेयाने ।
जनम कृतारथ एकहि सनाने ।।
भनई विद्यापति समदओं तोही।
अन्तकाल जनु विसरहु मोही ।

अर्थ-कवि माँ गंगा से प्रार्थना करता है कि हे माते! मुझसे एक अपराध (गलती) हो गया है। मुझे अपना (पुत्र) जानकर क्षमा कर देना; क्योंकि मैने तुम्हारे फैले अमृत (पावन) जल में अपने पैर रखे हैं।
हे माँ! तुम्हारा जल इतना पवित्र है कि उस जल में एक बार स्नान करने से जीवन धन्य 1(सफल) हो जाता है, इसलिए मैं जप-तप योग-ध्यान करना आवश्यक नहीं समझता हूँ । Ganga Stuti class 7 in Hindi
कवि गंगा से प्रार्थना करता है कि हे माँ ! जीवन के अन्तिम क्षण में तुम मुझे भुल न जाना। अर्थात् जीवन के अन्तिम क्षण में मुझे तुम्हारा दर्शन अवश्य हो।

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Manav Bano class 7th Hindi

Nachiket story saransh in hindi class 7

5. Veer Kunwar Singh class 7 Saransh | कक्षा 7 वीर कुँवर सिंह 

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 7 हिन्‍दी के कहानी पाठ पाँच ‘ Veer Kunwar Singh (वीर कुँवर सिंह )’ सारांश को पढ़ेंगे।

Veer Kunwar Singh class 7 Saransh

वीर कुँवर सिंह  

पाठ का सारांश-प्रस्तुत पाठ ‘वीर कुंवर सिंह’ में कुँवर सिंह के व्यक्तित्व एवं वीरता का वर्णन है। इनकी शौर्य-गाथा युग-युग तक देशवासियों को राष्ट्र-प्रेम का संदेश देती रहेगी। उनकी वीरता के गीत- ‘बाबू कुँवर सिंह तेगवा बहादुर, बंगला पर उड़ेला अबीर …” गाते रहेंगे। यह गीत उनकी शौर्य गाथा का प्रतीक है। उनके उत्साह एवं साहस का परिचय तब मिलता है जब इन्होंने अंग्रेजों की गोली से घायल हाथ को ‘मातु गंग, तोहरा, तरंग पर, हमार बाँह अरपित बा।” कहते हुए काटकर गंगा की धारा में फेंक दिया। दूसरी घटना, जो उनके जीवन से संबंधित है कि इन्होने जगदीशपुर से आरा आने-जाने के लिए एक सरंग का निर्माण करवाया था जिसका उपयोग उन्होंने यद्ध के समय किया। यह सुरंग आज भी महाराजा कॉलेज, आरा में विद्यमान है।इस महान विभूति का जन्म सन् 1782 ई. में भोजपुर मण्डलान्तर्गत जगदीशपुर गाँव में हुआ था। इनके पिता क नाम साहबजादा सिंह तथा माता का नाम पंचरतन कुँवर था। उनके पिता जगदीशपुर रियासत के जमींदार थे। कुँवर सिंह की शिक्षा की व्यवस्था घर पर ही की गई थी। इन्होंने अपनी शिक्षा संस्कृत एवं फारसी में पाई, लेकिन इनकी विशेष रूचि घुड़सवारी, तलवारबाजी तथा कुश्ती लड़ने में थी। पिता की मृत्यु के पश्चात् 1827 इ. में जब इन्होंने अपनी रियासत की जिम्मेदारी संभाली, उस समय अंग्रेजों का अत्याचार | चरम पर था। वे इस अत्याचार के विरुद्ध आवाज उठाने वाले ही थे कि 1857 ई. की क्रांति का शंखनाद हो गया। 25 जुलाई, 1857 ई. को दानापुर छावनी के अंग्रेजी सैनिकों | ने विद्रोह कर दिया। फिर क्या था। कुँवर सिंह ने इन सैनिकों के साथ आरा जेल के कैदियों को आजाद कराया और 27 जुलाई, 1857 ई. को आरा पर विजय प्राप्त कर ली। इस समय आरा 1857 की क्रांति के विद्रोह का केन्द्र था और कुंवर सिंह इस क्रांति के प्रमुख नेता थे। Veer Kunwar Singh class 7 Saransh
इस विद्रोह की ज्वाला जब बिहार में सर्वत्र फैल चुकी, तब अंग्रेजों ने अपना दमनचक्र चलाया। अंग्रेजों तथा कुँवर सिंह के बीच भीषण युद्ध हुआ जिसमें कुँवर पराजित हो गए और इस हार का बदला लेने के लिए इन्होंने रीवा, काल्यो, कानपुर, लखनऊ आदि जगहों के राजाओं एवं जमींदारों से मुलाकात की। इनकी इस विजय-यात्रा से अंग्रेजी के होश उड़ गए। इस प्रकार ग्वालियर तथा जबलपुर के सैनिकों के सहयोग से आजमगढ पर अधिकार करने के बाद 23 अप्रैल, 1858 को जगदीशपुर में यूनियन जैक (अंग्रेज का झंडा) उतारकर अपना झंडा फहराया। इस समय इनकी उस 80 वर्ष की थी। Veer Kunwar Singh class 7 Saransh
निष्कर्षत: यह कहा जा सकता है कि कुंवर सिंह भारत माता के महान सपूत थे। इन्होंने अपना तन-मन-धन मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए अर्पित कर दिया था। ये महान वीर, रण-कुशल तथा ऐसे स्वाधीनता सेनानी थे, जिन्होंने स्वातंत्र्य-संग्राम के लिये सारे सुखों की तिलांजलि दे दी और सारे देशवासियों को देश को अजादी के लिए प्रेरित किया।

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Janm Badha in hindi class 7