6.Raghudash lokbuddhi class 8 sanskrit | कक्षा 8 रघुदासस्य लोकबुद्धिः (रघुदास का विचार)

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 8 संस्‍कृत के कहानी पाठ छ: ‘रघुदासस्य लोकबुद्धिः’ (Raghudash lokbuddhi class 8 sanskrit)’ के अर्थ को पढ़ेंगे।

Raghudash lokbuddhi class 8 sanskrit

6. षष्ठः पाठः
रघुदासस्य लोकबुद्धिः
(रघुदास का विचार)

पाठ-परिचयप्रस्तुत पाठ ‘रघुदासस्य लोकबुद्धि’ में जनसंख्या संबंधी समस्या पर विचार किया गया है कि छोटा परिवार बड़े परिवार की अपेक्षा अधिक खुशहाल और प्रसन्न रहता है। बड़े परिवारों में सदस्य अधिक होने के कारण कलह का वातावरण बना रहता है जबकि छोटे परिवार को इस समस्या से नहीं जूझना पड़ता। जैसे गाँव से आकर नगर में रहने वाले दो परिवारों से पता चलता है कि जिस परिवार में बच्चों की संख्या अधिक है उसमें अक्सर लड़ाई-झगड़ा होते देखा जाता है, जबकि छोटे परिवार में मेल-मिलाप अधिक रहता है। वर्तमान परिवेश में अनियंत्रित जन संख्या देश के लिए समस्या बन गई है, इसलिए छोटे परिवार के पक्ष में सूत्र वाक्य है— ‘छोटा परिवार सुखी परिवार ।’

अस्ति रामभद्रनामकं समृद्ध नगरम् । तत्र बहवो जनाः स्व-स्व ग्रामान् परित्यज्य नगरनिवासाय परिवारेण सह समागताः। नगरे नाना सुविधाः सन्तीतति न सन्देहः । किन्तु नगरस्य नियमाः ग्रामजनान् पीडयन्ति तत्रैको ग्रामपरिवारः हरिप्रसादस्य निवसति । तस्य प्रतिवेशी च रघुदासः स्वपरिवारेण विद्यालये सर्वदा कक्षायां प्रथमः आगतः, सम्प्रति नगरस्य महाविद्यालये अधीते । बिन्दुप्रकाशस्य मातापितरौ निजस्य सन्तानस्य उन्नतिं विलोक्य प्रमुदितौ भवतः । लघुपरिवारस्य कारणात् नातिसम्पन्नोपि रघुदासः नगरे सुखी वर्तते । यदा-कदा तद्गृहे ग्रामात् जनाः आगत्य तिष्ठन्ति । किन्तु परिवार: कदापि कष्टं नानुभवति ।

अर्थ-रामभद्र नाम का सम्पन्न नगर है। वहाँ अनेक लोग अपने-अपने गाँव को छोड़कर नगर में निवास करने के लिए परिवार के साथ आये। नगर में अनेक प्रकार की सुविधाएँ मिलती हैं, इसमें कोई संदेह नहीं है। लेकिन नगर के नियम ग्रामीण लोगों को कष्टदायी महसूस होता है। वहीं हरिप्रसाद नाम का एक ग्रामीण परिवार निवास करता है। और उसका पड़ोसी रघुदास अपने परिवार के साथ सुखपूर्वक रहता है। रघुदास का पुत्र बिन्दु प्रकाश अति मेधावी छात्र है जो हमेशा अपनी कक्षा में प्रथम आता है। वह नगर के महाविद्यालय में पढ़ता है। बिन्दु प्रकाश के माता-पिता अपनी संतान की उन्नति देखकर काफी खुश हैं। छोटा परिवार के कारण आर्थिक दृष्टि से संपन्न न होने के बावजूद रघुदास खुश है। कभी-कभी उसके यहाँ ग्रामीण लोग आकर ठहरते हैं, किन्तु उनका परिवार दुःखी नहीं होता है। Raghudash lokbuddhi class 8 sanskrit

अपरत्र प्रतिवेशिन: हरिप्रसादस्य परिवारवृत्तं विचित्रम् । तस्य परिवारे षट् कन्याः द्वौ च पुत्रौ वर्तन्ते । तेषां सर्वेषां भरणे पोषणे च सम्पन्नोऽपि हरिप्रसादः सदा चिन्तितः तिष्ठति । कन्यासु तिस्त्र एव विद्यालये गच्छन्ति, अपराः तिस्त्रः प्रवेशिकापरीक्षोत्तीर्णाः गृहे एव तिष्ठन्ति । हरिप्रसादः चिन्तयति यत् अधिकाध्ययनेन तासां विवाहसमस्या महती भविष्यति । गृहे स्थिताः ता: परिवारकार्याणि कुर्वन्ति किन्तु सदा परस्परं कलहं कुर्वन्ति । हरिप्रसादस्य पुत्रौ विद्यालये पठतः किन्तु तयोः महत्वाकांक्षा सदैव पितरं पीडयति । माता तावेव सर्वाधिकं मन्यते । तदवलोक्य कन्याः सर्वाः अपि अतीत दुःखिताः भवन्ति । एवं सम्पन्नः हरिप्रसादः प्रतिवेशिनः रघुदासस्य निर्धनस्यापि प्रसन्नतायै ईय॑ति । हरिप्रसादस्य विशालेऽपि गृहे आगताः तस्य ग्रामीणाः न प्रसीदन्ति । एतस्य परिवारस्य दुःखस्य चर्चा ते कुर्वन्ति ।

अर्थ-दूसरे पड़ोसी हरिप्रसाद के परिवार की विचित्र स्थिति है। उनके परिवार में छ: लडकियाँ तथा दो पत्र हैं। उनके भरण-पोषण को लेकर हरिप्रसाद आर्थिक दृष्टि से खुशहाल होते हुए सदा परेशान रहते हैं। लड़कियों में तीन लड़कियाँ स्कूल जाता है और शेष तीन लड़कियाँ प्रवेशिका परीक्षा पास करने के बाद घर में रहती है । हरि प्रसाद सोचता है कि अधिक पढ़ाने पर उनकी शादी महान समस्या हो जाएगी। वे सब घर में रहते हुए परिवार का कार्य करती हैं तथा आपस में लड़ती-झगड़ती रहती हैं । हरि प्रसाद . के दोनों पुत्र स्कूल में पढ़ते हैं किंतु दोनों की उच्चाकांक्षा सदा पिता को दुःखी बनाए रहता है। माता दोनों पुत्रों को ही सबसे अधिक चाहती हैं। माता के इस व्यवहार से सभी लड़कियाँ अति दुःखी होती हैं। इस प्रकार आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न हरिप्रसाद पड़ोसी रघुदास की खुशी देखकर जलते हैं। हरिप्रसाद के सम्पन्न होने के बावजूद गाँव से आए हुए लोग खुश नहीं होते और वे इनके परिवार के दुःख की चर्चा करते हैं।

अन्ततः हरिप्रसादः स्वकीयं विशालं परिवारं सदा निन्दति “रघुदासस्य लघुपरिवारः ।” धिक् मां विशालपरिवारजनकम् । वर्तमानकाले ते एव ध न्याः सन्ति येषां जनानां परिवारः अल्पकायः । सत्यमुच्यते.

अर्थ-अन्त में, हरिप्रसाद रघुदास के छोटे परिवार की तुलना में अपने विशाल परिवार की हमेशा निंदा करते हैं । धिक्कार है मुझको, बड़े परिवार का पिता होने पर, (क्योंकि) इस समय जिसका परिवार छोटा होता है, उसका जीवन धन्य होता है। सत्य ही कहा जाता है :

परिवारस्‍य सौभाग्‍यं यत्र संख्‍या लघीयसी ।

विशाल परिवारस्य भरणे पीडितो जनः । Raghudash lokbuddhi class 8 sanskrit

अर्थ-जिस परिवार में बच्चों की संख्या कम होती है, वह छोटा परिवार सदा । प्रसन्न रहता है। उसे भरण-पोषण में कोई कठिनाई नहीं आती। लेकिन जो विशाल परिवार होता है, उसमें भरण-पोषण की समस्या सदा बनी रहती है।

देशेपि परिवारेषु जनसंख्यानियन्त्रणात ।

संसाधनानि सर्वेषां सुलभान्येव सर्वथा ॥

अर्थ-जनसंख्या पर नियंत्रण रखने से देश एवं परिवार में सर्वत्र वस्तओं की उपलब्धि आसानी से हो जाती है। तात्पर्य यह कि जब किसी देश या परिवार में लोगों की संख्या कम होती है तो कोई भी वस्तु कहीं भी आसानी से मिल जाती है। इसलिए किसी देश या परिवार के विकास के लिए नियंत्रित जनसंख्या का होना अनिवार्य होता है। Raghudash lokbuddhi class 8 sanskrit

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5.Samajik karyam sanskrit class 8 | कक्षा 8 सामाजिक कार्यम् (सामाजिक कार्य)

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 8 संस्‍कृत के कहानी पाठ पाँच ‘सामाजिक कार्यम् (सामाजिक कार्य)’ (Samajik karyam)’ के अर्थ को पढ़ेंगे।

Samajik karyam sanskrit class 8

पञ्चमः पाठः
सामाजिक कार्यम् (सामाजिक कार्य)

पाठ-परिचयव्यक्तियों के समूह को समाज कहते हैं। व्यक्ति के विकास के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करना तथा संकट के समय सबकी सहायता करना समाज का लक्ष्य होता है। किंतु इस भौतिकवादी युग में स्वार्थवश लोग ऐसे पवित्र लक्ष्य को भूलते जा रहे हैं। फिर भी ऐसी बहुत-सी संस्थाएँ तथा कुछ व्यक्ति भी समाजोपयोगी कार्य में लगे हैं। किसी भी संकट का सामना करना, असहायों की मदद करना इस संस्था तथा व्यक्तियों का उद्देश्य है। प्रस्तुत पाठ में इसी विषय पर प्रकाश डाला गया है।

विज्ञानस्य विकासेन अद्य संसारः यद्यपि नाना सुविधाः लभते किन्तु मनुष्येषु सामाजिकः सम्पर्कः क्रमश: अल्पीकृतः । स्वगृहे एव जनः अनेकानि विज्ञानोपकरणानि प्रयुञ्जानः अन्यान् तुच्छान् मन्यते । कदाचित् एतेषाम् उपकरणानाम् अभावे परिवारे सदस्याः एव उपकारकाः अभवन् । क्रमेण मानवस्य एकाकित्वेन स्वार्थवादः उदितः । इदानीं मनुष्यः स्वकीयं हितमेव सर्वोपरि मन्यते । किन्तु समाजस्य सदस्यरूपेण सर्वेषां कर्त्तव्यं वर्तते यत् एकैकस्य जनस्य हिताहितं चिन्तयेयुः। कश्चित् संकटापन्नः वर्तते, कश्चिन्मार्गे दुर्घटनाग्रस्तः, क्वचित् जलपूरेण सम्पूर्णस्य ग्रामस्य विनाशः, क्वचित् निर्धनः जनः परिवारपालने असमर्थः, क्वचित् वृद्धाः जनाः उपेक्षिताः, कदाचित् गृहेषु अग्निदाहः, क्वचित् यातायातमार्गः अवरुद्धः, क्वचित् मार्गे वृक्षाः पतिताः, क्वचित् अनाथा: शिशवः, दुर्बलाः महिलाश्च सहायताम् अपेक्षन्तेइत्येवं समाजे नाना समस्याः जनस्य ध्यानाकर्षणाय वर्तन्ते ।

अर्थ-वैज्ञानिक विकास से आज संसार यद्यपि अनेक प्रकार की सुविधाओं से युक्त है, लेकिन लोगों में सामाजिक प्रेम का भाव धीरे-धीरे घट गया है। अपने घर में ही लोग अनेक प्रकार के वैज्ञानिक उपकरणों (टी. वी., रेफ्रीजरेटर, वाशिंग मशीन) का प्रयोग करते हुए दूसरों को हीन मानते हैं। कभी इन साधनों के अभाव में परिवार का सदस्य ही उपकार करने वाले हो गए । क्रमशः व्यक्ति के अकेलापन के कारण स्वार्थपरता आ गई। इस समय व्यक्ति अपनी जरूरत को ही महत्वपूर्ण (आवश्यक) मानते हैं। किन्तु समाज की इकाई (अंग) होने के कारण हर व्यक्ति का कर्तव्य है कि हरेक व्यक्ति के कल्याण-अकल्याण के विषय में सोचे, क्योंकि कोई विपत्ति में होता है, कहीं कोई राह चलते दुर्घटनाग्रस्त हो जाता है, कहीं किसी गाँव का बाढ़ से विनाश हो जाता है, कहीं गरीबी से त्रस्त परिवार अपना भरण-पोषण करने में लाचार हैं, कहीं बूढ़े उपेक्षित हैं तो कभी घर में आग लग जाती है, कहीं यातायात रुका हुआ है, कहीं सड़क पर पेड़ गिरा हुआ है तो अनाथ बच्चे और कमजोर स्त्रियाँ सहायता की अपेक्षा रखते हैं। इस प्रकार समाज में अनेक प्रकार की समस्याएँ हैं जिस ओर ध्यान देना आवश्यक है। Samajik karyam sanskrit class 8

जनैः  अपेक्षितं भवति । नेदं यत् सामाजिक कार्य संकटकाले एव भवति प्रत्युत समाजस्य विकासाय स्वग्रामस्य नगरस्य वा गौरवाय अपि इदं क्रियते । यथा काचित् सामाजिकी संस्था सम्पूर्ण ग्राम स्वच्छं कुर्यात्, मार्गेषु वृक्षारोपणम्, कूपतडागदिजलाशयानां व्यवस्थाम्, रिक्तेषु क्षेत्रेषु उद्यानानां विन्यासम्, क्वचित् पुस्तकालयस्य, व्यायामशालायाः सामुदायिकभवनस्य वा प्रबन्धनं कुर्यात् । यदि ग्रामे मार्गव्यवस्था नास्ति तदा ग्रामजनानां स्वैच्छिक-श्रमेण मार्ग निर्मातुं प्रभवन्ति सामाजिकसंस्थाः । तदर्थम् एकोऽपि मनुष्यः कार्यारम्भे समर्थः ।।

अर्थये सब स्वार्थवादियों द्वारा संभव नहीं है, अपितु परोपकारी व्यक्ति अथवा कल्याणकारी संस्था द्वारा ही किया जाता है। हमेशा सुख या खुशहाली नहीं रहती है, किसी को भी कहीं भी समस्या (संकट) उत्पन्न हो सकती है। इस समय समाज के लोगों की जरूरत पड़ती है। यह नहीं कि विपत्ति में ही समाज की आवश्यकता होती है, अपितु सामाजिक विकास तथा अपने गाँव तथा नगर के गौरव बढ़ाने के लिए भी होता है। जैसे कोई सामाजिक संस्था गाँव को साफ करे, कोई राह के किनारे वृक्षारोपण करे, कोई कुआँतालाब आदि जलाशय की व्यवस्था करे, तो कोई गाँव की खाली जगहों में बाग लगवाये। इसी प्रकार कोई पुस्तकालय, व्यायामशाला तथा सामुदायिक भवन का निर्माण करावे। यदि गाँव में सड़क नहीं है तो अपना-अपना योगदान देकर सड़क का निर्माण करावें। उसमें एक भी व्यक्ति काम आरंभ करने में समर्थ हो सकता है।

संकटकाले तु सुतरां वर्धते सामाजिक कार्यम् । क्वचित् निर्धने परिवारे विवाहयोग्यानां किशोरीणां किशोराणां च सामूहिको विवाहोऽपि सार्वजनिकस्थलेषु आयोज्यते । तब विवाहस्य सरला रीतिः आडम्बरविहीना दृश्यते। किञ्च काश्चित् संस्थाः निर्धनान् छात्रान् प्रतियोगितापरीक्षार्थ प्रस्तुवन्ति निःशुल्कम्। तदपि महत्त्वपूर्ण कार्यम् । किञ्च क्वचित् यानानां दुर्घटनासु सत्वरं सहायतार्थ समागच्छन्ति, आहतान् चिकित्सालयं प्रापयन्ति, अनाथीभूतान् बालकान् उचितं स्थान प्रापयन्ति काश्चित् संस्थाः । भारते वर्षे नदीनां जलपूरेण यदा विनाशलीला दृश्यते, विशेषेण विहारराज्ये, तदानीमपि सामाजिकसंस्था: दूरस्थाः अपि समागत्य विविधा सहायतां धनजनसामग्रीरूपां कुर्वन्ति । एकैकेनापि पुरुषेण यदि अपरस्योपकारः क्रियते तदा जीवनं सफलं मन्येता भारतस्य प्राचीन: आदर्शः आसीत्

 अर्थ-संकट काल में तो सामाजिक सहयोग की जरूरत बहुत होती है। कहीं गरीब परिवार के विवाहयोग्य लड़कियों और लड़कों का सामूहिक विवाह का आयोजन सार्वजनिक स्थानों पर किया जाता है। वहां विवाह आडम्बर रहित एकदम आसान तरीके से करते हुए देखे जाते हैं। इसके अतिरिक्त कोई संस्था छात्रों को निःशुल्क प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी करवाती है तो कहीं वाहन दुर्घटना में घायलों को अतिशीघ्र अस्पताल पहुँचाती है। कोई संस्था अनाथ हुए बच्चों को उचित स्थान पर ले जाती है।

भारतवर्ष में बाढ़ से जब विनाश लीला होती है, खासकर बिहार प्रांत में, उस समय सामाजिक संस्थाएँ दूर रहने पर भी आकर शरीर तथा धन से विभिन्न तरह से सहायता करती हैं। एक-एक व्यक्ति के द्वारा भी यदि दूसरों का उपकार किया जाता है तो जीवन सफल हो जाता है। भारत का प्राचीन आदर्श था :

कामये दुःखतप्तानां प्राणिनामातिनाशनम्”। Samajik karyam sanskrit class 8

अर्थ-दुःखीजनों का कष्ट दूर करने की कामना करता हूँ। तात्पर्य कि जिनमें मानवता होती है, वे पीड़ित, दुःखित तथा असहायों की सेवा करके अपनी मानवता का परिचय देते हैं। यह मानव तन दूसरों का उपकार करने के लिए ही मिलता है। जो ऐसा करते हैं, उनका जीवन धन्य हो जाता है।

 यत्र भारते सर्वे प्राणिनः सहायतां संकटकाले लभन्ते तत्र सम्प्रति मनुष्याः अवश्यमेव उपकर्त्तव्याः ।

अर्थ-जिस भारत वर्ष में सभी प्राणियों को संकटकाल में सहायता की जाती थी, ___ उस देश के लोगों को आज अवश्य ही उपकृत करना चाहिए। Samajik karyam sanskrit class 8

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कक्षा 6  के सभी विषयों के प्रत्येक पाठ के प्रत्येक पंक्ति के व्याख्या हमारे एक्ससपर्ट के द्वारा तैयार किया गया है। इसमें त्रुटी की संभावना बहुत ही कम है। नीचे दिया गया विषय की व्यारख्या को पढ़ने के बाद परीक्षा में आप और बेहतर कर सकते हैं। कक्षा 6  के बोर्ड परीक्षा में काफी अच्छा मार्क्स  आ सकता है। कक्षा 6  में अच्छा मार्क्स लाने के लिए इस पोस्ट पर नियमित विजिट करें। प्रत्येंक पाठ का व्याख्या इतना आसान भाषा में तैयार किया गया है कि कमजोर से कमजोर छात्र भी इसे पढ़कर समझ सकता है।

यह नोट्स NCERT तथा SCERT बिहार पाठ्यक्रम पर पूर्ण रूप से आधारित है। इस पोस्ट में बिहार बोर्ड कक्षा 6  के प्रत्येक विषय के पाठ के बारे में प्रत्येक पंक्ति का हल किया गया है, जो बोर्ड परीक्षा की दृष्टि से काफी महत्वटपूर्ण है। इस पोस्ट  के प्रत्ये्क पाठ को पढ़कर बोर्ड परीक्षा तथा प्रतियोगी परीक्षाओं में उच्च स्कोर प्राप्ता कर सकते हैं। इस पोस्ट के व्याख्य पढ़ने से आपका सारा कन्सेप्टर क्लियर हो जाएगा। सभी पाठ बोर्ड परीक्षा की दृष्टि से बनाया गया है।  पाठ को आसानी से समझ कर उसके प्रत्येक प्रश्नों  का उत्तर दे सकते हैं। जिस विषय को पढ़ना है, उस पर क्लिक करने से उस पाठ का व्याख्या खुल जाएगा। जहाँ उस पाठ के प्रत्येरक पंक्ति का व्याख्या पढ़ सकते हैं।

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मुझे आशा है कि आप को कक्षा 6  के सभी विषय के व्याख्या को पढ़कर अच्छा लगा होगा। इसको पढ़ने के पश्चात आप निश्चित ही अच्छा स्कोर करेंगें।  इन सभी पाठ को बहुत ही अच्छा तरीका से आसान भाषा में तैयार किया गया है ताकि आप सभी को आसानी से समझ में आए। इसमें कक्षा 6  के प्रत्येक विषय के सभी चैप्टर के प्रत्येक पंक्ति का व्याख्या को सरल भाषा में लिखा गया है। यदि आप बिहार बोर्ड कक्षा 6  से संबंधित किसी भी पाठ के बारे में जानना चाहते हैं, तो नीचे कमेन्ट  बॉक्स  में क्लिक कर पूछ सकते हैं। यदि आप और विषय के बारे में पढ़ना चाहते हैं तो भी हमें कमेंट बॉक्स में बता सकते हैं। अगर आपका कोई सुझाव हो, तो मैं आपके सुझाव का सम्मान करेंगे। आपका बहुत-बहुत धन्यावाद.

4.Prahelika class 8 sanskrit | कक्षा 8 प्रहेलिकाः (पहेलियाँ)

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 8 संस्‍कृत के कहानी पाठ चार ‘प्रहेलिकाः (पहेलियाँ)’ (Prahelika class 8 sanskrit )’ के अर्थ को पढ़ेंगे।

Prahelika class 8 sanskrit

चतुर्थः पाठः
प्रहेलिकाः (पहेलियाँ)

पाठ-परिचयप्रस्तुत पाठ ‘प्रहेलिकाः’ (पहेलियाँ) में बालको की बौद्धिक क्षमता की जाँच के लिए पाँच पहेलियाँ दी गई हैं। बौद्धिक विकास के लिए गणित के समान पहेलियों का भी महत्वपूर्ण स्थान है। सभी संस्कृतियों में पहेलियाँ बच्चा के बौद्धिक विस्तार तथा तर्कशक्ति के विकास के लिए आवश्यक मानी गई है। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए पाठ्यपुस्तकों में पहेलियों का समावेश आधुनिक समय में होने लगा है, ताकि छात्र-छात्राएँ समुचित बौद्धिक व्यायाम कर सकें । पहेलियाँ अपने-आप में गूढार्थक होती है, इसलिए इसका अर्थ जानने-समझने के लिये तार्किक होना आवश्यक होता है।

रेफ आदौ मकारोऽन्ते बाल्मीकिर्यस्य गायकः।
सर्वश्रेष्ठं यस्य राज्यं वद कोऽसौ जनप्रियः॥

अर्थ-वह कौन लोगों का प्रिय था जिसका राज्य सबसे अच्छा माना जाता है, जिसके नाम का पहला अक्षर ‘र’ तथा अन्तिम अक्षर ‘म’ है और जिसका गायक वाल्मीकि हैं। Prahelika class 8 sanskrit

उत्तर-राम। तात्पर्य यह कि राम शब्द का पहला अक्षर ‘र’ है और अन्तिम अक्षर ‘म’ । इनका राज्य रामराज्य के नाम से प्रसिद्ध है। इनके राज्य में किसी को कोई कष्ट नहीं था, (दैहिक दैविक भौतिक तापा, रामराज्य काहू नहीं व्यापा) वह जनता के अति प्रिय थे। वाल्मीकि ने रामायण नामक महाकाव्य में राम तथा उनके राज्य का वर्णन किया है अर्थात गाया है।

मेघश्यामोऽस्मि नो कृष्णो, महाकायो न पर्वतः ।
बलिष्ठोऽस्मि न भीमोऽस्मि, कोऽस्म्यहं नासिकाकरः॥

अर्थ-बादल के समान साँवला हूँ, लेकिन कृष्ण नहीं हूँ। विशाल शरीर वाला होते हुए पर्वत नहीं हूँ। बलवान हूँ लेकिन भीम नहीं हूँ तो नाक रूपी हाथ वाला मैं कौन हूँ?

उत्तर‘हाथी’ । हाथी का रंग काला होता है। उसका शरीर भी विशालकाय होता है। वह बलवान __ होते हुए भी भीम नहीं है। इसे नाक के रूप में लंबी सूंड होती है।

चक्री त्रिशुली न हरो न विष्णुः, महान् बलिष्ठो न च भीमसेनः।
स्वच्छन्दगामी न च नारदोऽपि, सीतावियोगी न च रामचन्द्रः।

अर्थ-चक्र धारण करता है, लेकिन विष्णु नहीं है। त्रिशूलधारी है, लेकिन शिव नहीं है। बहुत बलवान है लेकिन भीमसेन नहीं है। स्वतंत्र रूप से भ्रमण करनेवाला है, लेकिन नारद भी नहीं है। सीता का वियोगी है, लेकिन रामचन्द्र नहीं है तो क्या है ?

उत्तर–साँढ़।

साँढ़ को चक्र और त्रिशूल के निशान से दागा जाता है। वह बलिष्ठ या बलवान् भी होता है। वह स्वतंत्र रूप से विचरण करने वाला होता है और गाय की खोज या वियोग में परेशान रहता है। Prahelika class 8 sanskrit

दन्तैीन: शिलाभक्षी निर्जीवो बहुभाषकः।
गुणस्यूतिसमृद्धोऽपि परपादेन गच्छति ॥

अर्थजो बिना दाँत का भी चट्टानों को खा जाता है। प्राण रहित होने पर भी बहुत बोलता या आवाज करता है, धागों की सिलाई से भी युक्त होता है और दूसरे के पैर से चलता है। वह क्या है ?

उत्तर-जूता। जूता धागों की सिलाई से युक्त होता है। दाँत रहित होते हुए, चट्टानों को घिस देता है। जब इसे लोग पहन कर चलते हैं तो इससे मच्च-मच्च की आवाज होती है।

स्वच्छाच्छवदनं लोकाः द्रष्टुमिच्छन्ति मे यदा।
तत्रात्मानं हि पश्यन्ति खिन्नं, भद्रं यथायथम् ॥ ।

अर्थ-लोग मुझमें साफ तथा मुख जब देखना चाहते हैं तो उसमें अपने को ही प्रसन्न या उदास जैसा हो वैसा देखते हैं। बताओ मैं कौन हूँ ? उत्तर-दर्पण।

. जब लोग अपना मुँह दर्पण में देखते हैं तो उनका अपना ही साफ, प्रसन्न या उदास जैसा है वैसा ही चेहरा दिखाई देता है। अर्थात् दर्पण में मुँह देखने पर उनके चेहरे की स्थिति की वास्तविकता का पता चलता है कि चेहरा कैसा है।

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3.Asmakam desh class 8 Sanskrit | कक्षा 8 अस्माकं देशः (हमारा देश)

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 8 संस्‍कृत के कहानी पाठ तीन ‘अस्माकं देशः (हमारा देश)’ (Asmakam desh class 8 Sanskrit )’ के अर्थ को पढ़ेंगे।

Asmakam desh class 8 Sanskrit

तृतीयः पाठः
अस्माकं देशः (हमारा देश)

पाठ-परिचयप्रस्तुत पाठ ‘अस्माकं देशः’ में भारतवर्ष की प्राचीन सांस्कृतिक महिमा के साथ आधुनिक महापुरुषों की उपलब्धियों के विषय में बताया गया है। हमारा देश भारत आदि काल से ज्ञान-विज्ञान, सभ्यता-संस्कृति तथा आदर्श व्यवहार के लिए विश्वप्रसिद्ध रहा है। इसी देश ने विश्व में ज्ञान की ज्योति जलाई । प्राचीनकाल में इसकी सीमा पूर्व-पश्चिम में बहुत बड़े क्षेत्र को व्याप्त करती थी। आज इस देश के उत्तर में हिमालय, दक्षिण में हिन्द महासागर पूरब में म्यांमार तथा पश्चिम में अरब सागर है। इस पाठ में भारत के प्राचीन आधुनिक दोनों रूपों का यथार्थ चित्रण किया गया है।

उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम् ।
वर्ष तद् भारतं प्राहुः भारती यत्र सन्नतिः ॥

अर्थजो देश समुद्र (हिन्द महासागर) के उत्तर, हिमालय के दक्षिण में अवस्थित है, उसी देश को भारतवर्ष कहते हैं, जिसकी संतान भारतीय सरस्वती पुत्र कहलाते हैं। Asmakam desh class 8 Sanskrit

अस्माकं देश: भारतवर्षमिति कथ्यते । प्राचीनकालात् अस्य देशस्य प्राकृतिकी समृद्धिः साहित्यिक योगदानं, सांस्कृतिक वैभवं च आश्चर्यकरं बभूव । अत्रैव वेदानाम् आविर्भावः सप्तसिन्धुप्रदेशे जातः, यत्र भौतिकम् आध्यात्मिकं च चिन्तनम् अद्भुतम् आसीत् । उत्तरभारते महाकाव्यानां पुराणानां शास्त्राणां च व्यापकता दक्षिणदेशभागमपि स्वप्रकाशे आनयत् ।

तत्रापि शिलप्पदिकारम्-प्रभृतयः ग्रन्थाः प्राचीनकालतः एव तमिलसाहित्यस्य गौरवं वर्धितवन्तः । सम्पूर्णस्य भारतस्य सांस्कृतिके एकत्वे पुराणानां . योदानम् अविस्मरणीयम् । इदानीं भारतस्य जने-जने धर्मस्थलानां तीर्थयात्रार्थ योऽभिनिवेशः दृश्यते स नूनं पुराणसाहित्यकृतम् । दक्षिणस्य निवासी बदरीकेदारयात्रां करोति, उत्तररस्य निवासी रामेश्वर कन्याकुमारीतीर्थं च गन्तुमिच्छति । एवमेव द्वारिकाकामाख्यादिषु स्थलेषु गच्छन्ति तीर्थयात्रिकाः

अर्थहमारे देश को भारतवर्ष कहा जाता है। प्राचीन काल से ही इस देश की प्राकृतिक संपन्नता, साहित्यिक योगदान तथा सांस्कृतिक समृद्धि आश्चर्यजनक था। इसी देश में सात नदियों (सप्तसिंधु) के क्षेत्र में वेदों की उत्पति हुई। जहाँ भौतिक और सांस्कृतिक विषयों में आश्चर्यजनक चिन्तन हुआ । उत्तर भारत में महाकाव्यों, पुराणों तथा शास्त्रों के विस्तार अथवा प्रचार-प्रसार का प्रभाव दक्षिण भारत को प्रभावित किया। वहाँ भी तमिल शिलप्पदिकारम् महाकाव्य प्राचीन काल से ही तमिल साहित्य का गौरव बढ़ाए हुए हैं। सम्पूर्ण भारत की सांस्कृतिक एकता और साहित्यिक योगदान अविस्मरणीय है। इस समय भी लोगों में धर्मस्थलों. तथा तीर्थयात्रा के प्रति जो लगाव है, वह पुराण-साहित्य की ही देन है। दक्षिण भारत के लोग ब्रदीनाथ तथा केदारनाथ की यात्रा पर जाते हैं तो उत्तर भारत के लोग रामेश्वरम् एवं कन्याकुमारी जाते हैं अथवा जाना चाहते हैं। उसी, प्रकार द्वारिका नामक तीर्थ स्थान पर लोग जाते हैं।

अस्य देशस्य नद्यः पुण्यतोयाः मन्यन्ते, पर्वताः पवित्राः कथ्यन्ते, वृक्षाः पूज्यन्ते । प्रकृति प्रति भारतीयानाम् आश्चर्यकरम् आकर्षणमासीत् । पूजनीयत्वात् प्रकृतेः प्रदूषणं पापं मन्यते स्म । अत एवं पर्यावरणस्य कापि समस्या अत्र नासीत् ।।

अस्मिन् देशे विज्ञानस्यापि महती प्रतिष्ठा आसीत् । वास्तुशिल्पिन: ‘विशालानि मन्दिराणि निर्मान्ति स्म । भवनानि भव्यानि क्रियन्ते स्म । आकाशपिण्डानि ज्योतिर्विद्भिः अधीयन्ते स्म । अत्र चिकित्साशास्त्रमपि प्रगतिशीलम् । गणितशास्त्रे शून्यस्य कल्पना भारतेन कृता येन दशमलव-गणना प्रभारत, अन्यदेशेष्वपि गता। Asmakam desh class 8 Sanskrit

अर्थइस (भारत) देश की नदियों का जल पवित्र माना जाता है, पर्वतों को पवित्र कहा जाता है तथा पेड़ों की पूजा की जाती है। प्रकृति के प्रति भारतीयों का आश्चर्यजनक आकर्षण था । प्रकृति पूज्य होने के कारण इसे प्रदूपित करना पाप माना जाता था। इसी कारण यहाँ पर्यावरण प्रदूषण की कोई समस्या नहीं थी। इसदेश में विज्ञान का भी काफी सम्मान था । वास्तुकार विशाल मंदिरों (भवनों) का निर्माण करते थे। सुन्दर भवन बनाये जाते थे । ज्योतिषियों द्वारा ग्रह, उपग्रह तथा नक्षत्रों के विषय में अध्ययन (खोज) किया जाता था। यहाँ चिकित्साशास्त्र भी काफी उन्नत (विकसित) था। गणितशास्त्र में शून्य की कल्पना भारत द्वारा ही की गई थी, जिससे दशमलव की गणना शुरू हुई और दूसरे देश भी अवगत हुए।

भारतस्य प्राचीन गौरवं मध्यकाले किञ्चित् तिरोहितं पराधीनतया किन्तु सम्प्रति शिक्षिताः सन्तः जनाः आधुनिके विज्ञानेऽपि प्रतिभां दर्शयन्ति। सी० वी० रमण-जगदीशचन्द्र बसु-मेघनाथसाहा-होमी जहांगीर भाभा-विक्रम साराभाई प्रभृतयः वैज्ञानिकाः आधुनिकभारतस्य गौरववर्धकाः । एवं महात्मा गाँधीसदृशः कर्मवीरः, रवीन्द्रनाथठाकुरसदृशः साहित्यकार: अरविन्दसदृशः दार्शनिकः, राधाकृष्णन्सदृशः शिक्षकः राजेन्द्रप्रसादसदृशः स्थितप्रज्ञः इत्यादयः वर्तमानभारतस्य गौरवरूपाः नेतारः सन्ति

सम्प्रति देशस्य विकासः सार्वत्रिकः वर्तते । कृषिक्षेत्रे नवीनाः प्रयोगाः, संचारसाधनानि उत्कृष्टानि अन्तरिक्षक्षेत्रेऽपि विशिष्टं योगदानं स्वास्थ्यं प्रति जनजागरणं, चिकित्सासुविधानां वृद्धिः सर्वशिक्षाभियानम् इत्यादीनि उल्लेखनीयानि सन्ति । सर्वथापि देशः संसारस्य अग्रगण्येषु गणनीयो वर्तते।

अर्थभारत का प्राचीन गौरव मध्यकाल में पराधीनता के कारण कुछ समय के लिए लुप्त हो गया, किंतु इस समय शिक्षित होते हुए आज के समय में विज्ञान में भी प्रतिभा दिखाते हैं। सी. वी. रमण, जगदीशचन्द्र बसु, मेघनाथ साहा, होमी जहाँगीर भाभा, विक्रम साराभाई आदि-आदि वैज्ञानिकों ने इस समय भारत का गौरव बढ़ाया। इसी तरह गाँधी के समान कर्मवीर, रवीन्द्रनाथ ठाकुर जैसा साहित्यकार, अरविन्द जैसा दार्शनिक, राधाकृष्णन जैसा शिक्षक, राजेन्द्र प्रसाद जैसा स्थितप्रज्ञ (आत्मज्ञानी) नेता वर्तमान भारत के गौरव हैं।

इस समय देश हर क्षेत्र में विकास कर रहा है। कृषि के क्षेत्र में नया प्रयोग, उत्कृष्ट संचार साधन, अन्तरिक्ष के क्षेत्र में विशेष योगदान, स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता, विकसित चिकित्सा सुविधा और सर्वशिक्षा अभियान उल्लेखनीय हैं। इस प्रकार भारत सभी प्रकार से विश्व में अग्रगण्य है।

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2. Sanghe shakti class 8 Sanskrit | कक्षा 8 संघे शक्तिः (एकता में ही बल है)

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 8 संस्‍कृत के कहानी पाठ दो ‘ Sanghe shakti class 8 Sanskrit ( संघे शक्तिः)’ के अर्थ को पढ़ेंगे।

Sanghe shakti class 8 Sanskrit

द्वितीयः पाठः
संघे शक्तिः (एकता में ही बल है)

पाठ-परिचयप्रस्तुत पाठ ‘संघे शक्तिः ‘ में एकता के महत्व पर प्रकाश डाला गया है। किसी भी परिवार, समाज तथा देश का विकास एकता के बल पर निर्भर करता है। एकता के बिना व्यक्ति मूल्यहीन हो जाता है। एकता के अभाव में हमारा देश सदियों तक गुलाम रहा। जब हम संगठित हो गए, अंग्रेजों को भारत छोड़कर भागना पड़ा। इसलिए हमें अपनी एकता कायम रखनी चाहिए। एकता में महान शक्ति छिपी होती है। एकता का विरोध करनेवाला स्वतः धराशायी हो जाता है। प्रस्तुत पाठ में हमें मिलजुलकर रहने का संदेश दिया गया है।

अस्ति गङ्गायाः रमणीये तीरे पुष्कलनामको ग्रामः । तत्र बहुधनसम्पन्न: हरिहरो नाम कृषिकः । कृषिकर्मणा तेन प्रभूता सम्पत्तिरर्जिता । ग्रामे तत्परिसरे च तेन महती प्रतिष्ठा सम्प्राप्ता । तस्य चत्वारः पुत्राः अभवन्। पितुः कार्ये सहायतां नाकुर्वन्, प्रत्युत परस्परं नित्यं कलहायन्ते । एकः कथयति-त्वामेव पिता अधिकं मन्यते । त्वमेव तस्य विपुलां सम्पत्ति प्राप्यसि । अपरः वदति-त्वम् अतीव अलसः । कदापि किमपि हितकरम् उपयोगि कार्य न करोषि । तृतीयः तथैव विद्याध्ययनस्य निन्दा करोति, चतुर्थः विद्याध्ययनाय पितुः धनयाचना करोति तदा तृतीयः पितरं वारयति । एवमेव किमपि समाश्रित्य चतुर्ष भ्रातष कलहः प्रवर्तते स्म । अनेन ‘बुद्धिमान् पिता सततं चिन्तितस्तिष्ठति ।

अर्थ-गंगा के किनारे पुष्कल नाम का एक गाँव है। उस गाँव में हरिहर नाम का एक अति धनी किसान रहता है। खेती से उसने पर्याप्त धन कमाया। उस गाँव के आसपास उसकी काफी प्रतिष्ठा (आदर) थी। उन्हें चार पुत्र थे। (वे) पिता के काम में सहयोग नहीं करते थे, उल्टे आपस में चारों भाई लड़ते रहते थे। एक (पुत्र) कहता है. पिता तुम्हें अधिक मानते हैं। तुम्हीं उनका अधिक धन प्राप्त करोगे। दूसरा बोलता है—तुम बहुत आलसी हो। तुम कभी भी कोई अच्छा तथा उपयोगी काम नहीं करते हो। उसी प्रकार तीसरा पुत्र विद्याध्ययन की निंदा करता है। चौथा पिता से पढाई के लिये पैसे माँगता है तो तीसरा पिता को पैसे देने से मना करता है। ऐसे ही किसी भी बात को लेकर चारों भाई झड़ते रहते थे। इस कारण बुद्धिमान पिता हमेशा चिन्तित रहता है। Sanghe shakti class 8 Sanskrit 

वृद्धः पिता स्वपुत्रान् कृषिकर्मणः संचालनाय भूयो भूयः प्रेरयति किन्तु सर्वेऽपि अलसा: न शृण्वन्ति । एकदा स वार्धक्यजनितेन रोगेण ग्रस्तः शय्यासीनो जातः। स कलहायमानेषु पुत्रेषु संघबद्धतायाः महत्त्वस्य बोधनाय उपायमचिन्तयत्। सर्वानपि पुत्रानाहूय स एकस्मै सुबद्धं दण्डचतुष्टयं दत्वा प्राह-त्वमेनं भञ्जय । स कथमपि भक्तुं नाशक्नोत् । तदा अपरः पुत्रः तथैव आदिष्टः ।

अर्थ-वृद्ध पिता अपने पुत्रों को बार-बार खेती का काम करने के लिए प्रेरित करता है, लेकिन वे आलसी पुत्र सुनते नहीं हैं। एकबार वह बुढ़ापे से उत्पन्न रोगों से ग्रस्त बिछावन पकड़ लिए। उसने परस्पर लड़ने-झगड़ने वाले पुत्रों को मिलकर रहने (एकता) के महत्व को समझाने का एक उपाय सोचा। सभी पुत्रों को बुलाकर वह उनमें से एक के हाथ में सुंदर ढंग से बंधे हुए चार डंडों को देते हुए कहा-तुम इसे तोड़ो। वह कभी भी नहीं तोड़ सका। तब दूसरे पुत्र को उसे तोड़ने का आदेश दिया।

सोपि तद् दण्डचतुष्टयं भक्तुं न समर्थो जातः। इयमेव दशा अपरयोरपि पुत्रयोरभवत् । तदा वृद्धः पिता दण्डचतुष्टयं निर्बध्य एकैकं. दण्डम् एकैकस्मै पुत्राय दत्तवान् । किञ्च तं दण्डं बोटयितुं पुन: आदिष्टवान् । सर्वे पुत्राः स्व-स्व हस्तस्थं दण्डं भक्तुं समर्थाः जाताः । तदा पिता कथितवान्-पुत्रा ! एवमेव बुध्यध्वम् । यदि यूयं पृथक्-पृथक् तिष्ठथ, तदा कश्चित् शत्रुः युष्मान् एकैकान् विनाशयिष्यति । यदि पुनः यूयं सर्वे मिलित्वा सुबद्धाः तिष्ठथ, तदा कोऽपि बाह्यजनः युष्मान् विनाशयितुं न समर्थः । अयमुपदेश:-संहतिः श्रेयसी पुंसाम् । तस्माद् दिवसात् प्रभृति सर्वेऽपि चत्वारः पुत्राः स्व-स्व दुष्टविचारन् त्यक्त्वा परस्पर मेलनेन गृहेऽवर्तन्त पितुश्च सेवया तम् अरोगं कृतवन्तः । Sanghe shakti class 8 Sanskrit 

अर्थ-वह उन चारों डण्डों को तोड़ने में सफल नहीं हआ। इसी प्रकार दूसरे पुत्रों की भी दशा हुई। तब वृद्ध पिता ने चारो डण्डों को खोलकर एक-एक डण्डा सभी पुत्रा के हाथ में देकर तोड़ने को कहा। सभी अपने-अपने हाथ का डण्डा आसानी से तोड़ डाला । तब पिता ने पुत्रों को कहा—यदि तुम लोग अलग-अलग रहते हो तो कोई भी शत्रु एक-एक करके नष्ट कर देगा और यदि तुम मिलजुल रहते हो तो तुम्हारा कोई कुछ भी बिगाड़ नहीं सकता है। ऐसा उपदेश है :

मनुष्यों की शक्ति एकता में ही निहित होती है।

इसलिए आज के बाद से तुमलोग अपने बुरे विचारों का त्याग करके मेल-मिलाप से रहो। चारों ने मिलकर पिता की सेवा करके उन्हें रोगरहित किया।

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1. Manglam class 8th Sanskrit arth | कक्षा 8 मङ्गलम्

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 8 संस्‍कृत के कविता पाठ एक ‘ Manglam class 8th Sanskrit arth ( मङ्गलम्)’ के अर्थ को पढ़ेंगे।

Manglam class 8th Sanskrit arth

प्रथमः पाठः
मङ्गलम् . (प्रार्थना)

पाठ-परिचयप्रस्तुत पाठ ‘मङ्गलम्’ में ऋग्वेद तथा उपनिषदों के मंगल-मंत्र संकलित हैं जिनमें सहयोग एवं गुरु-शिष्य के अभ्युदय की कामना की गई है। भारत की ऐसी प्राचीन परंपरा रही है कि कोई भी महत्वपूर्ण कार्य मंगलाचरण से ही आरंभ होता है। लोगों का ऐसा विश्वास है कि जब कोई काम देवताओं, गुरुओं अथता प्रभुप्रार्थना से आरंभ किया जाता है तो वह काम निर्विघ्नतापूर्वक सम्पन्न होता है, जिससे, उद्देश्य की पूर्ति सहजता से होती है।

संगच्छध्वं संवदध्वंसं वो मनांसि जानताम्।
देवा भागं यथा पूर्व सञ्जानाना उपासते ॥

अर्थ-हे स्तुति करने वालो ! साथ चलो। साथ बोलो। तुम्हारा मन समान हो, जिस प्रकार प्राचीनकाल में देवता समान मन होकर यज्ञ में दिए हविष्य का भाग ग्रहण करते थे, उसी प्रकार तुम भी अपनी समान गति से अपने श्रेय को ग्रहण करो।

सह नाववतु सह नौ भुनक्तु सह वीर्यं करवावहै ।
तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषा वहै ॥

अर्थ हे ईश्वर! हम सब सबकी रक्षा करें, मिलकर खाएँ, हमारां अध्ययन अध्यापन हमारी रक्षा करने वाला तथा तेजस्वी बनाने वाला हो। हम सब परिश्रमी एवं पराक्रमी बनें। हमसब मिलकर रहें, कभी झगड़ा न करें।

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10.Kumbh ka Atma Balidan class 7 Saransh | कक्षा 7 कुंभा का आत्‍मबलिदान

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 7 हिन्‍दी के कहानी पाठ दस ‘ .Varsha Bahar ( वर्षा बहार )’ के सारांश को पढ़ेंगे।

 

10.कुंभा का आत्‍मबलिदान

पाठ का सारांश- प्रस्तुत कहानी ‘कुम्भा का आत्मबलिदान’ में बूंदी के हाडाही कुंभा के राष्ट्रप्रेम का वर्णन किया गया है। 10.Kumbh ka Atma Balidan class 7 Saransh
बूंदी राजपूतों की एक छोटी रियासत थी। वहाँ के निवासी हाड़ा जाति के नाम अपनी मातृभूमि के प्रति पूर्ण समर्पित थे। एकबार चित्तौड़ के महाराणा ने सैन्य-शति के बल पर उस पर अधिकार करना चाहा। बूंदी के वीरों ने उसका मुँह तोड़ जवाब दिया। अपमानजनक अपने पराजय से राणा तिलमिला उठे। इसी क्रोधावेग में उन्होंने प्रतिज्ञा कर ली कि बूंदी विजय के बाद ही अन्न-जल ग्रहण करूँगा। राणा की इस प्रतिज्ञा से सभी परेशान हो गए, क्योंकि पुन: बूंदी पर आक्रमण करना इतना आसान नहीं था। इसके लिए पूरी तैयारी करनी पड़ती, जिसमें काफी समय लगने की संभावना थी। राणा अपनी प्रतिज्ञा पर अटल थे, इसलिए मंत्री ने एक उपाय सोचा कि बूंदी का एक नकली किला बनाया जाए और राणा उसे जीत कर अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर लें। सबको यह योजना पसंद आई। मैदान में बूंदी का नकली किला बनाया जाने लगा। इसी समय चित्तौड़ सेना का एकं हाड़ा सैनिक जंगल से शिकार करके लौटा। किला की बनावट एवं सजावट दी के किले के समान देख उसके मन में मातृभूमि बूंदी के प्रति सम्मान का भाव जाग उठा और उसके मन में बार-बार यह उठने लगा कि ‘आखिर बूंदी का यह नकली किला क्यों बनाया जा रहा है ? .. … अपनी जिज्ञासा की शांति के लिए वह कारीगर के पास पहुँचा। कारीगर से सारी बातें जानने के बाद उसका स्वाभिमान मातृभूमि के अपमान का प्रतिकार करने के लिए उद्वेलित करने लगा। उसने निश्चय कर लिया कि जब तक हाड़ा वीर जीवित है तब • तक बूंदी को कोई अपमानित नहीं कर सकता। चित्तौड़वासी हाड़ा वीरों के इस विरोध से बिलकुल बेखबर थे। इसलिए राणा जब नकली किले में घुसना चाहा कि अपने अधीनस्थ हाड़ा सैनिकों के विरोध का सामना करना पड़ा। इस विरोध का कारण जानने के लिए जैसे ही राणा का सेनापति आगे बढ़ा कि अंदर से हाड़ा राजपूत वीर कंभा का गर्जन सुनाई पड़ा, “सेनापति जी, खबरदार! हमारे प्राण रहते इस किले में पैर नहीं रख सकते । “सेनापतिजी ! मातृभूमि तो मातृभूमि होती है। प्राण देकर भी इसकी रक्षा करना वीरों का कर्तव्य है।” हमने राणा का नमक खाया है उनके लिए हम प्राण दे सकते हैं, लेकिन किसी के हाथों मातृभूमि का अपमान सहन नहीं कर सकते । लाख प्रयास के बावजूद वह हाडा वीर अपने प्रण पर मोर्चाबंदी किए अटल रहा। अन्तत: बूंदी के बीस-पच्चीस वीरों ने हाड़ा कुंभा के नेतृत्व में मातृभूमि के सम्मान की रक्षा में अपने प्राण की बाजी लगा दी। राणा की जीत तो हुई, लेकिन हाड़ा वीर कुंभा के बलिदान ने यह सिद्ध कर दिया कि राणा जीतकर भी हार गया, क्योंकि कुंभा एवं उसकी टोली के वीरों ने मातृभूमि की आनबान की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर किए थे। इसलिए कोई-कोई जीत हार से भी बदतर होती है और कोई हार जीत से भी अधिक शानदार । अत: कुंभा का आत्मबलिदान किसी शानदार जीत से अधिक गौरवपूर्ण है। इसीलिये मैथिली शरण गुप्त ने लिखा है “जिसे न अपने देश और निज जाति का अभिमान है, वह नर नहीं निरा पशु है और मृतक समान है।” 10.Kumbh ka Atma Balidan class 7 Saransh

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Ganga stuti class 7th Hindi

Nachiketa in hindi class 7

8.Bachpan Ke din class 7 Saransh in Hindi | कक्षा 7 बचपन के दिन 

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 7 हिन्‍दी के कहानी पाठ आठ ‘ Bachpan Ke din ( बचपन के दिन )’ के सारांश को पढ़ेंगे।

Bachpan Ke din class 7 Saransh in Hindi

बचपन के दिन

पाठ का सारांश-प्रस्तुत संस्मरण ‘बचपन के दिन’ में लेखक ने अपने बचपन को आप-बोतो घटनाओं का वर्णन किया है।लेखक ए. पी. जे. अब्दुल कलाम का जन्म तमिलनाडु के रामेश्वरम् कस्बे में एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था। इनके पिता जैनुलाबदीन ने अधिक विधिवत शिक्षा नहीं पाई थी। लेकिन वे बुद्धिमान एवं अति उदार प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। इनकी माता का नाम अक्षयन्ना धा, जो आदर्श विचार को महिला थीं। रामेश्वरम् की मस्जिदवाली गली में इनका खानदानो घर था। Bachpan Ke din class 7 Saransh in Hindi
इनका नामांकन रामेश्वरम् की एक प्राथमिक पाठशाला में कराया गया। रामानंद शास्त्री, अरविंदन तथा शिव प्रकाशन ये तीनों इनके मित्र थे। जब लेखक पाँचवीं कक्षा में था तब कक्षा में एक नए शिक्षक आए, जिन्होंने मुसलमान जानकर इन्हें पीछे वाली बेंच पर बैठने को कहा। क्योंकि नए शिक्षक को जनेऊ वाले लड़के का मुसलमान लड़के के साथ बैठना अच्छा नहीं लगा। शिक्षक के इस व्यवहार से दु:खी रामानंद ने अपने पिता लक्ष्मण शास्त्री, जो रामेश्वरम् मंदिर के प्रधान पुजारी थे, ने शिक्षक के दुर्व्यवहार के विषय में शिकायत की। रामानंद के पिता शास्त्रीजी ने शिक्षक को कहा- “इस प्रकार को सामाजिक असमानता एवं सांप्रदायिकता का विष निर्दोष बच्चों के दिमाग में नहीं घोलना चाहिए।” शास्त्रीजी के कड़े रुख एवं धर्मनिरपेक्षता में उनका विश्वास देखकर शिक्षक ने भी अपने व्यवहार में बदलाव कर लिया।
लेखक ने इसी प्राथमिक पाठशाला के विज्ञान शिक्षक शिव सुब्रह्मण्यम अय्यर की विशेषता का वर्णन करते हुए कहता है कि विज्ञान शिक्षक कट्टर ब्राह्मण होते हुए भी रूढ़िवादी नहीं थे। वह लेखक को एक महान व्यक्ति के रूप में देखने के अभिलाषी थे। वह लेखक को काफी प्यार करते थे। एक बार शिक्षक महोदय ने लेखक को भोजन पर आमंत्रित किया । उनकी पत्नी ने उन्हें रसोईघर के अंदर खिलाने से इनकार कर दिया। लेखक के मनोभाव को भांपते हुए शिक्षक ने पुन: उन्हें रात्रिभोज पर आमंत्रित किया तथा उनसे कहा- “इसमें परेशान होने की जरूरत नहीं है । एक बार जब तुम व्यवस्था बदल मला कर लेते हो तो ऐसी समस्याएँ आती ही नहीं हैं।’ इस बार शिक्षक ने स्वयं रसोईघर में लेखक को प्रेमपूर्वक भोजन कराया। Bachpan Ke din class 7 Saransh in Hindi
पंद्रह साल की आयु में लेखक का दाखिला श्वार्ट्स हाई स्कूल में हुआ। उस स्कूल शिक्षक आयादरै सोलोमन अति स्नेही एवं खुले दिमाग के व्यक्ति थे। वहा छात्रों को सदैव उत्साहित करते रहते थे। उनका मानना था कि अच्छे परिणाम की प्राप्ति के का छात्रों में इच्छा, आस्था तथा उम्मीदा का होना आवश्यक है, वह छात्रों को उनके भीतर छिपी शक्ति एवं योग्यता का आभास कराते हुए कहते थे कि निष्ठा एवं विश्वास से ही नियति को बदला जा सकता है।

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Nachiketa in hindi class 7

Bihar Board Class 9th Sanskrit Solutions Notes पीयूषम् प्रथमो भाग: (भाग 1)

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड के कक्षा 9 के संस्‍कृत पीयूषम् प्रथमो भाग: (भाग 1) और पीयूषम् द्रुतपाठाय भाग 1 Bihar Board Class 9th Sanskrit Solutions All Topics के सभी पाठ के व्‍याख्‍या को पढ़ेंगें।

यह पोस्‍ट बिहार बोर्ड के परीक्षा की दृष्टि से काफी महत्‍वपूर्ण है। इसको पढ़ने से आपके किताब के सभी प्रश्‍न आसानी से हल हो जाऐंगे। इसमें चैप्‍टर वाइज सभी पाठ के नोट्स को उपलब्‍ध कराया गया है। सभी टॉपिक के बारे में आसान भाषा में बताया गया है।

यह नोट्स NCERT तथा SCERT बिहार पाठ्यक्रम पर पूर्ण रूप से आ‍धारित है। इसमें संस्‍कृत के प्रत्‍येक पाठ के बारे में व्‍याख्‍या किया गया है, जो परीक्षा की दृष्टि से बहुत ही महत्‍वपूर्ण है। इस पोस्‍ट को पढ़कर आप बिहार बोर्ड कक्षा 9 के संस्‍कृत पीयूषम् प्रथमो भाग: (भाग 1) और पीयूषम् द्रुतपाठाय भाग 1के किसी भी पाठ को आसानी से समझ सकते हैं और उस पाठ के प्रश्‍नों का उत्तर दे सकते हैं। जिस भी पाठ को पढ़ना है उस पर क्लिक कीजिएगा, तो वह पाठ खुल जाऐगा। उस पाठ के बारे में आपको वहाँ सम्‍पूर्ण जानकारी मिल जाऐगी।

Class 9th Sanskrit Solutions Notes संस्‍कृत के सम्‍पूर्ण पाठ का व्‍याख्‍या

Bihar Board Class 9th Sanskrit Solutions संस्‍कृत पीयूषम् प्रथमो भाग: (भाग 1)

Chapter 1 ईशस्तुति:
Chapter 2 लोभविष्टः चक्रधरः
Chapter 3 यक्ष-युधिष्ठिर संवाद
Chapter 4 चत्वारो वेदाः
Chapter 5 संस्कृतस्य महिमा
Chapter 6 संस्कृतसाहित्ये पर्यावरणम्
Chapter 7 ज्ञानं भारः क्रियां विना
Chapter 8 नीतिपधानिः
Chapter 9 बिहारस्य संस्कृतिकं वैभवम्
Chapter 10 ईद-महोत्सवः
Chapter 11 ग्राम्यजीवनम्
Chapter 12 वीर कूँवर सिंहः
Chapter 13 किशोराणां मनोविज्ञानम्
Chapter 14 राष्ट्रबोधः
Chapter 15 विश्ववन्दिता वैशाली

Bihar Board Class 9th Sanskrit Solutions संस्‍कृत पीयूषम् प्रथमो भाग: (भाग 1) (अनुपूरक पुस्तक)

संस्कृत पीयूषम् द्रतयपाठय भाग 1 (अनुपूरक पुस्तक)

Chapter 1 सरस्वती-वन्दना
Chapter 2 संस्कृत-भाषा
Chapter 3 प्रार्थना
Chapter 4 यत्तं विना न रत्नम्
Chapter 5 विदुला-पुत्र संवादः
Chapter 6 सम्पूर्णविश्वरत्नम्
Chapter 7 लोकगीतम्
Chapter 8 अमृतं बालभाषितम्
Chapter 9 प्रभात-वर्णनम्
Chapter 10 नायं छागः
Chapter 11 प्रयाणगीतम्
Chapter 12 महात्मा गाँधी
Chapter 13 भारतीयप्रजातन्त्रम्
Chapter 14 संस्मरणम्
Chapter 15 धर्मेषु भावः समानः समेषाम्
Chapter 16 बिहारो विहारे सदा रोचताम् वः
Chapter 17 लौहस्य तुला
Chapter 18 ज्ञानेन शोभते किल
Chapter 19 कुरुक्षेत्रम्
Chapter 20 प्रहेलिका
Chapter 21 ग्रन्थकाराः

Piyusham Bhag 1 Sanskrit Book Solutions

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आशा करता हुँ कि आप को संस्‍कृत के सभी पाठ को पढ़कर अच्‍छा लगेगा। इन सभी पाठ को पढ़कर आप निश्चित ही परीक्षा में काफी अच्‍छा स्‍कोर कर सकेंगे। इन सभी पाठ को बहुत ही अच्‍छा तरीका से आसान भाषा में तैयार किया गया है ताकि आप सभी को आसानी से समझ में आए। इसमें कक्षा 9 संस्‍कृत पीयूषम् भाग 1तथा पीयूषम् संस्‍कृत द्रुतपाठाय भाग 1के सभी पाठ का व्‍याख्‍या हिन्‍दी अर्थ के साथ किया गया है। यदि आप बिहार बोर्ड कक्षा 9 संस्‍कृत से संबंधित किसी भी पाठ के बारे में जानना चाहते हैं, तो नीचे कमेन्‍ट बॉक्‍स में क्लिक कर पूछ सकते हैं। यदि आप और विषय के बारे में पढ़ना चाहते हैं तो भी हमें कमेंट बॉक्‍स में बता सकते हैं। आपका बहुत-बहुत धन्‍यवाद.